स्वीकार

क्यों मैंने तुम्हे स्वीकार किया ?
क्योंकि स्वीकार करना मेरा आनंद है !
तुम्हारे कारण स्वीकार नही किया है ,
अपने कारण स्वीकार किया है !
अक्सर लोग स्वीकार करते हैं तुम्हारे कारण !
वे कहते हैं तुम सुंदर हो,
इसलिए स्वीकार करते हैं ;
तुम सुशील हो,
इसलिए स्वीकार करते हैं ;
तुम संतुलित हो,
इसलिए स्वीकार करते हैं ;
तुम संयमी हो,
इसलिए स्वीकार करते हैं ;
यह बात ही नही है |
स्वीकार करना मेरा स्वभाव है ,
इसलिए स्वीकार करता हूँ ;
तुम कैसे हो ?
यह हिसाब लगाता ही नही हूँ !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

8 comments:

  जितेन्द़ भगत

30 September 2008 at 20:18

आज तो दार्शनि‍क बातें सुनने को मि‍ली बाबा-
स्वीकार करना मेरा आनंद है !
तुम्हारे कारण स्वीकार नही किया है।

यह साधुत्‍व संसारी मनुष्‍य में आना कठि‍न है- कि‍तनी नि‍र्लि‍प्‍त भावना है इसमें। बाबा, इस आशय की कोई कथा हो तो कभी सुनाइएगा। प्रणाम।

  Ashok Pandey

30 September 2008 at 20:40

मग्‍गा बाबा को प्रणाम। गहरी बात कही आपने। कोई भी जीव कोई कार्य अपनी ही प्रकृति की वजह से करता है, दूसरों की वजह से नहीं। बहुत बहुत आभार।

  परमजीत सिहँ बाली

30 September 2008 at 20:50

बहुत सही व सच्ची बात लिखी है।

स्वीकार करना मेरा स्वभाव है ,
इसलिए स्वीकार करता हूँ ;
तुम कैसे हो ?
यह हिसाब लगाता ही नही हूँ

इसी को स्वीकारना कहते हैं।बहुत सुन्दर!!!

  प्रशांत मलिक

30 September 2008 at 21:56

स्वीकार करना मेरा स्वभाव है ,
इसलिए स्वीकार करता हूँ ;
तुम कैसे हो ?
यह हिसाब लगाता ही नही हूँ

esa laga jaise mai khud he likhi hai...

  राज भाटिय़ा

1 October 2008 at 00:51

बहुत ही सुन्दर विचार ज्य हो बाबा जी की
राम राम

  seema gupta

1 October 2008 at 10:36

स्वीकार करना मेरा स्वभाव है ,
इसलिए स्वीकार करता हूँ ;
तुम कैसे हो ?
यह हिसाब लगाता ही नही हूँ !
" kmal kee abheevyktee, aatmik darshan se prepurn'

regards

  Udan Tashtari

1 October 2008 at 21:22

स्वीकार करना मेरा स्वभाव है ,
इसलिए स्वीकार करता हूँ ;
तुम कैसे हो ?
यह हिसाब लगाता ही नही हूँ !


---वाकई बाबा, आपने तो सोते पर से जगा दिया. ज्ञानचक्षु खुल गये. कितना बड़ा दर्शन छुपा है इस बात में. मग्गा बाबा की जय!!

  Nitish Raj

2 October 2008 at 04:08

वाह मग्गा बाबा क्या खूब लिखा है। थोड़ी देर बैठकर सोचता रहा कि कौन सी पंक्ति यहां पर डालकर कहूं कि ये ज्यादा अच्छी लगी। नहीं ढूंढ पाया क्योंकि पूरा का पूरा ज्ञान ही अच्छा लगा। आगे भी देते रहें ।

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