हमारे प्रिय शगल हैं ख़ुद की स्तुति, और दुसरे की निंदा !
जितना आनंद इन दोनों कामो में आता है , उतना
अन्य किसी काम में नही आता ! पर निंदा रस सबसे
स्वादिष्ट होता है ! इससे सुस्वादु व्यंजन इस संसार में
बना ही नही ! पर श्रीकृष्ण ने इस व्यंजन का सेवन
कभी नही किया !
दुसरे की निंदा करना यानी ईश्वर की निंदा करना !
हमको कोई अधिकार नही है की हम ईश्वर की
किसी रचना का मखोल उडाये ! किसी की भी निंदा
करना यानी ईश्वर की निंदा करना है ! यहाँ हर जीव
मात्र को ईश्वर ने अपने किसी हेतु से बनाया है !
यहाँ कुछ भी अवांछित नही है !
निंदा करने से मन अशांत होता है एवं आप ख़ुद का
जीवन स्वयं ही दुखों से भर लेते हैं ! अपनी करनी
का फल तो भोगोगे ही !
क्या आपने कही सुना या पढा है की श्रीकृष्ण भगवान
ने कभी किसी की निंदा की हो ? और यह भी भगवान
श्रीकृष्ण को पूर्णावतार बनाने में एक मुख्य कारण था !
कोई भी अन्य अवतार सिर्फ़ अंशावतार ही हुए हैं सिर्फ़
योगेश्वर कृष्ण को छोड़ कर !
श्रीकृष्ण ने कभी किसी की बुराई या निंदा नही की ,
हम भी कुछ तो इससे सीख ले ही सकते हैं !
अब आप की मर्जी की आप चाहे इस व्यंजन का
भरपूर लुत्फ़ उठाते हुए जीवन दुःख से भर लें
या इस रस का सेवन नही करते हुए एक सुख
मय और सुंदर जीवन जिए ! मर्जी है आपकी !
मग्गाबाबा का प्रणाम !
मस्त व्यंजन है पर निंदा रस
Friday, 29 August 2008 at Friday, August 29, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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10 comments:
29 August 2008 at 18:28
निन्दारस में प्रोटीन विटामिन वगैरह की मात्रा खूब पाई जाती है. इस रस का आनंद लेने से मनुष्य हेल्दी रहता है...
29 August 2008 at 19:30
सही बात, बाबा। इसी तरह कल्याणकारी चर्चा करते रहें। हम आपकी वाणी से लाभान्वित होने के लिए आते रहेंगे।
29 August 2008 at 21:40
सत्य वचन हैं महाराज ! प्रणाम !
29 August 2008 at 21:46
मग्गा बाबा की जय. चरण पड़ें आपके-आपने आँखें खोल दीं-जय हो!!
29 August 2008 at 23:47
dhanya ho baba,aap mahan hain,
30 August 2008 at 00:35
बाबा जी आप का आश्रम कहां हे जरुर बताये, हम आप के आशिर्वाद लेने के लिये जरुर आये गे,
भाई सच मे आप के पास आ कर कुछ ना कुछ मिल ही जाता हे.
धन्यवाद,राम राम
30 August 2008 at 04:17
सत्य वचन, महाराज!
मग्गा बाबा की जय!
30 August 2008 at 10:05
निंदा करने से मन अशांत होता है एवं आप ख़ुद का
जीवन स्वयं ही दुखों से भर लेते हैं ! अपनी करनी
का फल तो भोगोगे ही !
"bilkul saty vacahn hai, lakin roj kee bhagdaud mey inssan is bat ko bilkul bhula daita hai, aapne sach kha inn sub baton se sirf hum ashant hee hotten hain, aacha lga pdh kr"
Regards
30 August 2008 at 15:22
ninda ras sarvshreshth ras hai...niymit sewan bahut laabhkari hai.
30 August 2008 at 15:52
बहुत सुन्दर लिखा है। हरिशंकर परसाई जी का निन्दा रस निबन्ध याद आगया। आभार।
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