कर्ण को कुछ भी रंज गम या शोक नही था कवच कुंडल दान में दे दिए जाने का ! उनके लिए तो एक सामान्य सी घटना थी ! पर जैसे ही दुर्योधन को मालुम पडा की कर्ण ने अपने कवच कुंडल दान में दे दिए हैं ! तो दुर्योधन को तो चक्कर ही आ गए ! उसको हस्तिनापुर का राज्य हाथ से फिसलता लग रहा था ! वो और दुशाशन गुस्से में लाल पीले होते हुए कर्ण के पास पहुँच गए !
और जाते ही अपने स्वभाव अनुसार उसने कैफियत मांगी ! कर्ण ने भी सहज उत्तर दे दिया की ब्राह्मण बन कर इन्द्र ले गया ! मैं याचक को मना कैसे कर सकता था ! इस बात पर दुर्योधन को बहुत गुस्सा आ गया ! और वो बोला - ये क्यों नही कहते की अपने सगे भाइयो की पक्षपात करते हुए तुमने दे दिए ! तुमको मालुम है मैं तुम्हारे सारे राजा शाही शोक इस लिए उठा रहा हूँ की एक दिन अर्जुन को तुम ही मारोगे ! और किसी के बूते की बात नही है ! और तुम्हारे कोई सुरखाब के पर नही लगे हैं ! तुम भी इन्ही कवच कुन्डलो की वजह से इसमे सक्षम थे ! पर हाय री किस्मत... दुर्योधन विलाप करते हुए बोला - तुमने मुझे कहीं का नही छोडा ! तुम धोखेबाज कहीं के .... ! और दुर्योधन आंय बांय.. सन्निपात के मरीज की तरह बकने लग गया !
कर्ण ने उसको समझाने की बहुत कोशीश की ! पर बड़ा मुश्किल था दुर्योधन को कुछ भी समझाना ! और सही है दुर्योधन ने कर्ण को बराबरी का दर्जा यानी राजा का दर्जा दिया ! उस सूत पुत्र कर्ण को ! जिसको कोई राजाओ की सभा में बैठने नही देता था ! और दुर्योधन ये कोई दान पुण्य में नही कर रहा था ! उसको भी कर्ण से चाहत थी ! और जब वो चाहत पूरा करने के काबिल ही नही रहा तो काहे का दोस्त ? अब कर्ण उसको लंगडा घोडा लगने लग गया था! फ़िर भी थोड़ी देर के बाद गुस्सा थोडा कम हुआ तो उसने पूछा - क्या वो इन्द्र का बच्चा यूँ ही ले गया तुम्हारे कवच कुंडल ? या बदले में कुछ दे कर भी गया था ?
अब कर्ण को याद आया की वो कोई वज्र रूपी शक्ति दे के गया था ! तब उसने कहा - की हाँ इन्द्र एक वज्र रख के भाग गया था जल्दी में ! अब दुर्योधन की आँखों में कुछ चमक आयी और व्यग्रता से उसने पूछा - कहाँ है वो शक्ति ? कर्ण बोला - वो उस कोने में रखी है ! उसको इतना लापरवाह देख कर दुर्योधन की इच्छा तो हुई की इसको दो चार गालियाँ दे कर बाहर करदे ! पर उसको मालुम था की बिना कवच कुंडल के भी कर्ण का कोई तोड़ दुर्योधन के पास नही था !
उस वज्र को हाथ में लेते हुए दुर्योधन ने पूछा की उस इन्द्र के बच्चे ने और क्या कहा था इस शक्ति को देते समय ? अब कर्ण ने कहा - हाँ याद आया ! देवराज ने कहा था की इसको तुम एक बार काल पर भी चला दोगे तो काल भी खत्म हो जायेगा !
अब दुर्योधन की बांछे खिल गई ! उसे युद्ध में अर्जुन की मौत दिखाई देने लग गई ! कर्ण से उसने क्षमा याचना की ! कर्ण ने कहा - मित्र क्या हुवा जो तुम तनिक आवेश में आ गए ! मैंने सारा ठाठ तो तुमसे ही पाया है ! अगर तुम एक बार गुस्से में कुछ कह गए तो पिछ्ला तुम्हारा इतना कर्ज मेरे ऊपर है की मैं कभी तुमसे कर्ज मुक्त नही हो पाउँगा ! मित्र तुम यकीन रखो ! मेरे प्राण अगर जायेंगे तो तुम्हारे लिए !
दुर्योधन बोला - कर्ण मेरे मित्र मुझे क्षमा करना ! मैंने ये सारे युद्ध की तैयारी ही तुम्हारे दम पर की है ! अब इस वज्र को मैं संभाल कर रखता हूँ ! तुम लापरवाही में इधर उधर पटक दोगे ! दुर्योधन शायद डर गया था की कोई फ़िर याचक बन कर इसे बेवकूफ बना कर ना ले उडे ! अब वो संभाल कर उस शक्ति को साथ में ले कर दुशाशन के साथ कर्ण के राज प्रासाद से बाहर निकल गया !
अब ये बात है महाभारत युद्ध के उन दिनों की जब यह युद्ध कौरवों की तरफ़ से कर्ण के सेनापतित्व में लड़ा जाने लगा था !
उस समय अर्जुन ने पुरी कौरव सेना को अपने बाणों से गाजर मूली की तरह काटने का सिलसिला कायम कर रखा था ! रात को दुर्योधन , कर्ण और दुशाशन के साथ अगले दिन की युद्ध की योजना बना रहे थे ! दुर्योधन ने अर्जुन की तरफ़ से जो नुक्सान पहुँच रहा था उस पर चिंता जाहिर करते हुए कर्ण से कहा की तुम तो कल जाते ही ये इन्द्र वाली शक्ति अर्जुन पर चला देना ! फ़िर इस युद्ध में ऐसा कुछ भी नही है जो हमारे काबू से बाहर हो ! कर्ण ने भी अपनी सहमती जताई !
पर लगातार दो दिनों के युद्ध के बाद भी कर्ण ने वह शक्ति अर्जुन पर नही चलाई ! रात्री फ़िर से कौरवों के मंत्रणा शिविर में इसी को लेकर बहस हो रही है ! दुर्योधन बहुत नाराज है कर्ण से ! वो जानना चाहता है की क्यूँ नही शक्ति को चलाया गया अर्जुन पर !
क्या इस लिए की वो तुम्हारा सगा भाई है ? अब युद्ध के इस मोड़ पर तुम मुझसे धोखा करने पर आमादा हो ? पता नही दुर्योधन क्या क्या आंय बांय बकने लग गया ! आख़िर बड़ बोला तो था ही ! कर्ण ने इसको बहुत समझाने की कोशीश की पर वो समझने को तैयार हो तब ना !
कर्ण बोला - मित्र दुर्योधन मेरा यकीन करो ! तुम जो कह रहे हो वैसी बात बिल्कुल नही है ! मुझे पता नही क्यों ? इस शक्ति के उपयोग करने का स्मरण ही नही आता ? पता नही क्यूँ ? मैं क्यूँ भूल जाता हूँ ? अर्जुन की तरफ़ से इतनी घनघोर बाणों की बाढ़ सी आती है की सब कुछ भूल कर उससे बचने की सोचने में इस शक्ति के उपयोग की याद ही नही आती ! कल मैं इसका अवश्य उपयोग कर लूंगा !
इस पर दुर्योधन ने लगभग चिल्लाते हुए कहा - हाँ हाँ ठीक है ! कल तुम्हारा सारथी बन कर मैं चलूँगा ! और मैं अपने हाथ से उठाकर यह शक्ति तुमको दूंगा फ़िर देखता हूँ कैसे अर्जुन कल बच पाता है ! यह तय हो गया की कल कर्ण का सारथि दुर्योधन रहेगा !
उधर गुप्तचरों ने जैसे ही कृष्ण को इस बात की सुचना दी ! कृष्ण के माथे पर चिंता की लकीरे खींच गयी ! उनको लगा की कल का दिन अर्जुन का आखिरी दिन होगा ! दुर्योधन सारथि है तो वो तो भूलने से रहा ! वो तो कितने ही नुक्सान के बल पर भी आते ही वो शक्ति अर्जुन पर चलवा देगा ! अब कृष्ण ने तेजी से सोचना शुरू किया ! और तुंरत उन्होंने कल अर्जुन की जगह सेना नायक को बदलने की ठान ली !
उन्होंने इसी दिन के लिए भीम पुत्र घटोत्कच को तैयार रक्खा था ! उन्होंने उसे बुलवा भेजा ! आते ही घटोत्कच ने प्रणाम किया और खडा हो गया ! कृष्ण ने अपना प्रोयोजन बताया तो घटोत्कच की बांछे खिल उठी ! आख़िर घटोत्कच जैसे शूरवीरों का जन्म किस लिए होता है ? पर इधर दादा भीम पुत्र मोह से पगला से उठे ! उन्होंने कहा - वासुदेव ! आप यह क्या कर रहे हैं ! अरे हम अभी जिंदा बैठे हैं ! फ़िर बच्चो को क्यों युद्ध में झोंका जा रहा है ! अभी इनके युद्ध लड़ने के नही खेलने खाने के दिन है ! कल का युद्ध मैं लडूंगा ! घटोत्कच अभी बच्चा है ! उसे कर्ण जैसे महारथी के सामने भेजना यानी की उसके प्राणों की आहुती देना !
अब युधिष्टर ने कहा - भीम ! ये पहले ही तय हो चुका है की हम इस बारे में कोई दखल नही देंगे ! जो भी रणनीति वासुदेव बनायेंगे वो हमारे लिए शुभ ही होगी ! तुम चिंता मत करो ! कोई पांडव अपने प्रिय पुत्र घटोत्कच को युद्ध में भेजने को तैयार नही था ! पर कृष्ण के आगे कोई कुछ बोल नही सकता था !
सिर्फ़ कृष्ण जानते थे की उस शक्ति से एक पांडव वीर की मृत्यु निश्चित है ! और वो पांचो पांडवो में किसी को भी खोना नही चाहते थे ! और दूसरा कोई वीर ऐसा नही था जो कर्ण और दुर्योधन को युद्ध में इतना थका दे की वो उस पर उस शक्ति का उपयोग कर ले जिससे अर्जुन की प्राण रक्षा हो सके ! कृष्ण जानते थे की घटोत्कच ही एक ऐसा समर्थ वीर है जो अपने प्राणों की बली दे कर भी कर्ण को वो शक्ति अपने ऊपर चलाने को विवश कर सकता है ! और उन्होंने यह जुआ खेलने की जोखिम उठा कर ही घटोत्कच को अगले दिन का सेना नायक बनाने का निश्चय किया था ! वो किसी भी तरह उस शक्ति को बेकार करना चाहते थे !
अगले दिन घटोत्कच ने ऐसा भयानक युद्ध किया की कर्ण और दुर्योधन दोनों को प्राणों के लाले पड़ते दिखाई देने लगे ! वीर घटोत्कच पूरा मायावी था ! और मायावी युद्ध कला में निपुण था ! अदृश्य होकर मैले गंदगी की बरसात करना, पहाड़ के पहाड़ उठा कर पटक देना, खून की बारिश करना और धूल भारी आंधियां लाकर उसने उस दिन कौरव सेना के पाँव उखाड़ दिए ! अब दुखी होकर दुर्योधन ने कर्ण से कहा की वो शक्ति इस पर चलाओ ! कर्ण ने कहा - वो शक्ति तो अर्जुन को मारने के लिए रक्खी है !
तब दुर्योधन बोला - मित्र कर्ण जल्दी करो ! अर्जुन पर तो हम शक्ति तब चलाएंगे ना जब हम जिंदा बचेंगे ! अगर तुमने तुंरत इस घटोत्कच पर इन्द्र की दी हुई शक्ति नही चलाई तो ये अब हम तुम दोनों को मार डालेगा ! शीघ्रता करो मित्र ! नही तो प्राण अब चले जायेंगे ! और घटोत्कच के प्रहारों से घबराकर कर्ण ने इन्द्र की दी हुई अजेय शक्ति वीर घटोत्कच पर चला दी ! और इस तरह कृष्ण अर्जुन को बचाने में सफल हुए ! इस तरह वीर घटोत्कच ने अपना वीर होना साबित करके इतिहास में अपना नाम अमर कर लिया !
मग्गाबाबा का प्रणाम !
10 comments:
3 November 2008 at 00:03
सुंदर वर्णन
3 November 2008 at 01:57
अरे वाह क्या नीति थी भगवान कृष्ण जी की, तभी तो कहते है कि महाभारत राज्नीति से भरपुर है, इतने गहरे हम ने कभी भी यह सब नही सुना था, बाबा जी धन्यवाद,जारी रखै, कर्ण के बारे मे इ मेल से कुछ जानकारी चाहूगां,
राम राम जी की ज्य हो मग्गा बाबा की,
जोर से बोलो .... जय मग्गा बाबा,
3 November 2008 at 05:25
मग्गा बाबा की जय!
कवच और कुंडल तो कर्ण की रक्षा (defence) के लिए थे, अगर इन्द्र उन्हें न लेते तो बदले में वज्र भी न देते. और वज्र न देते तो क्या फ़िर घटोत्कच के हाथों ही युद्ध की परिणति हो जाती?
3 November 2008 at 05:26
मुझे तो ऐसा लगता है की अर्जुन के प्रति इन्द्र के मोह ने पांडवों का नुक्सान ही कराया! आपका क्या ख्याल है?
मग्गा बाबा की जय!
3 November 2008 at 07:21
आनन्द आ गया बाबा!! ऐसे ही प्रफुल्लित करते रहो बाबा!!
मग्गा बाबा की जय!!!
3 November 2008 at 09:14
जय हो.. जय हो..
3 November 2008 at 11:16
सिर्फ़ कृष्ण जानते थे की उस शक्ति से एक पांडव वीर की मृत्यु निश्चित है ! और वो पांचो पांडवो में किसी को भी खोना नही चाहते थे ! और दूसरा कोई वीर ऐसा नही था जो कर्ण और दुर्योधन को युद्ध में इतना थका दे की वो उस पर उस शक्ति का उपयोग कर ले जिससे अर्जुन की प्राण रक्षा हो सके ! कृष्ण जानते थे की घटोत्कच ही एक ऐसा समर्थ वीर है जो अपने प्राणों की बली दे कर भी कर्ण को वो शक्ति अपने ऊपर चलाने को विवश कर सकता है ! और उन्होंने यह जुआ खेलने की जोखिम उठा कर ही घटोत्कच को अगले दिन का सेना नायक बनाने का निश्चय किया था ! वो किसी भी तरह उस शक्ति को बेकार करना चाहते थे !
" really very very interesting to read, pehle pdha tha, magar ab kuch bhee yaad nahee, bhut accha lg rha hai dubara pdhna..or refresh krnaa"
Regards
3 November 2008 at 14:38
जय हो मग्गा बाबा की ! बढ़िया वर्णन रहा ये भी.
5 November 2008 at 01:33
बाबा, कुछ व्यस्त हूँ पर आपके आश्रम से गुजरना नहीं भूलता। आप यूँ ही कथा सुनाते रहें।
10 November 2008 at 11:09
भीम पुत्र घटोत्कच की जय हो. जिस ने अपने प्राणों की बली दे कर अर्जुन की प्राण की रक्षा की .
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