हनुमान जी ने बताया अपनी शिक्षा दीक्षा के बारे में

किष्किन्धा पर्वत पर पहुँच कर हनुमान जी ने दोनों भाईयो को उतार कर और अपने महाराज सुग्रीव को प्रणाम किया ! और उनको परिचय करवाया !  उसके बाद एकांत में हनुमान जी से जब लक्ष्मण ने बार बार बताने का आग्रह किया की वो सुग्रीव जैसे निहायत ही डरपोक किस्म के प्रति इस तरह क्यों रहते हैं ! सुग्रीव कहीं से भी आपके महाराज नही लगते हैं ! तब हनुमान जी ने बताया की मैं बचपन में बहुत ही शरारती था !


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मुझे सिवाय बदमाशी करने के और कोई शौक नही था ! ऋषी मुनियों के आश्रम में पेड़ पोधे तोड़ देना , फल खाए तो खाए नही तो तोड़ कर फेंक देना ! ताकत और बल मेरे अन्दर इतना था की मैं हाथियों को उठाकर पटक देता  था ! मेरी माता अंजनी के पास रोज कोई ना कोई मेरी शिकायत ले लेकर आ जाता था ! आख़िर माँ परेशान हो गई और जब मेरे बापू केशरी घर आए तो मेरी शिकायत करदी ! अब बापू को भी कुछ चिंता हो गई की आख़िर इस बालक का क्या करे ? ये रोज दिन पर दिन बिगड़ता जा रहा है ! मुझे कितने ही स्कुलो और गुरुकुलों में भेजा गया ! पर मुझे पढाने को कोई तैयार ही नही हुआ ! और वो मुझे क्या पढाते ? वो जानते थे की इसको आश्रम में  रखना और आफत मोल लेना ! सो  आख़िर कार मेरे परेशान बापू को रास्ता सूझ ही गया !

 

मेरे बापू केशरी जी ने सोचा की ये बालक सूर्य के समान ओजस्वी है ! अगर इसको सूर्य भगवान् के पास पढने उनकी स्कूल में भेज दिया जाए तो ये पढ़ लिख कर आदमी बन सकता है ! अब मेरे पिताजी मुझे लेकर सूर्य देवता के पास गए ! जब उन्होंने आने का कारण पूछा तो पिताजी ने बताया ! अब सूर्य देव बोले - केशरी जी आपकी बात तो सही है ! आपका बालक बड़ा शैतान है  ! चलिए मैं मान लेता हूँ की बचपने में इसने मुझे अपने मुंह में रख लिया होगा पर अब मैं इसको कैसे पढा सकता हूँ ? टालने की गरज से सूर्यदेव बोले !


सूर्य देव बोले - केशरी जी मेरा कोई एक ठिकाना तो है नही ! मैं इसको कहाँ पर शिक्षा दूँगा  ? मैं चोबिसों घंटे चलता रहता हूँ ! मेरा ठहरने का काम ही नही है !  अब इतनी पिताजी की परेशानी देख कर मैंने तय कर लिया की अब मैं भी पढ़ लिख कर  सज्जन बनूंगा और अब बदमाशियां करना बंद कर दूंगा ! इस पर मैंने कहा - अब तो आप ही मेरे गुरुजी हो ! आपके आगे २ मैं आपकी तरफ़ मुंह करके चलता रहूंगा और आप अपना चलने का काम भी करते रहना और मुझे पढाते भी रहना ! अब मेरा यह आईडिया सुनकर गुरुजी सूर्यदेव तो मेरे ऊपर प्रशन्न हो गए और मुझे पढाने के लिए राजी हो गए ! इस तरह सूर्य देव का शिष्य बन कर मैंने शिक्षा प्राप्त की !

hanuman-lakshman जब शिक्षा प्राप्त हो चुकी और मैं वहाँ से चलने लगा तब मैंने गुरुजी से कहा की आप गुरुदक्षिना ले लीजिये ! गुरुजी ने मना कर दिया ! मैंने बहुत जिद की और कहा की ऐसा तो नही हो सकता ! आपको गुरुदक्षिना तो लेनी ही पड़ेगी ! बहुत मना  करने पर भी मैं टस से मस नही हुआ तब गुरुजी ने कहा -  ठीक है , मेरा बेटा सुग्रीव  है और वो बहुत ही कामी और लम्पट है ! साथ ही साथ वो डरपोक और भीरु भी है ! मुझे हरदम उसी की चिंता लगी रहती है ! मैं तुमसे गुरुदक्षिना में यही मांगता हूँ की तुम हमेशा उसकी सहायता करना ! तुम्हारी सहायता के बिना वो राज काज भी नही कर पायेगा !


इतना कह कर हनुमान जी आगे बोलने लगे - भाई लक्ष्मण , यही कारण है की मैं हमेशा इनकी सहायता और सेवा  में लगा रहता हूँ ! और मुझको इन में अपने गुरु सूर्यदेव की झलक ही दिखाई पड़ती है ! ये मेरे गुरुपुत्र हैं और मेरे लिए हमेशा वन्दनीय है !इनकी सेवा ही मेरे लिए गुरु सेवा है !  इतना सुन कर लक्षमण जी उठे और हनुमान जी के गले लग गए ! सही है इतनी वीरता प्राप्त व्यक्ति जब विनयशील होता है तभी सच्ची विनयशीलता आती है ! कमजोर तो हमेशा  मजबूरी की वजह से  विनयशील होता है !


मग्गाबाबा का प्रणाम !

10 comments:

  Abhishek Ojha

10 November 2008 at 18:43

जय हो बजरंग बली की और उनके विनयशीलता की भी !

  जितेन्द़ भगत

10 November 2008 at 19:56

वि‍नय की महि‍मा सप्रसंग जानकर मन प्रसन्‍न हो गया। प्रणाम बाबा।

  सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

10 November 2008 at 21:18

गुरूजी, मुझे यह कथा पढ़कर अपने ऊपर गौरव हो चला है। मै बचपन से ही हनुमान जी का भक्त हूँ। कथा सुनकर यह भक्ति अब अगाध श्रद्धा में बदल गयी है।

जय बजरंग बली।

  Anonymous

10 November 2008 at 22:25

achhi lagi katha

  ghughutibasuti

10 November 2008 at 22:46

बढ़िया !
घुघूती बासूती

  अनुपम अग्रवाल

10 November 2008 at 23:54

इतनी वीरता प्राप्त व्यक्ति जब विनयशील होता है तभी सच्ची विनयशीलता आती है ! कमजोर तो हमेशा मजबूरी की वजह से विनयशील होता है !

ज़िंदगी की इतनी बड़ी शिक्षा इतने अच्छे शब्दों में .
धन्यवाद

  राज भाटिय़ा

11 November 2008 at 01:58

इतनी वीरता प्राप्त व्यक्ति जब विनयशील होता है तभी सच्ची विनयशीलता आती है ! कमजोर तो हमेशा मजबूरी की वजह से विनयशील होता है
बाबा बहुत सी नयी बाते पता चली, धन्यवाद
राम राम जी की

  Smart Indian

11 November 2008 at 08:15

मग्गा बाबा की जय!
महावीर की विनयशीलता के बारे में याद दिलाने का आभार!
मनोजवं मारूततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्,
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये||

  Anonymous

11 November 2008 at 08:36

बहुत अच्छी सीख दी आपने। जय हो। हम विनयावनत हुये।

  कुश

11 November 2008 at 14:45

जय बजरंग बली!!

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