अचानक विचारों से बाहर निकल कर भोले नाथ सोचने लगे अब क्या
किया जाये ? लक्ष्मी जी ने माता पार्वती को महल बनाने का कह कर
मानों कैलाश पर भुकम्प ही ला दिया ! भोले नाथ ने मा पार्वती को
बहुत समझाया कि अपने किस्मत मे महल वहल नही लिखा है ! अपने
तो फ़क्कड ही भले ! पर जिसको माता लक्ष्मी ने पट्टी पढा दी हो वो भला
किसी की कुछ सुन सकता है क्या ? मां लक्ष्मी ने अच्छे अच्छे धनपतियो
को धन रहते हुये भीख मंगवा दी है ! और अथाह धन रहने के बावजूद
उस धन का भोग नही कर पाये !
कोई भी इन्सान धन कमा तो सकता है पर उसका उपभोग कर पायेगा या
नही ये तय लक्ष्मी जी ही करती है ! इसी तारतम्य माता लक्ष्मी ने बताया
था कि उनके रूप कैसे कैसे हैं ! थोडे विषयान्तर के बावजूद भी आप को
ये पढना अच्छा लगेगा !
धन यानी लक्ष्मी कोई भी कमा सकता है ! क्योंकि जो भी मेहनत करेगा
लक्ष्मी को उसके पास आना ही पडता है ! पर पास आने के बाद भी उसका
उपभोग आप कर पायेंगे या नही यह तो लक्ष्मी पर ही निर्भर करता है !
आपने कई लोगो को देखा होगा कि अथाह लक्ष्मी होने के बावजूद भी वो
उसका उपभोग नही कर पाते ! किसी को बिमारी हो जाती है ! किसी को धन
होने के बावजूद खर्च करने मे डर लगता है कि कहीं कम ना हो जाये !
हम इसको बताने मे यहां समय खराब नही करेंगे ! आप स्वयम समझ सकते
हैं जो हम कहना चाह रहे हैं !
लक्ष्मी जी देव मानव दानव सभी के पास चार रूपों मे आती है और ये चार
रूप ही तय करते हैं कि लक्ष्मी का आपके जीवन मे क्या स्थान रहेगा ! और
अगर आप थोडा सा विचार करेंगे तो स्वयम तय कर सकेंगे कि आप की भी क्या
स्थिति है ? आप स्वयम ही तय करे ! किसी दुसरे की आवश्यकता ही नही है !
पर इस कसौटी पर अवश्य जांच ले ! लक्ष्मी के चार रूप हैं जिनमे ये आपकी
मेहनत के प्रतिफ़ल मे आपके पास आती है !
पहला- रूप मां का - जिसके पास भी मां रुप मे लक्ष्मी का आगमन हुवा वो
सारी उम्र उसकी पूजा और सेवा करता रहेगा ! उसके प्रति श्रद्धा भाव रखता
हुवा पुजा करेगा ! पर उसका भोग नही कर पायेगा !
दूसरा-रूप बहन का -- इस रूप मे प्राप्त लक्ष्मी भी सुख नही देती ! बहन रुप मे
आप दूसरा कुछ सोच भी नही सकते ! बहन हमेशा ही भाई के प्रति क्रपण रही
है ! हमेशा भाई से तोहफ़े आदि की इच्छा ही रखती है ! देने के नाम पर हरि नाम !
तीसरा- रूप बेटी का-- ये और भी विकट है और जो भी बेटी के बाप हैं वो समझ
सकते हैं कि ऐसी लक्ष्मी सिर्फ़ पालने और दुसरे को सौंप देने की होती है !
यानी बेटी को पालो और शादी करके दुसरे को सौंप दो ! मतलब आपने इस रूप
मे जो लक्ष्मी कमाई है वह आप दान दे दो , मरने के बाद औलाद को मिल जाये,
यानि आप उसका कुछ भी उपभोग नही कर सकते !
और चौथा- रूप है पत्नी का-- यानी उपभोग के लिये सर्वश्रेष्ठ रूप मे प्राप्त
लक्ष्मी इसी को कहते हैं ! जैसे विष्णू भगवान को प्राप्त हुई लक्ष्मी ! और
ज्योतिष शाश्त्र का ये भी एक राज योग है ! यहां इसकी चर्चा नही करेंगे !
जो भी सज्जान साथ रहेंगे वो समय समय पर पढते रहेंगे ! मतलब पत्नी रूप मे
प्राप्त लक्ष्मी को आप पत्नी रूप मे उसी अनुसार भोग या खर्च कर सकते हैं !
आशा है कम शब्दों मे ही आपको ये समझ आ गया होगा !
तो भोले नाथ ने मां पार्वती को ये उदाहरण दे के भी समझाया पर त्रिया हठ
चाहे कोई भी हो ! देव, दानव, मानव सब मे कहानी तो एक सरीखी ही है !
थक हार कर भोले बाबा ने महल बनाने के लिये नक्शा बनाने का आर्डर
मार दिया ! और विश्वकर्मा को तद्नुसार जल्दी से जल्दी निर्माण कार्य पूरा
करने का आदेश दे दिया ! और भगवान शिव से इतना बडा महल बनाने
का ठेका मिलने की खुसी मे विश्वकर्मा पगला सा गया ! और एडवान्स की
रकम और वर्क आर्डर भी भगवान भोले नाथ ने तुरन्त निकलवा दिये !
विश्वकर्मा का खुश होना जायज ही था ! क्योंकि कैलाश पर निर्माण कार्य
करना बडा चुनौती पुर्ण कार्य था ! अच्छे अच्छे इन्जिनियर भी वहां आज की
तारीख मे निर्माण नही कर सकते ! जबकी तकनीक काफ़ी विकसित हो चुकी है !
और जोर शोर से वहां निर्माण कार्य शुरु हो गया ! और आप मजाक मत
मानना ये उस समय का भी और आज तक का भी कैलाश पर हुवा सबसे बडा
निर्माण था ! और ये कार्य पूरा करने पर ही विश्वकर्मा को विश्वकर्मा के रूप
मे सर्वश्रेष्ठ इन्जिनीयर की उपाधी और अपार धन ख्याती प्राप्त हुई थी !
(क्रमश:)
मग्गाबाबा का प्रणाम !
भोलेनाथ का महल निर्माण का आदेश
Monday, 18 August 2008 at Monday, August 18, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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4 comments:
19 August 2008 at 00:53
बाबा मग्गा जी, राम राम,बात तो बहुत ग्यान की बताई आप ने ओर वो भी मजाक मजाक मे,ओर लक्षमी के जो चार रुप बताये हे, उन मे से दो पर हमारी घेरा बंदियो वाली की नजर नही पडी ,ओर आज कल दिख नही रही ओर सब सुना सुना लग रहा हे,लगता हे लडती लड्ती थक गई हे
बाबा जी प्राणाम
19 August 2008 at 01:10
मन लगा कर सुन रहे हैं. मग्गा बाबा की जय हो.
19 August 2008 at 09:38
अच्छी जानकारी दी है आपने - धन्य्वाद !
- लावण्या
20 August 2008 at 05:22
महाराज की जय हो, अध्यात्मिक कथा में भी काफी सांसारिक जानकारी मिल रही है. धन्यवाद!
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