अगर देखा जाए तो प्रश्न पूछना एक कला है और उसका इच्छित उत्तर पाना भी एक बड़ी उपलब्धि होती है !
एक यहूदी फकीर जोसुका लिएबमेन हुए हैं ! इन फकीर साहब के कई शिष्य थे ! एक दिन इनके दो शिष्य इनके पास आए और प्रणाम करके बैठ गए !
थोड़ी देर बाद एक शिष्य ने पूछा - गुरुजी , क्या मैं ईश्वर का ध्यान करते समय सिगरेट पी सकता हूँ ?
फकीर ने जवाब दिया - बिल्कुल नही ! ऐसा नही करना !
अब थोड़ी देर बाद दुसरे शिष्य ने पूछा - क्या मैं सिगरेट पीते समय ईश्वर का ध्यान कर सकता हूँ ?
फकीर बोला - क्यों नही ? ईश्वर का ध्यान तो किसी भी अवस्था में किया जा सकता है !
6 comments:
30 October 2008 at 02:37
अरे बाबा जो उस भगवान के ध्यान मै मगन हो गया उसे फ़िर कुछ भी पीने का ध्यान ही कहां,
लेकिन आप ने सबाल ओर जबाब दोनो ही बिलकुल सही दिये है, लेकिन ध्यान से समझो तो बहुत फ़र्क है....
सवाल मे जब हम भगवान क चिंतन करे तो बिलकुल खाली हो, यानि अगर सिगरेट पीते हुये ,या चाय पीते हुये चिंतन करेगे तो हमारा ध्यान बार बार सुटा मारने के लिये , चाय पिने के लिये बंटेगा,
ओर अगर हम सिगरेट या चाय पीते हुये भगवान को याद करते है तो इस का मतलब मै हर समय उस का ध्यान उस का चिंतन करना चाहिये उसे याद रखना चहिये
राम राम जी की
30 October 2008 at 06:52
बड़ी गहरी बात कह गये बाबा!!
मन भाव विभोर हो गया..अपना सुझावी नाम यहाँ देख कर. इसी से तो कहता हूँ:
मग्गा बाबा की जय!!!
30 October 2008 at 14:09
वाह ! अच्छी कला है... घुमा दिया फ़कीर बाबा को तो.
30 October 2008 at 14:30
very nice
tau mere blog par bhee darshan de
30 October 2008 at 23:52
आपने इस पर सही प्रसंग सुनाया कि प्रश्न पूछना एक कला है और उसका इच्छित उत्तर पाना भी एक बड़ी उपलब्धि होती है !
30 October 2008 at 23:53
ये कहना भूल गया कि आपकी इस छोटी पोस्ट में भी कितनी जान है। आनंद आ गया।
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