भोले बाबा को अपने परम मित्र विष्णू जी के साथ बिताये पिछले दिन याद आने
लग गये ! और बाबा पुरानी यादों मे खो गये !
अभी १५ दिन पहले ही तो आये थे उनके परम सखा , परम स्नेही भगवान विष्णू
अपनी भार्या लक्ष्मी जी के साथ कैलाश पर ! कितनी जल्दी अच्छे दिन बीत जाते
हैं ? एक दिन दोनो ही मित्र आपस मे गप शप कर रहे थे ! और शन्कर भोले
अपनी लहर मे बोल उठे -- यार विष्णु भाई , जीवन के असली आनन्द तो आप
ले रहे हो ? और हमारी तो बस युं ही कट रही है !
विष्णू भगवान-- अजी भोले नाथ , मेरे परम आराध्य.. ये क्या कह रहे हैं आप ?
मैं और जिन्दगी के आनन्द ? प्रभु आप क्युं मेरे साथ मजाक करने पर तुले हैं ?
भोले बाबा-- और नही तो क्या मित्र ? हमको देखो , हम यहां ठन्ड , सर्दी, मे
परेशान रहते हैं ! और एक आप हैं कि बिल्कुल सर्दी की चिन्ता नही ! और शेष शैया
पर आराम करते रहते हैं और लक्ष्मी भाभी जैसी सुन्दर और सर्व गुण सम्पन्न पत्नी
आपके चरण कमल दबाती रहती है ! और समुन्दर का शान्त निर्मल वातावरण !
और क्या चाहिये ! आपकी तुलना मे हमारा जीवन ही क्या है ?
भोलेनाथ का इतना कहना था कि भगवान विष्णू जी के सब्र का बांध टूट गया !
उन्होने लगभग रुआन्से अन्दाज मे कहा- मित्र आप मेरे मजे लेना चाहते हो तो आप
अवश्य लो पर आप जो कह रहे हैं उसमे कुछ भी सत्य नही है ! ये सिर्फ़ आपकी
कल्पना भर है ! इस सन्सार मे मुझ जैसा दुखी प्राणी आपको शायद ही मिलेगा !
आप आखिर मेरे बारे मे और मेरी पीडा के बारे मे जानते ही कितना है ?
भोले नाथ बडी उल्झन मे फ़ंस गये ! उनको इस तरह के जवाब की अपेक्षा नही थी !
सो उन्होने प्रश्न सुचक नजरों से मित्र की तरफ़ देखा !
विष्णू बोले-- मित्र मेरी पीडा को कोई आज तक समझ नही पाया ! शायद
समुद्र मन्थन मे मिले जहर को गले मे रख कर आप इतना तकलीफ़ नही पाये
होन्गे जितनी तकलीफ़ मैं रोज भोग रहा हूं ! सबके सामने आप तो हलाहल पीकर
हीरो बन गये और लक्ष्मी को प्राप्त करके मैं स्वार्थी कहलाया और लोग मुझे आज भी
दबी जबान से गालियां देते हैं ! सामने पडकर गालियां देने की हिम्मत तो किसमे है ?
भोलेनाथ आन्खे फ़ाडे अपने मित्र कि व्यथा सुन रहे थे ! विष्णू जी ने आगे कहना
जारी रखा !-- मित्र मुझे एक बात बतावो ! अगर किसी आदमी की पत्नी की सन्गति
खराब हो तो क्या होगा ? अगर उसकी पत्नी का बैठना उठना ही जुआरियों. शराबियों मे हो ?
अगर उसकी पत्नी सिर्फ़ और सिर्फ़ इन असामाजिक तत्वों मे ही खुश रहती हो तो ?
भोले बाबा मन्त्र मुग्ध से देख रहे थे !
अरे मित्र - मुझे नही मालुउम था कि ये भी समुद्र मे मिला एक नायाब विष था !
जिसे मैने अम्रत समझ कर झपट लिया ! उससे अच्छा तो आप वाला विष पी लेता
तो अच्छा रहता ! और भगवान विष्णू थोडे से तैस मे आगये ! भोले बाबा ने उनको
शीतल जल मन्गा कर पिलाया और उन्होने आगे बोलना शुरु किया !
मेरी पत्नी यानि लक्ष्मी जी के गुण तो मेरे सीने मे दफ़न हैं ! कितने गुण बताऊं ?
भोलेनाथ, अब क्या बताऊं ? मेरी पत्नी यानी की लक्ष्मी , ये भले लोगों मे तो
बैठती ही नही ! शरीफ और इमानदार लोगों के यहां जाने से तो एलर्जी है इसको !
सिर्फ़ जुआ सट्टे के अड्डे, शराब बनाने वालों, तश्करो, चोरों, डाकुओं मे बैठना उठना
ही इनको अच्छा लगता है !
अब ये कोई अच्छी बात है क्या ? सिर्फ़ काले धन्धे और काले कारनामे करने वालों से ही
ये खुश रहती है ! अब आपको और क्या क्या बताऊं ! शायद मेरी इतनी बातों से तो
आपको मेरी पीडा का अन्दाज हो जाना चाहिये ! या सब कुछ मेरे मुंह से कहलवाना
ही पसन्द करेन्गे !
भोले नाथ आप बताओ ! जिस आदमी की पत्नी मे ऐसे गुण हों वह कैसे सुखी
रह सकता है ! ऐसा आदमी तो सुख के बारे मे सोच भी नही सकता ! अब जब
इनकी सन्गत और व्यवहार ऐसे लोगों मे यानी चोर ऊठाइगिरों मे है तो इनके विचार
कैसे होन्गे ? आप ही अन्दाज लगा लिजिये !
और भोलेनाथ फ़िर विचारों मे खो गये ! (क्रमश:)
मग्गा बाबा का प्रणाम !
भगवान विष्णु की व्यथा
Friday, 15 August 2008 at Friday, August 15, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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4 comments:
15 August 2008 at 17:13
लाखो की बात कह दी बाबा जी आप ने ,शरीफ और इमानदार लोगों के यहां जाने से तो एलर्जी है इसको !बिलकुल सही कहा ,
धन्यवाद
15 August 2008 at 18:10
बाबाजी आपने तो बहुत उंची बात कहदी !
हमारे तो ध्यान में ही नही थी ये बात !
और बात भी सौ टका सही है ! बेचारे
भगवान विष्णु जी .... !प्रणाम आपको !
15 August 2008 at 18:34
जायज पीड़ा है भगवान की।
16 August 2008 at 05:35
वाह जी, भगवान् के घर में भी तहलका!
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