कृष्ण निराश होकर लौट चुके हैं ! संधि प्रस्ताव असफल हो चुका है ! महाभारत का युद्ध टालने की सारी कोशीसे जब बेकार साबित हो गई तो अब सिवाय इसके कोई चारा नही बचा कि युद्ध की तैयारियां की जाये ! प्रत्येक आदमी अपने अपने स्तर पर मशगूल हो गया ! अब कोई भी उपाय नही बचा कि इस विभीषिका से बचा जा सके ! गांधारी और कुंती भी अपने २ स्तर पर तैयारियों में सलंग्न हो गई !
दोनों ही , गांधारी और कुंती, राजमहल के पिछवाडे दूर जंगल में बने शिव मन्दिर में राजोपचार विधि से, अपने अपने पुत्रो को राज्य दिलवाने की कामना से शिव पूजन करने लगी ! कुछ दिन पश्चात भगवान् भोलेनाथ दोनों पर ही प्रशन्न हो गए और वर मांगने के लिए कहा ! दोनों ही माताओं ने अपने अपने पुत्रो के लिए राज्य माँगा !
भगवान् शिव बोले - यह असंभव है ! राज्य एक है तो दोनों को नही मिल सकता ! एक काम करो एक पक्ष राज्य लेलो और दूसरा मोक्ष लेले ! आप लोग आपस में निर्णय कर लीजिये !
इस पर गांधारी बोली - शिवजी महाराज , मैं मोक्ष लेकर क्या करूंगी ? अब कोई ५/७ पुत्र हो तो मोक्ष भी लेलू ! पुरे एक सैकडे के ऊपर मेरे पुत्र हैं ! और अब कहाँ मोक्ष के चक्कर में भीख माँगते फिरेंगे ? और मेरे पुत्रो को शुरू से ही राज्य करने की आदत रही है ! बिना राज्य के इतने बड़े कुनबे का पालन पोषण नही हो सकता ! आप एक काम करिए की राज्य तो मेरे पुत्रो को दे दीजिये और मोक्ष इनको दे दीजिये ! इनको जंगलो में भटकने की आदत भी है ! कोई ज्यादा परेशानी भी इन्हे नही होगी !
अब कुंती बोली - भोलेनाथ , इनके पुत्रो ने हमेशा राज्य किया है अब थोडा बहुत राज्य सुख मुझे और मेरे पुत्रो को भी मिलना चाहिए ! इसके बेटो ने तो सब सुख देख लिया अब इन्हे मोक्ष और मुझे मेरे बेटो के लिए राज्य दीजिये भगवन !
भोले नाथ ने उन दोनों को काफी समझाया पर विवाद और बढ़ता चला गया ! अब भोले बाबा भी अपनी वाली पर आगये और उन्होंने व्यवस्था दे दी की ठीक है ! जब तुम दोनों ही मानने को तैयार नही हो तो अब वरदान सशर्त कर देता हूँ ! अब कल के अरुणोदय से पूर्व जो भी हाथी पर बैठ कर आयेगी और एक हजार स्वर्ण कमलो से मेरा अभिषेक करेगी उसी को राज्य मिलेगा ! और इतना कह कर बिना कुछ सुने ही शिव बाबा वहाँ से अंतर्धान हो गए !
गांधारी ने आकर दुर्योधन को बताया और दुर्योधन ने सारे सुनारों को लगा दिया स्वर्ण कमल बनाने में और हाथियों की कोई कमी नही थी ! यानी गांधारी को कोई समस्या ही नही थी !
कुंती ने सोचा - भोले बाबा भी समर्थ की ही सहायता करते हैं ! भोले बाबा को मालुम है की मेरे पास एक हजार स्वर्ण कमल तो क्या एक का भी जोगाड़ नही है और हाथी तो क्या हमारे पास गधा भी नही है फ़िर इस शर्त का क्या मतलब ! सीधे कह देते की राज्य गांधारी का ! इसी तरह मन में क्षोभ-विक्षोभ उठ रहे थे की इतने में अर्जुन आ गए ! अर्जुन ने माँ से उदासी का कारण पूछा तब माँ ने सारा किस्सा बताया ! अर्जुन ने माँ से कहा - माँ आप आराम से अब शयन करो ! कल सुबह आप निर्धारित समय पर यह पूजा करने जा रही हो ! कुंती उसके मुंह की तरफ़ देखने लगी !
और फ़टाफ़ट भाई भीमसेन जी को पुकारा ! अर्जुन बोले - भीम भाई साहब , आप इसी समय मेरा पत्र लेकर तुंरत इन्द्रलोक के लिए प्रस्थान करिए ! मैं एक चिठ्ठी आपको लिख के दे रहा हूँ ! एक पल भी समय बरबाद मत करना ! एक एक पल कीमती है ! किसी द्वारपाल वगैरह या प्रोटोकोल में मत उलझना ! सीधे इन्द्र के हाथ में यह पत्र देना और इन्द्र का ऐरावत हाथी लेकर आज आधी रात से पहले लौट आना ! और मैं इसी समय अलका पुरी जाकर कुबेर से एक हजार स्वर्ण कमल लेके आरहा हूँ ! और भ्राता श्री भीम आपसे निवेदन है की आप रास्ते में कहीं भी खाने पीने के लिए मत रुक जाना ! आज आप भोजन भजन पर कृपा ही रखना ! हमारे लिए एक एक पल इस समय कीमती है !
अब अर्जुन ने फ़टाफ़ट पत्र लिखना शुरू किया :-
स्वस्ति श्री सुरनाथ तावक पदाम्भोज प्रणम्या दरात !
किन्चितप्रार्थयते प्रकाममसकृत पाण्डो स्तृतीय: सुत:!!
मातुर्वान्छ्ती पूर्तये निजगज: साल्न्कृति प्रेष्यताम !
नो चेद युद्ध रसाभिभाव विधिना तूर्णं समागम्यताम !!
अर्थात :-
स्वस्तिश्री देवराज इन्द्र के चरणकमलों में पांडव के तृतीय सुत अर्जुन का साष्टांग प्रणाम ! आपकी सेवा में थोडा सा निवेदन है पर मेरे लिए काम बहुत बड़ा है ! मेरी माता की इच्छा पूर्ति के लिए आपके ऐरावत हाथी को ( कुछ देर के लिए , सदा के लिए नही ) सजा कर भेज दें ! अगर नही भेजा तो हमको विवश होकर आपके विरुद्ध कड़वा निर्णय भी लेना पड़ सकता है !
यह लिखने के बाद जब अर्जुन ने देखा की पत्र कुछ ज्यादा ही कड़क और अतिशयोक्ति पुर्ण लिखा गया और उस समय में एक बार हाथ से लिखे गए को काट कर लिखना मुर्खता समझी जाती थी ! तो नीचे यह श्लोक फ़िर से लिख दिया !
लिखितमभयतद चिन्तनियं चिरेण !
सुर गुरु सहितेन श्रीमतातदेतत !!
न भवतु परिणामो दुस्कृतोयेन पक्ष !
द्वयमपि सदृशंमे श्रीश: पादाब्जभाज: !!
अर्थात :-
जो कुछ ऊपर लिखा है उसको शांतचित से पढ़ना ! अगर मतिभ्रम हो तो देवगुरु बृहस्पति से सलाह लेना ! जल्दबाजी में निर्णय लेने से परिणाम दोनों ही पक्षों के लिए दुःख:दायक हो सकता है ! हम श्रीकृष्ण की कृपा से हाथी को युद्ध करके ले जाने में भी सक्षम हैं !
पत्र लेकर भीमसेन जी तुंरत पहुँच गए इन्द्रलोक में ! और सीधे जा पहुंचे इन्द्रसभा में ! उन्होंने ना किसी द्वारपाल की सुनी ना किसी और की ! उनको तुंरत लौटने की हडबडी भी थी और समय उनके पास था नही ! और प्रोटोकाल के लिए समय बरबाद करने की मनाही कर दी गई थी ! तो सीधे जा धमके इन्द्र महाराज के सामने ! और उनका हाथ पकड़ कर पत्र उनके हाथ में रख कर बोले - बता तेरा ऐरावत हाथी कहाँ है ? मैं अभी उसको लेजाने आया हूँ ! मेरे पास समय नही है !
इन्द्र तो आग बबूला हो गए ! कौन बदतमीज है ये ? फ़िर कुछ उलटा सीधा बोला ही चाहते थे की सोचा - पत्र खोल कर ही देख लूँ ! क्या पता कौन हो ? पत्र की भाषा देख कर तो वो और आग बबूला हो उठे ! उन्होंने सोचा - ये तो मजाक बना रखी है इन्होने ! इन्द्र का हाथी नही हुआ कोई गाय बकरी हो गई ! चले आए मुंह उठाये ! फ़िर उन्होंने सोचा ये पहलवान छाप आदमी है इसे पहलवानी के बजाये अक्ल से निपटा लेते हैं ! और पत्र की भाषा को मन में तौल कर भी उलझने की इच्छा नही हुई ! क्योंकि सामने वाले ने श्रीकृष्ण और देवगुरु तक के नाम लिख रक्खे थे !
अब टालने की गरज से इन्द्र बोले - भीम सिंह जी , बात ये है की आज हमारे हाथी ऐरावत का ड्राईवर ( महावत ) नही आया है ! सो कैसे ले जाओगे ? आप आज रुक जावो मैं महावत को ख़बर करवाता हूँ फ़िर लिए जाना ! अब इन्द्र को मालुम था की महावत आयेगा नही तो ये कहाँ से ऐरावत ले जायेगा ? ख़ुद ये ले जा नही सकता ! ऐरावत को वश में करना हर किसी के बूते की बात भी नही है ! ऐरावत जब पाँच सुन्डो से फुफकारता है तो अच्छे २ हवा में उड़ जाते हैं ! फ़िर भीम सिंह की तो ओकात ही क्या ?
अब भीम सेन जी बोले - मुझे बिल्कुल भी समय नही है ! आप तो मुझे बताईये की ऐरावत कहाँ है ? बाक़ी ले जाने की चिंता आप मत करो ! वो लेजाने का काम मुझ पर छोडिये ! मुझे उसे लेजाने के लिए ही भेजा गया है ! अब इन्द्र ने उनको बता दिया की वो खडा है ऐरावत ! अब ऐरावत कितना खतरनाक हाथी है यह तो सब जानते ही हैं !
भीमसेन जी गए ऐरावत के पास ! और उसकी आगे की दोनों टाँगे दांये हाथ से पकडी और बांये हाथ से पीछे की दोनों टाँगे पकड़ कर, बकरी के बच्चे की तरह अपनी गर्दन के पीछे कंधो पर रख लिया और चल पड़े ! अब जैसे ही इन्द्र ने ये सब देखा उनकी तो साँसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई ! इन्द्र ने सोचा की ये तो ऐरावत की सारी इज्जत ख़राब कर देगा ! और समझ लिया की ये कोई साधारण वीर नही है ! इसको इज्जत पूर्वक हाथी देना ही पडेगा ! फ़िर उन्होंने कहा - हे वीर शिरोमणी आप रुकिए बस एक सैकिंड ! महावत आगया है ! आनन् फानन में आपको ये गंतव्य तक पहुंचा देगा ! और तुंरत भीमसेन जी समय रहते हाथी लेकर आगये !
और उधर अर्जुन कमल लेने अलका पुरी कुबेरजी के पास जा धमके ! उन्होंने कुबेर जी से पहले निवेदन किया और बताया की किस प्रयोजन से चाहिए ? कुबेर को जब से रावण दादा ने लंका से बेदखल किया था तब से ही वो अलकापुरी में रह रहे थे और किसी से भी उलझते नही थे ! सो उन्होंने अर्जुन को कहा - हे कुंती नंदन अर्जुन, आप इसी वक्त लौट जाए और चिंता नही करे ! आप पूजा की दूसरी तैयारियां देखे ! आपके पहुँचने से पहले एक हजार तो क्या ? मैं पुरे शिव मन्दिर को ही स्वर्ण कमलो से ढांक दूंगा ! ऊपर से नीचे तक ! और वो भी सुगंध वाले स्वर्ण कमलो से ! शंकर जी ख़ुद ही गिनती लगाते रहेंगे की कितने लाख स्वर्ण कमल से उनकी पूजा हुई ! और अर्जुन निश्चिंत होके लौट आए !
कुंती ने समय रहते ऐरावत पर सवार होकर पहले पहुँच कर पूजा संपन्न कर वरदान प्राप्त कर लिया ! इधर हाथी पर सवार होके और एक हजार छोटे छोटे मानव निर्मित स्वर्ण कमल लेके जब गांधारी पहुँची तो सामने शिव-मन्दिर स्वर्ण कमलो से ढंका पडा था ! मालुम पडा की माता कुंती पूजा करके लौट चुकी हैं !
8 comments:
14 November 2008 at 00:53
बाबा जी लगता है आज अपनी कुटिया मै नही है, चलिये हम अपने मन की बात तो कह दे बाबा तो अन्तरजामी है, बाबा जी भाई आप ने तो बहुत ही अच्छी अच्छी बाते हमे बताई आप का धन्यवाद
राम राम जी ी
14 November 2008 at 01:39
मग्गा बाबा का सादर चरण वन्दन!! गजब का ज्ञानि बनाये दे रहे हैं आप. बहुत बहुत प्रणाम!!
बोलो, मग्गा बाबा की जय!!
14 November 2008 at 14:06
' bhut sjeev varnan kiya hai aaj kee shiv pooja mey...... sara drshy ankho ke samny ghum gya...."
Regards
14 November 2008 at 14:48
तो सीधे जा धमके इन्द्र महाराज के सामने ! और उनका हाथ पकड़ कर पत्र उनके हाथ में रख कर बोले - बता तेरा ऐरावत हाथी कहाँ है ? मैं अभी उसको लेजाने आया हूँ ! मेरे पास समय नही है !
बाबाजी आप ऐसा सजीव और सीधा संवाद स्थापित कर लेते हैं की आपकी भाषा से लगता नही की पढ़ रहे हैं ! असल में लगता है की आमने सामने बैठ कर संवाद हो रहा है ! आपकी रोचक शैली में यहाँ आकर विभिन्न कथाए सुनना बहुत सुरुचिपूर्ण लगता है !
मग्गाबा की जय !
14 November 2008 at 15:49
मग्गा बाबा की जय !
श्रीराम के कमल-नयन शंकर भगवान को चढाने वाला वृतांत भी सुनाएं. हमने ये कहानियाँ अपनी माँ से सुनी. पर आपकी शैली का जवाब नहीं.
14 November 2008 at 18:43
dhany ho baba bahut sundar katha prastut karne ke liye abhaar.
14 November 2008 at 18:43
dhany ho baba bahut sundar katha prastut karne ke liye abhaar.
21 December 2009 at 11:49
Adbhut jaankari!
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