स्वीकार

क्यों मैंने तुम्हे स्वीकार किया ?
क्योंकि स्वीकार करना मेरा आनंद है !
तुम्हारे कारण स्वीकार नही किया है ,
अपने कारण स्वीकार किया है !
अक्सर लोग स्वीकार करते हैं तुम्हारे कारण !
वे कहते हैं तुम सुंदर हो,
इसलिए स्वीकार करते हैं ;
तुम सुशील हो,
इसलिए स्वीकार करते हैं ;
तुम संतुलित हो,
इसलिए स्वीकार करते हैं ;
तुम संयमी हो,
इसलिए स्वीकार करते हैं ;
यह बात ही नही है |
स्वीकार करना मेरा स्वभाव है ,
इसलिए स्वीकार करता हूँ ;
तुम कैसे हो ?
यह हिसाब लगाता ही नही हूँ !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है : सिद्धार्थ





आज हम आपको यह भगवान बुद्ध के बचपन की घटना बता रहे हैं ! कुछ मित्रों के
आग्रह पर हम अब भगवाअन बुद्ध के जन्म से उनकी शादी विवाह तक की सब कहानियां
मोटे तौर पर जानते हुये आगे चलेन्गे ! कई लोगो को इसमे सन्शय है कि सिद्धार्थ को
हथियार चलाना नही आता था ! और भी कई बाते ऐसी हैं कि जो हम अवश्य जानना
चाहेंगे ! ओर आगे से हम निरन्तर इस विषय को आगे बढाने की कोशिश करेंगे !


राज कुमार सिद्धार्थ एक रोज राज महल के बगीचे मे घूम रहा है ! साथ मे उनका चचेरा
भाई देवदत्त भी है ! राज कुमार सिद्धर्थ जितना ही कोमल हृदय और सबका मन जीत
लेने वाला बालक था , देवदत उत्ना ही उदन्ड और क्रुर प्रवर्ति का लडका था ! कोई भी
उसकी प्रशंशा नही करता था ! वहीं पर सिद्धार्थ सबकी आंखो का तारा था ! और ऐसा होता
ही है ! आप एक ही परिवार मे इसके तरह के विरोधाभाषी व्यक्तित्व आज भी देख सकते हैं !

कुछ और भी बालक वहां खेल रहे थे ! सिद्धार्थ का प्रिय सखा बसंतक भी वहीं था जो की
ज्यादातर उनके मन बहलाने के लिये राज कुमार के साथ ही रहता था ! इतने मे सिद्धार्थ
ने देखा कि देवदत धनुष पर बाण चढा रहा है और उसका निशाना एक उडता हुवा हंस है !

राज कुमार सिद्धार्थ जोर से चिल्लाया - ठहरो देवदत.. रुको.. ये क्या कर कर रहे हो ?
देवदत ने जवाब दिया -- तुम्हे इससे क्या ? हम राज वन्शी हैं कुछ भी करें ! शिकार मारना
हमारा धर्म है और उसने बाण मार कर उस उडते हुये प्यारे हंस को नीचे गिरा दिया !
राज कुमार सिद्धार्थ बेसुध और व्याकुल होकर हंस के गिरने की दिशा मे दौड पडे !
और जाकर घायल हंस को ऊठा लिया ! और उसके उपचार मे व्यस्त हो गये ! राज कुमार
सिद्धार्थ के मन की दशा अत्यन्त ही करुणा जनक थी !

इधर देवदत ने बहुत हाथ पैर पटके कि हंस का उसने शिकार किया है वो उसे मिलना चाहिये !
राज कुमार सिद्धार्थ द्वारा साफ़ मना कर दिये जाने के बाद देवदत ने जाकर राज दरबार मे
सम्राट शुद्धोधन को शिकायत कर दी और न्याय की गुहार लगाई ! देवदत राज कुमार सिद्धार्थ से
जलन तो रखता ही था ! अत: मौका भी अच्छा मिल गया था ! उसको पका यकीन था
कि अबकी बार सिद्धार्थ को दन्ड मिलेगा और अपमानित भी होना पडेगा ! और बात भी
सही थी ! शिकार जिसने किया है उसी को मिलना चाहिये !

राजा शुद्धोधन ने दरबारियों को इक्क्ठा कर लिया और इस मामले मे न्याय करने के
लिये कहा ! ज्यादातर दरबारी सिद्धार्थ पर प्रेम रखते थे पर उस समय का न्याय बिल्कुल
उनके विरुद्ध जा रहा था ! और अब राजा शुद्धोधन भी क्या करे ? उन्हे ये भी डर था
कि इस फ़ैसले से नाराज हो कर सिद्धार्थ कहीं और वैराग्य का अनुभव ना करने लग जाये !
पर राजा समस्या यही होती है कि कर्तव्यों के आगे हमेशा हर राज पुरुष को
हार माननी पडी है ! इतिहास गवाह है !

दुखी मन से राज कुमार को राज सभा मे हाजिर होने का नोटिस दे दिया गया !
देवदत बडा खुश ! आज पहली बार मौका मिल रहा है सिद्धार्थ को नीचा दिखाने का !
बडा तीसमारखां बना फ़िरता है ! आज देखना .. अब क्या करता है ?
राज कुमार सिद्धार्थ अपने सखा वसन्तक और एक अन्य भाई आनन्द के साथ राज
सभा मे प्रवेश करते हैं ! उनके हाथ मे वही हंस है जिनकी जान उन्होने बचाई है !
वो धीरे २ राजा शुद्धोधन के सामने आकर खडे हो जाते हैं ! पूरी राज सभा मे सन्नाटा
छाया है ! अब क्या होगा ?

न्यायालयीन कार्यवाही शुरु हुई ! मन्त्री ने जो आरोप देवदत ने लगाये थे वो सब
पढ कर सुना दिये ! राजा शुद्धोधन ने पूछा - तुमको अपनी सफ़ाई मे कुछ कहना है ?
वैसे सब राज दरबारी जानते थे कि इसमे सफ़ाई देने जैसा कुछ भी नही है! सिद्धार्थ
को यहां नीचा देखना ही पडेगा और दन्डित भी होना पडेगा ! राज सभा उत्सुक है कि
अब राज कुमार सिद्धार्थ क्या कहते हैं !

सिद्धार्थ ने बडे सयंत वचनों से बोलना शुरु किया ! बचपन से ही सिद्धार्थ कि बोली
इतनी कर्णप्रिय और मीठी थी कि सुनने वाले पर जादू कर देती थी ! उन्होने बोलना शुरु किया!
महाराज , देवदत का कथन सही है ! हंस को उसने मारा है और आपके कानून के अनुसार
उस पर उसी का अधिकार है ! पर एक कानून और है कि मारने वाले से बचाने वाला बडा
भी होता है और अधिकार भी बचाने वाले का ज्यादा होता है ! उस अधिकार के नाते
इस हंस पर मेरा अधिकार है ! और मैं इसके स्वस्थ होने के बाद इसको आजाद परिन्दे
की तरह उडने के लिये आकाश मे छोड दुंगा !

सिद्धार्थ का तर्क सुन कर पूरी राज सभा मे खुशी की लहर दौड गई और सबने राजकुमार
की बडी प्रसंशा की ! राजा ने सभासदों से विचार विमर्श के बाद हंस सर्व सम्मति से
सिद्धार्थ को सौंप दिया ! और सिद्धार्थ ने उसको भला चन्गा होने के बाद आकाश
मे उडने के लिये आजाद कर दिया ! ऐसा विलक्षण था बुद्ध का बचपन ! कितना प्रेम और
करुणा से ओत-प्रोत था भगवान बुद्ध का बचपन !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

दिवंगत प्रिय जन और हम


आप आनन्द के बारे मे हमारे कथन से चौन्क मत जाइयेगा ! आपने अगर लगे रहो
मुन्ना भाई फ़िल्म देखी होगी तो आप यकीन करियेगा कि वैसा ही सबके साथ हो
सकता है ! हम अचेतन मे सब एक दुसरे से जुडे हैं ! और अब तो शायद विग्यान
भी सहमत है कि शब्द कभी नही खत्म होता ! तो आप जितनी त्वरा से किसी पर
ध्यान लगायेंगे तो वह स्वयम आपसे आकर बात करने लगेगा ! और आप मिला कर
देख लेना ये जानकारी बिल्कुल सही होगी ! ऐसा हमने कई बार महसुस किया है !
शायद आपने भी किया होगा ! सिर्फ़ ध्यान लगने की बात है ! जो जानकारी पिछले
जन्मों की आपके अचेतन मे है , वो भी रिकलेकट हो सकती है !


पिछले कुछ दिनों से हम भगवान बुद्ध के जीवन की घटनाओं का आनन्द ले रहे थे !
और पिछली पोस्ट की टिपणियों मे भाई अभिषेक जी ओझा साहब का एक सहज प्रश्न
था आनन्द के बारे मे ! और चूंकी आनन्द का भी भगवान बुद्ध के जीवन की घटनाओं मे
बडा अहम स्थान है ! यह तो आपको पिछली बार मे पता लग ही गया होगा, जब बुद्ध
महारानी यशोधरा से मिलने जाते हैं तो राजमहल मे आनन्द भी साथ होता है ! अब
राजाओं के बीच हमारे जैसे किसी साधारण आदमी का क्या काम ? हमने आनन्द से बात
करने की कोशिश की ! जी हां आनन्द से ! और उन्होने अपने बारे मे बहुत कुछ बताया भी !
उसको हम आपके लिये कलम बद्ध करना चाहते थे ! पर आज ही हमारे परिचितों के यहां
श्राद्ध कर्म था ! और हम भी वहां गये थे ! वहां का माहौल काफ़ी गमगीन था ! आज कल
श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं ! अत: जो भी हिन्दू धर्मावलम्बी हैं उन सब के यहां
ये पुर्वजों को याद करने का या उन्हे श्रद्धांजलि देने का कार्य चल रहा है ! हमको इस
सन्दर्भ मे एक कहानी याद आ गई ! हमने सोचा कि अभी इस कहानी के उपयुक्त समय
चल रहा है सो पहले इसको ले लेते हैं !

एक बहुत ही सज्जन पुरूष थे ! अच्छे सात्विक भाव से रहते थे ! घर परिवार और समाज से
बहुत प्यार करते थे ! सब तरह से परमात्मा की मौज थी ! फ़िर ऐसा हुवा की कुछ ही
समयान्तर मे इनका परिवार बिछुडना शुरु हुवा और साल डेढ साल मे पुरा परिवार बिमारी
या दुर्घटनाओ मे मारा गया ! इन सज्जन की नेकी देख कर लोग परमात्मा पर भी शक
करने लगे ! वैसे मौत किस के घर मे नही होती ? और भगवान बुद्ध का तो सारा खेल ही
एक अर्थी देखने का था ! यानि बुद्ध के पिछले जन्मों के तप इतने थे कि दुसरे की मौत
देख कर ही वैराग्य हो गया ! पर इन सज्जन पुरुष की हालत भी काफ़ी खराब हो चुकी थी !
पत्नी बच्चे बच गये थे सो किसी तरह जीवन कट रहा था ! सारी खुशियां गायब ! इनकी
एक ही इच्छा कि मरे हुये मां-बाफ, भाई-बहन से किसी तरह एक बार मुलाकात हो जाये !
और ये हमेशा ही उनके वियोग मे रोया करते थे !

अब एक रोज इनको सपना आया और सपने मे ये सज्जन स्वर्ग पहुन्च गये ! और वहां इनहोने
अन्य मृतक आत्माओ के साथ अपने परिजनो को भी देखा ! और उन्हे देख कर ये बडे खुश हुये !
पर ये क्या ? इन्होने देखा कि अन्य जो आत्माएं हैं वो तो बडी खुश लग रही हैं ! और
इनके परिजन बडे उदास हैं ! और अन्य लोगों के हाथ मे जलते हुये दिये हैं जो जगमगा
रहे हैं और इनके परिजनों के हाथ मे जो दिये हैं वो दीये बुझे हुये हैं !

अब इतनी देर मे इन सज्जन को अपनी मां वहां दिखाई दी जो की बडी उदास सी खडी
थी ! ये भाग कर अपनी मां के पास गये और लिपट गये ! फ़िर इन्होने अपनी मां
से पूछा - मां , मैं देख रहा हूं कि आप लोगो के हाथ के दीये बुझे हैं अय्र अन्य
सबके जल रहे हैं और आप सब लोग उदास हैं जबकि यहां की दुसरी आत्माएं बहुत
प्रशन्न दीखाई पड रही हैं ?
अब मां ने कहा - बेटा , बात ये है कि यहां स्वर्ग मे सब हमारा बहुत खयाल रखते
हैं और कोई तकलिफ़ नही हैं ! यहा स्वर्ग के कर्मचारी दुसरी आत्माओं के दीये जब
जलाते हैं उसी के साथ हमारे भी जलाते हैं ! पर क्या करें ? तुम्हारे आंसुओं से
हमारे दिये बुझ जाते हैं ! जब तुम इतने दुखी हो तो हम कैसे सुखी रह सकते हैं ?

पहली बार इन पुरुष को ये एहसास हुवा की इनके आंसू ना सिर्फ़ जिवित परिवार जनो
को कष्ट पहुंचा रहे हैं बल्कि दिवन्गत रिश्तेदारों को भी कष्ट पहुंचा रहे हैं !

आंसू सिर्फ़ अपना और दुसरों का दुख ही बढा सकते हैं ! शायद अपने दिवंगत प्रिय
रिश्तेदारों को याद करने का सबसे अच्छा तरीका तो मुझे यह लगता है कि उनके साथ
बिताये सुन्दर क्षणों को याद करें ! और उनकी याद मे एक पेड ही लगादे ! दोस्तो यह कहानी
लिखते लिखते हमारी भी अश्रुधारा बह रही है ! आज ही के दिन माताश्री का देहावसान
हुवा था ! ये दुख के आंसू नही हैं बल्कि मां को एक श्रद्धान्जलि के रुप मे बह निक्ले हैं !
वैसे मां को कौन भुला पाया है ? साधू, सन्यासी या भगवान तक मां के चिर प्रेम
को नही भुला पाते ! साधारण इन्सान की तो बात ही क्या ? हमने मां के महाप्रयाण के १५वें
दिन तीन पेड लगाये थे ! नीम, बड और पीपल का ! आज ८ साल के हो गये ! उनमे इतनी
छाया आ गई है की आते जाते लोग भी उस छाया मे बैठ जाते हैं ! हम उनको पानी
भी अब कभी कभार श्रद्धा स्वरुप ही देते हैं ! यानी उनको पानी की जरुरत ही नही
रह गई ! धरती माता से ही जल गृहण मे सक्षम हो गये हैं ! हम तो जब तब जाकर
उनकी छाया मे बैठ जाते हैं ! और यों लगता है कि जैसे मां की गोद मे बैठे हैं !

हमारी माताजी के देहावसन के समय पुरा परिवार ही व्याकुल था ! उस समय आदर्णिय
"मानव मुनि" जी ने यह सलाह हमको दी थी ! और कहा था जब तक ये पेड छोटे हैं
और तुम इनको पानी दोगे तब ऐसा लगगा कि अपनी मां की सेवा कर रहे हो और जब
ये बडे हो जायेन्गे तो तुमको मां की गोद का सुख देन्गे ! ये मानव मुनि जी आदर्णिय
विनोबा भावे जी के साथी थे और सारा जीवन इन्होने मानव सेवा मे लगा दिया !
बिनोबा जी ने इनको यह नाम कर्ण दिया था ! और हम भी इनकी शिक्षाओं पर चलते
इस तरफ़ आकृष्ट हुये थे ! इनके बारे मे फ़िर कभी किसी समय पर और जानकारी देंगे !

मग्गा बाबा का प्रणाम !

गौतम बुद्ध एवं यशोधरा का मिलन


आनन्द बुद्ध का चचेरा भाई था ! इसके साथ बुद्ध का बचपन बीता था ! दोनो
राज महल मे एक साथ खेलते हुये बडे हुए थे ! बुद्धत्व प्राप्ति के बाद आनद भी
बुद्ध के साथ २ रहने लगा था ! और बुद्ध से यह करार करवा चुका था कि वह
रात मे उनके साथ ही सोयेगा ! बुद्ध जब भी किसी से मिलेंगे तो आनन्द वहां
से जायेगा नही ! आदि .. ! आनन्द के बारे मे फ़िर कभी सन्योग वश जिक्र
आयेगा तब बतायेंगे ! अभी जिन पाठको को पता नही है, उनको इसका नाम
आने पर अडचन नही हो इस लिये इतना इशारा कर दिया है !



राजा शुद्धोधन किन्कर्तय मुढ होकर बैठे है ! उनकी समझ मे कुछ नही आ रहा है !
उनको चल चित्र की तरह पुरानी घटनाएं याद आ रही हैं ! उनको याद आ रहा है ! पुत्र
जन्म और उसके बाद के दिन ! वो आज भी बुद्ध को अपनी अंगुली पकड कर चलने
वाला गौतम जी हां , राजकुमार गौतम समझ रहे हैं ! पुत्र जन्म के बाद उनको याद आ
रही हैं वो ज्योतिषियों द्वारा की गई भविष्य वाणियां ! और उन भविष्यवाणियो की याद
आते ही जैसे वो इस विचारों की दुनियां से बाहर निकल आये !

उधर बुद्ध , अपनी पत्नी के सामने खडे हैं ! उस जगह पर यशोधरा, बुद्ध की पत्नि के
साथ उनका पुत्र राहुल भी है ! और बुद्ध के साथ उनका चचेरा भाई आनन्द है !
कुल चार लोग वहां पर मौजूद हैं ! एक अजीब सी खामोशी वहां छाई है ! कोई कुछ बोल
नही रहा है ! यशोधरा बहुत गुस्से से भरी है ! पर बोल नही रही है ! उसके मन में
बुद्ध के लिये अनगिनत सवाल हैं ! पर खामोशी है !

अचानक बुद्ध आनन्द से कहते हैं - आनन्द तुम थोडी देर के लिये बाहर चले जाओ !
मैं तुमको दिया हुवा वचन तोडना चाहता हुं ! यह सुन कर आनन्द को बडा दुख और
आश्चर्य लगता है ! वो बुद्ध के मुंह की तरफ़ देखता है ! जैसे पूछता हो कि - क्यों ?
मैं क्या पराया हूं ? बुद्ध ने कहा - नही आनन्द ! ये बात नही है ! असल मे तुम समझ
नही पा रहे हो ! यशोधरा अभी भी एक पत्नि है ! उसको इस बात से कुछ लेना देना नही
है कि उसका पति बुद्धतव को प्राप्त हो गया है ! उसके लिये तो मैं अभी भी उसका पति
ही हूं ! तुम हमको अकेला छोड दो ! उसको अपने मन का गुबार निकाल लेने दो ! वो तुम्हारे
सामने नही बोल पायेगी ! पति पत्नि की घनिष्ठता ऐसी ही होती है जो एकान्त मे ही खुल
कर प्रेम कर सकते हैं और एकान्त मे ही झगड भी सकते हैं ! सार्वजनिक तौर पर उनमे
प्रेम और झगडा दोनो का ही अभाव दिखाई देता है !

आनन्द चकित है ! कितनी करुणा , कितना प्रेम है बुद्ध के मन मे ? यशोधरा के प्रति
अभी तक इतना प्रेम इतनी करुणा ? सच , इसीलिये तो बुद्ध हैं ! आनन्द उनको प्रणाम
करके पीछे हट जाता है ! थोडी देर की खामोशी के बाद बुद्ध चुप्पी तोडने की कोशीश
करते हैं ! मैं आ गया ...... बुद्ध अपना वाक्य भी समाप्त नही कर पाते हैं कि एक
पत्नि का गुस्सा फ़ूट पडता है !
तुम आये ही क्यों हो ? यशोधरा लग भग चीखते हुये पूछती है !
बुद्ध करुणा भरी आंखों से यशोधरा की तरफ़ देखते हैं ! बोलते कुछ नही हैं !
इससे यशोधरा का गुस्सा और तेज हो जाता है ! इतने साल से दबा हुवा क्षोभ !
वो लावा फ़ूट पडता है ! वो पूछती है - कहां गया वो तुम्हारा वचन ? तुमने तो
जन्मो का साथ निभाने की कसमे खाई थी ? तुम झुंठे, बेइमान, मक्कार इन्सान !
बुद्ध शांत भाव से सुनते हैं ! उनकी शांति यशोधरा के गुस्से को और भडकाती है !

सही है यशोधरा तो एक पत्नि है ! एक महारानी है ! उसको क्या लेना देना किसी बुद्ध
से ? उसका तो एक हंसता खेलता संसार था जिसको इस आदमी ने उजाड दिया था !
बेटे के जन्म के बाद यशोधरा की अनूभुतियों को इस आदमी ने धूल मे मिला दिया था !
इसको कैसे माफ़ करे वो ? और अब ये शरीफ़ बन कर चुप चाप खडा है ! बुद्ध कि
कोई बुद्धता यशोधरा को दिखाई नही देती ! वो पूछती है -- आखिर मुझमे ऐसी क्या
कमी थी ? क्यों तुम घर छोड कर भाग गये ? अरे वो भी सोती हुई को छोड कर ? चुप चाप,
बिना बताये ? क्यों ? आखिर क्यों ? क्या तुमको इस तुम्हारे पुत्र की भी फ़िक्र नही थी ?

अब बुद्ध बोलते हैं - देखो मेरे पास अब पहले से भी ज्यादा प्रेम है ! मैने प्रेम को
जाना है, समझा है .. पहले से भी ज्यादा ! बुद्ध करुणा भाव से कहते हैं !

यशोधरा -- हां हां .. जानती हूं बहुत बडे सिद्ध बन गये हो ? तुमको जरा सी भी
दया... शर्म ,,लजा नही आई ... सोती हुयी पत्नि को छोड गये ? सोते हुये नवजात पुत्र
का भी मोह नही हुवा तुमको ? फ़िर निर्लज्ज जैसे कहते हो , तुमने और बडा प्रेम जान
लिया है ? अरे अब क्या करोगे ? और पुत्र राहुल को हाथ पकड कर आगे करती हुई
यशोधरा अपने पुत्र राहुल को कहती है -- देख .. देखले ये आदमी है तेरा बाप !
तू हमेशा पूछता था ना ! कौन है तेरा पिता ? ले मिल ले ये है तेरे पिता !
और इतना सब सुनाने के बाद भी जब बुद्ध बिल्कुल शांत करुणा युक्त दिखाई देते हैं तो
यशोधरा और भडक जाती है ! असल मे ये तो बुद्ध एक तरफ़ा मौका दे रहे हैं ! अरे
अगर इतना सुनने के बाद भी गुस्सा नही आये तो लडने का मजा ही नही आयेगा ! और अगर
पति पत्नि की लडाई हो तो फ़िर और जरुरी है जवाब देना ! पर अब पति कहां ? यहा तो
सिर्फ़ पत्नि है ! पति कभी का जा चुका ! भले ही शरीर पति का है ! पर उसकी आत्मा तो
परम चेतना मे विलीन हो चुकी ! अब परम चेतना क्या जवाब दे ? और पत्नि को
जवाब नही मिले तो फ़िर वो पत्नि ही कैसी ?

पल प्रति पल यशोधरा का गुस्सा बढता ही जा रहा है ! सही है जहर को जहर ही
मारता है ! अगर बुद्ध कुछ नाराज होकर डांट देते तो यशोधरा खुश हो जाती ! यही
तो पति पत्नि का कुल प्रेम का मूल मन्त्र है ! पर बुद्ध चुप चाप सुन रहे हैं

अब यशोधरा की सहन शक्ति जवाब देने लग गई ! कैसा है ये आदमी ? चुप चाप खडा है !
सही है , दुनिया की कोई पत्नि ये नही मंजूर कर सकती कि उसका पति बुद्ध हो गया है !
वो तो उसको हमेशा ही बुद्धू समझती है ! और यशोधरा भी अपवाद नही है !
अब यशोधरा ने नया ब्रहमास्त्र चलाया ! बेटे का हाथ पकड कर आगे किया और चीखते हुये
बोली - देख ये तेरा पिता है ! पूछ इससे तुझे क्यों छॊड गया था ? और पूछ तेरे लिये इसने
कौन सा राज सिंघासन छोडा है ? क्या विरासत छोडी है ? राहुल.. पूछ .. मत शर्मा...
और राहुल अपने पिता बुद्ध की तरफ़ देखता है ! बुद्ध आगे बढते हैं और अपने हाथ का
भिक्षा मांगने का भिक्षा पात्र राहुल की तरफ़ बढा देते हैं ! राहुल उनसे भिक्षा पात्र लेकर
माथे से लगा लेता है ! और बुद्ध राहुल का हाथ थामे राज महल से बाहर चले जाते हैं !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

राजा शुद्धोधन की पुत्र गौतम बुद्ध से मुलाक़ात


यह घटना उस समय कि है जब गौतम बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त हो चुका था ! और वो
अपने ४० हजार भिक्षुओं के साथ अपने पिता के राज्य मे आते हैं ! यहा पर
घर छोडने के बाद उनकी अपने पिता राजा शुद्धोधन और पत्नि यशोधरा से
पहली मुलाकात थी ! आज पिता पुत्र की मुलाकात और अगले भाग मे पति पत्नि की !



राजा शुद्धोधन के लिये यह बात पचाना बडा मुश्किल था कि उनका पुत्र गौतम
अब भिक्षु हो गया है ! उनके शब्दों मे भिखारी हो गया है ! उनको इस बात से कोई
लेना देना नही की उनका पुत्र बुद्धत्व को प्राप्त हो गया है ! और सही भी है ! दुनिया
का कौन बाप ये मन्जूर करेगा ? बाप आखिर बाप ही होता है ! भले राजा हो या साधारण
मनुष्य ! यह घटना है जब बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद गौतम बुद्ध अपने पिता
राजा शुद्धोधन के राज्य मे अपने भिक्षुओं के सन्घ सहित प्रवेश करते हैं !

राजा बडे क्रोधित हैं अपने पुत्र के कृत्य पर ! अरे ये कोई बात हुई ! जिस पुत्र के
लिये इतना बडा राज्य खडा किया और वो भिखारी बन गया ? पत्नि और बेटे को
सोता छोड कर भाग गया ? राजा शुद्धोधन बहुत गुस्से मे हैं ! अभी तक उनकी
गौतम से घर छोडने के बाद यह पहली मुलाकात होगी ! अभी तक वो मन ही मन कुढते
रहे ! पर आज मौका मिला है अपने पुत्र को फ़टकारने का ! उसे समझाने का !
बडी बेसब्री से सम्राट शुद्धोधन राज सिन्हासन पर बैठे गौतम का इन्तजार कर
रहे हैं ! राज दरबार मे अजीब सा सन्नाटा पसरा है ! एक बाप की , एक सम्राट की
पीडा है ! कोई कुछ बोल नही रहा है !

उधर चारों तरफ़ बुद्धम शरणम गच्छामि.. का उदघोष था ! कहते हैं बुद्ध के
साथ उनके सन्घ मे ४० हजार भिक्षुक चलते थे ! सारा नगर अपने प्रिय
राज कुमार को देखने उमड पडा है ! सारा नगर बुद्ध को देख कर उनके दर्शन
करके आनन्दित है ! किसी को बुद्ध का ये भिक्षु रुप पसन्द नही आता वो
भाव विव्हल होकर अश्रु बहा रहे हैं और जो इस रुप मे ईश्वर को देख रहे हैं
वो प्रेमाश्रु बहा रहे हैं ! भिक्षुओं की परम्परा रही है कि अपने नजदीकी
रिश्तेदारों से भिक्षा मांगने की ! और बुद्ध को अपने पिता और पत्नि के सामने
भिक्षा मांगने जाना ही था !

गौतम बुद्ध अपने पिता सम्राट शुद्धोधन के महल के दरवाजे पर आकर रुक
गये हैं ! और भिक्षा की कामना करते हैं ! पिता अपने पुत्र को देख कर
भाव विव्हल होकर गले लगाने को ऊठ कर दौड पडने को हैं ! पर बेटे की तरफ़
से कोई गर्म जोशी नही देख कर रुक जाते हैं ! और सम्राट को बुद्ध के भिक्षा मांगने
पर क्रोध आ जाता है !

बुद्ध : मुझे भिक्षा दिजिये !

राजा : अरे तुझे शर्म नही आती ? इतने बडे राज्य का उतराधिकारी होकर भीख
मांगता फ़िरता है ! कुछ तो अपने पुरखों की इज्जत का खयाल कर ! तू राजाओं
के कुल मे पैदा हुवा है ! तेरे कुल मे किसी ने भीख नही मांगी ! बल्कि दी है !

बुद्ध : मैं तो जन्मों का भिखारी हूं राजन !

इस बात पर सम्राट को और गुस्सा आ गया ! कोई बाप यह बर्दास्त नही करेगा कि
उसका बेटा इस तरह से जबान लडाये !

शुद्धोधन : अरे नालायक कुछ तो शर्म कर ! तू अपने आपको जन्मों का भिखारी
कह रहा है ! अरे मैने तुझको पैदा किया है मैने ! और मैं जानता हुं तुझको
बचपन से ! तु पागल हो गया है !

बुद्ध : यह ठीक है कि मैं आपके द्वारा पैदा हुवा हुं पर आपने मुझे पैदा नही
किया है ! मैं तो पैदा ही था ! और पिछले कई जन्मों से भिखारी हुं !

राजा शुद्धोधन ने सोच लिया की इस लडके का दिमाग सटका हुवा है ! ये इस
तरह डांट डपट से नही मानेगा ! अत: उन्होने प्यार से समझाने की कोशिश की !
आखिर बाप अपने बेटे को समझाने के लिये हर तरह के पासे फ़ेंकता है !

राजा शुद्धोधन : देख बेटा ! तू अभी बालक है ! जो गलती तूने करली वो करली !
मैं तुझे अभी भी माफ़ करने को तैयार हुं ! तू छोड ये पाखन्ड और देख ये राज सिंहासन
तेरा इन्तजार कर रहा है ! और मैं अब बूढा हो चुका हूं ! अब बहुत बचपना हो चुका !
चल छोड यह सब और अपना काम धन्धा सम्भाल ! अरे हम राजा हैं बेटा ! चल अब
अन्दर जा ! और कपडे बदल ! बुद्ध शांत मुद्रा मे अपने पिता के मुंह की तरफ़ देखें
जा रहे हैं ! गहन शांत मुस्कान है ! जो किसी को भी आकर्षित कर ले !
उनके चेहरे को देख कर शुद्धोधन को भी लगा की हां इस पर मेरी बातों का असर हुवा है !
और अब ये मान जायेगा ! मान क्या जायेगा ? मान ही गया है ! एक अनुभवी सम्राट की
नजर का सोचना है ये ! सम्राट कभी गलत थोडे ही हो सकते हैं ?


शुद्धोधन आगे कहने लगे -- देख अब ऐसा काम कर कि ये जो भिक्षु तूने
इक्कठे कर रखे हैं इनको भी कहीं भगाने की जरुरत नही है ! तेरे लिये मैने
इतना बडा राज्य और धन सम्पति इक्कठी कर रखी है कि तू चाहे तो इनको भी
खिलाते रहना ! मुझे कोई ऐतराज नही है ! मुझे तो सिर्फ़ तू लौट आया है !
इससे ज्यादा कुछ नही चाहिये ! पिता का ह्रदय भी कितना कोमल होता है अपने
पुत्र के प्रति ? शुद्धोधन बुद्ध को ऐसे ही फ़ुसला रहे हैं जैसे एक छोटे बच्चे
को खिलोनों से बहलाया जाता है ! सही कहा है पिता मरते दम तक अपने बेटे
को छोटा बच्चा ही समझता है ! बेटा कितना ही बडा हो जाये ! बाप उसको हमेशा
अपनी अन्गुली पकड कर ही चलाना चाहता है ! यही ममता है ! क्या करे, शुद्धोधन भी ?
आखिर तो एक बाप का चोटिल ह्रदय है उनके पास ! वो कैसे भी किसी भी कीमत
पर अपने खोये या बहके हुये बेटे को पुन: प्राप्त कर लेना चाहते हैं !

अब जो जवाब बुद्ध ने दिया उसको सुन कर सम्राट के सीने मे तलवारे चुभ गई !
बुद्ध बोले : आप मुझे एक जरा सा राज्य देना चाहते हैं ! अरे मुझे तो सारे जहान
का राज्य मिल गया है ! आप मेरे राज्य को देखिये तो सही ! पूरे संसार के राज्य
का मैं मालिक हो गया हूं ! और यह सुनते ही राजा शुद्धोधन क्रोध से थर थर
कांपने लगे ! शेष अगले भाग में ...

मग्गा बाबा का प्रणाम !

कालातीत महायोगी गुरु गोरखनाथ

आदिनाथ एक पौराणिक नाम है ! आदिनाथ शायद उद्गम हैं ! जैन आदिनाथ को अपना प्रथम तीर्थंकर
मानते हैं ! ऋषभ देव और आदिनाथ दोनो उन्ही के नाम हैं ! जिनसे शुरुआत हुई ! इसलिये आदिनाथ हैं !
ऋग्वेद मे भी अति सम्मान पुर्वक आदिनाथ और ऋषभ देव जी का वर्णन मिलता है ! हिन्दु परम्परा ने भी
उनको पूरा सम्मान दिया है ! तान्त्रिक भी यह मानते हैं कि आदिनाथ से ही तन्त्र की शुरुआत हुई ! और
समस्त सिद्ध योगी भी यही मानते हैं कि आदिनाथ उनके प्रथम गुरु हैं ! ऐसा दिखाई देता है कि इस
देश की सारी परम्पराएं इस महान व्यकतित्व से ही निकली हैं !

पर देखिए ... गुरु गोरख क्या कहते हैं ?


आदिनाथ नाती मछिन्द्रनाथ पूता !
निज तात निहारै गोरष अवधूता !!



अब देखिये - जिस आदिनाथ को उद्गम माना गया है उसको गोरख अपना नाती बता रहे हैं और अपने ही गुरु
मछिन्द्रनाथ जी को अपना पूत यानि कि बेटा बता रहे हैं ! और अपने बेटे बेटियों को, अपने नाती पोतों को
देख कर मैं बडा प्रशन्न हूं !

लगता है गुरु गोरख नाथ जी कुछ खिसक गये हैं ? पर नही ! असल मे इस तरह के वचन उल्ट्बासी कहे
जाते हैं और इनका सबसे ज्यादा उपयोग या कहे सर्व प्रथम उपयोग कबीर साहब ने किया है !
गोरख वचन बहुत प्रिय हुये हैं ! और लोक जीवन मे भी इनको बडा ऊंचा स्थान मिला है ! गोरख
जब बोलते हैं तो उसी ऊंचाई से बोलते हैं जिस ऊंचाई से कृष्ण गीता मे बोलते हैं ! यानी जिसको
भी ज्ञान हो गया ! फ़िर वो स्वयम ही परमात्मा हो गया ! फ़िर बूंद समुद्र मे समा गई ! अब कौन गुरु
और कौन चेला ! सारे भेद खत्म हो गये ! गीता मे कृष्ण कहते हैं की, हे अर्जुन तू मेरी शरण आ जा !
मैं पर काफ़ी जोर है ! क्योंकी ये परमात्मा कृष्ण बोल रहे हैं ! ऐसे ही गोरख कहते हैं :-

अवधू ईश्वर हमरै चेला, भणीजैं मछीन्द्र बोलिये नाती !
निगुरी पिरथी पिरलै जाती, ताथै हम उल्टी थापना थाती !!


वो कह रहे है कृष्ण के जैसे ही -- हे अवधूत स्वयम ईश्वर तो हमारे चेला हैं और मछिन्द्र तो नाती
यानी चेले का भी चेला है ! हमे गुरु बनाने की जरुरत नही थी लेकिन अज्ञानी लोग बिना गुरु के ही
सिद्ध बनने का नाटक नही कर ले ! इस लिये मछिन्द्र को हमने गुरु बना लिया जो वस्तुत: उल्टी स्थापना
करना है , क्योन्की खुद मछिन्द्र नाथ हमारे शिष्य हैं !

असल मे जिनको भी ज्ञान हो गया उसकी प्रतीति ऐसी ही होती है ! वह ब्रह्म स्वरुप हो गया ! वह
खुद ब्रह्म हो गया अब सब कुछ उसके बाद है ! वह समयातीत हो गया ! काल और क्षेत्र के बाहर
हो गया ! तो इन ऊंचाइयो पर थे गुरु गोरखनाथ ! इन्ही गुरु गोरख , कबीर और रैदास जी का
एक किस्सा हमको एक महात्मा ने सुनाया था ! वो हम आपको अगले भाग मे सुनायेन्गे ! और आप
कबीर के बारे मे तो अच्छी तरह जानते होंगे और उनकी सिद्धियों के बारे मे भी जानते होंगे !
पर शायद रैदास जी की इन विशेषताओं का आपको मालूम नही होगा ! इन तीनो ज्ञानीयों की मुलाकात
का ये एक मात्र दृष्टान्त सुनने मे आया है ! जो हम आपको सुनाना चाहेन्गे ! और आप दूसरो की
तरह रैदास जी के नाम पर नाक भों मत चढाना ! बडे सिद्ध पुरुष हुये हैं ! और जब राज रानी
मीरा कह्ती हैं कि " गुरु मिल्या रैदास जी " तो सब बाते खत्म ! मीरा जैसी भक्त का गुरु कोई
साधारण मनुष्य नही हो सकता !

तो इन्तजार किजिये, इन तीनो महान संतो के मिलन और चम्तकारिक घटनाओं के बारे मे जानने का !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

गुरु मछिंदरनाथ वापस लौटे गोरख के साथ

गुरु मछिन्दर नाथ जी पुत्र वियोग मे अर्ध मुर्छित से थे ! और इधर गोरख सोच
रहे थे कि मोह माया भी क्या चीज है ? जिसने गुरु मछिन्दर नाथ जैसे महा
ज्ञानियों बुद्धि पर भी पत्थर पटक दिये ! गोरख ने गुरु को जगाने की
बडी युक्तियां की ! पर बेकार ! असल मे गोरख जानते थे की जब तक इनका मन
पुत्र मे रहेगा, तब तक गुरु वापस नही जायेंगे ! और गुरु वापस नही जायेंगे
तब तक शिष्यों को दुसरे लोगो के ताने सुनने पडेंगे !

गुरु गोरख इतने सिद्ध महायोगी थे कि अगर किसी मरे हुये पशु की हड्डियां भी
हों तो अपने योग बल से उसमे जान डाल देते थे ! और इन गोरखनाथ को आकाश
मार्ग से यानि हवा मे उडने की सिद्धि भी प्राप्त हो चुकी थी ! और ये नही चाहते
थे कि बालक को वापस जिन्दा किया जाये ! ये तो बस किसी तरह गुरु का भ्रम तोड कर
उनको वापस ले जाना चाहते थे ! गुरु होश मे आये तो फ़िर उनका प्रलाप शुरु हो
गया ! तब गोरख ने लाख समझाया कि महाराज ये सब झूंठी माया है आप जागो
और मेरे साथ चलो ! पर मछिन्दर तो जैसे पूरे मोह ममता मे डुबे थे ! आखिर गोरख
ने एक पैन्तरा फ़ेन्का और बोले - अगर आप चाहते हैं कि ये बालक जिवित हो जाये तो
आप बदले मे क्या दे सकते हैं ?
मछिन्दर बोले - इस बालक के एवज मे मैं अपने प्राण भी दे सकता हुं !
गोरख तो इसी घडी के इन्तजार मे थे ! उन्होने कहा की गुरु आप तो संकल्प करो इस
बात का ! फ़िर मैं किसी से बात करके देखता हूं ! मछिन्दर बोले - गोरख , जल्दी कर !
कहीं इस विरह वेदना मे मेरे प्राण ही ना निकल जायें ! गोरख ने मन ही मन कहा - की
वो तो मैं नही निकलने दुन्गा !

उधर जैसे ही मछिन्दर ने संकलप लिया वैसे ही गोरख ने उस बालक की हड्डियां इक्कठी
करके उसको जिन्दा कर दिया ! और मछीन्दर नाथ के तो प्राण मे प्राण लौट आये !

अब गोरख ने उनको इशारा किया कि अब चलो ! बहुत होगई आपकी घर गृहश्ती !
और अब तो शर्त भी हार चुके हो ! अपना वचन निभाओ ! अब देर मत करिए !
अब मछीन्दर अनमने से वापसी के लिये तैयार होने महल चले गये ! वहां उन्होने रानी
को सारी बात बताई ! रानी भी जानती थी कि इनके शिष्य बडे पराक्रमी हैं !
और एक ना एक दिन तो उनको लौटना ही होगा ! रानी को उनसे एक पुत्र की अभिलाषा
थी ! वह भी पूरी हो चुकी थी ! सो रानी ने उन्हे विदा किया ! पर चुंकी पत्नि थी
उनकी , सो साथ मे एक पोटली मे बहुत सारा यानि ५ किलो सोने का एक टुकडा भी
रख दिया ! उसने सोचा की अब इनको फ़कीरी की आदत तो रही नही सो यह इनके रास्ते मे
कहीं बख्त बेबख्त काम आयेगा !


दोनो गुरु चेले वहां से चल दिये ! अब रास्ते मे कहीं जंगल मे रुकते कहीं पहाड पर !
अब यहां मछीन्दर कहते, - गोरख कही आसपास बस्ती देख कर रात्री विश्राम करेंगे ! और गोरख
को जंगल मे रुकने का मन रहता ! अब गोरख को मालूम नही की इस पोटली मे माया है !
और इसी माया को कोई चोर डाकू ना लूट ले ! इसिलिये मछिन्दर किसी ग्राम के आस पास
रुकने की जिद्द करते थे !

गोरख ने देखा की गुरु के पास एक पोटली है इसको नही छोडते ! आखिर इसमे है क्या ?
सोते जागते उनका मन इस पोटली मे ही बस रहा था ! आखिर है क्या ? जो गुरु इतने
अनमने से चल रहे हैं ! एक दिन मछिन्दर को जरा जल्दी मे शौच लग गया ! और वो भूल गये
और वो पोटली वहीं भूल कर चले गये ! पीछे से गोरख ने देखा की - अरे यह तो सोना
है ! तब समझ आया कि गुरुजी क्यों अनमने हैं ? और जंगल मे रुकने से क्यों डरते हैं !

गोरख ने ये पोटली ऊठाकर पहाड से नीचे फ़ेंक दी ! मछीन्दर को शौच से वापसी मे
पोटली याद आयी और जल्दी जल्दी वापस आये ! और नजरों से इधर उधर देखना शुरु
किया ! और संकोच वश गोरख से बहुत देर पूछा भी नही ! आखिर सब जगह देख दाख
कर उन्होने गोरख से पूछा - गोरख इधर एक पोटली थी ! देखी क्या ?
गोरख बोले - गुरुजी वो आफ़त की पोटली थी ! और अब आप उस आफ़त से निश्चिंत रहो !
मैने वो आफ़त पहाड से नीचे फ़ेंक दी ! आप आराम से चलो अब चोर उचकों का भी डर नही !
ना रहा बांस ना बजेगी बाँसुरी !

और इस तरह गुरु मछिन्दर नाथ जी का भ्रम टुटा ! और वो वहां से वापस अपने धूने पर
पहुंच कर तप मे लीन हो गये !

सच है - मोह और माया अच्छे २ ज्ञानियों की बुद्धि भ्रष्ट कर देती है !
अब आगे एक दो कहानियां हम गुरु गोरखनाथ जी की लेंगे पर उन कहानियों का यहां से
कोई तार्तम्य नही है ! सब अलग २ हैं ! सो जैसे २ समय मिलेगा ! हम बाद मे कभी भी
उनको ले लेंगे !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

गुरु मछिंदर नाथ फंसे मोह माया में

गुरु गोरख नाथ के गुरु थे परम योगी गुरु मत्स्येन्द्र नाथ ! जिन्हे लोग मछिन्दर नाथ
के नाम से भी जानते हैं ! शायद आपने बचपन मे एक कहावत सुनी होगी कि "जाग
मछिन्दर गोरख आया " ! जी हां इन्ही की बात मैं कर रहा हूं ! यह कहानी तो आप लोगो
ने अवश्य सुनी होगी ! यह कहानी गुरु और शिष्य के प्रेम की पराकाष्ठा की कहानी है
कि एक गुरु अपने शिष्य को कितना पुत्रवत प्यार करता है ! और शिष्य के वियोग मे गुरु
पित्रवत मरणासन्न दशा मे पहुंच जाता है ! यहा हम इन दोनो ही योगियो की एक अन्य
कहानी की बात करेंगे जो की कम प्रचलित है ! पर है मजेदार ! इस कहानी को हम दो या
तीन किश्तों मे पुरा करेंगे ! अब ये कोई मुम्बई से लन्दन की फ़्लाईट तो है नही , जो हम ५
घंटो मे पुरी कर ही लेन्गे ! भाई कहानी है ! कहीं ठहराव ज्यादा कम भी हो सकता है !

जैसे बालक को अपने पिता से बडा हीरो कोई दूसरा नही लगता और वो अपने पिता की बुराई
नही सुन सकता वैसे ही ये बात शिष्य के लिये भी लागू होती है ! गुरु शिष्य के रिश्ते
बिल्कुल पिता-पुत्र जैसे ही होते हैं ! और इसको गुरु शिष्य ही समझ सकते हैं !
हुआ ऐसा था कि गुरु मछिन्दर नाथ जी भ्रमण करते हुये पुर्वोत्तर भारत की यात्रा पर थे !
और उधर ऐसा हुवा की वहां की राज कन्या के रुप योवन के जादू मे गिरफ़तार हो गये !
और उस राज कन्या से शादी कर ली ! सब योगी गिरि छोड छाड कर मोह माया मे पड गये !
और वहीं रहने लग गये ! वहीं उनको उस राज कन्या से एक पुत्र की प्राप्ति भी हो गई !

इधर गोरख नाथ और उनके दुसरे गुरु भाईयों को दुसरे पन्थ वाले ताने मारा करते थे !
और कहा करते थे कि ये लोग काहे के योगी हैं ? ढोंगी हैं ! इनका गुरु मछिन्दर नाथ तो
शादी करके दुनिया दारी मे पडा है ! आदि आदि ! और यह जो गुरु की गलती शिष्यों को
भुगतनी पड रही थी ! गोरख नाथ जी को भी बहुत बुरा लगता था ! यह ऐसे ही था जैसे
किसी बच्चे को कोई उसके पिता के बारे मे कुछ कहे ! और साधू समाज मे तो आज भी इस बात्त
को लेकर खून खराबा तक हो जाता है ! खैर साहब .. गोरख ने अपने साथियों से चर्चा की !
और यह तय हुवा की - अब बहुत हो गया ! गुरु मछिन्दर नाथ को वापस उस मोह जाल से निकाल
कर लाना ही पडेगा ! और उनको लाने गोरख जायेंगे ! क्योंकी गोरख उस समय तक महान सिद्ध
योगी बन चुके थे ! पर क्या करे ? गुरु के कारण सब बेकार ! अब गोरख वहां पहुंच गये !
जहां गुरु मछिन्दर का महल था ! सन्देश भिजवाया ! पर गुरु मछिन्दर ने हर बार मिलने मे
आनाकानी की ! उनको लग गया था कि ये मुझको लिये बगैर वापस लौटने वाला नही है !

अब गोरख को वहां काफ़ी समय हो गया ! पर गोरख अपने गुरु से अपने मन की बात कह सकें,
इतना मौका ही उनको नही मिला ! मछीन्दर नाथ जी ने गोरख सब सुख सुविधा दे रखी थी !
पर जैसे ही गोरख काम की बात पर आते , वो बात पलट दिया करते थे ! और चुंकी वो गुरु
थे अत: गोरख उनसे कुछ उल्टा सीधा भी नही बोल सकते थे ! मछिन्दर तो बस सब समय उस छोटे
बच्चे को ही खिलाया करते थे ! और महल के बाग बगीचों मे उसको लेकर घूमा करते थे !
महल भी बडा रमणीय था ! पास ही बगीचा और साथ ही बहती नदी ! वहीं गुरु मछीन्दर, बालक
को लिये घूमा करते थे ! उनका प्रेम अब रानी मे कम और बेटे मे ज्यादा हो गया था ! गोरख
इसी उधेड बुन मे रहते थे कि किसी तरह गुरु अकेले मे मिल जायें और उनको समझाने की कोशीश
करें ! पर मछीन्दर के साथ तो कभी रानी कभी दासियां ! भरपूर महफ़िल रहती थी !

एक दिन ऐसा हुवा की बच्चे को लेकर मछीन्दर बगीचे मे टहल रहे थे ! और देव योग से
अकेले ही थे ! और यों हुवा की राजकुमार जी हां . उनका बेटा ! उसने उनकी गोद मे
मल मुत्र त्याग कर दिया ! और दोनो पिता पुत्र उसमे गंदे हो गये ! अब गोरख ने देखा की
उनके गुरु बडे प्रेम से उस बच्चे की गन्दगी साफ़ कर रहे हैं ! उनको बडा आश्व्हर्य हुवा !
वो मौका देख कर मछीन्दर नाथ के पास पहुंचे और बोले - गुरुदेव ! आप छोडो मै धो कर
लाता हूं राज कुमार को नदी पर ! मछीन्दर नाथ ने सोचा - ठिक है तब तक मैं अपने आपको
साफ़ कर लेता हुं !

थोडी देर हो गई ! गोरख नही आये तो उनको चिंता होने लगी ! इतनी देर मे गोरख उनको
अकेले आते दिखाई पडे ! उनकी चिन्ता और बढ गई ! इतनी देर मे गोरख आ गये !
मछिन्दर बोले - राज कुमार कहां है गोरख ?
गोरख - गुरुदेव उसको तो मैने धो कर सुखा दिया !
मछिन्दर - इसका क्या मतलब ?
गोरख बोले - गुरु जी आपने उसको धो कर लाने को कहा था ! और वो बुरी तरह
गन्दगी मे सना था ! सो मैने उसकी दोनो टान्गे पकड कर उल्टा किया ! और फ़िर उसको
खूब सर की तरफ़ से नदी मे डुबोया निकाला ! और फ़िर जैसे धोबी कपडों को पछाडता है ! उस तरह
मैने उसको पत्थर पर पटक पटक कर पछीटा ! तब जाकर बड़ी मुश्किल से उसकी गन्दगी साफ़ हुई !
और फ़िर उसमे ज्यादा जान तो थी नही ! इतना धोने के बाद केवल कुछ हड्डियां ही बाकी
बची थी ! सो वो सूखने के लिये वहीं एक पत्थर पर रख आया हूं !

और गुरु मछिन्दर तो इतना सुनते सुनते ही आधे पागल जैसे हो गये ! और उन्होने पुछा !
अरे गोरख - ये क्या किया तुने ! अरे मेरे राज कुमार ने तेरा क्या बिगाडा था ?
हाय मेरा बेटा कहां है ? इस तरह प्रलाप करने लग गये ! और थोडी देर बाद बेहोश हो गये !
अब गोरख उनको होश मे लाने का उपाय करने लगे !
शेष अगले भाग मे .....( राज कुमार का क्या हुवा ? क्या गुरु को वापस ले जाने मे गोरख
कामयाब हुये ?)

मग्गा बाबा का प्रणाम !

एक अचूक कायाकल्प विधि

हमने अभी पिछले सप्ताह ही भोलेनाथ की कथा को विराम दिया था ! और अनायास ही महान योगी भरथरी की चर्चा चल निकली ! असल में नाथ सम्प्रदाय में अनेको महानयोगी हुए हैं ! उनमे से कुछ योगियों जैसे गुरु मत्स्येन्द्र नाथ , गुरु गोरख नाथ आदि की चर्चा, आने वाले दिनों में करेंगे ! ऐसा मेरा सोचना है ! कल के गर्भ में क्या है ? शायद कोई भी नही जानता !

आज तो मेरे मन में अचानक एक सिद्ध महात्मा द्वारा बताया एक स्वास्थयवर्धक
नुस्खा याद आगया ! मैंने सोचा आपसे भी साझा कर लूँ ! वैसे स्वस्थ शरीर के बिना कोई भी अध्यातम के मार्ग पर भी नही चल सकता ! असल में अगर कोई अध्यात्मके मार्ग पर चलना चाहता है तो उसे जवानी में ही शुरू करना पङता है ! क्योंकि साधनामें भी शारीरक शक्ति लगती है ! और जो सोचते हैं की बुढापे में कर लेंगे वो कभी नही करपाते ! उनका कई जन्मो का बुढापा निकल जाता है ! खैर ये सब चर्चा तो हम कभी भी आगे पीछे कर लेंगे ! अब मतलब की बात !

महात्मा ने दो नुस्खे बताए थे और वो इस प्रकार है !

पहला- अपनी उम्र के बराबर मेथीदाना गिनकर ले ! सुबह खाली पेट खूब चबाकर खा ले ! अगर शाम को लेना हो तो पानी से गटक ले !

फायदा : सदैव निरोगी, चुस्त, मधुमेह दूर, जोडो का दर्द गायब, रक्त चाप में गजब का सुधार, एवं अनेक रोगों से बचाव होगा ! यानी की कोई भी बीमारियाँ पास नही फटकेगी ! ओज कान्ति, चहरे पर चमक एवं दीर्घायु होंगे !

यह नुस्खा कायाकल्प का विकल्प है ! और जिन सज्जनों को अगर सम्पूर्ण कायाकल्प की सहज विधि जाननी हो ! जो घर में ही की जा सकती है बिना किसी झंझट के ! उनको वह नुस्खा बता देंगे ! पर इस विधि को सहज समझकर अनदेखी नही करे ! इससे आपको बुढापा कभी नही आयेगा ! यानी शारारिक थकावट कभी नही आयेगी ! साँसे तो ऊपर वाले की अमानत हैं ! उसका कोई कुछ नही कर सकता !

दूसरा- छोटे व् नासमझ की हमेशा सहायता करो ! स्वयं महान होकर भी लघुता को धारण करो , जिससे प्रभुता पचाई जा सके !

दोनों फार्मूले टेस्टेड हैं ! आप उपयोग करके देखे ! आपका तन और मन दोनों सुंदर, स्वस्थ और निरोगी हो जायेंगे ! कुछ संदेह हो तो आप पूछ सकते हैं ! पहला फार्मूला तन एवं दूसरा मन स्वस्थ करने के लिए है ! हमेशा ही उपयोग करने की आदत डाल ले !

मग्गाबाबा का प्रणाम !

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