धन हाथ का मैल या जी का जंजाल

हम अक्सर कहते सुनते पाये जाते हैं कि रुपया तो हाथ का मैल है !
क्या सही मे ऐसा है ! आइये एक कहानी देखते हैं !

राजा भृथहरि, जिन्हे भर्तरि या भरथरि के नाम से भी जाना जाता है !
नाथ सम्प्रदाय के एक महान योगी हुये हैं ! और इनका हमारे लोक जीवन
से भी गहरा नाता रहा है, और है ! आज भी इनके नाम से मेले लगते हैं !
लोक गीत गाये जाते हैं ! योगी बनने से पहले ये एक महान प्रतापी
राजा रहे हैं । भारतीय जन मानस मे राजा भरथरि और महारानी पिंगला
की कहानी तो सबने सुनी ही है !

राजा भरथरि का मोह भंग हो चुका है ! महारानी पिन्गला द्वारा किये गये
विश्वास घात के बाद राजा को
असलियत यानि खुद के स्वरूप का ज्ञान होता है !
और राज पाट का त्याग कर जंगल मे तपस्या करने चले जाते हैं !
हम यहां कोई दुसरी बातो का जिक्र नही करेंगे ! इसलिये सीधे मतलब की बात पर
आते हैं ! राजा को काफ़ी समय हो गया है तपस्या करते २ ! मन मे शान्ति आने
लगी है ! और यों भी पुर्व जन्म के तपस्वी तो थे ही ! सो अल्प समय मे ही अच्छी गति
बन गई !

एक दिन सबेरे सबेरे राजा भरथरि अपनी कुटिया के बाहर धूनी रमाये हुये ध्यान
मे मग्न हो कर बैठे हैं ! अचानक उन्की आंख खुलती है और देखते हैं कि आंख के
सामने एक शानदार चमकता हुवा हीरा पडा जग मगा रहा है ! राजा भरथरि
को वहां हीरेको पडा देख कर बडा आश्चर्य हुवा और एक क्षण को उन्हे ऐसा लगा कि
ऐसा शान दार हीरा यहां कहां से आ गया ? चुंकी राजा है , पारखी है !
देखते ही पहचान गया की असली हीरा है ! आपके हमारे लिये तो कांच का
टुकडा भी हीरा हो सकता है और असली हीरा भी कांच का टुकडा
हो सकता है !
राजा भरथरि बस ऊठने को ही हुये थे कि ऊठालें ऐसे नायाब हीरे को !
और उन्हे तुरन्त हंसी आ गई !

राजा भरथरि ने सोचा - मैं भी क्या बेवकूफ़ हूं ? ऐसे ऐसे ना जाने कितने हीरे
मैं अपने खजाने मे छोड आया हूं ! और सारे खजाने के अलावा पूरा राज पाट
छोड आया हूं ! फ़िर भी हीरे का इतना आकर्षण है कि छुटता नही है ! और इस मामूली
हीरे के लिये मेरा मन अब भी बैचैन है ! राजा को बडी ग्लानि होती है ! और राजा
अपना मन फ़िर इश्वर के भजन मे लगाने की कोशिश करता है !

राजा को इन दिनो लगने लगा था कि उसकी तपस्या सफ़ल होती जा रही है ! पर
आज की घटना से राजा को लग गया की उसकी इतनी तपस्या के बाद भी वो
तो वहीं का वहीं है ! इतनी देर मे राजा देखता है कि दो घुडसवार सैनिक
आमने सामने की दिशा से अपने घोडे दौडाते हुये आये और ठीक हीरे के पास
आकर आमने सामने से दोनो के भाले की नौंक हीरे पर रखा गई !
उत्तर दिशा से आने वाले सैनिक का कहना था की पहले उसकी नजर हीरे पर
पडी थी इसलिये इस हीरे का मालिक वो है और यही कहना था दक्षिण दिशा
से आने वाले सैनिक का ! अब फ़ैसला कैसे हो ?

अब वीरों की तो आन बान शान
का ठेका ही तलवार और भालों के पास रहा है ! राजा भरथरि अभी कुछ समझ
भी नही पाये थे कि उन्होने देखा - दोनो घुडसवार अपने भाले संभाल कर
एक दुसरे की तरफ़ दौड पडे .. अगले ही पल मे एक दुसरे के भाले उनके शरीर
के आर पार होकर उनकी जीवन लीला समाप्त कर चुके थे ! और वो हीरा अब भी
वहीं पडा मुसकरा रहा था !
हीरे को खबर तक नही कि वो एक तपस्वी का
इमान डिगा चुका है , उसकी तपस्या भंग कर चुका है ! और अभी अभी दो जानें
उसके लिये जा चुकी हैं ! राजा भरथरि कहते हैं - सही मे हीरे (धन) को
अपना मोल मालूम नही होता ! वो तो सामने वाले की नजरों मे धन का मोल होता है !
धन को तो ये भी पता नही कि वो धन है ! लोग ही उसको धन बना देते हैं !

अब ये तो हम पर निर्भर है कि धन हाथ का मैल है या जी का जन्जाल !

अभी पिछले सप्ताह एक मित्र ने पूछा था कि मैं ऐसी कहानी कहां से लाता हूं ?
उस किताब का नाम बतादूं जिससे वो सारी कहानी एक बार मे ही पढ ले और रोज रोज
का झंझट ही खत्म हो ! उन मित्र को कहना चाहुंगा कि ये कही लिखी हुई कहानियां
नही हैं ! ये आपने हमने सबने अपने दैनिक जीवन मे ही सुनी हैं ! थोडी अपनी
कल्पना और समझ के सहारे आप भी लिख सकते हैं ! इसी तार्तम्य मे कहना चाहुंगा
कि इस कहानी को मैने राजा भरथरि के जीवन से ऊठाया है ! पर आपको इस रूप मे
कहीं भी लिखी हुई नही मिलेगी !

एक बात बताऊं , आपको राजा भरथरि के विषय मे -- राजा भरथरि के तीन
ग्रन्थ आज भी अपने क्षेत्र के शीर्ष पर हैं ! उनकी बराबरी का कोई ग्रन्थ लिखा ही
नही गया ! आप चाहे तो आप भी पढ सकते हैं !

१) श्रंगार शतक -- राजा भरथरि ने इस पुस्तक की रचना उस समय मे की थी
जब वो रानी पिंगला के प्रेम मे आकन्ठ डूबा हुवा था !

२) नीति शतक -- इस पुस्तक की रचना इस योग्य राजा के द्वारा राज्य करते समय
राज्य की नीतियो के संबन्ध मे की गई है !

३) वैराग्य शतक -- इस महान पुस्तक को राजा भरथरि ने राज्य त्यागने के बाद
उपजे वैराग्य के समय लिखा था !

मैने अपने अपने क्षेत्र मे इन तीनो ग्रन्थों को आज भी शीर्ष पर पाया है ! इन क्षेत्रों
मे इन ग्रन्थों के उपर कोई ग्रन्थ नही है ! इस महान तपस्वी भरथरि को प्रणाम !

मगा बाबा का प्रणाम !

6 comments:

  जितेन्द़ भगत

30 August 2008 at 16:37

इस रोचक प्रेरक प्रसंग से हमें रूबरू कराने के लि‍ए शुक्रि‍या।

  seema gupta

30 August 2008 at 16:45

" very interesting to know abt the king's story, have never read before, thank for giving references of Books related to the subject"

Regards

  राज भाटिय़ा

31 August 2008 at 00:37

बाबा ,पेसे को हाथ का मेल कह लो या फ़िर जी का जंजाल,लेकिन आज सभी इस के पीछे भाग रहे हे,इस के लिये अपना ईमान,अपनी इज्जत तक बेच रहे हे लॊग....
लेकिन नही जानते यह लोग जेसे आटे मे नमक अच्छा लगता हे तभी रोटी स्वाद बनती हे, वेसे ही पेसा भी जरुरत के हिसाब से हो तो जिन्दगी भी अच्छी बनती हे,बच्चे भी नही बिगडेगे,लेकिन आज कल सभी एक दुसरे से आगे निकल जाना चाहते हे..
यहां (दुनिया ) मे बडे बडे अमीर, शाह, राजे ओर लुटेरे आये सभी खाली हाथ गये ओर कुत्ते की मोत भी मरे ( ताजा उदाहरण सद्दम हुसेन ) लेकिन लोगो को फ़िर भी समझ नही आई
बहुत ही अच्छी कहानी कही हे आप ने
धन्यवाद

  Smart Indian

31 August 2008 at 02:27

मग्गा बाबा की जय!
प्रसंग बहुत ही प्रेरक है. भृतहरी के बारे में जानकारी देने का धन्यवाद!

  सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी

1 September 2008 at 23:08

बाबाजी, आपके ब्लॉग पर कई बार आ चुका हूँ, लेकिन टिप्पणी शायद पहली बार ही कर रहा हूँ। आपके विषय मेरी अभिरुचि के क्षेत्र से आते हैं इसलिए इन्हे पढ़ना बहुत आनन्द दायक लगता है। इसे जारी रखें। ...साधुवाद।

  अनूप शुक्ल

14 September 2008 at 19:42

सुन्दर ज्ञान है जी।

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