झेन फ़कीर बोकोजू एक पहाड की तलहटी मे टुटे फ़ूटे से झौपडे में रहते थे. वहां तक पहुंचना भी बडा दूभर था. पूरा पहाड चढ कर दूसरी तरफ़ की तलहटी मे उनका झौपडा था. एक बहुत पढे लिखे तथाकथित प्रोफ़ेसर महोदय को उनसे मिलने की अभिलाषा हुई तो गिरते पडते, हांफ़ते हुये हुये, पसीने मे तर बतर होकर बोकोजू के पास पहुंच गये.

और पहुंचते ही बोले - मुझे ईश्वर के बारे मे जानना है? ईश्वर आखिर है क्या?
बोकोजू बोले - जरूर. पर आप पसीने मे तर बतर होकर पहाड चढकर यहां तक आये हैं. आपको मैं थोडा पंखा झल देता हूं, पसीना थोडा सूख जाये...फ़िर मैं आपके लिये चाय नाश्ते का ईंतजाम करता हूं, आप थोडा तब तक सुस्ता लें. इत्मिनान से बाते होंगी....और बोकोजू उसको पंखा झलने लगे. बाद मे वो चाय बनाने लग गये.
वो बुद्दिजीवी प्रोफ़ेसर अचंभित हुआ कि बोकोजू जैसा परम संत उसके लिये चाय बना कर लायेगा? आश्चर्य घोर आश्चर्य...इतनी देर में बोकोजू हाथ मे कप प्लेट और चाय की केटली लिये हाजिर होगया.
बोकोजू ने कप प्लेट प्रोफ़ेसर के हाथ मे दी और केटली से चाय उसके कप मे डालने लगा. कप भरता गया..लेकिन बोकोजू चाय डालता ही रहा...फ़िर प्लेट भी भर गई.
फ़िर भी चाय का डाला जाना जारी रहा....जब प्रोफ़ेसर को लगा कि अगर अब चाय का डाला जाना बंद नही हुआ तो यह चाय अब उसके कपडे खराब कर देगी..और गर्मा गर्म चाय से वो जल भी सकता है. सो वो बोला - महाराज...आप यह क्या कर रहे हैं? आप बेहोश हैं या पागल? आपको दिखाई नही दे रहा है कि यह कप और प्लेट दोनों चाय से पूरी तरह लबालब भर चुके हैं..और इसमे अब एक भी बूंद चाय और नही समा सकती?
बोकोजू बोले - अरे वाह..तुम तो आदमी समझदार लाग्ते हो? मैं तो समझा था तुम निरे बुद्धिजीवी प्रोफ़ेसर ही हो..पर तुम्हारे अंदर तो थोडी अक्ल अब भी बाकी है. क्योंकि यह बात तुमको समझ आरही है कि इस प्याली मे और चाय नही डाली जा सकती क्योंकि यह लबालब भर चुकी है.
अब मैं तुमसे पूछता हूं कि आंखे जरा बंद करो और देखो की तुम्हारी खोपडी पूरी भरी हुई है या नही? अगर पूरी खोपडी भरी है तो उसमे कुछ और डाला नही जा सकता....तो अब जावो और अपनी खोपडी खाली करके आना..तब मैं इसमे कुछ डाल सकूंगा...या चाहो तो यहीं रुक जावो..मेरे पास खोपडी खाली करने के उपाय भी हैं...!
मग्गा बाबा का प्रणाम!