राजा शुद्धोधन की पुत्र गौतम बुद्ध से मुलाक़ात


यह घटना उस समय कि है जब गौतम बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त हो चुका था ! और वो
अपने ४० हजार भिक्षुओं के साथ अपने पिता के राज्य मे आते हैं ! यहा पर
घर छोडने के बाद उनकी अपने पिता राजा शुद्धोधन और पत्नि यशोधरा से
पहली मुलाकात थी ! आज पिता पुत्र की मुलाकात और अगले भाग मे पति पत्नि की !



राजा शुद्धोधन के लिये यह बात पचाना बडा मुश्किल था कि उनका पुत्र गौतम
अब भिक्षु हो गया है ! उनके शब्दों मे भिखारी हो गया है ! उनको इस बात से कोई
लेना देना नही की उनका पुत्र बुद्धत्व को प्राप्त हो गया है ! और सही भी है ! दुनिया
का कौन बाप ये मन्जूर करेगा ? बाप आखिर बाप ही होता है ! भले राजा हो या साधारण
मनुष्य ! यह घटना है जब बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद गौतम बुद्ध अपने पिता
राजा शुद्धोधन के राज्य मे अपने भिक्षुओं के सन्घ सहित प्रवेश करते हैं !

राजा बडे क्रोधित हैं अपने पुत्र के कृत्य पर ! अरे ये कोई बात हुई ! जिस पुत्र के
लिये इतना बडा राज्य खडा किया और वो भिखारी बन गया ? पत्नि और बेटे को
सोता छोड कर भाग गया ? राजा शुद्धोधन बहुत गुस्से मे हैं ! अभी तक उनकी
गौतम से घर छोडने के बाद यह पहली मुलाकात होगी ! अभी तक वो मन ही मन कुढते
रहे ! पर आज मौका मिला है अपने पुत्र को फ़टकारने का ! उसे समझाने का !
बडी बेसब्री से सम्राट शुद्धोधन राज सिन्हासन पर बैठे गौतम का इन्तजार कर
रहे हैं ! राज दरबार मे अजीब सा सन्नाटा पसरा है ! एक बाप की , एक सम्राट की
पीडा है ! कोई कुछ बोल नही रहा है !

उधर चारों तरफ़ बुद्धम शरणम गच्छामि.. का उदघोष था ! कहते हैं बुद्ध के
साथ उनके सन्घ मे ४० हजार भिक्षुक चलते थे ! सारा नगर अपने प्रिय
राज कुमार को देखने उमड पडा है ! सारा नगर बुद्ध को देख कर उनके दर्शन
करके आनन्दित है ! किसी को बुद्ध का ये भिक्षु रुप पसन्द नही आता वो
भाव विव्हल होकर अश्रु बहा रहे हैं और जो इस रुप मे ईश्वर को देख रहे हैं
वो प्रेमाश्रु बहा रहे हैं ! भिक्षुओं की परम्परा रही है कि अपने नजदीकी
रिश्तेदारों से भिक्षा मांगने की ! और बुद्ध को अपने पिता और पत्नि के सामने
भिक्षा मांगने जाना ही था !

गौतम बुद्ध अपने पिता सम्राट शुद्धोधन के महल के दरवाजे पर आकर रुक
गये हैं ! और भिक्षा की कामना करते हैं ! पिता अपने पुत्र को देख कर
भाव विव्हल होकर गले लगाने को ऊठ कर दौड पडने को हैं ! पर बेटे की तरफ़
से कोई गर्म जोशी नही देख कर रुक जाते हैं ! और सम्राट को बुद्ध के भिक्षा मांगने
पर क्रोध आ जाता है !

बुद्ध : मुझे भिक्षा दिजिये !

राजा : अरे तुझे शर्म नही आती ? इतने बडे राज्य का उतराधिकारी होकर भीख
मांगता फ़िरता है ! कुछ तो अपने पुरखों की इज्जत का खयाल कर ! तू राजाओं
के कुल मे पैदा हुवा है ! तेरे कुल मे किसी ने भीख नही मांगी ! बल्कि दी है !

बुद्ध : मैं तो जन्मों का भिखारी हूं राजन !

इस बात पर सम्राट को और गुस्सा आ गया ! कोई बाप यह बर्दास्त नही करेगा कि
उसका बेटा इस तरह से जबान लडाये !

शुद्धोधन : अरे नालायक कुछ तो शर्म कर ! तू अपने आपको जन्मों का भिखारी
कह रहा है ! अरे मैने तुझको पैदा किया है मैने ! और मैं जानता हुं तुझको
बचपन से ! तु पागल हो गया है !

बुद्ध : यह ठीक है कि मैं आपके द्वारा पैदा हुवा हुं पर आपने मुझे पैदा नही
किया है ! मैं तो पैदा ही था ! और पिछले कई जन्मों से भिखारी हुं !

राजा शुद्धोधन ने सोच लिया की इस लडके का दिमाग सटका हुवा है ! ये इस
तरह डांट डपट से नही मानेगा ! अत: उन्होने प्यार से समझाने की कोशिश की !
आखिर बाप अपने बेटे को समझाने के लिये हर तरह के पासे फ़ेंकता है !

राजा शुद्धोधन : देख बेटा ! तू अभी बालक है ! जो गलती तूने करली वो करली !
मैं तुझे अभी भी माफ़ करने को तैयार हुं ! तू छोड ये पाखन्ड और देख ये राज सिंहासन
तेरा इन्तजार कर रहा है ! और मैं अब बूढा हो चुका हूं ! अब बहुत बचपना हो चुका !
चल छोड यह सब और अपना काम धन्धा सम्भाल ! अरे हम राजा हैं बेटा ! चल अब
अन्दर जा ! और कपडे बदल ! बुद्ध शांत मुद्रा मे अपने पिता के मुंह की तरफ़ देखें
जा रहे हैं ! गहन शांत मुस्कान है ! जो किसी को भी आकर्षित कर ले !
उनके चेहरे को देख कर शुद्धोधन को भी लगा की हां इस पर मेरी बातों का असर हुवा है !
और अब ये मान जायेगा ! मान क्या जायेगा ? मान ही गया है ! एक अनुभवी सम्राट की
नजर का सोचना है ये ! सम्राट कभी गलत थोडे ही हो सकते हैं ?


शुद्धोधन आगे कहने लगे -- देख अब ऐसा काम कर कि ये जो भिक्षु तूने
इक्कठे कर रखे हैं इनको भी कहीं भगाने की जरुरत नही है ! तेरे लिये मैने
इतना बडा राज्य और धन सम्पति इक्कठी कर रखी है कि तू चाहे तो इनको भी
खिलाते रहना ! मुझे कोई ऐतराज नही है ! मुझे तो सिर्फ़ तू लौट आया है !
इससे ज्यादा कुछ नही चाहिये ! पिता का ह्रदय भी कितना कोमल होता है अपने
पुत्र के प्रति ? शुद्धोधन बुद्ध को ऐसे ही फ़ुसला रहे हैं जैसे एक छोटे बच्चे
को खिलोनों से बहलाया जाता है ! सही कहा है पिता मरते दम तक अपने बेटे
को छोटा बच्चा ही समझता है ! बेटा कितना ही बडा हो जाये ! बाप उसको हमेशा
अपनी अन्गुली पकड कर ही चलाना चाहता है ! यही ममता है ! क्या करे, शुद्धोधन भी ?
आखिर तो एक बाप का चोटिल ह्रदय है उनके पास ! वो कैसे भी किसी भी कीमत
पर अपने खोये या बहके हुये बेटे को पुन: प्राप्त कर लेना चाहते हैं !

अब जो जवाब बुद्ध ने दिया उसको सुन कर सम्राट के सीने मे तलवारे चुभ गई !
बुद्ध बोले : आप मुझे एक जरा सा राज्य देना चाहते हैं ! अरे मुझे तो सारे जहान
का राज्य मिल गया है ! आप मेरे राज्य को देखिये तो सही ! पूरे संसार के राज्य
का मैं मालिक हो गया हूं ! और यह सुनते ही राजा शुद्धोधन क्रोध से थर थर
कांपने लगे ! शेष अगले भाग में ...

मग्गा बाबा का प्रणाम !

9 comments:

  राज भाटिय़ा

15 September 2008 at 23:34

बहुत ही सुन्दर विवरण, लेकिन सच कहा हे बाप बाप होता हे, तडपेगा ही... लेकिन क्या करे कोई ... बच्चे अपनी बात पर अड जाये तो बाप ही झुक जाता हे.
धन्यवाद

  लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्`

16 September 2008 at 00:59

Yashodhara aur Gautam jo ab BUDHDH ban gaye hain unke milan per meri ek Kavita hai -
Uska link aapke liye bhejoongi.
Ye Katha bhee bahut sahee rahee.
Budhdha ka samrajya , aaj bhee
pure Vishwa mei faila hua hai.
Bahut sare Americans bhee Budhdhism ko behad pasand karte hain.
Khaas taur se " Ahinsa aur Karuna " jaise gun unhe bahut bhate hain.

  Smart Indian

16 September 2008 at 04:53

बुद्धं शरणम गच्छामि! आगे की कहानी का इंतज़ार रहेगा! मग्गा बाबा की जय!

  seema gupta

16 September 2008 at 09:07

बुद्ध बोले : आप मुझे एक जरा सा राज्य देना चाहते हैं ! अरे मुझे तो सारे जहान
का राज्य मिल गया है ! आप मेरे राज्य को देखिये तो सही ! पूरे संसार के राज्य
का मैं मालिक हो गया हूं
" bhut interetsing story hai, seedhee prapt kerne ke baad jo gautam budh ne paya vhee unke liye sara jhan ho gya...aglee kdee ka injar hai"

Regards

  अजित वडनेरकर

16 September 2008 at 10:53

जै जै ।

  Abhishek Ojha

16 September 2008 at 14:35

"अरे मुझे तो सारे जहान
का राज्य मिल गया है ! आप मेरे राज्य को देखिये तो सही ! पूरे संसार के राज्य
का मैं मालिक हो गया हूं !"
बहुत अच्छी जा रही है मुलाकात. इसके बाद कहीं उन्होंने अपने साम्राज्य में मिला लेने का ऑफर तो नहीं दे दिया?

  जितेन्द़ भगत

16 September 2008 at 14:52

आपसे कथा सुनने की लालसा खत्म ही नहीं होती, कभी सोचा था, मैं बाबा-वाबा के चक्‍कर में कभी नहीं पड़ुँगा पर आपकी प्रेरक बातों में मेरा मन बिंध-सा गया है। बुद्ध पर कथा जारी रखि‍एगा। इंतजार करुँगा।
जय बाबा।

  महेन्द्र मिश्र

16 September 2008 at 21:09

सुन्दर विवरण.
मग्गा बाबा की जय...धन्यवाद

  Udan Tashtari

18 September 2008 at 01:32

मग्गा बाबा की जय..आनन्द आ गया ज्ञान प्राप्त कर. जारी रखिये प्रवचन.

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