तिरुवल्लुवर बडे संतोषी थे ! लोभ और क्रोध उनके आसपास भी नही था ! आजिविका चलाने के लिये वो कपडा बेचने का कार्य किया करते थे !
एक दिन एक सेठ के सामने लोगो ने तिरुवल्लुवर की प्रशन्सा कर दि कि वो बडे संतोषी जीव है और लोभ तो उनके पास फ़टकता नही है ! बस सेठ ने सोच लियी कि अब वो उनको गुस्सा भी दिला कर रहेगा और लोभी भी साबित कर देगा !
सेठ एक दिन बाजार मे उनके पास गया और कपडे का मोल पूछा ! उन्होने बताया एक रुपया
का एक गज ! सेठ ने बोला - बहुत सस्ता बेच रहे हैं तो एक गज फ़ाड दो !
उन्होने एक गज फ़ाड दिया ! अब सेठ ने कपडा हाथ मे लेकर उसके दो टुकडे करके पूछा - अब ये कितने का हो गया ? उन्होने कहा कि अब आठ आने का हो गया !
सेठ ने फ़िर उसका आधा आड के पूछा - तिरुवल्लुवर बोले - अब चार आने का !
इस तरह सेठ कपडे को आधा फ़ाडता गया और तिरुवल्लुवर भी उसका दाम आधा आधा करते गये ! जब कपडा बिल्कुल तार तार हो गया तो सेठ बोला - अरे संत जी महाराज मैने आपका बडा नुक्सान कर दिया ! लिजिये ये आपका एक रुपया ले लिजिये !
अब संत तिरुवल्लुवर बोले - सेठ्जी आपका यह रुपया मैने रख लिया तो आपका अभिमान ज्यों का त्यों बना रहेगा ! और अब ये कपडे के टुकडे आपके किसी काम के नही हैं ! मैं तो इनसे ऒढने बिछाने का कुछ बना लूंगा ! मेरे लिये अभी भी ये उपयोगी हैं !
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