एक समय पाम्पई का प्रसिद्ध शहर ज्वालामुखी मे जल ऊठा. तकरीबन आधी रात को ज्वालामुखी फ़ट गया और लावा बह निकला. लोग बदहवाश भागने लगे. जिसको जो हाथ लगा वही लेकर भागा.
पास मे जो भी था, सोना चांदी, हीरे जवाहरात या कीमती सामान, बस बेतहाशा भागे जारहे हैं. जिस किसी के पास हीरे जवाहरात धन नही नही है वो अपना बोरिया बिस्तर ही लिये भाग रहा है. जितना भी ऊठाकर भागा जा सकता है उससे भी ज्यादा बोझ ऊठा कर लोग भागे जा रहे हैं.
अब एक फ़क्कड फ़कीर आदमी उसी गांव का. बिलकुल मस्ती मे, हाथ मे छडी लिये इतने आराम और मस्ती मे चला जारहा है जैसे सुबह की सैर पर निकला हो.
लोग उसको देखकर हैरान. पूछने लगे - क्या तुमने कुछ बचाया नही? क्या तुम्हारे पास कुछ नही ? जो इस तरह बिना सामान लिये आराम से टहल रहे हो? तुम्हे मालुम तो है ना कि ज्वालामुखी फ़ट चुका है और कभी भी लावा यहां तक पहुंच सकता है?
फ़कीर बोला - भाई अपने पास बचाने के लिये कुछ था ही नही. और मुझसे सुखी आदमी इस गांव मे कोई दुसरा कभी नही रहा.
अब देखो सब रो रहे हैं, उस चीज के लिये जो पीछे छोड कर जारहे हैं.
और हमारे पास कभी कुछ था ही नही. हम तो पहले से ही होंशियार थे, हमको मालुम था कि एक ना एक दिन ये ज्वालामुखी फ़टेगा जरुर. और सब कुछ यहीं छोडकर भागना पडेगा एक दिन. सो हमने कभी कुछ जमा ही नही किया.
भाई जब मालुम है कि ज्वालामुखी पर बैठे हैं तो एक दिन तो ये फ़टने ही वाला है. आज नही तो कल ..नही तो परसों फ़टेगा..पर फ़टेगा जरुर. यानि मौत तो आनी ही है..जरुर आयेगी.
और मैने तो तुमको पहले भी दुखी देखा, पहले भी तुम इकठ्ठा कर कर के दुखी हो. अब छोडते हुये दुखी हो.और जो बोझ ढो रहे हो उस बोझ को ढोकर भी दुखी हो.
और जो बोझ पीछे छोड आये उसके छोडने से भी दुखी हो. जब तुम्हारे पास था तब भी तुम सुखी नही थे. आज भी नही हो.मैने तुम्हे कभी सुखी नही देखा,
पास मे कुछ है तो भी लोग सुखी नही है. और पास का छिन जाये तो दुखी हैं. जैसे दुख को ही लोगो ने जीने की शैली बना लिया हो? असल मे आसक्ति दुखी मनुष्य का लक्षण है और अनाशक्ति आनन्दित मनुष्य की मस्ती है.
आनन्दित होकर जीना सीखो, फ़िर देखो कैसे निर्भार हो जाओगे. आनन्दित मनुष्य आपको हमेशा हंसता खिलखिलाता दिखेगा. जैसे फ़ूल के पीछे भंवरे मंडराते हैं वैसे ही आनन्दित मनुष्य के पीछे हमेशा लोगो की भीड लगी रहती है.
आनन्द जीने की एक कला है.
मग्गाबाबा का प्रणाम.
8 comments:
27 January 2009 at 10:09
आनन्दित होकर जीना सीखो, फ़िर देखो कैसे निर्भार हो जाओगे. आनन्दित मनुष्य आपको हमेशा हंसता खिलखिलाता दिखेगा. जैसे फ़ूल के पीछे भंवरे मंडराते हैं वैसे ही आनन्दित मनुष्य के पीछे हमेशा लोगो की भीड लगी रहती है.
आनन्द जीने की एक कला है.
"इस प्रेरणा दायक प्रसंग और जीवन के इस अध्यात्मिक ज्ञान के लिए बहुत बहुत आभार.."
"मग्गाबाबा का प्रणाम"
Regards
27 January 2009 at 10:24
फ़कीर की बात एकदम सच है. मेरा क्या था जो अब गंवाना था?
मग्गा बाबा की जय!
27 January 2009 at 14:32
आनन्द जीने की एक कला है.
-बिल्कुल सही!!
मग्गाबाबा की जय हो!!
27 January 2009 at 17:00
अच्छी सीख देनेवाली कहानी....
27 January 2009 at 22:46
बहुत सुंदर कथा लिखी आप ने, सुंदर चिंतन, मेने यह पम्पाई शहर देखा है, बहुत ही दर्द नाक था आज भी इस जवालामुखई के अव्शेष ,ओर यादे लोगो ने समभाल कर रखी है.जिन्हे देख कर रोंगटे खडे हो जाते है.
धन्यवाद
28 January 2009 at 15:49
बड़े दिनों बाद दर्शन हुए बाबा के !
बहुत अच्छा दर्शन !
31 January 2009 at 19:51
bahut hi prerak prasang hai magaa baba ko sadar naman
1 February 2009 at 20:32
Bahut sundar...!!
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युवा शक्ति को समर्पित ब्लॉग http://yuva-jagat.blogspot.com/ पर आयें और देखें कि BHU में गुरुओं के चरण छूने पर क्यों प्रतिबन्ध लगा दिया गया है...आपकी इस बारे में क्या राय है ??
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