एक बार स्वामी रामतीर्थ पानी के जहाज से अमेरिका जा रहे थे. जब जहाज किनारे लगने वाला था तब वहां काफ़ी गहमा गहमी
और हलचल बढ गयी. सभी लोग अपना सामान समेटने मे लगे हुये थे. स्वामी जी बिल्कुल शांत और मौन बैठे हुये थे. लोगों
को बडा आश्चर्य हो रहा था कि इनको अपना सामान नही समेटना है क्या?
तट पर अनेक लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों का स्वागत करने या उन्हे लिवाने आये थे. बहुत कोलाहल था पर स्वामी जी
इस शोरगुल मे भी बडी शांति से बैठे थे. उनको इस तरह शांत बैठे देखकर एक अमेरिकी युवती को बडा आश्चर्य हुआ और वो
स्वामीजी के पास आकर बोली - श्रीमान आप कौन हैं? और कहां से आये हैं?
स्वामी जी ने बडी शांतिपुर्वक उत्तर दिया - मैं हिंदुस्थान का फ़कीर हूं.
उस युवती ने फ़िर पूछा : क्या आपके पास यहां ठहरने के लिये पर्याप्त धन है? या यहां आपका कोई परिचित है?
स्वामी जी ने कहा - मेरे पास धन संपति तो कुछ नही पर थोडा परिचय अवश्य है.
युवती ने परिचय जानना चाहा तो स्वामीजी बोले - मेरा आपसे परिचय है और थोडा भगवान से है.
अब युवती बोली - अगर ऐसा है तो क्या आप मेरे घर चलेंगे?
स्वामीजी ने उसका आमंत्रण स्वीकार कर लिया और उसके घर जाकर ठहर गये.
एक इंसान का दुसरे इंसान पर और भगवान पर ऐसा भरोसा ही सच्चे स्नेह को जन्म देता है. अपने विचारों मे जितनी सादगी और सरलता रखेंगे
उसका प्रतिदान भी वैसा ही सहज और स्नेहपुर्ण मिलेगा.
मग्गाबाबा का प्रणाम !
5 comments:
29 June 2009 at 01:11
बाबा जी बात तो बहुत अच्छी बताई, लेकिन आज कल पहले विशवास जीता जाता है, फ़िर टोपी पहनई जाती है, मेरे साथ एक दो बार हुया है.
राम राम जी की
29 June 2009 at 03:57
एक इंसान का दुसरे इंसान पर और भगवान पर ऐसा भरोसा ही सच्चे स्नेह को जन्म देता है. अपने विचारों मे जितनी सादगी और सरलता रखेंगे
उसका प्रतिदान भी वैसा ही सहज और स्नेहपुर्ण मिलेगा.
मग्गाबाबाजी, आपने जो बताया वो बहुमुल्य सार है जीवन का.
आपका आभार
मुम्बई टाईगर
29 June 2009 at 05:42
एक इंसान का दुसरे इंसान पर और भगवान पर ऐसा भरोसा ही सच्चे स्नेह को जन्म देता है. अपने विचारों मे जितनी सादगी और सरलता रखेंगे
उसका प्रतिदान भी वैसा ही सहज और स्नेहपुर्ण मिलेगा
बिलकुल सही कहा आपने. जहां आत्मविश्वास पूरा नहीं पड़ता वहां भी परमात्मा पर विश्वास काम आता है और रहा अविश्वास, तो वह तो हमारे सबसे बड़े दुश्मनों में से एक है.
मग्गा बाबा की जय!
29 June 2009 at 11:27
बाबाजी यही चीज तो संसार से उठती जा रही है! किसी दुर्लभ प्राणी की तरह लूप हो रही है!!
1 September 2009 at 00:49
इस युग मे तो हर मनुश्य एक दूसरे को सन्देह की द्रष्टि से देखता है । काश वह समय पुन: आ जाये ।
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