सम्राट अकबर के निवेदन पर तानसेन ने अपने गुरु हरीदास जी के संगीत का आयोजन किया !
उनके साज और संगीत से बादशाह अकबर इतना मन्त्र मुग्ध हो गया कि उसने तानसेन से कहा - तानसेन , तू गाता तो वाकई बहुत बढिया है ! इसमे कोई शक नही ! पर जो बात तेरे गुरु के संगीत मे है वो तुझमे नही है !
अब तानसेन बोले - जहांपनाह , आप दुरुस्त फ़रमाते हैं ! और इसमे कोई आश्चर्य की भी बात नही है ! मैं बंधन मे हूं ! जब आपकी मर्जी हो मुझे गाना पडता है और गुरुदेव अपनी मर्जी से अपनी मौज से गाते हैं ! बस यही फ़र्क है !
5 comments:
30 December 2008 at 19:24
नववर्ष की हार्दिक मंगलकामनाएँ!
30 December 2008 at 19:26
bahut sundar katha,aazad saans ke mayane samjhati.
30 December 2008 at 21:36
नववर्ष की ढेरो शुभकामनाये और बधाइयाँ स्वीकार करे . आपके परिवार में सुख सम्रद्धि आये और आपका जीवन वैभवपूर्ण रहे . मंगल कामनाओ के साथ .धन्यवाद.
31 December 2008 at 00:42
नव वर्ष की आप और आपके समस्त परिवार को शुभकामनाएं....
नीरज
7 January 2009 at 05:29
सत्य वचन - ईश्वर के भक्तों की यही विशेषता है.
मग्गा बाबा की जय!
Post a Comment