भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी कैलाश यात्रा पर !

प्रिय मित्रों , आइये आज एक मन पसंद कहानी सुनते हैं ! सुनी तो आपने भी होगी !
आपको पसंद है या नही , मुझे नही मालूम ! पर मुझे तो अति प्रिय कहानियों में से
एक है ! ये कहानी हमारे गुरु महाराज बड़े लच्छेदार जुबान में सुनाया करते थे !
वो आनंद तो यहाँ नही आयेगा ! गुरुदेव अब नही हैं ! उनसे यह कहानी
या कोई भी कहानी सुन कर उदास से उदास आदमी ठहाके मारने लगता था !
वो कहते थे की उदास और निराश आदमी को इश्वर मिलना कठिन है !
हमारे अन्दर अंतर्मन में प्रशन्नता पैदा हो जाए , हँसी पैदा होने लगे तो
समझ लेना इश्वर प्रकट होने की संभावना पैदा हो रही है ! गुरुदेव ने हमको
हंसना सिखाया ! हंसते हुए प्रभु की तरफ़ बढ़ने का मार्ग ! पलायन नही !
हँसी खुसी से स्वीकार करना ! जो भी स्थितियां हो !
इस पर फ़िर कभी बात करेंगे ! पर फ़िर भी कोशीश करते हैं ! और आज की शिक्षा
आप ख़ुद ही ढूंढे ! अगली पोस्ट में इसके समापन पर मतलब समझ आयेगा !

जैसा की आप जानते ही हैं की भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का निवास स्थान
क्षीरसागर में है ! अब आज के युग में आप पूछेंगे की साहब ये कौन सा सागर है ?
और कहाँ है ? तो इस को आप समझ लें की ये अपने चेन्नई के आस पास का
समुद्र रहा होगा !
जहाँ सर्दियों में तो ठीक है ! पर गरमी में भगवान विष्णु और
लक्ष्मी जी को बड़ी परेशानी होती होगी ! एक साल गरमी कुछ ज्यादा थी और दोनों
ही परेशान थे ! बिजली सप्लाई भी ठीक नही थी ! सो लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु
से कहा की भोलेनाथ और मां पार्वती से मिले भी काफी समय हो गया और यहाँ
गरमी भी ज्यादा है सो कैलाश पर्वत चलते हैं और दोनों वहाँ चल दिए !

वहाँ पहुँचने पर दोनों का काफी स्वागत हुवा और बड़ी मौज से दिन बीतने लगे !
विष्णु भगवान की गप शप भोलेनाथ से और लक्ष्मी जी की माता पार्वती से
होती रहती थी ! अब इस कहानी की जो गपशप उन्होंने हमको बताई वह तो
हम यहाँ बताने वाले नही हैं ! क्योंकि उसमे कुछ ऎसी बातें भी उन लोगो के
बीच हुई थी की अगर यहाँ सार्वजनिक कर दी तो उन को तो कोई तकलीफ
नही होगी ! क्योंकि वो तो सबके माई-बाप हैं , उनसे क्या छुपाना ?
पर यहाँ के पाठकों को अड़चन हो सकती है ! क्योंकि आज भगवान को भी
भक्त के हिसाब से रहना पङता है और उसी हिसाब से आचरण करना पङता है !
जैसे जब भक्त कहे उसी हिसाब से सो जाए ! जब उठाके भोजन भजन का कहे ,
वो भी कर ले ! जहाँ भी , भले रोड के बीचोंबीच मन्दिर बना के बैठा दे ,
बिना किसी ना-नुकुर के विराजमान हो जाए ! आदि.. आदि... !


खैर साहब , छुटियाँ वहाँ कैलाश में बहुत अच्छी तरह बीती ! अब वहाँ से
विदा होते समय यानी आपने नोट किया होगा की जब भी ऎसी विदाई का
समय आता है उसमे मेहमान को छोड़ने घर के दरवाजे तक आया जाता है
और उस समय औरतों का जो राग चलता है उसे शायद आज की भाषा में
डोर मीटिंग कहते हैं ! और इसी डोर मीटिंग में लक्ष्मी जी ने वो आग लगादी
जिसकी उम्मीद किसी को नही थी ! जब दो औरते मिले और बिना किसी खटराग
के उनके पति रह जाए ! ऐसा असंभव है !

चलते समय लक्ष्मी जी ने माता पार्वती को कहा-- बहन आपके यहाँ इतने
दिनों का आतिथ्य पाकर बड़ा आंनद आया ! अबकी बार सर्दियों में आप
हमारे यहाँ समुद्र में बच्चों के साथ पधारे ! वहा बिल्कुल सरदी नही रहती !
बच्चों को सरदी जुकाम का डर भी नही रहेगा तो आप इस बार आप वहा
अवश्य पधारे ! अब क्या बताऊँ ? आपके यहाँ और तो सब ठीक है और मुझे
कहना तो नही चाहिए पर क्या करूँ ? कहे बिना रहा भी नही जाता !

इतना सुनते ही माता पार्वती सुन्न रह गई उन्होंने सोचा की इनकी
मेहमानवाजी में क्या कसर रह गई ? और उन्होंने भी लक्ष्मी जी के नखरों
के बारे में सुन रखा था सो अब तक वो इसलिए हैरान थी की इन्होने कोई
कसर क्यों नही निकाली और अब असलियत सामने आनेवाली ही थी !
लक्ष्मी जी बोली-- बहन आपके यहाँ और तो सब ठीक है पर ये बात अच्छी नही
लगती की आपने आने जाने वाले मेहमानों के लिए ना तो कोई महल बनवाया
और ना ही बैठने उठने के लिए कोई सोफा या दीवान कुर्सियों की व्यवस्था करवाई
!
अब ये भी कोई बात हुई की जो भी आए बर्फ के ऊपर खुले में सोये और बर्फ
पर ही बैठे ! हम चेन्नई जैसी जगह में रहने वालों को दो दिन तो बर्फ में खेलना
अच्छा लगता है ! फ़िर नही ! मैं तो ख़ुद जुकाम से परेशान हो गई !

अरे भोलेनाथ तो इतने ओघड दानी हैं ! दोनों हाथों से पूरी दुनिया को लुटाते हैं !
और ख़ुद और अपने बच्चों के लिए एक छत भी नही डलवाई आज तक !
अरे तुम भी कैसी मां हो बहन ? अरे मैं आई हूँ जब से देख रही हूँ - गणेश बेटे
की सरदी जुकाम से हालत ख़राब है और बुखार भी रहने लगा है !
और ये सब इस ठण्ड की वजह से है ! कम से कम इन बच्चों के खातिर ही
सही आप भोले बाबा से कहो की ज्यादा नही तो दो कमरे ही बनादे !

और साब इतना कह कर लक्ष्मी जी तो भगवान विष्णु के साथ बैठ कर
क्षीर सागर के लिए गमन कर गई ! और यहाँ भोलेबाबा की जो हालत माता
पार्वती ने करी होगी वो आपको अगली बार सुनायेंगे ! और जो गुरु ज्ञान उन्होंने
दिया उसका क्या अंजाम हुवा ! वो भी अगली बार पढिये !

मित्रों मैंने भी आपके जैसे ही हमारे धर्म ग्रन्थ पढ़ें है ! ये हम भारतीयों को विरासत
में मिले हैं ! और अगर ओपचारिक रूप से ना भी पढ़े हों तो सुन सुन कर ही ये
ग्रन्थ आज तक जिंदा हैं ! लेकिन मैं आपसे एक राज की बात साझा करना चाहता
हूँ की इन ग्रंथों में मैंने एक भी बात ऐसी नही पाई जो की हमारे लिए निरर्थक हो !
हर किस्से कहानी में एक गूढ़ अर्थ और संदेश छुपा हुवा है ! मैं कहानी के माध्यम
से ये सुनाता रहा हूँ ! कहानी बोर नही करती ! हम उसको समझ सकते हैं !
बड़े बड़े उपदेशों में बोझिलता का डर है ! अब इसी कहानी में आपको हँसी भी
आयेगी अगर आप स्वस्थ मन मस्तिष्क वाले हैं तो ! और यही कहानी आप
अपने बच्चों को सुनाइये फ़िर देखिये वो कितना मुसकरायेंगे और आप उनको
संस्कार और संस्कृति शिक्षा भी दे पायेंगे !

मग्गा बाबा का प्रणाम !

2 comments:

  राज भाटिय़ा

12 August 2008 at 23:53

बाबा जी आप जो कहना चाहते हे, वो बात भी कह दी ओर मजाक भी कर लिया, भाई हम भी अब आप के भगत बन गये हे,धन्यवाद

  Smart Indian

13 August 2008 at 08:27

बहुत सुंदर! ऐसे ही सहजता से बड़ी-बड़ी बातें हमारे छोटे से दिमाग तक पहुंचाते रहिये.
जय हो मग्गा-बाबा की!

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