प्रिय मित्र स्मार्ट इंडियन ,
शिव तांडव स्तोत्र के १२ वे श्लोक की अन्तिम लाइन आपने लिखी है !
समः प्रवर्तिका कदा सदा शिवम् भजाम्यहम ?
इस लाइन का अर्थ होगा की मैं कब समान भाव रखता हुवा सदाशिव को भजुन्गा ?
ये उस महा मानव की प्रार्थना की पराकाष्ठा है ! शिव तांडव स्तोत्र का मैं मेरे आरंभिक
साधनाकाल से पाठ करता आया हूँ ! यहाँ ये प्रासंगिक नही है ! पर ये मेरी आल टाइम
फेवेरिट रचना है ! जैसे महा बलि स्वयं आज भी इसे हमें ख़ुद सूना रहे हों !
आपको अगर सिद्धियाँ प्राप्त करनी हों तो आज भी ये जीवंत है ! आप प्राप्त कर सकते हैं !
इस महामानव रावण में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है ! और उसके कुछ निजी कारण भी हैं !
इस विशालकाय मानव के बारे में इतने आसानी से आप और मैं कुछ नही कह सकते !
सदियाँ लग जायेंगी ! फ़िर भी इतिहास पूरा नही होगा ! कभी संयोग बना और ये महामानव
अगर मेरे द्वारा कुछ लिखवाना चाहेगा तो मैं माध्यम जरुर बनना चाहूँगा !
मेरा प्रिय हीरो दशानन ! मेरा पूर्वज महाबली रावण ............!
हमारी चर्चा प्रार्थना पर थी और दादा रावण को आप कहाँ से ले आए ?
मेरी सबसे कमजोर नस यही चरित्र है ! मुझे ऐसा लगता है जैसे दादा आज भी
मुझसे बातें करते हैं !
ये तो दादा की पराजय हो गई वरना इतिहास ही कुछ और होता !
सत्यमेव जयते का अर्थ साधारण तया होता है सत्य की हमेशा जीत होती है !
पर दादा ने मुझे बताया की नही इसका मतलब होता है -- जिसकी जीत होती है
सत्य उसीका होता है ! और इस महा बली के साथ भी यही हुआ !
जिस आदमी का विश्वस्त भ्राता ही दुश्मनों से जा मिले उसकी पराजय में संशय
ही क्या है ? अन्य जो भी कारण रहे हो पर ये एक बड़ा ही सशक्त कारण रहा है !
सामने भी कोई कमजोर हस्ती नही थी ! स्वयं भगवान राम थे !
दादा को हार जीत का भी कोई गम नही था ! उनको तो जो काम मानवता के
लिए करने को बच गए उनको पूरा ना कर पाने का मलाल भी अंत समय तक रहा !
और भगवान् राम ने जब श्री लक्षमण जी को दादा से ज्ञान लेने भेजा था तब भी दादा
ने कहा था की वो सोने में सुगंध लाना चाहते थे , स्वर्ग को सीढियां लगाना चाहते थे आदि.....
इनका मतलब बहुत कुछ है ये फ़िर कभी भविष्य में हम लोग विचार करेंगे !
जब भगवान राम ने लक्षमण जी को कहा की जाओ महाबली रावण से नीतियों का
ज्ञान लेकर आओ ! लखन जी को बड़ा आश्चर्य हुवा ! तब राम बोले लक्षमण शत्रू होने
से उनका ज्ञान शत्रु नही हो गया !जाकर पूछो नही तो ये ज्ञान जो मानवता के काम
आयेगा वो रावण के साथ ही चला जायेगा ! और कुछ चीजों के अलावा एक ये चीज
भी दशरथ नंदन श्री राम को भगवान राम बनाने में कामयाब हुई की वे दुश्मन को
भी उचित सम्मान देने में विश्वास करते थे ! इस पुरे युद्ध को देखा जाए तो इसमे बल
और ताकत की दृष्टी से भगवान राम कहीं नही ठहर रहे थे रावण के सामने !
परन्तु जो एक चीज जो इस युद्ध में निर्णायक रही वो भगवान राम की विनय शीलता,
सम भाव , धैर्य और सबको साथ लेकर चलने की दूर दृष्टी ! और जैसा ध्यान के क्षणों
में मुझे दादा ने भी बताया की उन्हें ख़ुद ताज्जुब हुवा था उनकी हार पर !
और उनके कारण भी उपरोक्त ही थे !
युद्धों में जय पराजय चलती रहती है ! लेकिन रावण के कद में इससे कोई बहुत
फर्क नही पङता है ! वो एक उच्च कोटि के कवि, महान साहित्यकार , प्रकांड ज्योतिषविद,
वेदों के ज्ञाता एवं महान राजनीतिज्ञ थे !
अगर इस योद्धा में ज़रा सा सहिस्णुता का अंश थोडा अधिक होता तो आज
इतिहास शायद कुछ और होता ! पर हर इंसान तो उस ऊपर वाले के हाथ
की कठपुतली है ! तो दादा रावण भी उसी नियम के तहत आते हैं !
उन्होंने भी अपना पार्ट इस रंग मंच पर बखूबी निभाया !
और सच है हम सब इस दुनिया के रंग मंच पर अपना अपना पार्ट ही तो
निभा रहे हैं ! हम सब की डोर तो कहीं किसी और के हाथ में हैं !
इस दुनिया में स्वयं इश्वर भी जन्म लेकर आता है तो उसी मदारी की डोर
में बंधा नाचता है !
उस मदारी को मग्गा बाबा का प्रणाम !
महाबली दशानन और कुछ विवेचना
Sunday, 3 August 2008 at Sunday, August 03, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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3 comments:
4 August 2008 at 07:19
जय हो प्रभु, एक बार फिर पूछता हूँ - कहाँ हैं आपके चरण?
धन्यवाद इन ब्लोगिंग वालों का भी, वरना यहाँ पिट्सबर्ग में बैठकर आप कहाँ से मिलते मुझे?
4 August 2008 at 20:27
बाबा मैं काफी व्यस्त रहने की वजह से बहुत
दिनों बाद आया हूँ ! पहले ये ब्लॉग सार्व जनिक
नही था | खैर सार्व जनिक होने से सब इसका
लाभ ले सकेंगे ! पर आपने इस पर से पुरानी
पोस्ट भी हटा दी हैं | मुझे शत्रु और मित्र
पर लिखी गई आपकी पोस्ट देखनी थी |
आप मेरी इ-मेल का भी जवाब नही दे रहे हैं ?
आपके अन्य निजी ब्लॉग ताऊनामा.काम पर
अगर शिफ्ट की हैं तो कृपया मुझे उसका
एक्सेस दिजीये ! आपकी बड़ी कृपा होगी !
आपका अभि
4 August 2008 at 21:15
बहुत ही अच्छी रचना,ओर बहुत ही सही बाते,और इस महा बली के साथ भी यही हुआ !
जिस आदमी का विश्वस्त भ्राता ही दुश्मनों से जा मिले उसकी पराजय में संशय
ही क्या है ?अरे वाह धन्य हे आप
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