प्रिय मित्रों
कुछ मित्रों की जिज्ञासा रही है प्रार्थना के बारे में ! प्रार्थना कैसे करना ? कब करना ?
ये बहुत ही बचकाना सवाल हुआ ! प्रार्थना का मेरे हिसाब से कोई समय नही होता !
ये तो जब प्रीतम की याद आ गई , हो गई उसी वक्त प्रार्थना ! पर शायद कुछ लोग
सब काम व्यवस्थित तरीके से करना चाहते हैं ! और प्रार्थना भी वो एक नियम बद्ध
ढंग से यंत्रवत करना चाहते हैं ! सुबह उठ कर कर लो या नहा कर कर लो ?
मेरी समझ से यह प्रार्थना नही होगी ! ये नियम हो जायेगा ! जब सारा समय ही
परमात्मा का है तो मुहूर्त कैसा ? कौन सा समय ? किसका समय ? सारा समय ही
प्रार्थना का है !
एक पल को शांत होकर आँख बंद हुई की हो गई प्रार्थना ! इसका एक और गहरा
राज है की जब भी उस खुदा की याद , उस प्रीतम की याद आ गयी , बस समझ
लो की हो गई प्रार्थना ! कोई नियम क़ानून कायदे नही हैं ! दिल से निकली सच्ची
फरियाद ही प्रार्थना है !
मेरी वीणा के बिखरे तार सजा दो
उसको क्षण भर आज बजादो
गाकर तुम मेरे गीत , मीत बन जाओ
छूकर प्राणों की पीर , प्रीत बन जाओ
सिर्फ़ माध्यम बनना है ! प्रार्थना भी वही करवाएगा ! तभी सच्ची प्रार्थना हो पायेगी !
नही तो कोरा ढोंग होगा !
मैंने एक कहानी पढी है ! पता नही कितनी सच है और कितनी नही ! पर मुझे ये
कहानी बड़ी प्रीतिकर रही है ! आप भी सुनिए !
एक बहुत पहुंचा हुआ फ़कीर एक रास्ते से जा रहा था ! रास्ते चलतेचलते नमाज
का समय हो गया ! और चूँकी पहुंचा हुवा फकीर था सो जैसे ही समय हुवा वहीं
बीच रास्ते में अपनी चादर फैला कर परमात्मा या खुदा जो भी आप कहें , उसकी
इबादत कराने बैठ गया ! इतनी देर में एक लड़की जवान सी , भागी चली आ रही है ,
उसको कुछ भी सुध बुध नही है ! बस ऊपर मुंह उठाके बेतहाशा दोड़ती चली आ रही
है ! फकीर साहब ने देखा ... उसको रोकना भी चाहा , क्योंकि वो उनकी बिछाई हुई
चादर के ऊपर से दोड़ती हुई निकल गई आगे !
फकीर साहब को गुस्सा तो बहुत आया ! पर क्या कर सकते थे ? वहीं बैठ कर उसका
लौटने का इंतजार करने लगे ! कुछ समय बाद वो लड़की मस्ती चलती हुई वापस
लौटती दिखाई दी ! उसके चहरे पर इतनी परम संतुष्टी के भाव थे की क्या बताया जाय !
और चेहरा चमक रहा था ! ऐसे लग रहा था जैसे साक्षात परमात्मा से ही मिल कर
लौट रही हो ! उसके पास आते ही फ़कीर साहब ने चिल्लाते हुए पूछा-- ऐ तू कैसी
बदतमीज और बेसलीके की लड़की है ? तुझको इतना भी होश नही रहा की एक फकीर
को , और वो भी खुदा की इबादत करते फकीर की चादर के ऊपर से पाँव रखते हुए
चली गई ? वो लड़की बोली-- फकीर साहब मुझे माफ़ करना ! आप सही कह रहे हैं !
मुझे सही में होश नही था ! पर मैं क्या करूँ ? मेरा प्रेमी उधर नदिया के दूसरी तरफ़
रहता है और घरवाले हमको मिलने नही देते ! और हम मिले बिना रह नही सकते !
काफी सारे दिनों से मौका नही मिला था ! आज मेरे प्रेमी की ख़बर आई थी और मैं
उसके मिलने की याद में सच में इतनी बेसुध हो गई थी की मुझे चादर तो क्या रास्ते
में कुछ भी दिखाई नही दिया ! और मुझे तो ये भी याद नही की आप यहाँ ईश्वर की
प्रार्थना कर रहे थे ! मैं आपसे माफी चाहती हूँ !
उस लड़की ने माफी मांगी और फ़िर बोली ! फकीर साहब मुझे एक बात समझ नही
आई की मैं एक साधारण से इंसान के प्रेम में इतनी पागल थी की मैंने आप जैसे
फकीर के साथ ये हरकत कर दी ! मुझे कुछ भी दिखाई नही दिया और आप तो
अपने प्रेमी (ईश्वर) को याद कर रहे थे ! उस खुदा को जो सब प्रेमियों का भी प्रेमी है,
उसकी इबादत कर रहे थे तो फ़िर आपको मैं कैसे दिखाई दे गई ? आपको मुझे देखने
का होश कैसे रह गया ?
और फकीर निरुत्तर हो गया ! प्रार्थना तो एक मौज है प्रेमी और भक्त के बीच !
और कब प्रेमी का मिलने का संदेशा आ जाए ? तो कोई समय या कानून कायदे
नही बनाए जा सकते !
मग्गा बाबा का प्रणाम !
आपको मुझे देखने का होश कैसे रह गया ?
Sunday, 3 August 2008 at Sunday, August 03, 2008 Posted by मग्गा बाबा
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5 comments:
3 August 2008 at 06:31
आपकी शिक्षा के लिए धन्यवाद. प्रसंग बहुत सुंदर है और हम आम लोगों पर खरा भी उतरता है. कब हम सचमुच प्रभु से सचमुच जुड़ पायेंगे? रावण जैसे महान शिवभक्त ने शिव तांडव स्तोत्र में ठीक ही कहा था:
समः प्रवर्तिका कदा सदा शिवम् भजाम्यहम?
ॐ तत्सत!
3 August 2008 at 10:02
प्रार्थना तो एक मौज है प्रेमी और भक्त के बीच !
वाह बाबा वाह ! प्रणाम आपको !
3 August 2008 at 11:34
अच्छा ज्ञानवर्धक लेख लिखा ।
3 August 2008 at 13:33
राम पुरिया भाई बहुत ही ग्यान की बात आप ने कह दी,सभी समय तो भगवान ने ही बनाया हे...
सच मे इस जगह आ कर लगता हे जेसे किसी अच्छे गुरु के पास दो घडी बेठ गये हो,ओर कुछ ग्यान ले कर उठे हो,धन्यवाद भाई, राम राम जी की
3 August 2008 at 17:38
जय हो...
जय हो.....
जय हो.......
maujan e maujan
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