बर्बरीक : महाभारत युद्ध के निर्णायक !

महाभारत युद्ध के दिनों में इस युद्ध की उतनी ही गहन चर्चा और उत्सुकता थी जैसी इस सदी में हुए हाई-टेक युद्ध , मित्र राष्ट्र बनाम ईराक़ युद्ध की ! जैसे इस युद्ध में लाबिंग की गई थी की कौन कौन अमेरिका का साथ देगा और कौन नही ! ये अलग बात है की जो भी आया वो अमेरिका के साथ ही आया या फ़िर तटस्थ रह गया ! ईराक़ के साथ खुल कर कोई नही आया ! महाभारत युद्ध में भी बड़े पैमाने पर लाबिंग हुई थी और इसी लाबिंग का प्रमाण है की श्रीकृष्ण स्वयं तो पांडवो के साथ थे परन्तु उनकी सेना कौरवों के पक्ष में खडी थी ! कहने का मतलब ये की योद्धा आ रहे थे और दोनों खेमे सीमा पर ही उनकी आवभगत में खड़े होकर उनको अपने २ पक्ष में आने का निवेदन कर रहे थे !

 

महाभारत का युद्ध उतरोतर चिंताजनक हालत में पहुँच रहा था ! उस समय में युद्ध भी धर्म युद्ध ही हुआ करते थे ! और इस युद्ध में भी बहुत हद तक इस बात की कोशीश की गई थी की इस नियम का पालन हो ! पर शायद युद्ध और प्रेम में ये बातें केवल कहने भर की ही होती  हैं ! जैसे जयद्रथ वध में हुआ, कर्ण के साथ हुआ, दुर्योधन जब अंत समय तालाब में छुपे थे , तब हुआ ? यह एक अलग प्रसंग हो जायेगा ! और फ़िर कभी संयोग आया तब चर्चा करेंगे !

अभी तो आप को युद्ध  में भाग लेने  आए एक योद्धा  की कहानी सुनाते हैं  ! जब भी कोई योद्धा युद्ध क्षेत्र में आता था , दोनों और से उसे अपने पक्ष में करने  की कवायद शुरू हो जाती थी ! यह बर्बरीक नाम का योद्धा मात्र अपना धनुष और एक बाण लेके वहाँ आता है ! दोनों तरफ़ से स्वाभाविक गतिविधियाँ हुई , पर जब देखा की इसके पास तो एक ही बाण है तो यह सोच कर की ये क्या लडेगा एक बाण से !  किसी ने बहुत ज्यादा रूचि नही ली ! बर्बरीक दोनों खेमो के मध्य बिन्दु, एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और यह घोषणा कर डाली - मैं उस पक्ष की तरफ़ से लडूंगा जो हार रहा होगा !

 

mahabharat yudh उसकी यह घोषणा सुन कर वहाँ खड़े कुछ लोगो ने सोचा की कोई पागल होगा ! इसके पास ना कोई हथियार है, ना ही कोई बाण वगैरह हैं ! ऐसे ही हवाबाजी कर रहा होगा ! जासूसों ने, जैसा की रोज की रिपोर्टिंग करते थे , आज भी अपनी २ रिपोर्ट दी ! और अंत में उन्होंने बताया की आज एक ऐसा पागल भी योद्धा बन कर आया है और बोल रहा है की वो उसकी तरफ़ से लडेगा जो हार रहा होगा ! कौरव पक्ष में किसी ने इस पर ध्यान भी नही दिया ! सब हंस कर टाल गए और अपने २ शिविरों में चले गए !  उधर पांडव खेमे में  भी रिपोर्टिंग का काम चल रहा था ! असल में लोग कहते हैं की पांडव  श्री कृष्ण  के कारण ही जीते थे ! यह बात बिल्कुल सही है ! असल में पांडवों का पूरा  सी.आई.डी. विभाग श्री कृष्ण के जिम्मे था ! और इसमे ही उनकी प्रतिज्ञा भी बचती थी ! कोई हथियार उठाना नही पड़ रहे थे ! और सबसे महत्त्व पूर्ण कार्य को अंजाम दे रहे थे ! यहीं पर कौरव मात खा गए ! वरना तो इस युद्ध की कहानी ही अलग होती !  इसीलिए दुर्योधन को मुर्ख कहा गया ! उस बेवकूफ ने कभी भी सी, आई. डी. विभाग पर धन नही खर्च किया ! सिर्फ़ हथियार और योद्धा खरीदता रहा ! और पांडव इस विभाग में उससे बड़े उस्ताद थे ! उनका सारा दारोमदार ही जासूसी पर था ! और इस विभाग के चीफ भी स्वयं भगवान श्री कृष्ण थे ! जो की इन धंधों में बचपन से ही डिग्रीधारी थे !

आज की जासूसों की रिपोर्टिंग सुनने महाराज युधिष्ठर और अर्जुन भी कक्ष में उपस्थित थे ! जासूस ने जैसे ही बर्बरीक के बारे में बताया , एक बार तो बात आई गई हो गई ! पर श्री कृष्ण   ने तुंरत जासूस से कहा - फ़िर से बताना ! क्या कह रहे थे ?
जासूस ने योद्धा के बारे में बताया और उसकी प्रतिज्ञा के बारे बताया ! अब जासूस ने जो कुछ सुनाया वो सुनकर श्री कृष्ण के माथे पर चिंता की लकीरे साफ़ उठ आई ! महाराज युधिष्ठर के पूछने पर श्री कृष्ण बिना कुछ कहे तेजी से उठकर बाहर चले गए !
और उनको परेशान देख कर महाराज युधिष्ठर और अर्जुन भी विचलित हो गए ! दोनों अच्छी तरह जानते हैं की जब भी पांडवो की सुरक्षा पर आंच आती दिखाई देती है , उसी समय श्रीकृष्ण इतना परेशान हो जाते हैं ! (क्रमश:)

मग्गाबाबा का प्रणाम !

11 comments:

  समयचक्र

19 October 2008 at 16:30

bahut badhiya katha baba ab age bhi sunaye intajaar karunga. dhanyawad.

  सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

19 October 2008 at 17:21

बर्बरीक की रोचक कथा बहुत उत्सुकता के विन्दु पर छोड़ दिया है आपने। अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।

  Gyan Darpan

19 October 2008 at 17:37

दिलचस्प कहानी | इन बर्बरीक महोदय की पूजा खाटू श्याम जी में श्री कृष्ण के रूप में होती है

  राज भाटिय़ा

19 October 2008 at 18:14

बाबा जी आप भी न जब मजा आने का समय आया तो समाधि उठा ली.... चलो अगली पोस्ट का इन्तजार करने के सिवा कोई चारा नही..
राम राम जी की अगली पोस्ट मे मिलते है
राम राम जी की

  Smart Indian

19 October 2008 at 19:15

बर्बरीक के प्राण और उसके एक बाण के बारे में और जानने की जिज्ञासा है. जहाँ तक धर्मयुद्ध के धर्म की बात है, धर्मराज के झूठ से व्यथित और निहत्थे समाधिवत् गुरु द्रोणाचार्य का वध भी अधर्म ही हुआ.

  लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`

19 October 2008 at 21:57

अगली कडी का इँतज़ार ..

  Abhishek Ojha

19 October 2008 at 22:54

मग्गा बाबा को प्रणाम ! ये कथा तो सुनी हुई है... पर आपकी स्टाइल पसंद आ रही है !

  Udan Tashtari

20 October 2008 at 01:43

जय हो मग्गा बाबा-किस मोड़ पर लाकर छोड़ गये...अब आगे का इन्तजार है.

  PD

20 October 2008 at 08:39

badhiya hai.. ye katha jaanta tha magar naye andaj me padhne me maja aaya.. :)

  जितेन्द़ भगत

20 October 2008 at 11:03

यह कथा मैंने तो नहीं सुनी है, आपने रोचक जगह पर लाकर ब्रेक ले लि‍या, अब जल्‍दी आना बाबा, प्रणाम।

  Anonymous

8 October 2011 at 12:21

aage kya hua BABA ji ,Krapaya jaldi batayen
Vimal
Delhi

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