ताऊ शनीचरी पहेली राऊंड २ (अंक - १)

आदरणीय बहणॊं और भाईयों, भतीजों और भतीजियों रामराम.

"ताऊ शनीचरी पहेली राऊंड २ (अंक - १)" का प्रकाशन हो चुका है. कुछ लोगों को 
इसकी फ़ीड नही मिल रही है. उसके लिये हमें खेद है.

कृपया यहां चटका लगा कर इस पहेली मे भाग लेने की कृपा करें.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया. 

मुफ़्त का चंदन घिस मेरे नंदन : ताऊ

Posted By P. C. Rampuria (Mudgal)

नमस्कार, आपके पधारने का धन्यवाद.

रामपुरिया का हरयाणवी ताऊनामा का टेम्पलेट कुछ नखरे दिखाने लग गया है. उससे समझोता वार्ता चल रही है. अगर समझौता हो गया तो ठीक वर्ना हम दुसरा टेम्पलेट देख रहे हैं. आपसे विवेदन है कि मेरी आज की पोस्ट और खूंटा यहां नीचे पढने का कष्ट करें.

धन्यवाद.

निवेदन कर्ता : ताऊ रामपुरिया

----------------------------------------------------------------------

आजकल बिना मांगे सलाह देने की बहार आई हुई है. जिसे देखो वो सलाह देना शुरु कर देता है. हमारे इंदोरी मित्र श्री दिलिप कवठेकर जी ने हमको ढूंढने के चक्कर में वो वाली पान की दुकान ढूंढ ली जहां की सलाह पढ कर हमारे ज्ञान चक्षू खुले थे. यानि जहां किसी को ज्ञान ना बांटने की सलाह दी गई है. और उस दुकान वाले से उन्होने हमारा पता लेकर,  हमारे ताऊ आश्रम तक आ पधारे.

 

यानि वो ऐसे पहले ब्लागर बने जो ये दावा कर सकते हैं कि ताऊ को मिलने वाले वो प्रथम ब्लागर हैं. अब ये भगवान जाने कि वो ताऊ के हमशक्ल से मिले या कि किसी और से?  हमको भी कुछ नही पता. तो अब ज्यादा आपको क्या बताये?

 

लोगों ने सलाह दी कि ताऊ अब ये भैंस पुराण बहुत होगया इसे बंद करो और कुछ इज्जत लायक लिखो. बुढौती मे कदम रख दिये और ये उल्टे सीधे काम करते हो? कभी पहेली, कभी कविता...जाने तुम्हारी अक्ल को भी क्या हो गया है?  अरे कुछ तो ऐसा लिखो जो की किसी के काम आये. कोरी बकबास लिखते हो. तुमसे ऐसी उम्मीद नही थी हमको.

 

लो कर लो बात.. बुढौती मे  इज्जत लायक लिखने की अक्ल आने की गारंटी है क्या? अब इज्जत लायक क्या लिखें? अरे आप जरा बिना दुध पिये रह जाओ ! फ़िर जाने हम आपको. अब ये भैंसे हैं तो आपकी सेहत है. और सेहत है तो अक्ल है. अब आपने हमारी भैंसों से ही हमको दूर करवा दिया तो लिखने की अक्ल कहां से आयेगी?

 

खामखाह हमारी चंपाकली और अनारकली से हमको दूर करवा दिया और खुद तो खरीद कर दूध का सेवन करते हैं और हमे चाय पीने के काबिल भी नही छोडा.

 

हम तो जारहे हैं अपनी चंपाकली को लेने चांद पर. किसी को ऐतराज हो तो हमारी बला से. हमने भी फ़ुरसतिया जी का ध्येय वाक्य आत्मसात कर लिया है कि हम तो भैंस,गधे और बिल्ली बंदर पर ही जबरदस्ती लिखेंगे. कोई हमारा क्या कर लेगा?

 

 

donkey-post ताऊ पत्रिका-१० मे " मेरी कलम से " स्तंभ मे सु. सीमाजी ने गधे की कहानी सुनाई थी कि लडके और बुड्ढे ने गधे को नदी मे पटक दिया और उससे हाथ धो लिया.

 

अब सु. सीमाजी को क्या बतायें कि वो बुड्ढा और लडका असल मे रामदयाल कुम्हार और उसका लडका रमलू थे. सीमा जी ने सिर्फ़ प्रबंधकीय लिहाज से उस घटना का अवलोकन किया. पर असल बात बहुत गहरे राज की है.

 

तो आइये वो असली बात हम आपको बता देते हैं कि वो गधा जिसका नाम संतू गधा था वो नदी मे गलती से गिरा था या रामदयाल और उसके छोरे रमलू ने जान बूझकर अपना पीछा छुडाने को गिरा दिया?

 

वाकई बहुत शातिर थे दोनों बाप बेटे. मेनका गांधी की फ़ौज से बचने का पक्का उपाय किया था उन्होनें.  

 

जब रामदयाल और उसके लडके रमलू ने उनके गधे संतू  को नदी मे पटका था उसके कुछ समय पहले वो संतू गधा बडा दुखी होता हुआ  ताऊ के पास आया था.

 

और बडे दुखी मन से बोला कि ताऊ अब मैं बुढ्ढा हो चला हूं, पहले जैसा काम भी नही कर पाता. अब ये रामदयाल मुझे बेचना चाहता है पर मेरे टुटे दांत देख कर कोई खरीदता नही है.

 

अब मैं इनको चारे से भी महंगा पडने लग गया हूं. कल रात ही रमलू अपने बापू रामदयाल से कह रहा था कि बापू चल, इस संतू गधे को कही जंगल मे छोड आते हैं वहां शेर चीता इसको खा पी लेंगे और हमारा पीछा छूट जायेगा.

 

संतू गधा आगे बोला - अब बताओ ताऊ, मैं क्या करूं? कितने कृतघ्न इन्सान हैं ये दोनों बाप बेटे? जब मैं दिन रात काम करता था तब ये ही रामदयाल कहता था कि ये गधा नही ये तो मेरे रमलू के बराबर है. मैं इसको सच्चा प्यार करता हूं.

 

ताऊ : देख बेटा संतू गधे, अब तू सच्चे प्यार की दुहाई तो दे मत. अरे बावलीबूच, सच्चा प्रेम तो भूत की तरह है जिसकी  चर्चा तो सब करते हैं, पर उसको  देखा किसी ने नहीं। तू भी तो आखिर जवानी मे चंपा गधेडी को यही सपने दिखाया करता था ना?

 

अब ताऊ आगे बोला - देख मेरे प्यारे गधे.  तू भी आखिर ताऊ के पास आया है और जब सब बिन मांगी सलाह देने लग रहे हैं तो तू तो  आगे चल कर सलाह मांगने आया है.

 

और तेरी मदद तो मैं अवश्य ही करुंगा क्योंकि तू तो कृष्णचंदर जी वाले गधे की औलाद है. तेरी नस्ल को भी तो संरक्षित करना ही है ना.

 

एक सलाह ये कि हमेशा अपना मोबाईल अपने साथ मे रखना. जब भी आफ़त मे आओ मुझे फ़ोन करना तब मैं तुमको उपाय बताऊंगा. अभी से क्या बताऊं? पता नही तुझे रामदयाल और रमलू कहां लेजाकर मारेंगे? बस तू तो मुझे फ़ोन कर लेना. ताऊ की बात मानकर संतू गधा उस समय तो वापस चला गया.

 

पर  अगले ही सप्ताह अचानक उस गधे का फ़ोन आया और बोला - हैलो..हैलो  ताऊ,  मर गया मैं तो. बचाओ..बचाओ...उसकी डूबी सी आवाज आ रही थी.

 

ताऊ ने  पूछा - हां हैलो..कौन संतू? हैलो हां ..बोल बेटे बोल...क्या कहा मर गया? तो फ़िर कहां नरक से बोल रहा है? या सीधे स्वर्ग मे उर्वशी - मेनका की नृत्य महफ़िल आबाद कर रहा है?

 

गधा बोला - ताऊ, मजाक का समय नही है. रामदयाल और रमलू ने मुझे गांव के बाहर वाले सुखे कुये मे धक्का दे दिया है और अब गांव मे जाकर हल्ला कर रहे हैं कि उनका गधा अंधेरे मे कुंये मे गिर पडा है. मुझे बचाओ ताऊ.

 

अब ताऊ ने गधे को अपनी स्कीम समझाई और घबराने की बजाये धैर्य से काम लेने की सलाह दी.  बाकी का किस्सा अगले हिस्से मे पढ लिजियेगा कि संतू  गधा कुयें से निकला या वहीं मर गया कुएं में.

 


इब खूंटे पै पढो :-

जैसा कि आप जानते हैं कि ताऊ आजकल डाक्टर बन गया है और उसकी प्रेक्टिस भी
अच्छी चल रही है. लोगों को फ़ायदा भी बहुत जल्दी हो जाता है.

पर अब डाक्टर ताऊ की परेशानी इस लिये बढ गई कि जितने भी पहचान वाले हैं वो
सब आकर फ़ोकट मे इलाज करवा कर चले जाते हैं. यहां तक की कोई कैट-स्केन के
पैसे भी देने को तैयार नही.

एक रोज एक पार्टी में डाक्टर ताऊ गया था. वहां भी सब लोगों ने घेर लिया और कोई
अपनी सर्दी जुकाम का, कोई एलर्जी का यानि सब अपनी २ बीमारी की दवा पूछने लगे.

तभी वहां अपने वकील साहब द्विवेदी जी भी पधारे. अब डाक्टर ताउ ने वकील साहब से पूछा कि यार वकील साहब, मैं तो इन फ़ोकटियों का इलाज करके दुखी हो गया. फ़ीस
देते नही हैं और जहां चाहे वहां मिलते ही अपनी बीमारी का इलाज पूछने लगते हैं.
आप भी वकालत करते हैं. ऐसी समस्या आपको भी आती होगी? आप क्या करते हैं?
मुझे भी कुछ उपाय बताओ भाई.

द्विवेदी जी बोले - अरे डाक्टर ताऊ, मैं तो तुरंत पूछते ही सलाह दे देता हूं. इसमे क्या है? और फ़ीस का बिल बाद मे चपरासी द्वारा उनके घर भिजवा देता हूं.

डाक्टर ताऊ को ये बात समझ मे  आ गई, और घर आकर जितने भी लोगों ने उससे
इलाज की सलाह ली थी उनके बिल बना कर लिफ़ाफ़े मे पैक करवा कर उनके यहां
भेजने लगा.

तभी रामप्यारी जो बाहर रिशेप्शन पर बैठी थी वो एक लिफ़ाफ़ा हाथ मे लेकर आई.
और बोली - डाक्टर ताऊ, ये लिफ़ाफ़ा द्विवेदी जी वकील साहब का चपरासी दे गया है.

डाक्टर ताऊ ने लिफ़ाफ़ा खोल कर देखा तो उसमे कल पार्टी के दौरान वकील साहब द्वारा ताऊ को दी गई सलाह का बिल था सिर्फ़ रुपया दस हजार का.
  

ताऊ साप्ताहिक पत्रिका -९

नमस्कार,


रामपुरिया का हरयाणवीं ताऊनामा की सोमवार की पोस्ट ज्यादातर ब्लोग्स
पर अपटेड नही होती है. ऐसा पाया गया है,

हमने बहुत कोशीश की है इसे सुधारने की. और  श्री आशीष खंडॆलवाल के बताये
अनुसार हमने इस बर फ़ोटो भी काफ़ी कम दिये हैं. 

पर वापिस वही समस्या है.  कृपया आप यह पोस्ट " ताऊ साप्ताहिक पत्रिका -९ "
यहां चटका लगाकर पढें. इसी अंक मे ताऊ पहेली -९ के परिणाम घोषित किये गये हैं.

रामराम.

ताऊ रामपुरिया

बोधिधर्म और सम्राट वू

 

IMG-6833

बोधिध्रर्म एक फ़कीर. चीन गया. चीन का सम्राट वू. महान सम्राट ने उसे राजमहल मे ठहरने का आमंत्रण दिया पर बोधिधर्म तो अपने आप मे रमने वाला फ़कीर था. उसे राजमहलों से क्या लेना देना?

 

गांव से बाहर एक पहाडी पर कोई छोटा सा मंदिर जैसा कुछ था. बस वहीं ठहरा था, बोधिधर्म थोडा सनकी टाईप का भी था. उसका कुछ भरोसा नही कब क्या कर बैठे? एक बडा सा लठ्ठ यानि डंडा साथ रखता था.

 

सम्राट वू एक दिन बोधिधर्म के पास पहुंचा और बोला - फ़कीर साहब, क्या बताऊं ? मेरा मन यानि "मैं" कभी शांत ही नही होता. इतना बडा साम्राज्य खडा कर लिया फ़िर मन चैन नही लेने देता.

 

बोधिधर्म बोला - सम्राट क्या कहा आपने? आपका मन शांत नही होता? अरे इसमे कौन सी बडी बात है? आप तो एक काम करना कि आज रात को तीन बजे आजाना. और अपने साथ मे कोई सिपाही वगैरह मत लाना. बिल्कुल अकेले आना. एकदम शांत कर दूंगा आपके मन को . मेरे पास मन को शांत करने की बडी अचूक दवाई है.

 

और अब सम्राट वहां से विदा हुआ पांच दस सीढियां चल कर उतर ही रहा था कि बोधिधर्म ने पीछे से आवाज दी कि सम्राट आपके उस मैं यानि मन भी को साथ लेते आना. क्योंकि शांत तो "मैं" को ही करना है ना.

 

अब सम्राट राजमहल मे आगया. और सोचने लगा कि जाये या नही जाये? Bodhisattva (1)

क्योंकि उसने  अकेले बुलाया है. सैनिकों के साथ बिना राजा का जाना भी

ठीक नही. और फ़िर बोधिधर्म तो बिल्कुल ही पागल है. क्या पता सर मे लठ्ठ वठ्ठ मार दे. कहीं किसी दुश्मन को पकडवा दे.

 

राजा के मन मे अनगिनत विचार आते रहे. पर मन मे फ़ांस लगी थी, सो मरता क्या ना करता? अपने आप अकेला रात को तीन बजे पहुंच गया बोधिधर्म की कुटिया पर.

 

जैसे ही वहां पहुंचा तो देखा कि बोधिधर्म लठ्ठ लिये बैठा है और उसी का इन्तजार कर रहा है. बोधिधर्म बोला - आओ सम्राट आओ. मैं तुम्हारा ही इन्तजार कर रहा था. अब बताओ कहां है तुम्हारा मैं? जल्दी बताओ. बस एक लठ्ठ मारा तुम्हारे "मैं" को कि वो शांत हुआ. तुम साथ मे लाये तो हो ना अपने मैं को? कहीं दिखाई नही दे रहा है ?

 

अब सम्राट तो घबडाया. सोचा कि ये पागल आदमी दिखता है. मैने अकेले आकर गल्ती कर दी. और अब ये लठ्ठ जरुर मार देगा. सम्राट पछताने लगा कि आज आअदमी पहचानने मे भूल कर दी उसने.

 

बोधिधर्म बोला - सम्राट, अब तुम बताओ कि तुम्हारा मैं किधर है? तो मैं उसका इलाज शुरु करुं. जल्दी बताओ, रात भी ज्यादा हो गई है. फ़िर तुमको भी राजमहल लौटना होगा.

 

सम्राट वू हिम्मत करके बोला - महाराज आप बहुत उटपटांग सवाल पूछ रहे हो? अरे मेरा मैं कोई बाहर घूमता है क्या? जो मैं ऊठाकर आपके हवाले कर दूं? मेरा मैं तो मेरे अंदर है अब कैसे बताऊं?

 

पर बोधिधर्म तो पक्का गुरु है. हाथ आये को छोड कैसे सकता है? बोला - ठीक है. तेरे अंदर है तो उसको हम अंदर से पकड कर ही ठीक कर देंगें. बस आप तो एक काम करिये कि आंख बंद कर लिजिये, और अपने अंदर देखिये. फ़िर आपको जहां पर भी अपने शरीर मे अपना मैं दिखाई पडे मुझे फ़ोरन बताईये. मैं तुरंत उसको दो लठ्ठ मार कर शांत कर दूंगा.

 

सम्राट ने डर कर आंख बंद कर ली. और सोचने लगा कि इसको जिस तरफ़ भी इशारा किया कि यहां पर मेरा मैं है, यानि ये कहा कि मेरा मैं हाथ मे है...पैर मे है..या छाती मे है..तो ये वहीं पर लठ्ठ मारेगा और कभी कह दिया कि दिमाग मे है तो ये खोपडे पर लठ्ठ मार कर तोड डालेगा.. बोधिधर्म वैसे भी काफ़ी सनकी कुख्यात फ़कीर था. सम्राट तो फ़ंस ही गया आज..

 

धीरे २ डर के मारे जो आंखे बंद की थी..अब अपने मैं को ढुंढने लगा..हाथ पांव सर,,,दिमाग...जहां भी अपने मैं को ढुंढता..वहीं वहीं पर जवाब मिलता कि..नही ये मैं नही हूं.

बाहर बोधिधर्म लठ्ठ लिये नजदीक बैठा है, कि कब ये कहे कि ये रहा मेरा मैं और मार दे लठ्ठ उस पर.

 

सूबह की किरणें फ़ूट रही हैं...बोधिधर्म ने पूछा -- सम्राट बहुत देर होगई.. अभी तक आपका  मैं आपको मिला की नही..मैं कब से इंतजार कर रहा हूं..उधर सम्राट वू...ध्यान मे मगन  डूबा हुआ है..मैं खो गया.. कहीं मैं नही.. सारे शरीर मे खोज लिया..पर नहीं मिला मैं..अंत मे खुद ही खो गया...बस ध्यान की मस्ती में उतर गया..लगा गया गोता.

 

सम्राट ने धीरे से आंखें खोली और बोधिधर्न के पावों मे गिर पडा - बोला महाराज ..बस मैं मेरे अंदर कहीं भी नही मिला...सब जगह खोज लिया..पर अब मैं बैचेन नही हूं. शान्त हुं.

 

बोधिधर्म बोला - परमात्मा इतना ही सरल है..ध्यान इतना ही सरल है..पर हम उसे टेढा बना देते हैं ..ध्यान की हर सीढी इसी तरह से शुरु होती है.

 

मग्गाबाबा के प्रणाम.

Followers