प्रिय मित्रों , आज फ़िर गप शप के लिये इक्कठे हैं ! कभी कभी
लगता है की बहुत कुछ हो गया ! ये गलत हो गया , वो सही हो गया !
वैसे हमारी आदत हो गई है कि हम भीड मे रहने के आदी हो चुके
हैं ! हम अकेले नही रह सकते हैं ! हमको दोस्त चाहिये ही ! और
अभी कुछ समय पहले मैने कहीं पढा था कि दोस्त का मतलब होता
है-- दो + अस्त यानि दोस्त ! मतलब आप किसी के साथ निबाहते
हुये सम्बन्ध तो कायम रख सकते हैं पर उसे अगर दोस्ती का नाम देते
हैं तो क्या आप सही कर रहे हैं ? दोस्त का मतलब होता है कि एक
दोस्त तकलीफ़ मे आया तो दुसरा उसके लिये अस्त हो जाये ! ऐसे
कितने दोस्त आपको मिले हैं ? शायद आज के इस व्यवसायिक युग मे
ये बात किस्से कहानियों तक ही सीमित रह गय़ी है ! जब तक मतलब
है उनको तब तक आपके पक्के दोस्त नही तो कौन किसके ?
भले ही नकली सही आखिर और चारा भी क्या है हमारे सामने इन
तथाकथित दोस्तॊं के सिवा ? हमको भीड मे रहने की आदत हो गई है !
अकेले हम रह नही सकते ! अकेलापन हमको काटने को दौडता है !
और जब तक आप भीड मे हैं आप उस परमानन्द की झलक भी नही
पा सकते ! क्योंकी उसको अगर नाम भी दोगे तो क्या दोगे ? क्योंकी उस
परम सत्ता का आज तक किसी को ओर छोर भी नही मिला ! और जिसने
भी उसको महसूस किया वही चुप रह गया ! बोलने के काबिल नही रहा
या क्या हो गया ! इसलिये परमात्मा की इस सत्ता को समझना शब्द
भी गलत होगा , क्योंकी अगर समझ गये तो बयान भी कर सकते हैं ! और बयान
आज तक कोई कर नही पाया सो मेरी समझ से हम सिर्फ़ उस परम तत्व
को महसूस ही कर सकते हैं ! और इसके लिये हमे अकेले रहने की आदत
चाहिये ! और दुनियां मे कोई भी काम इतना मुश्किल नही है जितना की
अकेला रहना ! आप कोशिश करके देखें कि आप कितनी देर अकेले रह
सकते हैं ! आप कहेन्गे मैं तो कम्प्युटर के सामने घन्टों घन्टों अकेला बैठा
रहता हूं ! भाई मेरे धोखा किसे दे रहे हैं आप ? यहां तो मैने सबसे ज्यादा
भीड देखी है ! जान ना पहचान और शुरु हो गये ! कमाल की दुनियां है साब !
पर मेरा मतलब इतना ही है कि ये भी भीड का ही हिस्सा है ! असली एकान्त
का अलग ही मजा है ! कोशीश कर देखें घडी दो घडी कभी ! क्या बुराई
है ? युं भी कौन सी कमाई आप कर रहे हैं ?
इसी सन्दर्भ मे गोरखनाथ जी ने कहा है कि --
एकाएकी सिध नांउं, दोइ रमति ते साधवा !
चारि पंच कुटंब नांउं, दस बीस ते लसकरा !!
सिद्ध हमेशा अकेला है ! चाहे फ़िर कहीं भी रहे ! वह भीड मे,
सारे तमाशे मे रह कर भी अकेला ही है ! यानि सिद्ध वही जो अपने निज
मे पहुंच गया ! हो गया फ़िर वही तत्व का जानने वाला ! अपने आप मे रम गया !
हो गया नितान्त अकेला ! दुनिया दारी करता हुवा भी दुनियां मे नही है !
हो गया जीते जी भीड से बाहर ! ये हो गया अद्वैत !
इसके बाद हैं वो लोग जो अकेले पन से राजी नही हैं ! उनको एक और
चाहिये ! इनको गोरख नाथ जी ने साधू कहा है ! इनका एक से काम नही
चलता ! जैसे पति या पत्नी ! मित्र, गुरु या शिष्य, ! भक्त भी राजी नही
अकेला , उसको भी भगवान चाहिये ! इनको बस सिर्फ़ एक और चाहिये ! यानी
द्वैत ! इस स्तर पर दो मौजूद रहेंगे ! और इनको इसी लिये साधू कहा कि
चलो सिर्फ़ दो से राजी हैं ! कोई ज्यादा डिमान्ड नही है !
काफ़ी नजदीक है एक के ! सो ये भी साधू ही है !
और जो चार पांच से कम मे राजी नही है ! वो ग्रहस्थ है पक्का !
वो दो से राजी नही उसको अनेक चाहिये ! बीबी बच्चे, नौकर चाकर सब कुछ !
पहले अकेले थे, फ़िर शादी करली, इससे भी जी नही भरा ! बच्चे पैदा हो
गये ! नही भरा जी, और अब कुछ तो करना पडेगा ! इतने से राजी नही है !
तो किसी लायन्स क्लब या और कोई सन्स्था को जिन्दाबाद करेगा ... और ज्यादा
ही उपद्रवी हुवा तो फ़िर उसके लिये तो कोई भी राजनैतिक पार्टी इन्तजार
ही कर रही होगी ! इतने बडे उपद्रवी आदमी को तो किसी पार्टी मे ही
होना चाहिये ! यानी ये बिना उपद्रव करे मानेगा नही !
और जो लोग दस बीस की भीड से राजी नही , जिनको पूरा फ़ौज
फ़ांटा चाहिये ! और जो किसी कीमत पर सन्तुश्ट नही है वो होता है
असली सन्सारी !
सिद्ध गोरखनाथजी ने ये चार तरह के मनुष्य बताए हैं ! अब हम इस कहानी
पर मनन करते हुये दो चार मिनट का मौन यानि अन्तरतम का मौन भी
रख सके तो गुरु गोरख की सीख सफ़ल ही कही जायेगी ! आज तो उनका
नाम भी लेना फ़ैशन के विरुद्ध है ! यानि हम उमर खैयाम को भी वाया
फ़िटजेराल्ड पढना पसन्द करते हैं ! और वही होगा जो उमर खैयाम के
साथ हुआ ! मित्रो आपके पास ज्यादा नही तो एक मिनट का समय तो होगा ही !
मेरे कहने से आप एक मिनट ही कोशीश करके मौन रखने की कोशीश करें !
क्या पता कब परमात्मा , कौन सी घडी मे आपके उपर बरस पडे !
मग्गा बाबा का प्रणाम !
गुरु गोरख नाथ की नजर में संसार
Tuesday, 5 August 2008 at Tuesday, August 05, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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6 comments:
5 August 2008 at 23:17
राम पुरिया भाई आप का लेख पढ कर लगता हे जेसे किसी सन्यासी का सत्सगं सुन रहे हो धन्यवाद
6 August 2008 at 01:07
मग्गा बाबा की जय हो!!
6 August 2008 at 08:38
बाबा बहुत शान्ति मिली ! कृपा बनी रहे , इसी में खुश
हैं ! प्रणाम ! आप सवाल जबाव का पूर्व वर्ती सिलसिला
शुरू करर्ने का भी विचार करे !
6 August 2008 at 08:49
बाबा मैंने पहली बार ये ब्लॉग देखा ! आप कौन
हैं ! यहाँ आकर थोडी देर तो ख़ुद को भूल ही
गयी | ऎसी ही बातों पर और लिखिए , बहुत
शांती मिलाती है | बहुत प्रणाम और धन्यवाद |
6 August 2008 at 17:20
बहुत अच्छे, जारी रखिये. मग्गा बाबा की जय!
2 October 2011 at 11:59
bahut hi sunder,nirgun sant gorakhnath ji ki jai ho.
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