भोलेनाथ के आदेशानुसार विश्वकर्मा जी ने बडी मेहनत और लगन से नक्शे
के अनुरुप कार्य शुरू करवा दिया ! किसी भी तरह की कमी नही थी ! सो इस
महल का निर्माण अति शिघ्र और योजना अनुरुप समयावधि मे पूरा होने वाला था !
अब ये महल तो कहने को ही था ! असल मे ये एक पूरा नगर ही था ! पूरे का
पूरा शहर स्वर्ण से बना था ! ऐसा अद्भुत निर्माण आज से पहले देखने मे नही
आया था ! जिसने भी देखा वो देखता ही रह गया ! निर्माण अवधि मे भोलेनाथ
के परम मित्र विष्णू भगवान और लक्ष्मी जी दोनो ही निर्माण कार्य देखने और यथोचित
सलाह देने पधारे थे ! माता पार्वती ने लक्ष्मी जी को धन्यवाद दिया कि
उनकी सलाह मान कर ही ये निर्माण की प्रेरणा मिली ! नही तो भोलेनाथ एक कुटिया
तक बनाने को तैयार नही थे !
जो लोग भी निर्माण देखने आते थे वो मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रहे थे ! आप भी
समझ पा रहे होंगे कि आपने भी जब मकान बनाया होगा तब इसी तरह लोगों
ने प्रशंशा की होगी ! और आपने भी फ़ूले नही समाये होंगे ! भगवान भोलेनाथ
तो कुछ नही इतरा रहे थे पर माता पार्वती को थोडा अहम जरूर आ गया था !
वो जैसे लक्ष्मी जी को जताना चाह रही थी कि तुम ही कोई अकेली स्वर्ण महलो
मे रहने वाली नही हो ! मैने तो पूरी स्वर्ण नगरी ही बसा दी है !
लक्ष्मी जी अपनी सहेली के मन की बात बिना बोले ही समझने मे सक्षम थी !
लक्ष्मी जी ने जबान से तो कुछ नही कहा पर उनके चेहरे पर एक अर्थ पूर्ण
मुस्कराहट आगई ! माता पार्वती जी कुछ समझ नही पाई ! पर भोले नाथ के
चेहरे पे चिन्ता की लकीरे दिखाई देने लग गई ! सच ही कहा है भोले नाथ तो
अन्तर्यामी हैं ! पर माता पार्वती तो भोली भाली हैं वो क्या जानें लक्ष्मी जी की
अर्थपुर्ण मुस्कराहट का राज !
महल का कार्य तेज गति से पुर्णता की और अग्रसर बढ रहा था ! बस फ़ाईनल
स्टेज पर काम आ चुका था ! और अब ग्रह प्रवेश की तैयारियों की बाते शुरु
हो चुकी थी ! कुछ घनिष्ठ मित्र मेहमान स्वरुप कैलाश पधारने की तैयारी
कर रहे थे ! भोले नाथ ने निमन्त्रण पत्र छपवा कर भिजवाना शुरु कर दिये थे !
जोर शोर से तैयारियां शुरु हो गई थी ! और अब असली समस्या आ खडी हुई कि
ग्रह प्रवेश की पूजा कौन करवायेंगे ? पन्डितजी की तलाश करने को लेकर
विचार विमर्श शुरु हो गया ! कोई ऐरै गैरै का ग्रह प्रवेश नही था ! ये तो साक्षात
त्रिलोकी नाथ के ग्रह प्रवेश का परम मनोहर मुहुर्त सम्पन्न होना था ! और सब
तरह के नामों का सुझाव इस कार्य के लिये आने लगे ! पर कोई भी पन्डित उपयुक्त
मालूम नही पड रहा था !
काफ़ी देर मगज पच्ची के बावजूद भी इस समस्या का कोई निदान नही निकला !
इतनी देर मे परम पिता ब्रह्मा जी का कैलाश आगमन हुवा ! भोले बाबा ने उनका
यथोचित स्वागत करके बैठाया और फ़िर इस मुहुर्त को सम्पन्न करवाने के लिये
पन्डित के बारे मे सुझाव मांगा ! अब ब्रह्मा जी बोले -- हे त्रिपुरारि शिव ! आप स्वयम
परम ब्रह्म हैं ! आप मुझे मान देने के लिहाज से ही पूछ रहे हैं ! वर्ना इस सम्सार मे
आपसे क्या छुपा है ? हे त्रिलोकी नाथ सुनिये ! आज भूमन्डल तो क्या ? तीनों लोको
मे दशानन रावण से बढ कर कोई प्रकांड विद्वान पन्डित नही है ! आपकी ग्रह प्रवेश
की पूजा अगर कोई करवा सकता है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ दशानन ही है !
ब्रह्माजी का ये सुझाव सुनते ही भोलेनाथ मुस्करा उठे ! जैसे उनकी सारी चिन्ताएं
मिट गई हों ! आखिर क्यॊं ना प्रशन्न होते ? दशानन रावण उनका परम प्रिय जो था !
पर क्या दशानन भोलेनाथ का पुरोहित कर्म करने कैलाश आयेगा ?
आगे का हाल अगली बार (क्रमश:)
मग्गाबाबा का प्रणाम !
कैलाश पर निर्माण पूर्णता की और !
Tuesday, 19 August 2008 at Tuesday, August 19, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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4 comments:
20 August 2008 at 01:01
बाबा जी, मेने तो सोचा था आज पुरा हो जाये गा, लेकिन.. चलो कल रावण भी आ जाये तो बात बने,वेसे रावण ग्याणी तो बहुत ही था, मुझे इन्तजार हे अगली पोस्ट का,धन्यवाद
20 August 2008 at 05:19
बहुत सही जगह पे लाके विश्राम दिया है... इंतज़ार में हैं कि लंकेश जी कैलाश पर क्या गुल खिलाते हैं.
20 August 2008 at 23:17
बाबाजी बड़ा मजा आ रहा है !
थोडा पेज साइज बढ़ा दीजिये !
हमने सोचा था आज रावण की
इंट्री हो जायेगी ! पर वहीं आकर
गाडी रोक दी आपने ! बड़ी शिद्दत
से दशानन का इंतजार है !
22 August 2008 at 12:51
बाबाजी प्रणाम ! अब दशानन का कब तक
इंतजार करवाओगे ? सब्र का बाँध टूट रहा है !
आगे कहानी बढावो ! ऎसी जगह रोक दी है की
क्या बताए ?
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