सबकी समझ अपनी अपनी होती है : गौतम बुद्ध

जैसा की आप जानते हैं आनंद बुद्ध का प्रिय शिष्य भी था और बुद्ध को सबसे प्रिय भी था ! आनंद ने बुद्ध की इतनी सेवा की थी की अगर हम उनका गुणगान लेकर बैठे तो ये पोस्ट यहीं  कहीं गुम हो जायेगी ! आनद के बिना बुद्ध का जीवन चरित्र अधूरा ही रहेगा ! हम पहले ही वादा कर चुके हैं की आनद के बारे में विस्तृत चर्चा समय पर अवश्य करेंगे ! और आपको आनंद के बारे में कुछ और बातें मालुम पड़ेगी ! अभी तो आप ये समझ लीजिये की आनद बुद्ध की परछाई की तरह २४ घंटे उनके साथ रहता था ! और वो इसी निकटता के कारण बुद्ध से  सबसे गूढ़ बातें भी पूछ लिया करता था ! आज वैसी ही एक घटना का जिक्र करते हैं !

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भगवान बुद्ध सांध्यकालीन प्रवचन देकर हमेशा की तरह तीन बार बोले - अब अपना २ कार्य संपन्न करें!और उठ कर अपने विश्राम स्थल की और बढ़ गए ! आनंद भी उनके पीछे २ वहाँ पहुँच गया ! आज आनंद ने आख़िर बुद्ध से पूछ ही लिया की आप एक ही बात को तीन बार क्यूँ दोहराते हैं ?

 

बुद्ध की आदत थी की हर बात वे अपने शिष्यों को तीन बार समझा देते थे ! अब आनंद को ये शायद फालतू की बात ही लगती होगी की अब रोज रोज ये क्या तीन बार दोहराना की जावो अब अपना अपना काम करो ! अरे भाई स्वाभाविक और समझी हुई बात है की, बुद्ध के भिक्षू हो तो , सांध्य कर्म और सभा के बाद सब ईश्वर चिंतन और ध्यान करो ! अब ये भी कोई रोज  रोज समझाने की बात है भला ?  

अब बुद्ध ने कहा - आनंद तुम कहते तो ठीक हो की भिक्षु को रोज रोज क्या समझाना की जावो अब अपना २ काम करो ! पर तुमने शायद ध्यान नही दिया की यहाँ धर्म सभा में आस-पास की बस्तियों के भी काफी सारे लोग आते हैं ! और वो शायद पहली बार भी आए हुए हो सकते हैं !  सो उनकी सहूलियत के लिए भी ये जरुरी हो जाता है ! पर आनंद के हाव भाव से महात्मा बुद्ध को ऐसा लगा की वो इस बात से शायद सहमत  नही है !

अब बुद्ध बोले - आनंद अब तुम एक काम करो ! आज  की ही सभा में जितने लोग बैठे थे उनमे एक वेश्या और एक चोर भी प्रवचन सुनने आए थे ! और संन्यासी तो खैर अनेको थे ही ! अब तुम एक काम करना की सुबह इन तीनो ( संन्यासी, वेश्या और चोर ) से जाकर  पूछना की कल रात्री धर्म-सभा में बुद्ध ने जो आखिरी वचन कहे उनसे वो क्या समझे ? अब आनंद के आश्चर्य का कोई ठिकाना नही रहा ! उसको ख़ुद नही मालुम की इतनी बड़ी हजारों की धर्म-सभा में कौन आया और कौन नही आया ? और भगवान् बुद्ध एक एक आदमी को जानते हैं ! और उसे आश्चर्य हुवा की वो कैसे पहचान गए की वो वेश्या है और वो चोर है ! घोर आश्चर्य हुवा आनंद को ! और बुद्ध से उनके नाम पते लेकर मुश्किल में रात्री काटी और सुबह होते ही तहकीकात में लग गया की वाकई वो वही हैं जो बुद्ध ने बताए हैं या बुद्ध आनंद के मजे ले रहे हैं ? 

सुबह होते ही आनंद के सामने जो पहला संन्यासी पडा उससे आनंद ने पूछा - आपने रात्री सभा में बुद्ध ने जो आखिरी वचन कहे की अब जाकर अपना २ काम करो ! उन शब्दों से आपने क्या समझा ? भिक्षु बोला - इसमे समझने वाली क्या बात है ? भिक्षु का नित्य कर्म है की अब शयन पूर्व का ध्यान करते २ विश्राम करो ! आनंद को इसी उत्तर की अपेक्षा थी अत: वो अब तेजी से नगर की और चल दिया !

आनंद सीधे चोर के घर पूछते २ पहुँच गया और चोर तो भिक्षु आनंद को देखते ही गद गद हो गया और उनकी सेवा में लग गया ! आनद को बैठाकर उनसे आने का प्रयोजन पूछा ! आनंद ने अपना सवाल दोहरा दिया ! और चोर बड़े ही विनम्र शब्दों में बोला - भिक्षु , अब आपको क्या बताऊँ ? कल रात पहली बार बुद्ध की धर्मसभा में गया और उनके प्रवचन सुन कर जीवन
सफल हो गया ! फ़िर भगवान् ने कहा की अब अपना २ काम करो ! तो मैं तो चोर हूँ अब बुद्ध के प्रवचन सुनने के बाद झूँठ तो बोलूंगा नही ! कल रात मैं वहाँ से चोरी करने चला गया और इतना तगड़ा हाथ मारा की जीवन में पहली बार इतना तगड़ा दांव लगा है की आगे चोरी करने की जरुरत ही नही है ! आनंद को बड़ा आश्चर्य हुवा और वो वहाँ से वेश्या के घर की तरफ़ चल दिया !

वेश्या के घर पहुंचते ही वो तो भिक्षु आनद को देखते ही टप टप प्रेमाश्रु बहाते हुए उनके लिए भिक्षा ले आई और अन्दर आकर बैठने के लिए आग्रह किया ! आनंद अन्दर जाकर बैठ गया और अपना सवाल दोहरा दिया !  वेश्या ने कहना शुरू किया - भिक्षु ये भी कोई पूछने की बात है ? भगवान बुद्ध ने कहा की अब जावो अपना २ काम करो ! सो उनके वचन टालने का तो कोई प्रश्न ही नही है ! मेरा काम तो नाचना गाना है सो वहाँ से प्रवचन सुन कर आने के बाद तैयार हुई और महफ़िल सजाई ! यकीन मानो कल जैसी महफ़िल तो कभी सजी ही नही ! और सारे मेरे ग्राहक जिनमे बड़े २ राजे महाराजे भी थे ! वो इतने प्रशन्न हो के गए
की अपना सब कुछ यहाँ लुटा कर चले गए ! अब मुझे धन के लिए ये कर्म करने की कभी आवश्यकता ही नही पड़ेगी ! बुद्ध की कृपा से एक रात में इतना सब कुछ हो गया !  आनंद बड़ा आश्चर्य चकित हो कर वहाँ से वापस बुद्ध के पास लौट गया !

आनंद ने जाकर बुद्ध को प्रणाम किया और सारी बात बताई ! अब बुद्ध बोले - आनंद .. इस संसार में जितने जीव हैं उतने ही दिमाग हैं ! और बात तो एक ही होती है पर हर आदमी अपनी २ समझ से उसके मतलब निकाल लेता है ! अब तुम समझ ही गए होगे की बात तो एक ही थी पर सबकी समझने की बुद्धि अलग २ थी ! और इसीलिए मैं एक बात को तीन बार कहता हूँ की कोई गलती नही हो जाए पर उसके बाद भी सब अपने हिसाब से ही समझते हैं ! और इसका कोई उपाय नही है ! ये सृष्टि ही ऎसी है !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

8 comments:

  राज भाटिय़ा

1 October 2008 at 23:21

बाबा जी सही फ़रमाया , सभी अपनी अपनी समझ रखते हे, ओर हर बात को अपने मतलब के अनुसार ढाल लेते हे.
राम राम जी की बाबा

  लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`

2 October 2008 at 07:17

पसँद अपनी अपनी और समझ भी अपनी अपनी .
कथा से बात
भलिभाँति समझाते हैँ आप ..
- लावण्या

  सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

2 October 2008 at 21:13

आदरणीय बाबा जी,
आपकी पोस्टपर बुद्ध भगवान की कहानियाँ पढ़कर बहुत सुख मिलता है। मेरे माँ-बाप ने मेरा नाम सिद्धार्थ रख दिया था तो बचपन की किताबों में अपना नाम देखकर उस महात्मा से एक अन्जाना जुड़ाव हो गया। खोज-खोजकर कहानियाँ पढ़ता था। बाद में दर्शन का विद्यार्थी हो गया तो बुद्ध दर्शन भी जानए का अवसर मिल गया।

इसके बावजूद आपकी कहानियाँ बरबस मोहित कर लेती हैं। जारी रखिए।

  वीनस केसरी

3 October 2008 at 02:22

सत्य वचन

वीनस केसरी

  Smart Indian

3 October 2008 at 10:15

बहुत सुंदर कथा है! धन्यवाद!
मग्गा बाबा की जय!

  Ashok Pandey

3 October 2008 at 20:59

सही बात मग्‍गा बाबा, सबकी अपनी अपनी समझ व स्‍वभाव है। उसी के अनुसार आदमी चीजों को ग्रहण करता है और उनको इस्‍तेमाल में लाता है।

  Abhishek Ojha

14 October 2008 at 17:04

एक जंगल में तीन लोग जा रहे थे एक चिडिया गा रही थी... तीनों ने सोचा की आख़िर ये क्या गा रही है:

पहले ने कहा: 'दंड बैठक कसरत'
दुसरे ने: 'राम लक्ष्मण दसरथ'
तीसरे ने: 'प्याज लहसुन अदरख'

पहला पहलवान, दूसरा साधू, तथा तीसरा बनिया था.

आपकी पोस्ट पढ़कर ये किस्सा याद आ गया.

  Dr Prabhat Tandon

6 August 2009 at 23:35

सुन्दर लेखन , आभार !!

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