श्री कृष्ण वहाँ से सीधे निकल कर उस जगह पहुँच गए जहाँ वो योद्धा बर्बरीक था ! दिखने में साधारण , एक धनुष और एक बाण ! बस और कुछ नही ! श्रीकृष्ण भी अचरज में थे ! उनको भी जासूस की बातो पर यकीन नही हुआ ! पर वो श्रीकृष्ण ही क्या ? जो बिना पुरी तसल्ली हुए किसी बात को छोड़ दे ! इसीलिए तो वो पूर्णावतार कहलाये ! हर काम को अंजाम तक पहुंचाना ! धीरे २ चलते हुए वो योद्धा तक पहुँच गए ! दोनों ने एक दुसरे को आँखों ही आँखों में तोला ! श्रीकृष्ण ने महसूस की कुछ तो है इसमे !उस योद्धा की आँखों में एक अजीब सी चमक दिखी !
श्री कृष्ण की आँखों में एक चमक आगई ! और उन्होंने उस योद्धा को अपनी तरफ़ से लड़ने का निमंत्रण दिया ! वो योद्धा बोला - नही ये नही हो सकता ! मैं तो अपने प्राण पर अडिग हूँ ! जब श्रीकृष्ण ने देख लिया की ये मानने वाला नही है तो उन्होंने अपने स्वभाव के अनुसार दूसरा पैंतरा आजमाया ! उसका आत्मविश्वास तोड़ने की दृष्टी से बोले - यार तेरे पास ऐसा क्या है ? जो मैं तेरी और लल्लो चप्पो करूँ ? तेरे पास एक बाण है उससे तू क्या कर लेगा ?
भगवान कृष्ण को लग रहा था की ये ग्वालिये जैसा लग रहा है ! और थोडा इसकी हिम्मत कम हो जायेगी तो ये मान जायेगा ! पर वो कोई साधारण योद्धा नही था ! उसने कहा की बताऊँ ? मेरा एक बाण क्या कर सकता है ? कृष्ण बोले - दादा इतनी देर से और रामायण क्या हो रही है ! आप तो दिखाओ ! क्या दिखाना चाहते हो ? वो देखने ही तो आए हैं ! अब उस धनुर्धर ने अपना बाण धनुष पर चढाया और कुछ मन्त्र बोलते हुए ऊपर पीपल के वृक्ष की तरफ़ छोड़ दिया ! वो बाण उड़ चला और उस बाण ने पीपल के प्रत्येक पत्ते पर निशान लगाया और लौट कर इस धनुर्धर के तरकश में समा गया ! इसी के साथ २ एक पता पीपल के पेड़ से टूट कर गिर गया और उस पर कृष्ण ने अपना पाँव रख लिया ! अब फ़िर उस धनुर्धारी ने उसी बाण को हाथ में लिया और फ़िर कुछ मन्त्र बोलते हुए उसको छोड़ दिया ! बाण धनुष से निकल पीपल के प्रत्येक पत्ते को छेदता हुवा आकर श्री कृष्ण के पाँव में घुसने लगा और तुंरत कृष्ण ने अपना पाँव पीछे खींच लिया और वो बाण उनके पाँव के नीचे के पत्ते को बेधता हुवा वापस उस धनुर्धर के तरकश में जा समाया ! ये मंजर देख कर श्रीकृष्ण की ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की साँस नीचे रह गई ! आज जीवन में पहली बार ऐसा धनुर्धर देखा था ! उनकी इच्छा तो हुई की इस धनुर्धर के चरण स्पर्श कर ले ! पर युद्ध और स्वार्थ की मजबूरी कभी आदमी को सत्य के साथ नही रहने देती ! कहने को तो धर्म युद्ध था पर सब तरह का अधर्म जो भी युद्ध में हो सकता था वो सब उस धर्म युद्ध में भी हुवा ! और युद्धों में हर काल में ऐसा होता आया है !
अब श्री कृष्ण सोच से बाहर निकले और पूछा - हे धनुर्धर ! आपकी अब क्या इच्छा है ? आप किसकी तरफ़ से युद्ध करोगे ? योद्धा बोला - आप भी श्रीमान अजीब आदमी हो ! जब से एक ही बात पूछे जारहे हैं ? और मैं जवाब दिए जा रहा हूँ की मैं जो भी हारेगा उसकी तरफ़ से लडूंगा ! अब कृष्ण बोले - मान लीजिये आज के युद्ध में पांडव कमजोर पड़े या हारते दिखे तब ? वो बोला - मैं पांडवो की तरफ़ से लडूंगा ! अब कृष्ण बोले - और फ़िर आपका बाण कौरवों का सफाया कर देगा तब कौरव हारने लगेंगे ! तब क्या करिएगा ? बर्बरीक नाराज होते हुए बोला - कह तो चुका हूँ की हारने वाले की तरफ़ से लडूंगा ! उस स्थिति में मैं कौरवों की तरफ़ से लडूंगा और पांडवों का सफाया कर दूंगा ! अपना प्रण ही ऐसा है ! मैं किसी को हारते हुए नही देख सकता !
अब श्री कृष्ण को काटो तो खून नही ! उन्होंने कभी स्वपन्न में भी इस बात की कल्पना नही की थी ! इस योद्धा ने आकर तो सारे गणित बिगाड़ दिए ! अभी तक जीत के जो समीकरण उन्होंने बैठाए थे वो सारे ध्वस्त दिखाई देने लगे ! अब क्या किया जाए ! ये तो जिसकी तरफ़ से भी लडेगा तब सामने वाला तो हारेगा ही उस स्थिति में ये वापस हारने वाले की तरफ़ से लडेगा ! इस तरह से तो ये दोनों तरफ़ के सब योद्धाओं को मार डालेगा ! कुछ भी नही बचेगा ! क्या फायदा युद्ध का ! जब कोई विजयी होने के लिए ही नही बचेगा ! उन्होंने उसको समझाने के लिए कहा - धनुर्धर मैं आपको प्रणाम और नमन करता हूँ ! मेरी जानकारी में आपसे बढ़ कर और कोई धनुर्धर आज इस भूतल पर नही है जो आपका मुकाबला कर सके ! और आप जो कह रहे हैं उस हिसाब से इस युद्ध में सिर्फ़ और सिर्फ़ मौत है ! कोई भी नही बचेगा ! अत: आप अगर इस युद्ध में भाग नही ले तो ये मानवता के लिए अच्छा होगा !
अब योद्धा थोडा नाराजी दिखाता हुवा बोला - मुझे इससे कोई फर्क नही पङता की इसका परिणाम क्या होगा ? और आपने इस युद्ध की नींव रखते समय हम जैसे योद्धाओं के बारे में क्यूँ नही सोचा ? आपको सिर्फ़ कर्ण और अर्जुन दो ही धनुर्धर दिखे थे क्या ? अब मैं मेरी प्रतिज्ञा से नही हटूंगा ! चाहे जो हो जाए मैं अपनी प्रतिज्ञा पर कायम हूँ ! और रहूंगा ! और आप मुझे युद्ध करने से भी नही रोक सकते !
और श्री कृष्ण ने भी सोचा की ये सही कह रहा है ! उस समय के नियमो के हिसाब से व्यक्ति अपनी पसंद के खेमे में शामिल होकर युद्ध लड़ सकता था ! श्री कृष्ण के सामने इस युद्ध के जब आसार दिखाई देने लगे थे तब से आज तक इससे पेचीदा समस्या नही आई थी ! इस धनुर्धर ने तो सारे समीकरण ही उलटा दिए ! बड़ा मुश्किल है ! श्री कृष्ण जैसा व्यक्ति और चिंतित ? समस्या शायद बड़ी गंभीर है ! (क्रमश:)
मग्गाबाबा का प्रणाम !
9 comments:
21 October 2008 at 05:33
शुभ प्रभात. डीमापुर (नागालैंड) से कुरुक्षेत्र आए इस वीर के बारे में और जानने की बहुत इच्छा है. आशा है कथा इसी विस्तार से चलती रहेगी. मग्गा बाबा की जय!
21 October 2008 at 06:57
अगली कडी का इँतज़ार ..
21 October 2008 at 07:35
sab sri krishan ki maya hai
21 October 2008 at 09:39
jay magga baba.. ye bhi bahut khoob rahi..
21 October 2008 at 10:06
" aage pdhne kee utsukta bdh gyee hai, so intresting to read..... blog pr budh prateema ne mantr mugdh kr diya hai, mun moh liya, bhut sunder...."
Regards
21 October 2008 at 20:39
अरे बाबा जी आप ज्ल्दी से आगे भी पढबाये, आज का धन्यवाद
राम राम जी की
21 October 2008 at 22:37
मग्गा बाबा की जय (क्रमशः)
22 October 2008 at 09:56
सही कहा बाबा, इस धर्मयुद्ध की कूटनीतिक चालें आज की राजनीति का मूलाधार है-
कहने को तो धर्म युद्ध था पर सब तरह का अधर्म जो भी युद्ध में हो सकता था वो सब उस धर्म युद्ध में भी हुवा ! और युद्धों में हर काल में ऐसा होता आया है !
6 August 2012 at 16:37
भाद्रपद कृष्ण अष्टमीकी मध्यरात्रि, रोहिणी नक्षत्रके होते हुए जब चंद्र वृषभ राशिमें स्थित था, तब भगवान श्रीकृष्णका जन्म हुआ । जन्माष्टमीपर श्रीकृष्णतत्त्व प्रतिदिनकी तुलनामें १००० गुना अधिक कार्यरत होता है । इस तिथिपर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय ।’ नामजप तथा श्रीकृष्णजीकी अन्य उपासना भावपूर्ण करनेसे श्रीकृष्णतत्त्वका अधिक लाभ मिलता है ।
http://balsanskar.com/hindi/lekh/280.html
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