नारद मुनि के माथे पर चिन्ता की लकीरे देख कर सहज ही भोले नाथ
ने पूछ लिया- हे मुनि श्रेष्ठ ! आप कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हैं ? क्या बात है ?
नारद मुनि बोले - हे आशुतोष ! अब आपसे क्या छुपा है ? आप तो
सर्वज्ञ हैं ! पर मैं जो कुछ मेरी द्रष्टि से देख पा रहा हूं उसके अनुसार
आपकी इस कुटिया के ऊपर शनि देव की वक्र दृष्टि है !
बीच मे ही माता पार्वती ने अधीरता पुर्वक पूछा - वक्र दृष्टि का क्या मतलब ?
नारद बोले - माते शान्त .. शान्त ! आप चिन्ता ना करें ! कोई उपाय हो ही जायेगा !
मां पर्वती बोली - उपाय ? उपाय का क्या मतलब ? और किस चीज का उपाय ?
अब नारद मुनि बोले - माते बात ऐसी है कि आपने जिस समय मे इस कुटिया
का निर्माण किया है , उस समय मे इस पर शनि देव की वक्र दृष्टि थी !
माता पार्वती बोली - तो इसमे हम क्या करे ? होगी शनि देव की दृष्टि !
अब माता पार्वती को कौन समझाये कि शनि देव की दृष्टि का क्या मतलब होता है ?
असल मे भगवान आशुतोष को भोलेनाथ कहा गया है ! पर लगता है कि दो घर बिगडने
थे पर एक ही बिगडा है ! क्योंकि माता पार्वती तो भोले नाथ से भी भोली हैं ! जैसे किसी
को कुछ काम निकालना हो तो पड जावो भोले नाथ के पीछे ! थोडे दिन तपस्या करो
और जिन्दगी भर मौज करो ! इसी तरह किसी कन्या का विवाह नही हो या कोई दाम्पत्य
सम्बन्धी समस्या हो तो चलो सीधे मां गौरी के पास ! इस दम्पति का जितना गैर-वाजिब
फ़ायदा दुनिया ने उठाया है, उसकी मिसाल मिलना भी मुश्किल है ! थोडी सी प्रशन्सा
करो और दोनो इतने भोले हैं कि सब कुछ निकाल के दे देते हैं ! माता पार्वती भोले नाथ
को हमेशा उलाहना दिया करती हैं ! पर खुद के हाल देखो ! वो कौन सी लुटाने मे भोले
बाबा से कमजोर पडती हैं ? पर हमने तो चुप चाप रहने मे ही भलाई समझी ! हमने
माता के बारे मे भोले नाथ को कुछ भी नही कहा ! जबकि दशानन को दिये गये महल को
लेकर माता भोले नाथ को कुछ ना कुछ कभी कभार सुना ही दिया करती थी !
और भोले नाथ को कुछ जवाब ही नही सुझता था ! जब माता शुरु होती तो भोलेनाथ
सिर्फ़ औघड की तरह मुस्करा कर रह जाते थे ! और ऐसे मे अगर हम भोलेनाथ को माता
के दानपुण्य की बातें बता देते तो जबरन दोनो मे झगडा हो जाता ! और कौन
प्राणी ऐसा चाहेगा ? इसलिये हम तो चुप चाप दोनो की नौक झोंक का मजा लेते
रहते थे ! हमको यहां कैलाश मे जमे रहने का मौका मिल गया था तो हम क्युं
खिसकते यहां से ! वैसे जिस दिन यहां पता चला कि एक रिपोर्टर अभी तक
कैलाश पर जमा हुआ है ! तो पता नही क्या होगा ? आप जान ही गये होंगे कि
हमने इस समारोह को कवरेज करने के बाद रुक कर कितना बडा खतरा ऊठाया है !
तीनों बडे गंभीर चिन्तन मे दिखाई दे रहे है ! माता प्रश्न सुचक दृष्टि से देख रही है !
नारद जी ने चुप्पी तोडते हुये कहा - माता जिस वस्तु पर भी शनि देव की दृष्टी होती
है वो जल जाया करती है ! जब इस कुटिया का निर्माण हुआ तब ज्योतिष के अनुसार
इस पर शनिदेव की दशम दृष्टि थी ! जो शुभ लक्षण नही हैं ! नारद जी ने सीधे ऐसे
तो नही कहा की ये कुटिया शनिदेव जला देंगे !
पाठको, आप यकीन करना , नारद जी के यह वचन सुन कर हमको भी बडा आश्चर्य
हुवा और हम ध्यान पुर्वक आगे की कारवाई का ईन्तजार करने लगे ! और हमको
यह भी ताज्जुब हुवा कि जब भोले नाथ और माता पार्वती भी इन ग्रहों के चक्कर मे चढ
सकते हैं तो फ़िर आपकी हमारी तो औकात ही क्या ? इधर हम ताज्जुब मे पडे थे और
उधर नारद जी का प्रस्थान का समय हो चुका था ! भोले नाथ और माता पार्वती को
ऐसे समय एक हमदर्द के रुप मे नारद जी की जरुरत थी ! पर ये क्या ? नारद जी तो विदा
होने के लिये दोनों को प्रणाम करने लगे ! सही कहा है कि नारद एक घडी से ज्यादा कहीं
नही रुक सकते ! सो होंगे भोले नाथ अपने घर के ! वो तो अपने नारायण ... नारायण
करते निकल लिये ! और भोले नाथ और माता पार्वती विचार विमर्श मे डुब गये !
उनकी बात चीत या तो धीमी थी या शायद वो कुछ बोल ही नही रहे थे ! शाम का
अन्धेरा होने लगा था ! सो हम भी अपने होटल की और रवाना हो गये !
और हम इस सारे वार्तालाप का मतलब निकालने की कोशीश कर रहे थे ! और हमारे
दिमाग मे एक विचार चिंगारी की तरह कौन्ध गया कि ये सारा नाटक कहीं नारद जी
का रचा हुवा तो नही है ? कहीं शनिदेव ने नारद महाराज की शान मे गुस्ताखी करदी
हो और नारद जी ने शनीदेव से बदला लेने के लिये भोले बाबा को शनिदेव के
खिलाफ़ भडकाने की चाल चली हो ? और साहब नारद जी कुछ भी कर सकते हैं !
जैसे आपके मन मे सवाल और जिज्ञासा है उसी तरह हमारे मन मे भी है की
अब आगे क्या होगा ? हम विचार करते २ होटल तक आगये ! पर रात भर ऊहापोह
मे नींद नही आई ! और हम सारी रात ये ही सोचते रहे कि शनि महाराज ने ऐसा
नारद जी के साथ क्या उल्टा सीधा कर दिया कि नारद जी भोले बाबा को मोहरा
बनाने के चक्कर मे हैं ! अब ये तो भविष्य ही बतायेगा कि असल भेद क्या है ?
क्या सचमुच भोलेनाथ की कुटिया पर शनि देव की दशम दृष्टि है या ये नारद जी की
शनि देव पर उल्टी सीधी दृष्टि है ? (कृमश:)
मग्गाबाबा का प्रणाम !
शनिदेव के ख़िलाफ़ नारदमुनी का षडयंत्र
Monday, 25 August 2008 at Monday, August 25, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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6 comments:
26 August 2008 at 00:30
बाबाजी प्रणाम ! कथा बड़ी मस्त चल रही है !
आप तो रोज लिखो ! आज अभी आफिस से
लौटे हैं और आपकी कथा पढ़ने बैठ गए हैं!
रोचकता आपने बरकरार रखी है ! आप तो
एकता कपूर वाले सीरियल बनाना शुरू कर
दीजिये ! उसके जैसे ही अगली कडी के लिए
दिमाग में ठकठक होती है की अब क्या होगा ?
अब आप नारद जी और शनिदेव के बीच क्या
हुवा ? इसके लिए दो दिन इंतजार करवा कर
ही आगे बढाओगे ! ठीक है ! प्रणाम !
26 August 2008 at 00:40
मग्गाबाबा की जय हो ! बाबाजी कथा पढ़ कर
बड़ा आनंद आया ! आज का किस्सा भी पहले
कभी नही सुना ! और आप कैलाश पर कौन से
होटल में ठहरे थे ? हमारी पन्डताइन भी आपकी
कथा पढ़ने लगी है ! और वो जिद्द कर रही है की
जब मग्गा बाबा जा सकते हैं तो वो क्यूँ नही
जा सकती ? अब पन्डताइन को कैलाश किधर से
ले जाऊं ? हमको तो सिर्फ़ मधुशाला का रास्ता
याद है ! बाबाजी इस संकट से बचाओ !
26 August 2008 at 00:54
यहाँ एक नए रूप में ही कथा कहानी चल रही है ?
हम तो सर्फिंग करते करते ईधर आ टपके ! कमाल
हो रहा है बाबाजी ! आपकी ३/४ पोस्ट पढ़ ली !
वाकई मजाक मजाक में बहुत गहरी सीख दे रहे हैं !
बाबा जी आपका थोडा परिचय दीजिये ना ! आपके
दर्शन करने की इच्छा है ! आपके बारे में कहीं कोई
जानकारी ब्लॉग पर नही है ! प्रत्यक्ष बात करने पर
हमारी जिज्ञासाएं शांत हो सकेंगी ! ऐसा हमको
आपकी कहानी पढ़ कर लग रहा है !
26 August 2008 at 01:10
बाबा जी , राम राम अरे बाबा हो कर होटल मे ठहरॆ, चलॊ कोई बात नही, हमे उस होटल का पता भेज देना,अरे बाबा क्या वहा कॊई फ़िल्म विलम्भी बनाई की नही,
किस्सा बहुत प्यारा चल रहा हे, ओर हमारा ग्याण भण्डर भी बढ रहा हे.
धन्यवाद
26 August 2008 at 06:52
भोले की कुटिया में नारायण नारायण!
मग्गा बाबा की जय हो!
26 August 2008 at 14:20
मग्गा बाबाजी की जय हो | प्रभु बड़ा आनंद आया !
आपकी कथा कहानियाँ मैं पढ़ते आ रहा हूँ !
इसमे विशेषता है की आप बोरियत नही होने
देते ! कहानी पर पकड़ और रोचकता बराबर
बनी हुई है ! कृपया ऐसे ही चलने दीजिये !
इसी तरह से हम अपनी संस्कृति से भी परिचित
होते रहेंगे ! कुछ लोग इसे मजाक में लेते
होंगे पर ये मेरी नजर में मजाक नही है ! आपका
स्टाइल सबसे अलग है और अलग ही बना कर
रखियेगा ! ज्ञान देने वाले बहुत मिलेंगे ! पर आप
अपनी स्टाइल में ही लिखते रहिये !
आप सोच रहे होगे मैं कहाँ का ग्यानी आ
गया ? तो मैं आपको कहना चाहूँगा की मैंने
अपना ब्लॉग एक पोस्ट लिख कर काफी समय
से छोड़ दिया था ! फ़िर अरसे बाद पहली
टिपणी डा. अमर कुमार जी की मुझे वहा दिखी
की टिपणी का कुछ मतलब नही होता !
उन्होंने क्या लिखा ? ये आप स्वयं मेरे ब्लॉग
पर पढ़ ले तो आपको अच्छी तरह समझ आ जायेगा !
और मैं वापस लिखना शुरू कर रहा हूँ !
मैं आपसे कहना चाहता हूँ की आप टिपणी के
चक्कर में मत पड़ना और ये इसी तरह का
लेखन चालु रखना ! कुछ जादा ही लिख गया !
इसके लिए क्षमा चाहूँगा ! प्रणाम !
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