गुरु कौन हो सकता है ?

आज साल २००८ का आखिरी दिन ! समय है लगातार बीतता जाता है ! जब भी कोई हमसे पूछता है कि क्या कर रहे हो ? हमारा स्वाभाविक जवाब होता है - यार टाईम पास कर रहा हूं ! जरा सोचिये .. हम टाईम को पास कर रहे हैं या टाईम हमे पास कर रहा है ! खैर सबके अपने अपने ख्याल हैं और अपनी २ जिन्दगी है !

अक्सर लोगो को आपने कहते सुना होगा कि वो आदमी मेरा गुरु है ! फ़िर कोई दुसरा आदमी उनका गुरु हो जाता है ! फ़िर तीसरा ! सुनने वाले भी अचरज मे पड जाते हैं कि आखिर ये मामला क्या है ? क्यों ये आदमी रोज कपडों की तरह गुरु बदल रहा है ?

आईये आज साल के अंतिम दिन इस विषय पर बात करें ! जिससे आपको भी इस विषय की जानकरी  हो सके ! असल मे कोई भी व्यक्ति हर विषय का यानि सम्पूर्ण जानकार नही हो सकता ! 


और कई बार किसी बहुत छोटे व्यक्ति मे भी कुछ गुरुत्व दिखाई पड जाता है और ज्ञानी वही है जो अपने से छोटे व्यक्ति से, भले ही वो उम्र और पद मे भी छोटा हो, उसको भी गुरु मानकर  उसके गुणों को आत्मसात कर लेता है !

आईये आपको एक कहानी की और लिये चलते हैं ! आशा है आप इस कहानी को टिपणी करने की दृष्टि से सरसरी तौर पर ना पढे बल्कि फ़ुरसत के समय आराम से पढकर इस पर मनन करें तो हमे बडी खुशी होगी कि आप आज साल के अंतिम दिन इस आश्रम से कुछ उपयोगी बात सीखकर जा रहे हैं !

एक सूफ़ी फ़कीर हुआ जुन्नैद ! उसने  कोई १० गुरु बताये हैं अपने ! जिन गुरुओ  से उसे ज्ञान प्राप्त हुआ ! आज उसके दस गुरुओं मे हम बात करेंगे उसके एक गुरु की जो शातिर चोर था ! आप चौंक रहे होंगे कि जुन्नैद जैसे पहुंचे हुये फ़कीर का गुरु और चोर ? जी हां, चौंकिये मत , मैं चोर ही कह रहा हूं ! 

बात उस समय की है जब जुन्नैद परमात्मा की खोज करते २ थक चुका था और उसका मिलना तो दूर बल्कि परमात्मा की कहीं आस पास होने की खबर भी नही थी उसको  ! वो अपनी झोले झंडे लेकर चला जारहा था और सोच रहा था कि अब इस परमात्मा की खोज ही बंद कर दूंगा !

उसको चलते २ सारा दिन हो गया ! रात शुरु हो गई और वो एक गांव के पास से गुजर रहा था ! तभी उसे एक व्यक्ती मिला और उसने जुन्नैद से कहा - फ़कीर साहब कहां जा रहे हो ?

फ़कीर - बस कोई ठोर ठिकाना नही है ! आगे जा रहा हूं !

वह व्यक्ति बोला - देखो महाराज ! आगे घना जंगल है और उसमे से होकर अब रात को जाओगे तो शेर चीते तुमको खा जायेंगे ! तो मेरी सलाह है कि अब आप रात को यहीं ठहर जाओ !

फ़कीर कुछ नही बोला ! फ़कीर को असमंजस मे देख कर वो व्यक्ति बोला - फ़कीर साहब , एक बात आप समझ लो कि इस गांव मे अब रात को कोई भी अपना दरवाजा तुम्हारे लिये नही खोलेगा क्योकि यहां सबके सब ज्ञानी हैं ! 

रात को चोर उच्चकों और जंगली जानवरों के डर से कोई दरवाजा नही खोलता और तुमको कोई भी जंगली पशु अपना शिकार बना लेगा ! और अब आगे तुम जानो ! मुझे क्या लेना देना ? मैने तो सही बात बता दी ! तुम सोचते हो कि कोई तुम्हे फ़कीर समझ के दरवाजा खोल देगा तो इस भूल मे मत रहना !

जुन्नैद कुछ समझता या बोलता उसके पहले ही वो व्यक्ति फ़िर बोला - और हां फ़कीर साहब, एक बात और सुन लो , फ़िर कल को कहोगे कि मुझे बताया नही था ! मैं हूं एक चोर ! और इसीलिये रात को आपको यहां बाहर मिल भी गया और कोई शरीफ़ आदमी तो इस समय घर के बाहर रुकता ही नही है !

अब आपको ये लग रहा हो कि एक चोर के यहां कैसे रुकुं फ़कीर होकर ? कैसे एक चोर के घर रोटी पानी करूं ,  तो तुम्हारी मर्जी ! मुझे देर हो रही है और मैं तो अब चला चोरी करने राजमहल की तरफ़ !

अब जुन्नैद को बडी जिज्ञासा हुई कि ये राजमहल मे जारहा है और वो भी चोरी करने ! तो वो उस चोर के घर ही ठहर गया ! चोर ने जुन्नैद को रोटी खिला कर कहा कि अब मैं तो चला राजमहल मे चोरी करने और आप आराम करो !

अब ये रोज का काम हो गया ! चोर दिन भर सोता और रोज रात होते ही चोरी करने चल पडता ! सुबह लौटकर जब वो आता तो जुन्नैद को अपनी सारी बात बताता कि मैं राजमहल के खजाने से इतनी दूर तक सेंध लगा चुका हू ! बस आज  तो मैं खजाने तक पहूंच ही जाऊंगा ! इस तरह दो महिने हो गये ! यही क्रम चलता रहा !

पर जुन्नैद ने देखा कि चोर के मन मे और आंखों मे आज भी वही चमक हैं सफ़ल होने को लेकर जो पहले दिन थी ! वो रोज असफ़ल हो कर लौट रहा था पर जब भी वो सूबह लौटता वो जुन्नैद से यही कहता बस आज की रात तो मैं खजाने का माल हथिया ही लूंगा ! कहीं कोई निराशा या हताशा नही !

अब जुन्नैद को भी सुबह उसके लौटने का इन्तजार रहता ! आखिर जुन्नैद को समझ आगया कि जब तक ये चोर खजाने को नही हथिया लेगा ये चुप नही बैठेगा ! उसकी आंखो की चमक और जोश दिन पर दिन कम होने की बजाए बढती  ही  जा रही थी ! 

फ़िर उसने खुद से कहा कि जब ये चोर होकर अपनी इच्छित वस्तु यानि तुच्छ से खजाने को पाने का अपना प्रयत्न नही छोड रहा है और मैं तो असली परमात्मा रुपी खजाने को पाने की तलाश मे इतनी जल्दी थक कर उसकी खोज छोडने की सोच रहा था !  
  
जुन्नैद इस घटना से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसी समय उस चोर के पांव पकडे और गुरु स्वरुप उसे प्रणाम करके अपनी मंजिल की तरफ़ बढ गया और दुगुने उत्साह से परमात्मा की खोज मे लग गया !

असल मे सीखने की ललक हमारे अंदर होनी चाहिये ! इससे कुछ फ़र्क नही पडता कि सिखाने वाला कौन है ? सिखाने वाले का स्तर कुछ भी हो वो हमेशा प्रणम्य ही रहेगा और अगर हमे कुछ सीखना है तो इसी भावना से हम सीख सकते हैं ! सिखाने वाले के प्रति पुर्ण आदर भाव रखते हुये !

नव वर्ष की बधाई और मंगल कामनाएं ! ईश्वर आपको परिवार सहित २००९ मे सुख शान्ति और ऐश्वर्य दे यही मंगल कामना है !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

अभिमान

तिरुवल्लुवर बडे संतोषी थे ! लोभ और क्रोध उनके आसपास भी नही था ! आजिविका चलाने के लिये वो कपडा बेचने का कार्य किया करते थे !

एक दिन एक सेठ के सामने लोगो ने तिरुवल्लुवर की प्रशन्सा कर दि कि वो बडे संतोषी जीव है और लोभ तो उनके पास फ़टकता नही है ! बस सेठ ने सोच लियी कि अब वो उनको गुस्सा भी दिला कर रहेगा और लोभी भी साबित कर देगा !

सेठ एक दिन बाजार मे उनके पास गया और कपडे का मोल पूछा ! उन्होने बताया एक रुपया

का एक गज ! सेठ ने बोला -  बहुत सस्ता बेच रहे हैं तो एक गज फ़ाड दो !

उन्होने एक गज फ़ाड दिया ! अब सेठ ने कपडा हाथ मे लेकर  उसके दो टुकडे करके पूछा - अब ये कितने का हो गया ? उन्होने कहा कि अब आठ आने का हो गया !

सेठ ने फ़िर उसका आधा आड के पूछा - तिरुवल्लुवर बोले - अब चार आने का !

इस तरह सेठ कपडे को आधा फ़ाडता गया और तिरुवल्लुवर भी उसका दाम आधा आधा करते गये ! जब कपडा बिल्कुल तार तार हो गया तो सेठ बोला - अरे संत जी महाराज मैने आपका बडा नुक्सान कर दिया ! लिजिये ये आपका एक रुपया ले लिजिये !

अब संत तिरुवल्लुवर बोले - सेठ्जी आपका यह रुपया मैने रख लिया तो आपका अभिमान ज्यों का त्यों बना रहेगा ! और अब ये कपडे के टुकडे आपके किसी काम के नही हैं ! मैं तो इनसे ऒढने बिछाने का कुछ बना लूंगा ! मेरे लिये अभी भी ये उपयोगी हैं !

बंधन और आजादी

सम्राट अकबर के निवेदन पर तानसेन ने अपने गुरु हरीदास जी के संगीत का आयोजन किया !

उनके साज और संगीत से बादशाह अकबर इतना मन्त्र मुग्ध हो गया कि उसने तानसेन से कहा - तानसेन , तू गाता तो वाकई बहुत बढिया है ! इसमे कोई शक नही ! पर जो बात तेरे गुरु के संगीत मे है वो तुझमे नही है !

 

अब तानसेन बोले - जहांपनाह , आप दुरुस्त फ़रमाते हैं ! और इसमे कोई आश्चर्य की भी बात नही है ! मैं बंधन मे हूं ! जब आपकी मर्जी हो मुझे गाना पडता है और गुरुदेव अपनी मर्जी से अपनी मौज से गाते हैं ! बस यही फ़र्क है !

मग्गा बाबा का चिट्ठाश्रम पुन: चालू



किसी भी काम को शुरु करने के लिये बोलना बंद करे और काम शुरु करे ! 


(गूगल बाबा ने इस ब्लाग को  बन्द कर दिया था , इस वजह से कोई पोस्टिंग   इतने दिन से नही हो पाई थी ! अब आज ब्लाग को उन्होने खोल दिया है ! अत: कोशीश रहेगी कि पहले की तरह चिट्ठाश्रम यथावत शुरु किया जा सके !)

मग्गाबाबा का प्रणाम !













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