प्रिय मित्रों , फ़िर से स्वागत है आपका ! मैने एक कहानी पढी है ! ऐसी
कहानियां शायद आप भी रोज पढते ही होंगे ! पर शायद मैने जिस नजरिये
से इसको देखा है आपने ना देखा हो ! कहानी इस तरह है :-
एक गांव मे एक बाबाजी आया हुवा था ! पूरा मायावी दिखाई देता था !
पीत रंग के भगवा वस्त्र , शरीर पर भभुति , रुद्राक्ष की मोटी मोटी मालाएं
गले मे , जटा जुट बांधे हुये ! कुल मिलाकर शक्ल से ही बच्चों को तो
डरावना लगे ! पर जो उसके ही मार्ग के लोग थे उनके लिये भगवान से
कम नही ! बाबाजी ने गांव से बाहर एक पुराने मंदिर पर डेरा लगाया हुवा था !
और जैसा कि होता है वहां चेले चपाटे भी इक्कठे हो ही गये ! चारों तरफ़
बाबा की जय जय कार हो रही थी !
पर क्युं हो रही थी बाबा की जय जयकार ? बात यह थी कि बाबा के पास
आप जो भी ले जावो उसको दूना कर देते थे बिल्कुल शर्तिया ! और दूर दुर
तक बाबा की प्रसिद्धी फ़ैल गई ! किसी ने नोट डबल करवाये और किसी ने
कुछ छोटे मोटे गहने ! बहुत समय चला गया ! फ़िर गांव का जो सेठ था
उसको भी उस पर विश्वास हो गया कि बाबा योगीराज बहुत पहुंचे हुये हैं !
सो सेठ भी एक दिन पहुंचने के लिये तैयार हो ही गया और बाबा तो वहां
डटा ही इस सेठ को पहुंचाने के चक्कर मे था !
रात को जब सब चले गये तो बाबा के पास सेठ चुपके से आया और बोला-
महाराज क्या बताएं ? आप तो अन्तर्यामी हैं ! अब आप तो जानते हैं मेरा
काम है लोगो को ब्याज पर रुपया देना ! और आज कल रुपये की डिमान्ड
इतनी बढ गयी है कि मेरे पास रुपया कम पड जाता है ! उधार लेने वाले
बहुत हैं पर रुपये कम हैं !
बाबा बडे अनमने भाव से सुन रहे हैं जैसे उनको इन कामों मे कोई रुची
ही नही हो ! सेठ ने आगे कहा-- महाराज आप कोई ऐसा जतन करो कि
अपना भी माल डबल हो जाये ! बाबा के अन्दर ही अन्दर तो लड्डू फ़ुट रहे थे
पर उपर से बनते हुये महाराज बोले -- बच्चा हम इस मोह माया से बहुत दूर हैं !
हमको इस नश्वर सन्सार की माया से क्या लेना देना ? ये माया तो आनी जानी है !
फ़िर सेठ ने बडी अनुनय विनय की तो बाबाजी उनका धन दुगुना करने को
राजी हुये ! बाबा ने बताया परसो अमावस की रात शम्शान मे जाना पडेगा !
अगर थोडा बहुत का मामला होता तो यहां बैठे बैठे ही करवा देते पर ये तो
लाखों का मामला है ! सेठ ने सोचा ये कहीं श्मशान का बोल रहा है , वहां से
गायब हो गया तो ? इसके कुछ शन्का व्यक्त करने के पहले ही बाबाजी बोल
पडे-- बच्चा हम तो गरीबों की मदद करने को ईश्वर का जो आदेश आता है !
उसके पालन के लिये ये काम करते हैं और हम रुपये पैसे को हाथ लगाते
नही हैं ! सेठ की तो बांछे खिल गई और उनको लगा की महात्माजी तो परम
दयालू ईश्वर के साक्षात अवतार हैं और उनके चरणों मे लौट गया !
अमावस की रात.. आ गई ! सेठ सारा सोना चांदी, रुपया गहना यानि माल
असबाब पोटली मे बांध कर आ गया परम पिता महात्मा जी के पास ! और
अमावस आने का समय सेठ ने कैसे काटा होगा ये आप कल्पना कर सकते हैं !
श्मशान के लिये सेठ और बाबाजी का गमन शुरु हुआ-- बाबाजी अपनी सोच मे
और सेठ अपनी मे ! अब रास्ते मे बाबा ने बोलना शुरु किया -- देख बच्चा
श्मशान मे भूत प्रेत मिलेंगे पर तू डरना मत ! अगर कोई चुडैल आकर दांत
दिखाये तो भी मत डरना और कोई अस्थि पन्जर अचानक आकर नाचने लगे
तो उसको हाथ से पकड कर फ़ेंक देना ! और जब मै वहां से थोडी देर के
लिये कर्ण पिशाचिनी के साथ डांस करता हुआ गायब हो जाऊगा तब तुम
हिम्मत से काम लेना और मैं वापस नही आऊं तब तक इस रुपये वाली
पोटली को सम्भाले रखना और अगर कोई भूत या चुडैल गुस्से मे आकर
तुमको एक दो झापड भी मार दे तो चुप चाप हिम्मत से खडे रहना ! और ये
सारे भय बताते बताते वो दोनों गुरु चेले श्मशान घाट के बाहर तक आगये !
सेठ को एक बात तो पक्की हो चुकी थी कि बाबाजी नितान्त परमार्थी है तभी
तो कर्ण पिशाचिनी के साथ गायब होते समय पोटली सेठ के पास ही रहेगी
यानी कोई बदमाशी की गुन्जाइश ही नही ! पर जब दुसरी बात याद आयी तो
सेठ की हिम्मत जबाव दे गई ! अब कौन इस उम्र मे भूत प्रेत और चुडैलों के
मूंह लगे ? खाम्खाह का झन्झट क्यों लेना ? सो सेठ बोला-- बाबाजी आप
को मेरे लिये ये काम तो खुद ही करना पडैगा ! मुझे तो डर लग रहा है !
मेरी हिम्मत नही पड रही श्मशान मे घुसने की फ़िर भुत प्रेतों की तो सोच के
ही पसीने आ रहे हैं ! प्रभु आप ही ये पोटली लो और काम करके वापस आ
जाना ! मुझे आप पर भगवान जितना ही विश्वास है ! और बाबाजी ने बडी ना नुकर
करके पोटली उठाई और गायब हो गये और सेठ सुबह तो क्या अगले दिन
दोपहर तक बैठा रहा पर महात्मा जी को नही आना था सो नही आये !
अब साहब सेठ जी रोता पीटता किसी तरह घर आया ! लोग इक्कठे हुये ! पुलिस
मे रिपोर्ट लिखाई गई ! बाबा महात्माओं की बुराईयां की गई ! धर्म के नाम
पर कैसा कैसा धोखा चल रहा है ? ऐसे चालबाज और गुन्डे धर्म की ओट मे
छुपे हुये हैं ! अब यहां तक की कहानी मे तो कोई खास बात नही है ! पर इससे
मेरे मन मे जो सवाल उठे वो जरा देखें आप भी !
अब ये जो सेठ है , ये क्या भला आदमी है ? मुझे ये बिचारा नही बल्की महा
बेईमान आदमी लगता है !
ये खुद की चालबाजी से फ़ंसा है ! ये उस बाबा की बदमाशी से नही फ़ंसा है
बल्कि खुद की बेईमानी की वजह से लुट कर बैठा है ! अगर ये इमानदार आदमी
होता तो क्या इस तरह से नोट डबल करवाता ? नहीं ! बल्कि इमानदार होता
तो कहता भाई मुझे नही करवाना इस तरह के डबल नोट ! ये तो गैर कानुनी हुवा !
मेरे हिसाब से वो बाबा तो जब पकडा जायेगा तब पकडा जायेगा !
पर मुझे ऐसा लगता है कि असली गल्ती इस सेठ की है इसको सबसे पहले
सजा मिलनी चाहिये ! कानून जो भी कहता हो पर मुझे तो ऐसा ही लगता है !
अरब मे एक कहावत है कि सच्चे आदमी को धोखा देना मुश्किल काम है !
सच्चे आदमी को धोखा दिया ही नही जा सकता ! क्योंकि धोखा देने के सारे
उपाय झुंठे और बेइमान आदमी पर ही काम कर सकते हैं ! मुश्किल काम है किसी
इमानदार के साथ बेईमानी करना ! ईमानदारी की महिमा ऐसी है कि बेईमानी
उसको छू भी नही सकती ! जैसे सुरज को कभी अन्धेरा नही छूता !
(प्रिय अभि, शायद तुम मुझे माफ़ करोगे ! पर गलती तुम लोगो की ही थी , किसी और की नही )
बेईमान कौन ?
Wednesday, 6 August 2008 at Wednesday, August 06, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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6 comments:
7 August 2008 at 05:45
धन्य हो! बहुत गहरी बात कही है आपने. ऐसी ही बातों पर हमारा ध्यान लाते रहेंगे तो हमारी मगज भी कुछ सोचने की कोशिश में लगना शुरू होगी.
सच ही है - हम हर तरफ़ ऐसे ही बेईमानों से घिरे हैं और कमज़ोर को भला और ऐसे बेईमान को शरीफ गिनने की भूल करते हैं.
7 August 2008 at 15:30
बाबा जी आप के चरण छुने को दिल चाहता हे, लाखो की बात कही ईमान दार आदमी को धोखा देना मुश्किल हे,बहुत ही गायण भरी बात कह दी आप ने, धन्यवाद
7 August 2008 at 18:14
इतनी गहरी नजर ? बाबा ये तो रोज हो रहा है !
आपने तो आँखे खोल दी ! आपका एक एक शब्द
हीरे मोती सरीखा है ! सही में हमारी बेईमानी ही
ठगवाती है ! बहुत बहुत धन्यवाद और प्रणाम !
9 August 2008 at 00:19
BABA AAP TO MERE SHAHAR KE HEE LAGATEN HAIN
9 August 2008 at 00:22
AAP YANI MGGAA BABA SE RAJNEESH JEE KE BEHAD KAREEB KE SAMBANDH THE AISAA MUJHE KISI NE BATAYA THA
9 August 2008 at 21:25
प्रिय मित्र गिरिश बिल्लोरे मुकुल जी, आपने दो टिपण्णियों मे दो सवाल या उत्सुकताएं दिखाई हैं ! आपका पहला सवाल है-
मैं आपके शहर से हूं ? स्थूल रुप से तो नही ! अलबत्ता मैं आपके प्रदेश से हूं ! वैसे पूरी प्रथवी ही अपनी है !
दुसरा प्रश्न आपने मग्गा बाबा के बारे मे पूछा है ! मित्र आप जिस मग्गा बाबा की बात कर रहे हैं वो मैं नही हूं ! और अगर मैं काल खन्ड के हिसाब से भी गणना करुं तो जिस मग्गा बाबा का जिक्र आचार्य रजनीश जी ने किया है वो अब नही होंगे !
उनसे मुझे भी ३/४ दफ़ा मिलने का सौभाग्य मिला था ! क्योंकी सागर और जबलपुर उनके प्राथमिक कार्य क्षेत्र रहे हैं ! और मुझे भी इन
दोनो शहरों से किसी ना किसी रुप मे जिवन्त सम्पर्क रहा है ! उन्होने कुल ३ बाबाओं का जिक्र किया है ! उनमे से एक मग्गा बाबा भी थे ! हालांकि इनके बारे मे कोई बहुत ज्यादा नही बताया है ! अलबता इनका नाम मग्गा बाबा क्यूं पडा ? जैसी बाते बडी श्रद्धा से बताई हैं ! इनमे ज्यादा विस्तार से एक बाबा का जिकर आया है जिन्होने
इनके राजनैतिक सम्पर्क करवाये थे ! जैसे उसी बाबा के द्वारा इनका सम्पर्क इन्दिरा गान्धी, मोरारजी देसाई जैसे उस समय के बडे नेताओं
से हुवा था !
मेरा किसी भी रुप मे उन मग्गाबाबा से कोई रिश्ता नही है ! वो एक उच्च चेतना को प्राप्त आत्मा थी और मैने तो अभी चलना ही शुरु किया है ! पर आपकी मग्गा बाबा मे उत्सुकता बता रही है कि आप भी आगे पिछे इसी मार्ग के राही हैं ! आपसे परिचय अच्छा रहा ! आपका शुक्रिया !
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