कैलाश पर कुटिया का निर्माण

कैलाश पर जो कुछ हुआ उसके बाद स्वाभाविक था कि सब मेहमान विदा हो चुके थे !
दशानन भी अपनी दक्षिणा स्वरूप प्राप्त स्वर्ण नगरी सहित अपने जम्बो जेट से लंका के
लिये प्रस्थान कर चुके थे ! भोलेनाथ की दिनचर्या मे कोई बदलाव का सवाल ही नही था !
जैसे कि कहीं कुछ हुआ ही नही था ! अगर वास्तव मे कोई दुखी था तो सिर्फ़ माता पार्वती
और कुछ थोडे बहुत कार्तिकेय और गणेश भी ! क्योंकि उनके लिये भी एक अलग और बहुत
ही सुन्दर प्रखन्ड का निर्माण उस स्वर्ण नगरी मे किया गया था !

शाम का समय :: माता पार्वती वहीं पर भोलेनाथ के पास ही बैठी थी ! भोलेनाथ ने
महसूस किया कि पार्वती जी दुखी दिख रही हैं ! उन्होने माहौल को हल्का करने की द्रष्टि से
कहा - हे उमा ! तुम्हारा इस तरह साधारण लोगो जैसे शोक करना उचित नही जान पडता !
अरे मैने तुमको पहले ही कहा था कि हमारी किस्मत मे ये महल चौबारे नही हैं ! अपना
तो "नंगे नवाब किले पर घर" वाला हिसाब है ! अरे हमारा कैलाश कौन सी किसी स्वर्ण
नगरी से कम है ? अब तुम ये शोक मनाना छोडो और भांग घोटने का प्रबंध करो !
कहां के महलों के निर्माण मे तुमने उलझा दिया कि आज इतना समय हो गया तुम्हारे
हाथ की भांग भी नसीब नही हुई ! और तुमको मालूम है मुझे तुम्हारे सिवाय किसी और
के हाथ की घोटी हुई भांग मे मजा नही आता !

माता पार्वती ने सजल नेत्रों से भोलेनाथ की तरफ़ देखते हुये कहा - हम महल मे क्यूं
नही रह सकते ? हमने और हमारे बच्चों ने क्या अपराध किया है ? आप तो सबसे बडे
देवाधि देव महादेव हो ! और आपके मातहत छोटे छोटे देवता भी बडे बडे महलों मे
रहते हैं ? उनकी तो इतनी कमाई भी नही है ! शायद कुछ रिश्वत वगैरह लेते होंगे ?
पर हमको तो इसकी भी जर्य्रत नही है ! नही भोले नाथ , मेरे मन मे तरह तरह के
सवाल उमड घुमड रहे हैं !

भोलेनाथ ने कहा - देखो कौन क्या करता है और क्या नही करता ? ये कोई समस्या
नही है ! इस जगत मे विधाता ने किसी को एक जैसा नही बनाया ! सब अलग अलग
हैं ! सबका कार्य, भाग्य, भोग और यहां तक कि उनके हाथ की रेखाएं भी अलग अलग हैं !
तुम्हारा इशारा शायद लक्ष्मी जी की तरफ़ है पर कौन किसकी बराबरी कर सकता है ?
कितनी ही बातों मे वो तुम्हारे आगे बहुत कमजोर हैं और तुम एक बात को पकड कर
बैठ गई हो ! जो इस सन्सार मे दुसरो जैसा बनने की कोशिश करता है वो अन्तत: दुख
को ही प्राप्त होता है ! जो दुसरे के पास हो वो तुम्हारे पास भी हो यही भावना तो
दुख का परम कारण है !
इस संसार मे हर एक जीव अपने आप मे अनोखा और अद्भुत है !
कोई छोटा या बडा नही है ! भोलेनाथ की इस तरह की वाणी सुन कर मां पार्वती का
दिल कुछ हलका हुआ और उन्होने अपने नित्य के कार्य करने शुरु कर दिये थे ! फ़िर भी
एक टीस उनके मन मे थी जरुर ! रात्रि शयन के समय उन्होने भोलेनाथ को कहा कि आप
महल तो छोडिये सिर्फ़ एक घास फ़ूस का छप्पर बनवा दिजिये ! जिससे जो नित्य लोग आते
जाते हैं उनके बैठने की जगह हो जाये ! और इससे उनको ठंड से बचाव भी हो जाये !
भोलेनाथ ने मुस्करा कर कहा कि ये बात पहले ही सोच लेनी चाहिये थी ! इतना बडा
बखेडा तो खडा नही होता ! ठीक है कल सुबह ही अपने चेले चपाटियों को बोलकर घास
का बढिया छप्पर तैयार करवाते हैं !

अगले दिन जैसे ही भोलेनाथ के गणों भूत,प्रेत, चुडैल और अन्य जितने भी चेले चपाटों
को मालूम पडा कि छप्पर बनना है तो जाके सारा सामान आनन फ़ानन मे जुटा लिया और
देखते ही देखते छप्पर तैयार कर दिया ! छप्पर तैयार होते ही भोले बाबा ने मा पार्वती से परिहास
करते हुये पूछा- इसका भी ग्रह प्रवेश तो करवा लो ! माता बोली- तुम्हारे आगे दो हाथ जोडे !
मुझे नही करवाना कोई ग्रह प्रवेश ! अपना तो ऐसे ही कर लेंगे ग्रह प्रवेश ! और वहां
उपस्थित सारे गणों कि हंसी छुट गई ! मां पार्वती सब काम करके थके हुये भूत प्रेतों और
चुडैलों को नाश्ता पानी करवाया !
और इतनी ही देर मे शिवजी के विशवस्त नन्दी महाराज
ने नारद जी के पधारने की सुचना दी ! और भोले नाथ बाहर जाकर सादर उनको अन्दर
लिवा लाये ! कुटिया बडी सुन्दर बनी थी ! नारद जी भी बडे प्रसन्न हुये ! परन्तु अगले ही
पल नारद जी के माथे पर, कुटिया के भविष्य को लेकर चिन्ता की लकीरे पड गई !
नारद जी को इस तरह परेशान हुवा देख कर भोले बाबा ने नारद जी से कारण पूछा !
और नारद मुनि बोले -- (क्रमश:)

मग्गाबाबा का प्रणाम !

8 comments:

  राज भाटिय़ा

24 August 2008 at 02:41

मग्गा बाबा आप ने तो हमारे चक्षु ही कोल दिये धन्य हे आप , बहुत ही मजे दार कथा हे धन्यवाद

  Smart Indian

24 August 2008 at 07:14

मग्गा बाबा की जय हो!
आपने सचमुच में शिव कथा पारायण का सा माहौल बना दिया है. बहुत अच्छा लगता है रोज़ यहाँ आकर आगे की कथा सुनना.
कन्हैया लाल की जय! जन्माष्टमी की बधाई!

  Unknown

24 August 2008 at 13:50

बाबाजी बहुत आनंद आ रहा है | कथा अनवरत चलती .. माफ़ करिए बहती रहनी चाहिए ! आप ही के शब्द है चलो मत... बहो ... बहना आसान है ! आपकी पुरानी एक एक बातें याद आ रही हैं ! प्रणाम !

  दीपक "तिवारी साहब"

24 August 2008 at 15:04

कान्हा जन्मोत्सव की बधाई !

आज हमारा व्रत है ! और फलाहार पर हैं !
आपकी कथा में झूंठ नही बोलेंगे ! हम उच्च
कोटि के नशेबाज हैं ! आपकी ये बात सही
लगी की हम भी भोलेनाथ के नाम पर पी
लेते हैं ! जबकि ये ग़लत है ! हम सुधरने
की कोशीश करेंगे ! आगे जैसी आपके भोले-
नाथ की इच्छा ! हमको भी पंडताइन बहुत
परेशान करती है ! आपकी तो सीधे भोलेनाथ
से बात चीत है ज़रा हमारी भी सिफारिश
कर दीजिये ! प्रणाम बाबा जी को !

  जाट के ठाठ

24 August 2008 at 15:10

बाबाजी प्रणाम,
कथा बड़ी मस्त चल रही है ! आप इसको ऐसी
जगह लाकर विराम देते हैं की अगली कडी का
इंतजार रहता है ! और आप नियमित कथा भी
नही करते हैं ! आप की जब इच्छा हो तब ही
कथा आगे चलती है ! आपने ये सब कौन सी
किताब में पढा है हमको तो उस किताब का
नाम बता दो ! क्योंकि आपकी ये कहानियां
हमने कही भी नही पढी हैं ! आशा है आप
मेरी उलझन समझेंगे और जवाब भी देंगे !
और कथा का फल तभी मिलता है जब वह
नियमित हो !

  ताऊ रामपुरिया

24 August 2008 at 16:54

प्रिय @ महाभारत , अभिवादन !
आपकी व्यग्रता मैं समझता हूँ ! कथा कोई साधू
महाराज की नही है की वहाँ दक्षिणा और भेंट
से ऐश मौज चल रही है ! हम बाबा होते हुए भी
समाज पर बोझ नही बनना चाहते थे ! इसलिए
बाबा बनने के पहले ही हमारे गुरुजी ने हमसे वचन
ले लिया था की हम अपनी भोतिक आवश्यकताओं
की पूर्ति के लिए अपने स्व रोजगार पर निर्भर रहेंगे ! दूसरो पर नही !
अत: हमको उधर भी ध्यान देना पङता है ! आशा है आप हमारी स्थिति समझेंगे ! कथा करना हमारा
पेशा नही है ! ये तो कुछ ना कुछ कहानी दिमाग
में चलती रहती है ! कुछ मित्रों के आग्रह पर ये
ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया ! अब कुछ मित्र इसे
पसंद करते है ! कुछ नही भी करते होंगे ! ....

आपने कहानी की किताब का पूछा है ... यकीन
करिए ऐसी क्या कैसी भी कोई किताब नही होती !
सब किताबे झूंठ का पुलिंदा हैं ! किताब का अपना
कुछ नही होता ! जैसा लेखक लिख दे वैसी ही किताब हो जाती है ! जैसे आपने कहानियां पढी सुनी होंगी वैसे ही मैंने भी पढी या सुनी है !
ये तो ध्यान के किन्ही पलों में कुछ कहानी के
पात्र अपने बारे में बोल जाते हैं ! वह लिख देते हैं ! आप भी कभी मौन में बैठ कर इन पात्रों से बात करके देखिये ! ये भी अपने बारे में बताने को इतने ही इच्छुक हैं ! कोशीश करके देखिये ! शायद आप स्वयम ही इनसे मुलाक़ात कर पायें ! भई मुझे तो ये लोग ख़ुद ही अपने बारे में बताते हैं !

आशा है आप को जवाब मिल गया होगा ?

  Hiral

24 August 2008 at 21:55

अरे वाह बाबाजी ये ब्लॉग कब शुरू कर लिया ?
हमको तो ख़बर तक नही मिली ! भई ये ग़लत
बात है ! कुछ मिठाई विठाई होनी चाहिए थी !
खैर चलिए आप बाबा हैं तो हम मिठाई मंगवा
देते हैं ! बाबाजी बुरा मत मानियेगा , हमारी
आदत ही कुछ ऎसी है ! अभी दो पोस्ट पढ़ ली
हैं ! कुछ समझ नही आरहा है ? लगता है शुरू
से पढ़ना पडेगा ! आपकी कथा भी चन्द्रकान्ता
संतति
स्टाइल में चल रही है ! काफी रोचक है !
लगता है सब कुछ छोड़ कर पहले आपकी कथा
पढ़नी पड़ेगी ! जय मगाबाबा जी की !

अभी मैं कुछ काम से किचन में चली गई थी,
पीछे से नवनीत (मेरा बेटा) कंप्यूटर के सामने
बैठा था और आपका ब्लॉग खुला था और ये
पढ़ रहा था "मां पार्वती ने सब काम करके थके
हुये भूत प्रेतों और चुडैलों को नाश्ता पानी
करवाया !"
अब ये भुत प्रेतों और चुडैलों का
मतलब पूछ रहा है ! जैसे पहले गुलाम जामुन
का पूछता था ! क्या जवाब दूँ ? लगता है
आपके ब्लॉग को बच्चों से दूर रखना पड़ेगा ! :)

  राज भाटिय़ा

24 August 2008 at 22:16

जन्माष्टमी की बहुत बहुत वधाई,आप को ओर आप के परिवार को, भाई हम तो सब त्योहारो का मजा ही भुल गये हे, हमारे बच्चो ने कभी भारत मे कोई त्योहार ही नही मनाया, ओर यहां नाममात्र को , वो भी दिपावली पर बस,
मुझे याद हे जन्माष्टमी पर बहुत रोनक होती हे,
धन्यवाद राम राम

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