राजा भोज का दरबार लगा हुआ था ! जैसा की आप जानते हैं उनके दरबार में एक से बढ़ कर एक कवि और विद्वान् थे ! अचानक राजा भोज ने विद्वान् दरबारियों के सामने चार सवाल रक्खे और उनका जवाब माँगा ! राजा भोज ने कहा - सबसे विश्वसनीय दोस्त कौन है ?, सर्वश्रेष्ठ प्रकाश कौनसा है ?, दूध किसका अच्छा है ? और सबसे अच्छा राजा कौन है ?
एक कवि ने जवाब दिया -
भाई सरीखो मित्र नही, तेज ना सूर्य समान
दूध गाय सम को नही, राजा ना भोज समान
अर्थात : भाई सरीखा भरोसेमंद कोई दोस्त नही , प्रकाश सूर्य से बढ़कर कोई नही है, दूध गाय का अति उत्तम है और राजाओं में सर्वश्रेष्ठ राजा तो आप ही हैं ! यह जवाब सुनकर सब उपस्थित लोगो ने उस कवि की बड़ी प्रसंशा की !
इतनी देर में एक अन्य वृद्ध कवि उठ कर खड़े हुए और उन्होंने कहा - मैं इस उत्तर से संतुष्ट नही हूँ ! तब वहाँ उपस्थित अन्य लोगो ने कहा - अगर आप इतने सुंदर उत्तर से संतुष्ट नही हैं तो आप अपना उत्तर बताइये जो इससे बढिया और उपयुक्त हो !
इस पर उन वृद्ध कवि ने अपनी बात यो कही :
भुजा सरीखो मित्र नही, तेज न नेत्र समान
दूध मात सम को नही, भूप न इन्द्र समान
अर्थात : सबसे विश्वस्त साथी अपना बाहुबल है , क्योंकि भाई तो कभी धोखा भी दे सकता है ! सर्वश्रेष्ठ प्रकाश तो आँख की ज्योति का है क्योंकि सूर्य अगर सौ गुना ज्यादा भी प्रकाश करे पर आँख में ज्योति ही नही हो तो किस काम का ? और दूध तो माँ जैसा गुणकारी दूसरा किसी का हो ही नही सकता ! और राजाओं में तो सर्वश्रेष्ठ राजा इन्द्र ही है जो सारी दुनिया में जल के रूप में वृष्टि करके जीवन को पल्लवित करते हैं !
9 comments:
29 October 2008 at 01:29
बाबा जी हमेतो दुसरा जबाब उचित लगा,
धन्यवाद राम राम जी की दिपावली की शुभकामान्ये, खुब धुनी रमाई आप ने
29 October 2008 at 02:08
भुजा सरीखो मित्र नही, तेज न नेत्र समान
दूध मात सम को नही, भूप न इन्द्र समान
बहुत खूब! दीपावली शुभ हो!
29 October 2008 at 04:13
धन्य हुए कथा सुनकर. बात तो दूसरे कवि की ही सही है..
मग्गा बाबा की जय!!
इस ब्लॉग का नाम बदलिये जी..मग्गा बाबा डाट काम की जगह मग्गा बाबा का चिट्ठाश्रम..
29 October 2008 at 07:41
dheeraj dharm mitr or nari, aapat kaal parkhiye chari.
narayan narayan
29 October 2008 at 07:42
आपको सपरिवार दीपोत्सव की शुभ कामनाएं। सब जने सुखी, स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें। यही प्रभू से प्रार्थना है।
29 October 2008 at 07:43
पहला जवाब साधारण बुद्धि के दरबारी प्रवृत्ति वाले व्यक्ति का था जो राजा को खुश करना चाहता होगा; जबकि दूसरा जवाब वस्तुनिष्ठ और सार्वकालिक था।
बाबा जी को प्रणाम।
29 October 2008 at 08:27
और तो सब ठीक है बाबा जी लेकिन राजदरबार की परंपरा के परंपरा के अनुसार कविजी को कहना चाहिये- भूप न भोज समान! है कि नहीं!
29 October 2008 at 09:32
कथा शिक्षाप्रद है | आज कल के दरबार में दुसरे टाइप का कवि कहाँ मिलेगा अब चाटुकार ही बचे है |
30 October 2008 at 23:58
प्रणाम बाबा, अच्छी प्रश्नात्तरी रही।
अब सही लग रहा है यह नाम। आश्रम का जीर्णोद्धार हो गया है मानो।
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