आज बहुत दिनों बाद एक सपना देखा ! उसके बाद नींद खुल गई ! सपने में मेरे दिवंगत मित्र स्व. एम् . मुखर्जी साहब मुझसे मुखातिब थे ! ये एक ब्यूरोक्रेट थे ! अभी कोई ३ साल पहले नही रहे ! काफी धार्मिक प्रवृति के थे ! बंगाली होने के बावजूद मछली और अन्य मानवीय दुर्गणो से काफी दूर थे ! मेरा इनसे जब परिचय हुआ था उस समय ये काफी हाई प्रोफाईल में थे ! मैं ज्यादा कुछ उनके निजी व्यक्तितव या प्रोफेशन के बारे में आपसे यहाँ कोई चर्चा नही करूंगा ! इनके साथ बिताये समय को मैं फ़िर कभी आपके साथ शेयर करने की कोशीश करूंगा !
कुछ व्यवसायिक डील्स के सम्बन्ध में हमारा मिलना होता था ! मेरा कुछ फ़क्क्ड पना और मस्त स्वभाव देख कर ये मेरी तरफ़ आकर्षित हो गए ! और ज्यादा से ज्यादा मेरा साथ चाहने लगे ! और फ़िर कालांतर में हमारी दोस्ती गहराती चली गई ! हमारी ८० प्रतिशत चर्चा आध्यात्मिक और २० प्रतिशत व्यापारिक ,घरेलु या राजनैतिक सामाजिक होती थी !
इन्होने इस दुनिया से कूच करने के कुछ ही समय पहले मुझे एक अन्ग्रेज़ी भाषा में किताब भेंट की थी "उद्धव-गीता" की ! और लिक्खा था की मैं उसको पढ़ कर उन्हें बताऊ की इसका सार क्या है ? किताब आई और यूँ ही रखी रह गई ! उस समय मेरे स्वास्थय के कारणों से समय ही नही मिल पाया ! खैर... ! आज सपने में इन्होने पूछा की - मुझे आज तक आपने उद्धव गीता के बारे में नही बताया ?
मेरी नींद खुल गई और अब मैं सोच रहा हूँ की सच क्या है ? सपना सच है ? या नींद खुल गई , उसके बाद मैं ये जो बैठा लिख रहा हूँ यह सच है ?
अचानक मुझे अष्टावक्र की याद हो आई ! असल में कृष्ण की गीता में सुविधा है की आप अपनी पसंद का मतलब निकाल लो ! आपको पूरी पूरी छुट है ! इसीलिए जितने भी अनुवाद हुए गीता के , उन सबके अलग २ मतलब निकले हैं ! पर अष्टावक्र के साथ ऐसा नही है ! अष्टावक्र का ज्ञान बिल्कुल सूखा और नीरस है ! जिसे कहते हैं कडुआ सच !
असल में जनक- अष्टावक्र संवाद है ही ऐसा की इसमे शिष्य जनक ज्ञानी है, और गुरु अष्टावक्र परम ज्ञानी ! अब एक ज्ञानी शिष्य को परमज्ञानी गुरु सिवाए शुद्ध ज्ञान के और क्या देगा ? अष्टावक्र कहीं गुंजाइश ही नही छोड़ते की आप कहीं उठकर भटक जाए ! अष्टावक्र तो लट्ठ की तरह ज्ञान देते हैं ! आपकी मर्जी हो और उनकी भाषा समझ सके तो उनके पास तो विशुद्ध तत्व है , इसे दर्शन समझने की भूल मत करना ! असल में तत्व और दर्शन एक जैसा लगता है पर दोनों में दिन रात का फर्क है ! ऎसी ग़लती आपने की तो आप बात को चूक जायेंगे ! आइये अब इसी सपने से सम्बंधित एक प्रसंग पर चलते हैं !
राजा जनक को सपना आता है की वो हाथ में भीख माँगने वाला कटोरा लेकर नगर में भीख मांग रहे हैं ! बस राजा की नींद खुल जाती है ! असल में ज्ञान जब तक परिपूर्ण नही होता तब तक ज्ञानी की हालत बड़ी ख़राब होती है ! राजा जनक यूँ तो पैदायशी ज्ञानी ही थे ! पर कहते हैं की जब तक गुरु नही मिले तब तक ज्ञान पूर्ण नही होता ! अब राजा जनक को गुरु कहाँ से मिले ? उस समय के सारे ज्ञानी तो आ आकर राजा जनक से ज्ञान लेते थे ! और फ़िर जनक की शर्ते भी गुरु बनाने को लेकर उटपटांग थी सो उनको तो कोई उटपटांग गुरु ही ज्ञान दे सकता था ! और शायद अष्टावक्र से बड़ा उटपटांग तो कोई हुआ ही नही !
सुबह का जैसे तैसे राजा जनक ने इंतजार किया और सभा में अपना सपना कह सुनाया और उसका मतलब पूछा ! राजा जनक की सभा में एक से एक ज्ञानी थे सबने अपने २ हिसाब से सपने का अर्थ समझाया पर राजा संतुष्ट नही हुआ ! अब राजा कहाँ से संतुष्ट होता ? अरे भाई जब सम्राट को भीख मांगनी पड़ रही है तो कारण क्या है ! अंतत: राजा को किसी ने सलाह दी की इस सपने का अर्थ सिर्फ़ वही १२ साल का लड़का अष्टावक्र ही बता सकता है जो यहाँ आकर आपके सारे दरबारियों को चमार कहके चला गया था ! जनक उससे बहुत घबडाए हुए थे ! पता नही वो आड़ा तिरछा लड़का जिसके शरीर में आठ बल पड़े है जो सीधा चल भी नही सकता , अब आके और क्या कह जाए ? पर ज्ञान की भूख ही ऎसी होती है की सब मंजूर करना पड़ता है ! अगर सही में ज्ञान की इच्छा है तो मान अपमान एक कोने में रखना पड़ता है !
बड़े आदर पूर्वक अष्टावक्र को बुलावा गया और दरबारियों के साथ आसन दे दिया गया ! अब राजा जनक ने सवाल पूछा की मुझे ऐसा सपना आया है की मैं नगर में कटोरा हाथ में लेके भीख मांग रहा हूँ ! इसका क्या मतलब ? मुझे जवाब चाहिए ?
अष्टावक्र बोले - ये कोई तुम्हारा तरीका नही है सवाल पूछने का ! तुम तो राजा और प्रजा वाली बात कर रहे हो ! मैं कोई तुम्हारा चापलूस दरबारी नही हूँ जो तुमको जवाब देदूं तुम्हारे मन माफिक ? अगर मुझसे जानना ही चाहते हो तो तुम यहाँ नीचे आकर बैठो और मुझे तुम्हारे राज सिंघासन पर बैठने दो ! प्रश्न पूछने वाले को अपनी औकात में और नीचे बैठ कर सवाल पूछना चाहिए और चूँकी बताने वाला बड़ा होता है तो उसे ऊँचे स्थान पर बैठना चाहिए ! बोलो अगर मेरी शर्त मंजूर हो तो अभी जवाब देता हूँ नही तो राम राम जी की ! अपन चले अपने घर !
अब जनक क्या करे ? सपने की घटना बड़ी कचोट रही है ! सारी प्रभुसत्ता जा रही है ! एकदम राजा से सीधे भिखारी ? और उनको अष्टावक्र से कोई सीधे सवाल जवाब की उम्मीद भी नही थी ! क्योंकि अष्टावक्र राजा जनक की पहले भी मिट्टी ख़राब कर चुका था ! अरे जब उसने अपने पिता "ऋषि कहोड़ " को नही बख्शा तो ये राजा जनक कहाँ लगते हैं उसको ?
राजा जनक तत्क्षण उठकर नीचे आगये और अष्टावक्र को राज सिंघासन पर बैठा दिया ! और हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और अपने प्रश्न का जवाब माँगा ! अब अष्टावक्र ने बोलना शुरू किया !
राजन अब ये बताओ की इस समय इस राज्य का राजा कौन है ? तुम या मैं ?
अगर तुम मुझे राजा बताते हो इस समय , क्योंकि इस राज सिंघासन पर अब मैं विराजमान हूँ , तो समझ लो तुम्हारा सपना झूंठा था ! और अगर तुम ये कहते हो की राजा तो अब भी तुम ही हो ये सिर्फ़ एक एडजेस्टमेंट है तो समझ लो की तुम्हारा सपना सच है तुम नही !
8 comments:
6 November 2008 at 07:28
बडी गूढ बात कह दी अष्टावक्र जी ने -
पापाजी का एक बहुत पुराना गीत है
सँत ज्ञानेश्वर फिल्म से " सपने मेँ सँपदा जो पाई
मोह कहे मेरी मेरी, तेरी ना कमाई सँपदा जो पाई "
वह याद आ रहा है ~~~
6 November 2008 at 08:20
बड़ी गहरी बात है..एडजस्टमेन्ट ही माने हैं.
मग्गा बाबा की जय!!!
6 November 2008 at 09:13
धन्य हैं मग्गा बाबा. सपने की भली कही आपने - सपने में सपना और उस सपने में एक और सपना और ऐसे सपनों की सात तहें और सातवीं तह में बैठे मैं, आप और यह संसार. अब यह सपनीला प्राणी सपने को सच समझे और सच तक पहुँच न सके तो बताइये क्या करे?
डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने अष्टावक्र गीता का हिन्दी अनुवाद किया है यदि कोई पढ़ना चाहें तो.
मग्गा बाबा की जय!
6 November 2008 at 09:16
प्रश्न पूछने वाले को अपनी औकात में और नीचे बैठ कर सवाल पूछना चाहिए और चूँकी बताने वाला बड़ा होता है तो उसे ऊँचे स्थान पर बैठना चाहिए ! बोलो अगर मेरी शर्त मंजूर हो तो अभी जवाब देता हूँ नही तो राम राम जी की ! अपन चले अपने घर !
" अगर तुम मुझे राजा बताते हो इस समय , क्योंकि इस राज सिंघासन पर अब मैं विराजमान हूँ , तो समझ लो तुम्हारा सपना झूंठा था ! और अगर तुम ये कहते हो की राजा तो अब भी तुम ही हो ये सिर्फ़ एक एडजेस्टमेंट है तो समझ लो की तुम्हारा सपना सच है तुम नही !
" kitnee gehree baat chupee hai in chand lines mey, sara khail sirf dil or deemag ka hai, hum kya semjna chahteyn hai ya kya manna chahteyn hai vhee sach or jhut ka nirny krtta hai, lakin sapne mey jo bhee raja ne dekha vo ek pal ke liye to sach ho gya jub Ashtravrk ko apna sihansan dey diya..... lakin itnee gehree or ghud baton ko semjna itnaa aasan bhee nahee hai, bhut adhatmik trk hai.... sube subeh pdh kr bhut sukun sa mila, accha lgaa"Mahtmaa budh ke pritma muje hmesha hee attarct krtee hai, ek tej hai inke cehre pr.."
Regards
6 November 2008 at 11:27
ऐसा ही प्रश्न मेरे मन में भी था, आज जैसे जवाब मिल गया। मन प्रसन्न हो गया बाबा।
6 November 2008 at 14:23
कमाल की पोस्ट है मग्गा बाबा ! अष्टावक्र के बारे में और पढने की इच्छा हो रही है.
7 November 2008 at 01:13
बहुत सुंदर, बिलकुल सहमत आप से बाबा जी. राम राम जी की
8 November 2008 at 20:13
bahut badhiya smaran poorn alekh.
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