धन हाथ का मैल या जी का जंजाल

हम अक्सर कहते सुनते पाये जाते हैं कि रुपया तो हाथ का मैल है !
क्या सही मे ऐसा है ! आइये एक कहानी देखते हैं !

राजा भृथहरि, जिन्हे भर्तरि या भरथरि के नाम से भी जाना जाता है !
नाथ सम्प्रदाय के एक महान योगी हुये हैं ! और इनका हमारे लोक जीवन
से भी गहरा नाता रहा है, और है ! आज भी इनके नाम से मेले लगते हैं !
लोक गीत गाये जाते हैं ! योगी बनने से पहले ये एक महान प्रतापी
राजा रहे हैं । भारतीय जन मानस मे राजा भरथरि और महारानी पिंगला
की कहानी तो सबने सुनी ही है !

राजा भरथरि का मोह भंग हो चुका है ! महारानी पिन्गला द्वारा किये गये
विश्वास घात के बाद राजा को
असलियत यानि खुद के स्वरूप का ज्ञान होता है !
और राज पाट का त्याग कर जंगल मे तपस्या करने चले जाते हैं !
हम यहां कोई दुसरी बातो का जिक्र नही करेंगे ! इसलिये सीधे मतलब की बात पर
आते हैं ! राजा को काफ़ी समय हो गया है तपस्या करते २ ! मन मे शान्ति आने
लगी है ! और यों भी पुर्व जन्म के तपस्वी तो थे ही ! सो अल्प समय मे ही अच्छी गति
बन गई !

एक दिन सबेरे सबेरे राजा भरथरि अपनी कुटिया के बाहर धूनी रमाये हुये ध्यान
मे मग्न हो कर बैठे हैं ! अचानक उन्की आंख खुलती है और देखते हैं कि आंख के
सामने एक शानदार चमकता हुवा हीरा पडा जग मगा रहा है ! राजा भरथरि
को वहां हीरेको पडा देख कर बडा आश्चर्य हुवा और एक क्षण को उन्हे ऐसा लगा कि
ऐसा शान दार हीरा यहां कहां से आ गया ? चुंकी राजा है , पारखी है !
देखते ही पहचान गया की असली हीरा है ! आपके हमारे लिये तो कांच का
टुकडा भी हीरा हो सकता है और असली हीरा भी कांच का टुकडा
हो सकता है !
राजा भरथरि बस ऊठने को ही हुये थे कि ऊठालें ऐसे नायाब हीरे को !
और उन्हे तुरन्त हंसी आ गई !

राजा भरथरि ने सोचा - मैं भी क्या बेवकूफ़ हूं ? ऐसे ऐसे ना जाने कितने हीरे
मैं अपने खजाने मे छोड आया हूं ! और सारे खजाने के अलावा पूरा राज पाट
छोड आया हूं ! फ़िर भी हीरे का इतना आकर्षण है कि छुटता नही है ! और इस मामूली
हीरे के लिये मेरा मन अब भी बैचैन है ! राजा को बडी ग्लानि होती है ! और राजा
अपना मन फ़िर इश्वर के भजन मे लगाने की कोशिश करता है !

राजा को इन दिनो लगने लगा था कि उसकी तपस्या सफ़ल होती जा रही है ! पर
आज की घटना से राजा को लग गया की उसकी इतनी तपस्या के बाद भी वो
तो वहीं का वहीं है ! इतनी देर मे राजा देखता है कि दो घुडसवार सैनिक
आमने सामने की दिशा से अपने घोडे दौडाते हुये आये और ठीक हीरे के पास
आकर आमने सामने से दोनो के भाले की नौंक हीरे पर रखा गई !
उत्तर दिशा से आने वाले सैनिक का कहना था की पहले उसकी नजर हीरे पर
पडी थी इसलिये इस हीरे का मालिक वो है और यही कहना था दक्षिण दिशा
से आने वाले सैनिक का ! अब फ़ैसला कैसे हो ?

अब वीरों की तो आन बान शान
का ठेका ही तलवार और भालों के पास रहा है ! राजा भरथरि अभी कुछ समझ
भी नही पाये थे कि उन्होने देखा - दोनो घुडसवार अपने भाले संभाल कर
एक दुसरे की तरफ़ दौड पडे .. अगले ही पल मे एक दुसरे के भाले उनके शरीर
के आर पार होकर उनकी जीवन लीला समाप्त कर चुके थे ! और वो हीरा अब भी
वहीं पडा मुसकरा रहा था !
हीरे को खबर तक नही कि वो एक तपस्वी का
इमान डिगा चुका है , उसकी तपस्या भंग कर चुका है ! और अभी अभी दो जानें
उसके लिये जा चुकी हैं ! राजा भरथरि कहते हैं - सही मे हीरे (धन) को
अपना मोल मालूम नही होता ! वो तो सामने वाले की नजरों मे धन का मोल होता है !
धन को तो ये भी पता नही कि वो धन है ! लोग ही उसको धन बना देते हैं !

अब ये तो हम पर निर्भर है कि धन हाथ का मैल है या जी का जन्जाल !

अभी पिछले सप्ताह एक मित्र ने पूछा था कि मैं ऐसी कहानी कहां से लाता हूं ?
उस किताब का नाम बतादूं जिससे वो सारी कहानी एक बार मे ही पढ ले और रोज रोज
का झंझट ही खत्म हो ! उन मित्र को कहना चाहुंगा कि ये कही लिखी हुई कहानियां
नही हैं ! ये आपने हमने सबने अपने दैनिक जीवन मे ही सुनी हैं ! थोडी अपनी
कल्पना और समझ के सहारे आप भी लिख सकते हैं ! इसी तार्तम्य मे कहना चाहुंगा
कि इस कहानी को मैने राजा भरथरि के जीवन से ऊठाया है ! पर आपको इस रूप मे
कहीं भी लिखी हुई नही मिलेगी !

एक बात बताऊं , आपको राजा भरथरि के विषय मे -- राजा भरथरि के तीन
ग्रन्थ आज भी अपने क्षेत्र के शीर्ष पर हैं ! उनकी बराबरी का कोई ग्रन्थ लिखा ही
नही गया ! आप चाहे तो आप भी पढ सकते हैं !

१) श्रंगार शतक -- राजा भरथरि ने इस पुस्तक की रचना उस समय मे की थी
जब वो रानी पिंगला के प्रेम मे आकन्ठ डूबा हुवा था !

२) नीति शतक -- इस पुस्तक की रचना इस योग्य राजा के द्वारा राज्य करते समय
राज्य की नीतियो के संबन्ध मे की गई है !

३) वैराग्य शतक -- इस महान पुस्तक को राजा भरथरि ने राज्य त्यागने के बाद
उपजे वैराग्य के समय लिखा था !

मैने अपने अपने क्षेत्र मे इन तीनो ग्रन्थों को आज भी शीर्ष पर पाया है ! इन क्षेत्रों
मे इन ग्रन्थों के उपर कोई ग्रन्थ नही है ! इस महान तपस्वी भरथरि को प्रणाम !

मगा बाबा का प्रणाम !

मस्त व्यंजन है पर निंदा रस

हमारे प्रिय शगल हैं ख़ुद की स्तुति, और दुसरे की निंदा !
जितना आनंद इन दोनों कामो में आता है , उतना
अन्य किसी काम में नही आता ! पर निंदा रस सबसे
स्वादिष्ट होता है ! इससे सुस्वादु व्यंजन इस संसार में
बना ही नही ! पर श्रीकृष्ण ने इस व्यंजन का सेवन
कभी नही किया !

दुसरे की निंदा करना यानी ईश्वर की निंदा करना !

हमको कोई अधिकार नही है की हम ईश्वर की
किसी रचना का मखोल उडाये ! किसी की भी निंदा
करना यानी ईश्वर की निंदा करना है ! यहाँ हर जीव
मात्र को ईश्वर ने अपने किसी हेतु से बनाया है !
यहाँ कुछ भी अवांछित नही है !

निंदा करने से मन अशांत होता है एवं आप ख़ुद का

जीवन स्वयं ही दुखों से भर लेते हैं ! अपनी करनी
का फल तो भोगोगे ही !

क्या आपने कही सुना या पढा है की श्रीकृष्ण भगवान
ने कभी किसी की निंदा की हो ? और यह भी भगवान
श्रीकृष्ण को पूर्णावतार बनाने में एक मुख्य कारण था !
कोई भी अन्य अवतार सिर्फ़ अंशावतार ही हुए हैं सिर्फ़
योगेश्वर कृष्ण को छोड़ कर !

श्रीकृष्ण ने कभी किसी की बुराई या निंदा नही की ,

हम भी कुछ तो इससे सीख ले ही सकते हैं !
अब आप की मर्जी की आप चाहे इस व्यंजन का

भरपूर लुत्फ़ उठाते हुए जीवन दुःख से भर लें
या इस रस का सेवन नही करते हुए एक सुख

मय और सुंदर जीवन जिए ! मर्जी है आपकी !

मग्गाबाबा का प्रणाम !


माता पार्वती ने ख़ुद ही जलाई कुटिया

सुबह ही सुबह भोलेनाथ शनिदेव के यहां जाने को तैयार हो रहे थे ! अचानक
माता पार्वती बोली - भोलेनाथ आप जा तो रहे हैं पर मुझे अभी भी ऐसा लग रहा है
कि कुछ गडबड ना हो जाये !
भोलेनाथ बोले - उमा, तुम नाहक चिन्ता कर रही हो ! यकिन करो ! शनि मेरा अच्छा
शिष्य ही नही बल्कि मेरा भक्त भी है ! मैं गया और उसको बोल कर वापस आया !
माता पार्वती बोली - भोलेनाथ वह तो ठीक है ! सारी दुनियां ही आपकी भक्त है !
पर इससे क्या होता है ? अगर शनि देव नही माना और उसने हमारी कुटिया जलादी
तो हम दुनियां को क्या मूंह दिखायेंगे ? पूरी दुनिया के सामने हमारी थू थू नही
हो जायेगी ! लोग क्या कहेंगे ? भोलेनाथ की कुटिया एक छोटे से शनिदेव ने जला दी ?

नही नही भोलेनाथ ! ऐसे नही चलेगा ! कुछ पक्का उपाय करिये ! और दोनो मे विचार
विमर्श होने लगा !

आखिर भोलेनाथ के दिमाग मे एक उपाय आ ही गया , जिस पर माता पार्वती भी सहमत
हो ही गई ! अब भोलेनाथ बोले - उमा मैं जाकर शनि को समझाता हूं ! अगर वो मान
गया तो ठीक है ! और अगर नही माना तो हम उसके द्वारा अपनी कुटिया जलवाने के
बजाय खुद ही कुटिया को जला लेंगे ! जिससे दुनियां ये ही समझेगी कि कोई दुर्घटना
मे कुटिया जल गई !
माता पार्वती - पर ये कैसे होगा ? आप वहां से आवोगे, उसके पहले ही कहीं शनि
ने कुटिया का राम नाम सत्य कर दिया तो ?

ये भी विचार्णिय प्रशन था ! सोच विचार कर भोलेनाथ ने कहा - ठीक है ! ऐसा
करेंगे कि अगर शनि मान गया तो ठीक है और नही माना तो मैं तुम्हारे को सन्केत
के लिये मेरा डमरू बजा दुन्गा ! अगर तुमको मेरे डमरू बजाने की आवाज आये तो
समझ लेना कि शनि नही माना है और तुम तो घासलेट - दियासलाई तैयार ही रखना !
और डमरू की आवाज सुनते ही माचिस दिखा देना कुटिया को ! माता पार्वती को ये आइडिया
बिल्कुल जंच गया !

भोलेनाथ तो रवाना हो गये अपने नंदी के साथ ! और पहुंच गये शनि देव के पास !
शनिदेव ने जैसे ही भोले नाथ को आते देखा ! वो किसी अन्होनी के दर से कांप उठे !
ये तो ऐसे ही था जैसे कलेक्टर साहब किसी तहसीलदार के घर पहुंच जाये ! शनि देव
ऊठ कर दौडे और बाहर ही जाकर भोले नाथ के चरणों मे सर रख कर प्रणाम किया !
और सविनय बोले - प्रभु आपने कैसे कष्ट किया ? आदेश किजिये !

भोले नाथ ने सब बात बताई ! और यह सुनते ही शनि देव हंसते हुये बोले - हे शिव,
हे भोले भन्डारी ! आप समस्त जगत के नियन्ता हो ! प्रभु ये सारा जगत आपके
इशारे मात्र से गतिमान होता है ! आप कैसी बात करते हैं ! ऐसा कभी हो सकता
है कि आपका घर और मेरे जैसा कोई क्षुद्र ग्रह जला दे ? प्रभु आप मुझे इतना तो
अधम मत समझिये ! और इस तरह शनिदेव ने भोले बाबा की विनती करते हुये अनेक
प्रकार से उनकी स्तुति की ! और उनको आदर सत्कार करके अन्दर आसन पर बैठा दिया !

अब भोलेनाथ तो अति प्रशन्न हो गये और अपनी आदत के मुताबिक शनीदेव से कहा कि
शनिदेव मैं आपसे अति प्रशन्न हूं ! आप कोई भी इच्छित वरदान मांग लिजिये !
दशानन रावण ने तो फ़िर भी कुछ ना नुकुर के बाद महल मांगा था ! पर शनिदेव
की औकात कहां थी रावण के सामने ! कहां रावण और कहा शनिदेव ! शनिदेव की
तो क्या दुर्गति रावण ने कर रखी थी ये कभी बाद मे अलग से आपको बतायेंगे !
बस शनि महाराज खींसे निपोरते बोले - हे त्रिपुरारि शिव ! आपका दिया सब
कुछ है मेरे पास ! हे देवाधिदेव महादेव ! मेरी एक ही इच्छा जन्मों से है और वो
इच्छा कभी पूरी होगी , ऐसी मेरि औकात भी आपके सामने नही है ! पर आज आप
मेरे उपर प्रशन्न ही हैं तो मुझे आपका तान्डव न्रत्य देखने की इच्छा है !

हे जगदिश्वर ! अगर आप मुझ पर प्रशन्न हैं तो मुझे ये शौभाग्य प्रदान किजिये !
और मुझे अपना तान्डव न्रत्य दिखाईये ! अब भोले नाथ शनिदेव की इन प्रार्थनाओं से
प्रशन्न तो थे ही और भूल गये की पार्वती जी को क्या कह के आये थे ? और अपना
डमरू ऊठाके बजाते हुये तान्डव न्रत्य करने लगे !

और उधर जैसे ही माता पार्वती ने
डमरू की ध्वनि सुनी , वैसे ही उन्होने समझ लिया कि शनि देव ने बात नही मानी ! और
शनिदेव की सात पुश्तों को गालियां देती हुई बोल ऊठी - तेरा नाश मिटे, सत्यानाशी शनी !
तेरे से ये घास फ़ूस की झोंपडी भी सहन नही हुई ! अरे तू क्या जलायेगा हमारी कुटिया !
ले हम खुद ही जला लेते हैं अपना आशियाना ! और माता ने दियासलाई जलाकर कुटिया
को जला डाला !
सारी कुटिया घास फ़ूस की तो थी हि ! देखते २ धू धू कर जल ऊठी !

उधर भोले नाथ शनिदेव का आतिथ्य ग्रहण करने के बाद शाम को वापस कैलाश आये तो
देख कर दंग रह गये ! और सारा माजरा समझ कर मुसकरा ऊठे ! और जब सारी बात
माता पार्वती को पता चली तो वे भी मुसकरा ऊठी ! और दोनो ने इस पुरे वाकये का
बहुत दिनों तक एक दुसरे कॊ छेड छेड कर मुसकराते २ आनन्द लिया !

भोले ने कहा - उमा कोई भी हो ! होनी तो होकर रहती है !
माता मुसकराअते हुये बोली - हां भोले नाथ ! और ये हमारे साथ कुछ ज्यादा ही होती है !

इस पूरी कहानी से हमको सबक मिलता है कि --

जीवन मे कुछ बाते ऐसी होती हैं, जिनका कोई भी सिरा हमारे हाथ मे नही होता है !
फ़िर भी हम उनकी चिन्ताओं मे डुबे रहते हैं ! इतने दिन की चर्चा मे हमने देखा
की जगत के नियन्ता को भी नियति के हाथों ही चलना पडता है ! ये अलग विषय
होगा कि वो अपनी मर्जी से चलते हैं या चलना पडता है ! मेरा कहना है कि
हमको भोलेनाथ कि तरह हर परिस्थिति को सन्यत होकर देखना चाहिये ! और उसका
मुकाबला करना चाहिये ! सफ़लता मिलेगी ही यह जरुरी नही है ! यहां भोलेनाथ
का प्रसन्ग ऊठाने से भी यही मन्तव्य था कि जब भोलेनाथ भी हार सकते हैं , और
बडी राजी खुशी हन्सते हुये स्वीकार कर सकते हैं तो हम क्युं नही कर सकते ?

हम अपना पुर्ण प्रयत्न करें ! जैसे भोलेनाथ ने छोटे बडे की पर्वाह करे बगैर शनि
के घर चले गये ! क्या हम मे से कोई भी इस तरह अपने से छोटे आदमी के घर जा सकता है ?
शायद जवाब आयेगा नही ! क्युं कि हम जानते ही नही हैं कि क्या कर रहे हैं ?
इस जगत मे कोई छोटा बडा नही है ! और मैने तो देखा है आप जितने छोटे बन कर
जियेंगे आपका जीवन उतना ही सुन्दर होता जायेगा ! उतार फ़ेंकिये व्यर्थ का ढकोसला
और एक स्व्छन्द जीवन जीकर तो देखिये ! जो अपने हाथ मे नही है उसके क्युं पिछे भागते हैं !
और इस जगत मे आज भी बहुत कुछ आपके हाथ मे नही है !


यहां आप दो घटनाओं पर गौर करिये --

१) रावण भोलेनाथ का महल ले गया ! चाहे जैसे भी ले लिया हो !
२) शनिदेव ने कुटिया जलादी चाहे जैसे भी जलाई हो !


अब यहां दोनो घट्नाओं के बाद भी भोलेनाथ प्रशन्न हैं ! अगर भोले नाथ की जगह
आप होते तो क्या होता ? और आप क्या करते ? आप आत्म विशलेषण किजिये !
आपको स्वत: ही जवाब मिल जायेगा !

इस कथा को यहीं कुछ समय के लिए विराम देते हैं ! आप सबका शामिल होने
के लिए धन्यवाद ! फ़िर कुछ समय पश्चात कोई नया विषय देखकर शुरू करेंगे !
तब तक के लिए मग्गा बाबा का प्रणाम !

भोलेनाथ का शनिदेव से मिलने का विचार

नारद जी के कैलाश से चले जाने के बाद फ़िर से माहौल काफ़ी तनाव भरा दिखाई
दे रहा था ! माता पार्वती के चेहरे पर एक दैविय के बजाए आम स्त्री सुलभ चिन्ता
की रेखाएं साफ़ देखी जा सकती थी ! और भोले नाथ अपनी चिलम के कश खींचने
में तल्लीन थे ! कहीं कोई असामान्यता नही दिखाई दे रही है !

माता पार्वती भोलेनाथ के पास आकर बैठ गई हैं ! और उन्होने भोले बाबा
से पूछा - ये नारद जी जब भी आते हैं हमेशा कुछ ना कुछ उल्टा पुल्टा ही होता है !
अब ये क्या शनि की दशम दृष्टि की बात कर रहे हैं ? अरे अगर शनिदेव की
दृष्टि मे दोष है तो वो अपनी आंखो का इलाज करवाएं ! हमसे और इस कुटिया
से उनको क्या लेना देना ?
भोले नाथ बोले - उमा, तुम सही कहती हो ! पर होनी को कौन टाल सका है ?
अभी तुमने स्वर्ण महल का हश्र देख ही लिया है ! और अब नारद जी भी प्रकान्ड
ज्योतिषी हैं सो मुझे भी कुछ गड्बड तो लग रही है !

अब दोनो इसी विचार विमर्श मे लगे हैं कि इस समस्या से कैसे निजात पाई जाए !
माता पार्वती बोली - हे भोले नाथ ये आपकी बे-इज्जती होगी, अगर शनिदेव ने हमारी
कुटिया जला दी ! ठीक है महल की वजह से हमारी जग हंसाई हुई है ! आप देख
नही रहे थे कि लक्ष्मी जी कैसे कैसे मंद मंद मुस्करा कर मजे ले रही थी ?
पर हमारा महल था ! हमने अपनी मर्जी से दशानन को दे दिया इसमे कोई परेशानी नही है !
पर अगर शनि महाराज ने आपकी कुटिया जला दी तो, आप समझ लिजिये मैं सहन
नही कर पाऊंगी !
भोले नाथ ने भी सोचा ये अजीब आफ़त नारद मुनि खडी कर गये !
और हमने भी सोचा कि अब मामला वास्तव मे गंभीर है ! हम जो सोच रहे थे
कि नारद जी ने कोई दुश्मनी निकाली है शनिदेव से , वो वाली बात नही है !

माता पार्वती उठ कर शाम का भोजन प्रबन्ध करने जाने की सोच रही थी , क्योंकि
आज ही उनके परम लाडले सुपुत्र गणेश ने फ़र्माइश की थी लड्डुओं के लिये !
और गणेश का लड्डु प्रेम ऐसा कि २/३ सौ लड्डु खाए बगैर उनको कहां आराम ?
माता को इस कार्य मे भी लगना था ! पर पता नही आज माता की इच्छा नही
हो रही थी किचन मे जाने की ! अन्यथा गणेश की फ़र्माइश आने के पहले लड्डु
तैयार हो जाया करते थे ! माता गणेश की इच्छा का इतना ख्याल रखती हैं ! वैसे
भी कैलाश पर किसी की भी लड्डु खाने की इच्छा होती तो वो बालक गणेश को
लड्डुओ की याद दिला देता ! और बहाना तो गणेश के लिये लड्डू बनाने का होता !
और पूरे कैलाश पर सबको लड्डु खाने को मिल जाते ! और खाने वालों मे पूरा
भोले का परिवार ! भैरव, नन्दी, भूत , प्रेत और चुडैल सब की चकाचक मस्ती
रहती ! इसीलिये तो माता पार्वती को अन्नपूर्णा भी कहते हैं ! और एकाध लड्डू
नही , सबको भर पेट !

और ये सारे कैलाश वाशी भी बडी तल्लीनता और ह्रदय
से माता के साथ सम्पुर्ण कार्य मे हाथ बंटाते ! सारा सामान माता के आदेश
करने के पहले ही ये सारे गण लोग तुरन्त जुटा देते थे ! और माता के हाथ के
लड्डू का स्वाद तो क्या कहने ! हम भी तो गणेश जी के नाम से प्रसाद चढाने
का कह कर अपना लड्डू प्रेम पूरा करते हैं ! और अब गणेश उत्सव मे तो रोज ही
मां के हाथ के बने लड्डू हमको भी मिलने वाले हैं ! ये तो माता पार्वती ने
अपने सारे गणेशों ( हम सारे ही तो माता पार्वती के गणेश ही हैं ) को लगातार
दस दिन लड्डू खिलाने को इस उत्सव की शुरुआत की होगी !
अचानक भोले नाथ प्रशन्नता से चिल्लाते से बोले - उमा, उमा सुनो !
मेरी बात सुनॊ ! माता बोल उठी - क्यों ? क्यों इतना चिल्ला रहे हो ?
क्या हो गया ऐसा ?
शिव बोले - उमा ! मैं अभी समस्या पर मनन कर ही रहा था कि मुझे ध्यान आया
की शनिदेव तो मेरे प्रिय शिष्य हैं और अगर मैं उनको कह दूं कि भैया तू इस
कुटिया से तेरी नजर हटा ले तो वो बिल्कुल मान जायेगा !
अब भोलेनाथ को कौन समझाये की ये उनके प्रिय शिष्य ही उनको परेशानी
मे डालते हैं ! अभी अभी तो रावण, उनका प्रिय शिष्य उनको सबक देकर गया है !
और अब भोले बाबा शनिदेव को प्रिय शिष्य बताने लग गए हैं !
तो माता बोली - ठीक है ! इसमे क्या बुराई है ! बुलाओ शनिदेव को !
और समझा दो उनको कि यहां से नजर हटा ले !
भोलेनाथ ने कहा - देखो देवी ! काम हमारा है, और जाना हमको चाहिये !
मां पार्वती - बात ठीक तो है ! पर आपका वहां जाना अच्छा लगेगा क्या ?

( बात भी सही है ! बराबरी वाले अफ़सर से ही आने जाने का व्यवहार होता है !
अरे कलेक्टर साहब को काम है तो वो तहसीलदार के घर थोडे ही जायेगा ! वहीं
अपने घर बुला कर उसकी ऐसी तैसी नही कर देगा ? )


पर शिव इसी लिये तो शिव हैं कि उनकी नजर मे कोई छोटा बडा नही है ! सब जीव
एक समान हैं ! अत: उन्होने कहा कि इसमे कोई हर्ज नही हैं ! मैं चला जाता हुं !
माता पार्वती बोली - आप एक काम करो ! शनि महाराज को मोबाइल से बात
करके समझा दो !
भोले ने कहा - देखो ये शनि देव की दृष्टि का सवाल है ! वहां गये
बगैर काम होगा नही ! और मेरे पास उनका नया नम्बर भी नही हई !
( असल मे माता को ऐसा लग रहा था कि भोलेनाथ को शनिदेव किसी बात मे फ़ंसा
लेंगे और हमेशा की तरह वोही ढाक के तीन पात होंगे ! हर दुनियां की स्त्री
समझती है कि उसके पति से ज्यादा भोला और शरीफ़ कोई नही है ! पर वो वाकई होता
नही है ! और इसको तो आपसे अच्छी तरह कौन समझ सकता है ! आप को आपकी
धर्मपत्नि जितना शरीफ़ समझती हैं उतना आप हैं क्या ?
)

अब माता मान तो गई कि सुबह आप चले जाना ! पर फ़िर एक सवाल ......?
(क्रमश:)
( अगली समापन किश्त होगी ! पोस्ट के विस्तार भय से एक किश्त और )
मग्गाबाबा का प्रणाम !

शनिदेव के ख़िलाफ़ नारदमुनी का षडयंत्र

नारद मुनि के माथे पर चिन्ता की लकीरे देख कर सहज ही भोले नाथ
ने पूछ लिया- हे मुनि श्रेष्ठ ! आप कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हैं ? क्या बात है ?
नारद मुनि बोले - हे आशुतोष ! अब आपसे क्या छुपा है ? आप तो
सर्वज्ञ हैं ! पर मैं जो कुछ मेरी द्रष्टि से देख पा रहा हूं उसके अनुसार
आपकी इस कुटिया के ऊपर शनि देव की वक्र दृष्टि है !

बीच मे ही माता पार्वती ने अधीरता पुर्वक पूछा - वक्र दृष्टि का क्या मतलब ?
नारद बोले - माते शान्त .. शान्त ! आप चिन्ता ना करें ! कोई उपाय हो ही जायेगा !
मां पर्वती बोली - उपाय ? उपाय का क्या मतलब ? और किस चीज का उपाय ?
अब नारद मुनि बोले - माते बात ऐसी है कि आपने जिस समय मे इस कुटिया
का निर्माण किया है , उस समय मे इस पर शनि देव की वक्र दृष्टि थी !
माता पार्वती बोली - तो इसमे हम क्या करे ? होगी शनि देव की दृष्टि !
अब माता पार्वती को कौन समझाये कि शनि देव की दृष्टि का क्या मतलब होता है ?
असल मे भगवान आशुतोष को भोलेनाथ कहा गया है ! पर लगता है कि दो घर बिगडने
थे पर एक ही बिगडा है !
क्योंकि माता पार्वती तो भोले नाथ से भी भोली हैं ! जैसे किसी
को कुछ काम निकालना हो तो पड जावो भोले नाथ के पीछे ! थोडे दिन तपस्या करो
और जिन्दगी भर मौज करो ! इसी तरह किसी कन्या का विवाह नही हो या कोई दाम्पत्य
सम्बन्धी समस्या हो तो चलो सीधे मां गौरी के पास ! इस दम्पति का जितना गैर-वाजिब
फ़ायदा दुनिया ने उठाया है, उसकी मिसाल मिलना भी मुश्किल है ! थोडी सी प्रशन्सा
करो और दोनो इतने भोले हैं कि सब कुछ निकाल के दे देते हैं ! माता पार्वती भोले नाथ
को हमेशा उलाहना दिया करती हैं ! पर खुद के हाल देखो ! वो कौन सी लुटाने मे भोले
बाबा से कमजोर पडती हैं ? पर हमने तो चुप चाप रहने मे ही भलाई समझी ! हमने
माता के बारे मे भोले नाथ को कुछ भी नही कहा ! जबकि दशानन को दिये गये महल को
लेकर माता भोले नाथ को कुछ ना कुछ कभी कभार सुना ही दिया करती थी !

और भोले नाथ को कुछ जवाब ही नही सुझता था ! जब माता शुरु होती तो भोलेनाथ
सिर्फ़ औघड की तरह मुस्करा कर रह जाते थे ! और ऐसे मे अगर हम भोलेनाथ को माता
के दानपुण्य की बातें बता देते तो जबरन दोनो मे झगडा हो जाता ! और कौन
प्राणी ऐसा चाहेगा ? इसलिये हम तो चुप चाप दोनो की नौक झोंक का मजा लेते
रहते थे ! हमको यहां कैलाश मे जमे रहने का मौका मिल गया था तो हम क्युं
खिसकते यहां से ! वैसे जिस दिन यहां पता चला कि एक रिपोर्टर अभी तक
कैलाश पर जमा हुआ है ! तो पता नही क्या होगा ? आप जान ही गये होंगे कि
हमने इस समारोह को कवरेज करने के बाद रुक कर कितना बडा खतरा ऊठाया है !

तीनों बडे गंभीर चिन्तन मे दिखाई दे रहे है ! माता प्रश्न सुचक दृष्टि से देख रही है !
नारद जी ने चुप्पी तोडते हुये कहा - माता जिस वस्तु पर भी शनि देव की दृष्टी होती
है वो जल जाया करती है ! जब इस कुटिया का निर्माण हुआ तब ज्योतिष के अनुसार
इस पर शनिदेव की दशम दृष्टि थी ! जो शुभ लक्षण नही हैं ! नारद जी ने सीधे ऐसे
तो नही कहा की ये कुटिया शनिदेव जला देंगे !

पाठको, आप यकीन करना , नारद जी के यह वचन सुन कर हमको भी बडा आश्चर्य
हुवा और हम ध्यान पुर्वक आगे की कारवाई का ईन्तजार करने लगे ! और हमको
यह भी ताज्जुब हुवा कि जब भोले नाथ और माता पार्वती भी इन ग्रहों के चक्कर मे चढ
सकते हैं तो फ़िर आपकी हमारी तो औकात ही क्या ? इधर हम ताज्जुब मे पडे थे और
उधर नारद जी का प्रस्थान का समय हो चुका था ! भोले नाथ और माता पार्वती को
ऐसे समय एक हमदर्द के रुप मे नारद जी की जरुरत थी ! पर ये क्या ? नारद जी तो विदा
होने के लिये दोनों को प्रणाम करने लगे ! सही कहा है कि नारद एक घडी से ज्यादा कहीं
नही रुक सकते !
सो होंगे भोले नाथ अपने घर के ! वो तो अपने नारायण ... नारायण
करते निकल लिये ! और भोले नाथ और माता पार्वती विचार विमर्श मे डुब गये !
उनकी बात चीत या तो धीमी थी या शायद वो कुछ बोल ही नही रहे थे ! शाम का
अन्धेरा होने लगा था ! सो हम भी अपने होटल की और रवाना हो गये !

और हम इस सारे वार्तालाप का मतलब निकालने की कोशीश कर रहे थे ! और हमारे
दिमाग मे एक विचार चिंगारी की तरह कौन्ध गया कि ये सारा नाटक कहीं नारद जी
का रचा हुवा तो नही है ? कहीं शनिदेव ने नारद महाराज की शान मे गुस्ताखी करदी
हो और नारद जी ने शनीदेव से बदला लेने के लिये भोले बाबा को शनिदेव के
खिलाफ़ भडकाने की चाल चली हो ? और साहब नारद जी कुछ भी कर सकते हैं !
जैसे आपके मन मे सवाल और जिज्ञासा है उसी तरह हमारे मन मे भी है की
अब आगे क्या होगा ? हम विचार करते २ होटल तक आगये ! पर रात भर ऊहापोह
मे नींद नही आई ! और हम सारी रात ये ही सोचते रहे कि शनि महाराज ने ऐसा
नारद जी के साथ क्या उल्टा सीधा कर दिया कि नारद जी भोले बाबा को मोहरा
बनाने के चक्कर मे हैं !
अब ये तो भविष्य ही बतायेगा कि असल भेद क्या है ?
क्या सचमुच भोलेनाथ की कुटिया पर शनि देव की दशम दृष्टि है या ये नारद जी की
शनि देव पर उल्टी सीधी दृष्टि है ?
(कृमश:)

मग्गाबाबा का प्रणाम !

कैलाश पर कुटिया का निर्माण

कैलाश पर जो कुछ हुआ उसके बाद स्वाभाविक था कि सब मेहमान विदा हो चुके थे !
दशानन भी अपनी दक्षिणा स्वरूप प्राप्त स्वर्ण नगरी सहित अपने जम्बो जेट से लंका के
लिये प्रस्थान कर चुके थे ! भोलेनाथ की दिनचर्या मे कोई बदलाव का सवाल ही नही था !
जैसे कि कहीं कुछ हुआ ही नही था ! अगर वास्तव मे कोई दुखी था तो सिर्फ़ माता पार्वती
और कुछ थोडे बहुत कार्तिकेय और गणेश भी ! क्योंकि उनके लिये भी एक अलग और बहुत
ही सुन्दर प्रखन्ड का निर्माण उस स्वर्ण नगरी मे किया गया था !

शाम का समय :: माता पार्वती वहीं पर भोलेनाथ के पास ही बैठी थी ! भोलेनाथ ने
महसूस किया कि पार्वती जी दुखी दिख रही हैं ! उन्होने माहौल को हल्का करने की द्रष्टि से
कहा - हे उमा ! तुम्हारा इस तरह साधारण लोगो जैसे शोक करना उचित नही जान पडता !
अरे मैने तुमको पहले ही कहा था कि हमारी किस्मत मे ये महल चौबारे नही हैं ! अपना
तो "नंगे नवाब किले पर घर" वाला हिसाब है ! अरे हमारा कैलाश कौन सी किसी स्वर्ण
नगरी से कम है ? अब तुम ये शोक मनाना छोडो और भांग घोटने का प्रबंध करो !
कहां के महलों के निर्माण मे तुमने उलझा दिया कि आज इतना समय हो गया तुम्हारे
हाथ की भांग भी नसीब नही हुई ! और तुमको मालूम है मुझे तुम्हारे सिवाय किसी और
के हाथ की घोटी हुई भांग मे मजा नही आता !

माता पार्वती ने सजल नेत्रों से भोलेनाथ की तरफ़ देखते हुये कहा - हम महल मे क्यूं
नही रह सकते ? हमने और हमारे बच्चों ने क्या अपराध किया है ? आप तो सबसे बडे
देवाधि देव महादेव हो ! और आपके मातहत छोटे छोटे देवता भी बडे बडे महलों मे
रहते हैं ? उनकी तो इतनी कमाई भी नही है ! शायद कुछ रिश्वत वगैरह लेते होंगे ?
पर हमको तो इसकी भी जर्य्रत नही है ! नही भोले नाथ , मेरे मन मे तरह तरह के
सवाल उमड घुमड रहे हैं !

भोलेनाथ ने कहा - देखो कौन क्या करता है और क्या नही करता ? ये कोई समस्या
नही है ! इस जगत मे विधाता ने किसी को एक जैसा नही बनाया ! सब अलग अलग
हैं ! सबका कार्य, भाग्य, भोग और यहां तक कि उनके हाथ की रेखाएं भी अलग अलग हैं !
तुम्हारा इशारा शायद लक्ष्मी जी की तरफ़ है पर कौन किसकी बराबरी कर सकता है ?
कितनी ही बातों मे वो तुम्हारे आगे बहुत कमजोर हैं और तुम एक बात को पकड कर
बैठ गई हो ! जो इस सन्सार मे दुसरो जैसा बनने की कोशिश करता है वो अन्तत: दुख
को ही प्राप्त होता है ! जो दुसरे के पास हो वो तुम्हारे पास भी हो यही भावना तो
दुख का परम कारण है !
इस संसार मे हर एक जीव अपने आप मे अनोखा और अद्भुत है !
कोई छोटा या बडा नही है ! भोलेनाथ की इस तरह की वाणी सुन कर मां पार्वती का
दिल कुछ हलका हुआ और उन्होने अपने नित्य के कार्य करने शुरु कर दिये थे ! फ़िर भी
एक टीस उनके मन मे थी जरुर ! रात्रि शयन के समय उन्होने भोलेनाथ को कहा कि आप
महल तो छोडिये सिर्फ़ एक घास फ़ूस का छप्पर बनवा दिजिये ! जिससे जो नित्य लोग आते
जाते हैं उनके बैठने की जगह हो जाये ! और इससे उनको ठंड से बचाव भी हो जाये !
भोलेनाथ ने मुस्करा कर कहा कि ये बात पहले ही सोच लेनी चाहिये थी ! इतना बडा
बखेडा तो खडा नही होता ! ठीक है कल सुबह ही अपने चेले चपाटियों को बोलकर घास
का बढिया छप्पर तैयार करवाते हैं !

अगले दिन जैसे ही भोलेनाथ के गणों भूत,प्रेत, चुडैल और अन्य जितने भी चेले चपाटों
को मालूम पडा कि छप्पर बनना है तो जाके सारा सामान आनन फ़ानन मे जुटा लिया और
देखते ही देखते छप्पर तैयार कर दिया ! छप्पर तैयार होते ही भोले बाबा ने मा पार्वती से परिहास
करते हुये पूछा- इसका भी ग्रह प्रवेश तो करवा लो ! माता बोली- तुम्हारे आगे दो हाथ जोडे !
मुझे नही करवाना कोई ग्रह प्रवेश ! अपना तो ऐसे ही कर लेंगे ग्रह प्रवेश ! और वहां
उपस्थित सारे गणों कि हंसी छुट गई ! मां पार्वती सब काम करके थके हुये भूत प्रेतों और
चुडैलों को नाश्ता पानी करवाया !
और इतनी ही देर मे शिवजी के विशवस्त नन्दी महाराज
ने नारद जी के पधारने की सुचना दी ! और भोले नाथ बाहर जाकर सादर उनको अन्दर
लिवा लाये ! कुटिया बडी सुन्दर बनी थी ! नारद जी भी बडे प्रसन्न हुये ! परन्तु अगले ही
पल नारद जी के माथे पर, कुटिया के भविष्य को लेकर चिन्ता की लकीरे पड गई !
नारद जी को इस तरह परेशान हुवा देख कर भोले बाबा ने नारद जी से कारण पूछा !
और नारद मुनि बोले -- (क्रमश:)

मग्गाबाबा का प्रणाम !

दशानन द्वारा मुहूर्त संपन्न और भोलेनाथ का दक्षिणा के लिए आग्रह

कैलाश पर बडे उत्साह का माहोल था ! जिसे देखो काम मे व्यस्त ! भोलेनाथ
इससे पहले सान्सारिक कामों मे इतने व्यस्त पहले कभी नही देखे गये ! माता
पार्वती का तो हाल ही मत पुछो ! किस मेहमान को कहां ठहराना है ? किस तरह
सब व्यवस्थाएं होंगी ? इसी कार्य मे व्यस्त थी आज कल ! कुछ नजदीकी लोग आ भी चुके
थे ! वो इस स्वर्ण नगरी को देख कर रोमांचित थे ! इतना सुन्दर नगर अब से पहले
इस संसार मे पहले कभी नही बना था ! अभी आप को इस पर यकीन नही हो रहा होगा !
पर आगे आपको मालूम पडेगा कि इस नगरी की भव्यता और ऐश्वर्य का वर्णन कवियों
ने किस तरह किया है ?
इतना भव्य निर्माण सम्पन्न हो चुका था ! बस तैयारी थी इसके
ग्रह प्रवेश की ! ब्रह्माजी से विचार विमर्श अनुसार पराक्रमी दशानन को भोलेनाथ ने
निमन्त्रण और निवेदन दोनो भेज दिये थे ! बस सिर्फ़ महाराज दसग्रीव दशानन की स्विक्रिति
आने का सभी को बेसब्री से इन्तजार था ! और माता पार्वती को तो पूरा यकीन था कि
दशानन रावण की स्विक्रति मे कोई अडचन ही नही होगी ! क्योंकी माता पार्वती को भोले
नाथ और दशानन रावण के रिश्तों के बारे मे पता था !


उधर महाराज दशानन अपने नित्य कर्म अनुसार शिव जी की पूजा मे तल्लीन थे ! अचानक
उनको लगा कि भोलेनाथ ने आवाज दी है ! महाराज रावण ने आंखे खोल दी ! सामने देखा-
साक्षात भोलेनाथ खडे हैं ! दशानन की मानो मुराद पूरी हो गई ! भोले नाथ नमन
करना चाहते थे दशानन को ! क्योंकी वो उसे अपना पुरोहित बनाना चाहते थे ! और
पुरोहित को आदर देना हमारी परम्परा रही है ! परन्तू महाराज रावण तो इतने अभिभूत
हो चुके थे कि भोलेनाथ को देखते ही भोले के चरणो से लिपट गये ! भोलेनाथ ने ऊठा कर
अपने प्रिय शिष्य दशानन को गले से लगा लिया ! दोनों पता नही कब तक इसी अवस्था मे
लिपटे खडे रहे ! ये मिलन ऐसा ही था जैसे जीव ( दशानन ) और ब्रह्म ( शिव ) का मिलन हो !
आज दशानन का यह जीवन सफ़ल हो चुका था ! स्वयम शिव उसके दरवाजे आये थे !
जीव स्वयम ब्रह्म के पास जाता है ! पर यहां तो ब्रह्म ही जीव के पास चला आया !
महाराज दशानन की श्रेष्ठता का अनुमान सिर्फ़ एक इसी घटना से भी लगाया जा सकता है !
इस महाबली मे वो आकर्षण था की क्या जीव और क्या ब्रह्म ? सब इससे अथाह प्रेम करते थे !
जो कुछ गल्तियां इस पराक्रमी ने की या जो कूछ इतिहास मे लिखा गया ! उनके बारे मे भी
इस महाबली ने मुझे बताया था ! उनका फ़िर कभी हम उल्लेख विषयानुसार करेंगे !
फ़िल्हाल तो महाराज दशानन खो गये यादों मे !


और एक बात शायद आपको पता हो और नही भी हो ! महाराज दशानन का नाम रावण
भी भोले नाथ का ही रखा हुवा था ! अब आप को ये बात आश्चर्यजनक लग सकती है !
पर हकीकत यही है ! दशानन को भोले बाबा इतना प्रेम करते थे की दशानन के रोने
मे भी उनको सन्गीत सुनाई देता था ! इसी रोने की वजह से उन्होने प्यार का नाम
दे दिया उसे रावण !
और आगे जाकर इसी नाम से ये महाबली प्रसिद्ध हुआ !
बहुत देर बाद दोनो होश मे आये ! और दशानन भोले बाबा को आसन पर बैठा कर
खुद उनके चरणों मे बैठ गया ! दशानन को जो लोग अहंकारी और हठ वादी कहते
हैं उनको शायद मालूम नही है कि वो सिर्फ़ एक पक्ष को ही सुन रहे हैं ! दशानन
की आज तक किसी ने सुनी ही नही ! वैसे इस महाबली को कभी इस बात की फ़िक्र
भी नही रही ! वैसे कोई भी शूरवीर बिना विनय शील हुये शूरवीर नही हो सकता !
और इस शूरवीर की विनय शीलता के तो स्वयम भोले नाथ भी कायल हैं !


भोलेनाथ का यथोचित पुजन सम्मान करने के बाद भोले नाथ ने अपना प्रयोजन
बताया ! और यह सुन कर तो रावण के हर्ष की कोई सीमा ही नही रही ! रावण उस
घडी का इन्तजार करने लगा ! और भोलेनाथ को आश्वस्त किया कि वो समय
पर वहां पहुंच कर सब काम सम्भाल लेगा ! रावण का तो मनोरथ पुर्ण होने वाला था !
नियत समय पर रावण कैलाश पहुंच गया था ! वहां का महोल ऐसा था कि सब देव
मुनि ये सब तो वहां मोजूद थे ही और भोले बाबा के प्रिय भूत प्रेत, चुडैल और उनके
भांति भांति के गण भी वहां उपस्थित थे ! कहने का मतलब यह कि समाज के क्रिमी
लेयर से लेकर तो निचले तबके के लोग भी इस समारोह मे बिना किसी भेदभाव के
शामिल थे ! और यही खासियत भोले नाथ को त्रिलोकीनाथ बनाती है ! है कोई और
देव दानव जो इस तरह सबको साथ लेके चल सके ? वाह भोले नाथ प्रणाम है आपको !


दशानन ने मुहुर्त का कार्य शुरु करवा दिया ! और समस्त देव, दानव, मानव और
तमाम उपस्थित लोग उस समय हत प्रभ रह गये जब दस कन्धर रावण ने अपने दसों
मुखों से मन्त्रोचार शुरु किया ! उसके दसो मुखों से एक साथ निकली वेद मन्त्रों की
गुंज पुरे ब्रह्मांड मे गुंजने लगी ! आज से पहले ऐसा कभी किसी ने भी देखा सुना नही था !
उस समय तीनों लोको मे वेद ध्वनि गुंजायमान हो ऊठी ! चारों तरफ़ दशानन की जय जय कार
होने लगी ! और मुक्तकन्ठ से सबने प्रसंशा करनी शुरू करदी !
भोले नाथ तो अपनी सुध बुध ही खो बैठे थे ! रावण के मन्त्रोचार ने उनको मोहित
कर लिया था ! इतना सम्मोहन तो भोले नाथ को तब भी नही होता था जब दशकन्धर
उनको शिव तांडव स्तोत्र सुनाया करता था !
लगता है आज रावण ने भोले नाथ को
अति प्रशन्न कर लिया था ! मुहुर्त सम्पन्न होते ही भोले नाथ ने दशानन से दक्षिणा
मे अपनी मन चाही चीज मांगने का निवेदन किया ! दशानन ने उनसे निवेदन किया कि
मेरे उपर आपकी असीम अनुकम्पा है ! और आपकी दया से मुझे जो कुछ भी चाहिये वो
सब आपने दे रखा है ! मुझे तो आप सिर्फ़ इस निमित कुछ भी भेंट दे दे ! पर साब वो
कहते हैं ना कि जैसे दुष्ट अपनी दुष्टता नही छोडता ऐसे ही सज्जन अपनी सज्जनता नही
छोडता ! और फ़िर शिव कोई ऐसे ही कोई ओघड दानी थोडे ही कहलाते हैं ?


महाराज दशानन के बार बार इन्कार करने पर भी भोलेनाथ ने जिद पकड ली
और कहा-- मेरे प्रिय रावण , मुझे मालूम है कि तू आज तीनो लोको मे सबसे ज्यादा
बलशाली और ऐश्वर्य शाली है ! पर तू कम से कम मेरी इज्जत का तो खयाल कर !
तूने आज पहली बार पुरोहित कर्म किया है और मुझे मालूम है कि इस संसार मे
तुमसे पुरोहित कर्म का पूछने की भी किसी की हिम्मत नही है ! करवाना तो दूर की बात है !
और तुमने अपने दशों मुखों से जो वेद मन्त्रों का उच्चारण करके मेरा मन मोह
लिया है ! तुमको आज अपनी मर्जी की वस्तू मांगनी ही पडेगी ! और इसे तुम मेरा
आदेश समझो और शर्माना मत जो तुम्हारे पास नही हो वो मांग लो ! आज मैं तुम्हारे
ऊपर पुर्ण प्रशन्न हूं !


भोले नाथ का इतना प्रेम और अनुग्रह देख कर दशानन मजबूर हो गया उस काम के
लिये ! जिस काम के लिये लोग उसको दोषी समझते हैं ! भोले नाथ का आदेश था कि
वो मांगना जो तुम्हारे पास नही हो ! अब रावण ने बोलना शुरु किया ---!
हे देवाधि देव महादेव ! मुझे आपने मेरी सामर्थ्य से भी ज्यादा दे रखा है ! और
प्रभु ऐसी कोई भी वस्तु नही है जो इस समय आपके प्रिय रावण के पास नही हो !
तथापि आपका आदेश शिरोधार्य इस लिये करता हूं कि आपके आदेश की अवहेलना
मेरे लिये म्रत्यु से भी बढ कर होगी ! और दशानन अपने आराध्य देव के आदेश
की अवहेलना करने वाला ना कहलाये ! इसलिये हे महादेव मेरे पास आपकी इस स्वर्ण
नगरी को छोडकर सब कुछ है ! अत: आप पुरोहित कर्म के बदले मे मुझे यह
स्वर्ण नगरी दे दिजिये !
भोले नाथ तो ओघड क्या महा ओघड दानी ठहरे , तुरन्त तथास्तु कह दिया ! पर माता
पार्वती सहित अन्य उपस्थित लोग हत प्रभ रह गये और लक्षमी जी मुस्करा दी ! (क्रमश:)


मग्गाबाबा का प्रणाम !

कैलाश पर निर्माण पूर्णता की और !

भोलेनाथ के आदेशानुसार विश्वकर्मा जी ने बडी मेहनत और लगन से नक्शे
के अनुरुप कार्य शुरू करवा दिया ! किसी भी तरह की कमी नही थी ! सो इस
महल का निर्माण अति शिघ्र और योजना अनुरुप समयावधि मे पूरा होने वाला था !
अब ये महल तो कहने को ही था ! असल मे ये एक पूरा नगर ही था ! पूरे का
पूरा शहर स्वर्ण से बना था ! ऐसा अद्भुत निर्माण आज से पहले देखने मे नही
आया था ! जिसने भी देखा वो देखता ही रह गया ! निर्माण अवधि मे भोलेनाथ
के परम मित्र विष्णू भगवान और लक्ष्मी जी दोनो ही निर्माण कार्य देखने और यथोचित
सलाह देने पधारे थे ! माता पार्वती ने लक्ष्मी जी को धन्यवाद दिया कि
उनकी सलाह मान कर ही ये निर्माण की प्रेरणा मिली ! नही तो भोलेनाथ एक कुटिया
तक बनाने को तैयार नही थे !

जो लोग भी निर्माण देखने आते थे वो मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रहे थे ! आप भी
समझ पा रहे होंगे कि आपने भी जब मकान बनाया होगा तब इसी तरह लोगों
ने प्रशंशा की होगी ! और आपने भी फ़ूले नही समाये होंगे ! भगवान भोलेनाथ
तो कुछ नही इतरा रहे थे पर माता पार्वती को थोडा अहम जरूर आ गया था !
वो जैसे लक्ष्मी जी को जताना चाह रही थी कि तुम ही कोई अकेली स्वर्ण महलो
मे रहने वाली नही हो ! मैने तो पूरी स्वर्ण नगरी ही बसा दी है !

लक्ष्मी जी अपनी सहेली के मन की बात बिना बोले ही समझने मे सक्षम थी !
लक्ष्मी जी ने जबान से तो कुछ नही कहा पर उनके चेहरे पर एक अर्थ पूर्ण
मुस्कराहट आगई ! माता पार्वती जी कुछ समझ नही पाई ! पर भोले नाथ के
चेहरे पे चिन्ता की लकीरे दिखाई देने लग गई ! सच ही कहा है भोले नाथ तो
अन्तर्यामी हैं ! पर माता पार्वती तो भोली भाली हैं वो क्या जानें लक्ष्मी जी की
अर्थपुर्ण मुस्कराहट का राज !


महल का कार्य तेज गति से पुर्णता की और अग्रसर बढ रहा था ! बस फ़ाईनल
स्टेज पर काम आ चुका था ! और अब ग्रह प्रवेश की तैयारियों की बाते शुरु
हो चुकी थी ! कुछ घनिष्ठ मित्र मेहमान स्वरुप कैलाश पधारने की तैयारी
कर रहे थे ! भोले नाथ ने निमन्त्रण पत्र छपवा कर भिजवाना शुरु कर दिये थे !
जोर शोर से तैयारियां शुरु हो गई थी ! और अब असली समस्या आ खडी हुई कि
ग्रह प्रवेश की पूजा कौन करवायेंगे ? पन्डितजी की तलाश करने को लेकर
विचार विमर्श शुरु हो गया ! कोई ऐरै गैरै का ग्रह प्रवेश नही था ! ये तो साक्षात
त्रिलोकी नाथ के ग्रह प्रवेश का परम मनोहर मुहुर्त सम्पन्न होना था ! और सब
तरह के नामों का सुझाव इस कार्य के लिये आने लगे ! पर कोई भी पन्डित उपयुक्त
मालूम नही पड रहा था !

काफ़ी देर मगज पच्ची के बावजूद भी इस समस्या का कोई निदान नही निकला !
इतनी देर मे परम पिता ब्रह्मा जी का कैलाश आगमन हुवा ! भोले बाबा ने उनका
यथोचित स्वागत करके बैठाया और फ़िर इस मुहुर्त को सम्पन्न करवाने के लिये
पन्डित के बारे मे सुझाव मांगा ! अब ब्रह्मा जी बोले -- हे त्रिपुरारि शिव ! आप स्वयम
परम ब्रह्म हैं ! आप मुझे मान देने के लिहाज से ही पूछ रहे हैं ! वर्ना इस सम्सार मे
आपसे क्या छुपा है ? हे त्रिलोकी नाथ सुनिये ! आज भूमन्डल तो क्या ? तीनों लोको
मे दशानन रावण से बढ कर कोई प्रकांड विद्वान पन्डित नही है ! आपकी ग्रह प्रवेश
की पूजा अगर कोई करवा सकता है तो सिर्फ़ और सिर्फ़ दशानन ही है !
ब्रह्माजी का ये सुझाव सुनते ही भोलेनाथ मुस्करा उठे ! जैसे उनकी सारी चिन्ताएं
मिट गई हों ! आखिर क्यॊं ना प्रशन्न होते ? दशानन रावण उनका परम प्रिय जो था !
पर क्या दशानन भोलेनाथ का पुरोहित कर्म करने कैलाश आयेगा ?
आगे का हाल अगली बार (क्रमश:)

मग्गाबाबा का प्रणाम !

भोलेनाथ का महल निर्माण का आदेश

अचानक विचारों से बाहर निकल कर भोले नाथ सोचने लगे अब क्या
किया जाये ? लक्ष्मी जी ने माता पार्वती को महल बनाने का कह कर
मानों कैलाश पर भुकम्प ही ला दिया ! भोले नाथ ने मा पार्वती को
बहुत समझाया कि अपने किस्मत मे महल वहल नही लिखा है ! अपने
तो फ़क्कड ही भले ! पर जिसको माता लक्ष्मी ने पट्टी पढा दी हो वो भला
किसी की कुछ सुन सकता है क्या ? मां लक्ष्मी ने अच्छे अच्छे धनपतियो
को धन रहते हुये भीख मंगवा दी है ! और अथाह धन रहने के बावजूद
उस धन का भोग नही कर पाये !

कोई भी इन्सान धन कमा तो सकता है पर उसका उपभोग कर पायेगा या
नही ये तय लक्ष्मी जी ही करती है ! इसी तारतम्य माता लक्ष्मी ने बताया
था कि उनके रूप कैसे कैसे हैं ! थोडे विषयान्तर के बावजूद भी आप को
ये पढना अच्छा लगेगा !

धन यानी लक्ष्मी कोई भी कमा सकता है ! क्योंकि जो भी मेहनत करेगा
लक्ष्मी को उसके पास आना ही पडता है ! पर पास आने के बाद भी उसका
उपभोग आप कर पायेंगे या नही यह तो लक्ष्मी पर ही निर्भर करता है !
आपने कई लोगो को देखा होगा कि अथाह लक्ष्मी होने के बावजूद भी वो
उसका उपभोग नही कर पाते ! किसी को बिमारी हो जाती है ! किसी को धन
होने के बावजूद खर्च करने मे डर लगता है कि कहीं कम ना हो जाये !
हम इसको बताने मे यहां समय खराब नही करेंगे ! आप स्वयम समझ सकते
हैं जो हम कहना चाह रहे हैं !

लक्ष्मी जी देव मानव दानव सभी के पास चार रूपों मे आती है और ये चार
रूप ही तय करते हैं कि लक्ष्मी का आपके जीवन मे क्या स्थान रहेगा ! और
अगर आप थोडा सा विचार करेंगे तो स्वयम तय कर सकेंगे कि आप की भी क्या
स्थिति है ? आप स्वयम ही तय करे ! किसी दुसरे की आवश्यकता ही नही है !
पर इस कसौटी पर अवश्य जांच ले ! लक्ष्मी के चार रूप हैं जिनमे ये आपकी
मेहनत के प्रतिफ़ल मे आपके पास आती है !

पहला- रूप मां का - जिसके पास भी मां रुप मे लक्ष्मी का आगमन हुवा वो
सारी उम्र उसकी पूजा और सेवा करता रहेगा ! उसके प्रति श्रद्धा भाव रखता
हुवा पुजा करेगा ! पर उसका भोग नही कर पायेगा !

दूसरा-रूप बहन का -- इस रूप मे प्राप्त लक्ष्मी भी सुख नही देती ! बहन रुप मे
आप दूसरा कुछ सोच भी नही सकते ! बहन हमेशा ही भाई के प्रति क्रपण रही
है ! हमेशा भाई से तोहफ़े आदि की इच्छा ही रखती है ! देने के नाम पर हरि नाम !

तीसरा- रूप बेटी का-- ये और भी विकट है और जो भी बेटी के बाप हैं वो समझ
सकते हैं कि ऐसी लक्ष्मी सिर्फ़ पालने और दुसरे को सौंप देने की होती है !
यानी बेटी को पालो और शादी करके दुसरे को सौंप दो ! मतलब आपने इस रूप
मे जो लक्ष्मी कमाई है वह आप दान दे दो , मरने के बाद औलाद को मिल जाये,
यानि आप उसका कुछ भी उपभोग नही कर सकते !

और चौथा- रूप है पत्नी का-- यानी उपभोग के लिये सर्वश्रेष्ठ रूप मे प्राप्त
लक्ष्मी इसी को कहते हैं ! जैसे विष्णू भगवान को प्राप्त हुई लक्ष्मी ! और
ज्योतिष शाश्त्र का ये भी एक राज योग है ! यहां इसकी चर्चा नही करेंगे !
जो भी सज्जान साथ रहेंगे वो समय समय पर पढते रहेंगे ! मतलब पत्नी रूप मे
प्राप्त लक्ष्मी को आप पत्नी रूप मे उसी अनुसार भोग या खर्च कर सकते हैं !
आशा है कम शब्दों मे ही आपको ये समझ आ गया होगा !

तो भोले नाथ ने मां पार्वती को ये उदाहरण दे के भी समझाया पर त्रिया हठ
चाहे कोई भी हो ! देव, दानव, मानव सब मे कहानी तो एक सरीखी ही है !
थक हार कर भोले बाबा ने महल बनाने के लिये नक्शा बनाने का आर्डर
मार दिया ! और विश्वकर्मा को तद्नुसार जल्दी से जल्दी निर्माण कार्य पूरा
करने का आदेश दे दिया ! और भगवान शिव से इतना बडा महल बनाने
का ठेका मिलने की खुसी मे विश्वकर्मा पगला सा गया ! और एडवान्स की
रकम और वर्क आर्डर भी भगवान भोले नाथ ने तुरन्त निकलवा दिये !
विश्वकर्मा का खुश होना जायज ही था ! क्योंकि कैलाश पर निर्माण कार्य
करना बडा चुनौती पुर्ण कार्य था ! अच्छे अच्छे इन्जिनियर भी वहां आज की
तारीख मे निर्माण नही कर सकते !
जबकी तकनीक काफ़ी विकसित हो चुकी है !
और जोर शोर से वहां निर्माण कार्य शुरु हो गया ! और आप मजाक मत
मानना ये उस समय का भी और आज तक का भी कैलाश पर हुवा सबसे बडा
निर्माण था !
और ये कार्य पूरा करने पर ही विश्वकर्मा को विश्वकर्मा के रूप
मे सर्वश्रेष्ठ इन्जिनीयर की उपाधी और अपार धन ख्याती प्राप्त हुई थी !
(क्रमश:)

मग्गाबाबा का प्रणाम !

भोलेनाथ का जवाब भगवान विष्णु को

विचारों मे खोये खोये भोलेनाथ अचानक चिलम का लम्बा कश खींच करबोल

पडे-- हे मित्र विष्णू ! आप व्यर्थ परेशान हो रहे हैं ! आप तो कुछ भी परेशान नही हैं !

अगर मैं तुमको मेरी परेशानी बताऊं तो तुम सोचोगे मित्र कि तुम्हारी परेशानी तो कुछ

भी नही है ! अब बारी विष्णु भगवान के चौंकने की थी ! वो तो समझे बैठे थे कि इस

ओघड दानी को क्या परेशानी हो सकती है ? शाम को झोली खाली कर लेते हैं सो कोई

चिन्ता नही ! और कभी थोडी बहुत हुई भी तो सुल्फ़ा, गान्जा और भान्ग तो है ही

शायद गम दूर करने के लिये ! भगवान विष्णू जी ने भोले बाबा की तरफ़ देखते हुये

कहा -- मित्रमुझे नही लगता कि आप को कोई परेशानी होगी ! आप जैसा सुखी

तो कोई दुसरा हो ही नही सकता !


भोलेनाथ ने कहा -- मित्र अब तुमको क्या बताऊं ? तुम को विश्वास नही होता ना !

तो सुनो ! मैं तुमको जो इतना शान्त और गम्भीर और सन्तुष्ट दिखाई देता हूं

उसके पीछे भी यही कारण है ! आपको मालूम नही है शायद कि मैं यहाँ

कितनी परेशानी मे हूं ! अरे मित्र तुमको तो सिर्फ़ एक लक्ष्मी भाभी से ही

परेशानी है ! और तो कोई तकलीफ़ आपको नही है ना ! पर मुझे यहाँ कौनसी

तकलीफ़ नही है ? ये तो पुछो जरा ! अब विष्णु भगवान को लगा की शायद
भान्ग गटकने के बाद भोले भन्डारी बाबा को सुल्फ़े का डोज कुछ

ज्यादा हो गया लगता है ! और इसीलिये कुछ तो भी बोलने लग गये हैं !

दुनियां भोला कहती तो भगवान शन्कर को है पर वो इतने भोले हैं नही !

असल भोलापन तो परम समझदार विष्णु भगवान दिखा रहे थे जो भगवान

आशुतोष को नशे मे समझने की भूल कर रहे थे ! अरे जिस भोले भन्डारी

के सारे नशे गुलाम हों ! भला उसको कौन से नशे की गुलामी करनी पड सकती है ?

अरे वो तो ये ही भोले नाथ थे जिन्होने समुद्र मन्थन के उस परम हलाहल विष

को भी उठा कर गले मे रख कर नीलकन्ठ बन गये थे ! नही तो उस विष के

प्रभाव से ये दुनियां कभी की खत्म हो गयी होती ! और भगवान आशुतोश को

उस गले मे रखे विष की आग ठन्डी करने के लिये ही ये भान्ग ,गान्जे का

सेवन करना पडता है ! आखिर जहर को जहर ही तो मारता है ! ये भी

एक तरह की कीमो-थेरपी ही है ! और आज के युग का कोई भी डाक्टर आराम

से ये समझ सकता है ! मेरे को तो भगवान आशुतोश ने ऐसा ही बताया है !

मैने भी उनसे पुछा था की आपका हवाला देकर लोग ये नशे करते हैं !

तब उन्होने उपरोक्त राज की बात बताई थी ! आजकल तो फ़ोकट बहाने बाजी

ढुण्ढ लेते हैं पीने पीलाने की ! अरे पीना ही है तो पहले जहर पीओ फ़िर दुसरे

नशे करो ! भोले नाथ के नाम पर ये मोड्डे बाबा और कुछ ग्रहस्थ भी नशे करते हैं !

वो बिल्कुल गलत है !


अब भोले नाथ ने आगे कहना शुरु किया तो जो कुछ उन्होने बताया वो सुन

करा भगवान विष्णू ने उनको प्रणाम किया और बोले मित्र आपने तो मेरी

आंखे खोल दी ! प्रभू इसीलिये आप त्रिलोकी नाथ कहलाते हैं ! आप धन्य है प्रभू !

आपको मेरा बारम्बार नमस्कार है ! अब आप भी सोच रहे होंगे की ऐसा भोलेनाथ

ने विष्णु जीको क्या बता दिया जो अभी तक तो उनकॊ नशे मे समझ रहे थे

और अब उनको बारम्बार नमस्कार कर रहे हैं ! तो लिजिये आप भी सुन लिजिये !


भोलेनाथ ने बताया- मित्र आप नाहक ही दुखी होते हैं ! जीवन मे विसन्गतियां

ही जीवन को पनपने मे मदद करती है ! आप सोचिये मेरी क्या हालत होती है ?

मैं जीवन की इतनी महान विसन्गतियों मे रहता हुं ! आपने मेरी स्थिती पर

ध्यान दिया होगा तो देखा होगा कि मेरा वाहन है नन्दी बैल और आपकी

भाभी पार्वतीका वाहन है शेर ! और वो शेर २४ घन्टे इसी ताक मे रहता है

कि कब नजारा चुके और इन नन्दी महाराज को चीर फ़ाड कर लन्च डिनर

कर ले ! और मैने बहुत समझाया था वाहन खरीदते समय कि मेरे पास

बैल है तुम कोई दुसरा मिलता जुलता ब्रान्ड देख लो ! पर मेरी कोई सुने तब तो !

आपकी भाभीजी को तो ये शेर महाराज वाहन के रुप मे जन्च गये तो जन्च गये !

अब हम हमारी पीडा किसे बताये ? और आगे सुनो -- बडे लडके कार्तिकेय के

पास वाहन है मोर ! और ये जो मोर है ये २४ घन्टे इस फ़िराक मे रहता है

कि कब मेरी नजर चूके और मेरे गले मे ये जो सांप लटक रहा है इसका

कलेवा कर जाये ! और छोटे लडके का वाहन है चूहा ! अब गणेश को भी

मैने बहुत समझाया था कि बेटा तू कोई दूसरी सवारी लेले ! मेरे गले का

ये सांप बहुत खतरनाक विषधर है और ये इस चुहे नामक वाहन का नजर

चूकते ही नामोनिशान मिटा देगा ! पर नही वो तो महा जिद्दी है ! बोला- पिताजी

आप ही सांप की जगह गले मे और कुछ लपेट लो ! मुझे तो चूहा ही चाहिये !

अब ये मेरे गले का नाग इसी जोगाड मे रहता है कि कब गणेश के चुहे

का नाश्ता पानी कर ले !


मित्र अब तो आप समझ गये होंगे ? मैं यहां पुरे परिवार के साथ इतनी

भीषण ठन्ड मे रहता हूं ! पर मुझे कोई शिकायत नही है ! इन विसन्गतियों

के बिना जीवन को पनपने की उमीद नही करनी चाहिये ! जैसे जमीन मे

जब बीज को अन्दर डाला जाता है तो बीज तो सोचता है मर गया मैं तो !

इतना महान अन्धकार ! और अगर वो तुंरत ही घबरा कर बाहर निकल

आये तो क्या कभी पेड बन पायेगा ? नही ना ! तो मित्र जीवन की कुछ

विसन्गतियां जन्म जात होती हैं ! और कुछ हमारी खुदकी निर्मित होती हैं !

हम अपनी खुद के द्वारा निर्मित परिस्थितियों मे तो अपनी गलतियों से

फ़ंसते है और उनसे खुद ही प्रयत्न पुर्वक बाहर निकल सकते हैं पर कुछ

हमारे काबू के बाहर होती हैं ! उनसे हम धैर्य पुर्वक ही मुकाबला कर

सकते हैं ! भोले नाथ के वचन सुन कर भगवान विष्णू ने श्रद्दा पुर्वक

भोलेनाथ को प्रणाम किया और बोले - भोलेनाथ इसी लिये आप जगद गुरु

कहलाते हैं ! (क्रमश:)


मग्गाबाबा का प्रणाम !


(अगले भाग मे पढिये : लक्ष्मी जी के गुरु मन्त्र का माता पार्वती पर क्या

असर हवा ? और इसी क्रम मे दादा दशानन रावण का कैलाश आगमन )



भगवान विष्णु की व्यथा

भोले बाबा को अपने परम मित्र विष्णू जी के साथ बिताये पिछले दिन याद आने
लग गये ! और बाबा पुरानी यादों मे खो गये !

अभी १५ दिन पहले ही तो आये थे उनके परम सखा , परम स्नेही भगवान विष्णू
अपनी भार्या लक्ष्मी जी के साथ कैलाश पर ! कितनी जल्दी अच्छे दिन बीत जाते
हैं ? एक दिन दोनो ही मित्र आपस मे गप शप कर रहे थे ! और शन्कर भोले
अपनी लहर मे बोल उठे -- यार विष्णु भाई , जीवन के असली आनन्द तो आप
ले रहे हो ? और हमारी तो बस युं ही कट रही है !
विष्णू भगवान-- अजी भोले नाथ , मेरे परम आराध्य.. ये क्या कह रहे हैं आप ?
मैं और जिन्दगी के आनन्द ? प्रभु आप क्युं मेरे साथ मजाक करने पर तुले हैं ?
भोले बाबा-- और नही तो क्या मित्र ? हमको देखो , हम यहां ठन्ड , सर्दी, मे
परेशान रहते हैं ! और एक आप हैं कि बिल्कुल सर्दी की चिन्ता नही ! और शेष शैया
पर आराम करते रहते हैं और लक्ष्मी भाभी जैसी सुन्दर और सर्व गुण सम्पन्न पत्नी
आपके चरण कमल दबाती रहती है ! और समुन्दर का शान्त निर्मल वातावरण !
और क्या चाहिये ! आपकी तुलना मे हमारा जीवन ही क्या है ?

भोलेनाथ का इतना कहना था कि भगवान विष्णू जी के सब्र का बांध टूट गया !
उन्होने लगभग रुआन्से अन्दाज मे कहा- मित्र आप मेरे मजे लेना चाहते हो तो आप
अवश्य लो पर आप जो कह रहे हैं उसमे कुछ भी सत्य नही है ! ये सिर्फ़ आपकी
कल्पना भर है ! इस सन्सार मे मुझ जैसा दुखी प्राणी आपको शायद ही मिलेगा !
आप आखिर मेरे बारे मे और मेरी पीडा के बारे मे जानते ही कितना है ?
भोले नाथ बडी उल्झन मे फ़ंस गये ! उनको इस तरह के जवाब की अपेक्षा नही थी !
सो उन्होने प्रश्न सुचक नजरों से मित्र की तरफ़ देखा !

विष्णू बोले-- मित्र मेरी पीडा को कोई आज तक समझ नही पाया ! शायद
समुद्र मन्थन मे मिले जहर को गले मे रख कर आप इतना तकलीफ़ नही पाये
होन्गे जितनी तकलीफ़ मैं रोज भोग रहा हूं ! सबके सामने आप तो हलाहल पीकर
हीरो बन गये और लक्ष्मी को प्राप्त करके मैं स्वार्थी कहलाया और लोग मुझे आज भी
दबी जबान से गालियां देते हैं ! सामने पडकर गालियां देने की हिम्मत तो किसमे है ?
भोलेनाथ आन्खे फ़ाडे अपने मित्र कि व्यथा सुन रहे थे ! विष्णू जी ने आगे कहना
जारी रखा !-- मित्र मुझे एक बात बतावो ! अगर किसी आदमी की पत्नी की सन्गति
खराब हो तो क्या होगा ? अगर उसकी पत्नी का बैठना उठना ही जुआरियों. शराबियों मे हो ?
अगर उसकी पत्नी सिर्फ़ और सिर्फ़ इन असामाजिक तत्वों मे ही खुश रहती हो तो ?
भोले बाबा मन्त्र मुग्ध से देख रहे थे !
अरे मित्र - मुझे नही मालुउम था कि ये भी समुद्र मे मिला एक नायाब विष था !
जिसे मैने अम्रत समझ कर झपट लिया ! उससे अच्छा तो आप वाला विष पी लेता
तो अच्छा रहता ! और भगवान विष्णू थोडे से तैस मे आगये ! भोले बाबा ने उनको
शीतल जल मन्गा कर पिलाया और उन्होने आगे बोलना शुरु किया !

मेरी पत्नी यानि लक्ष्मी जी के गुण तो मेरे सीने मे दफ़न हैं ! कितने गुण बताऊं ?
भोलेनाथ, अब क्या बताऊं ? मेरी पत्नी यानी की लक्ष्मी , ये भले लोगों मे तो
बैठती ही नही ! शरीफ और इमानदार लोगों के यहां जाने से तो एलर्जी है इसको !
सिर्फ़ जुआ सट्टे के अड्डे, शराब बनाने वालों, तश्करो, चोरों, डाकुओं मे बैठना उठना
ही इनको अच्छा लगता है !
अब ये कोई अच्छी बात है क्या ? सिर्फ़ काले धन्धे और काले कारनामे करने वालों से ही
ये खुश रहती है ! अब आपको और क्या क्या बताऊं ! शायद मेरी इतनी बातों से तो
आपको मेरी पीडा का अन्दाज हो जाना चाहिये ! या सब कुछ मेरे मुंह से कहलवाना
ही पसन्द करेन्गे !
भोले नाथ आप बताओ ! जिस आदमी की पत्नी मे ऐसे गुण हों वह कैसे सुखी
रह सकता है ! ऐसा आदमी तो सुख के बारे मे सोच भी नही सकता ! अब जब
इनकी सन्गत और व्यवहार ऐसे लोगों मे यानी चोर ऊठाइगिरों मे है तो इनके विचार
कैसे होन्गे ? आप ही अन्दाज लगा लिजिये !
और भोलेनाथ फ़िर विचारों मे खो गये ! (क्रमश:)
मग्गा बाबा का प्रणाम !

भोलेनाथ और माता पार्वती ....

प्रिय मित्रों, जाते समय जो गुरु मन्त्र लक्ष्मी जी ने पार्वती माता
के कानो मे फ़ूंका था उसने भोलेनाथ को परेशानी मे डाल दिया !
भगवान विष्णू और लक्ष्मी जी तो क्षीर सागर चले गये और यहां माता
पार्वती ने भोलेनाथ की ऐसी तैसी कर दी !

लक्ष्मी जी की बाते पार्वती जी को अन्दर तक हिला गई ! और
उनको लगा कि लक्ष्मी बहन सही ही कह रही थी ! मैं हि बेवकुफ़
थी जो इस भन्गेडी के चक्कर मे आके बच्चों के लिये घर भी
नही बनवाया ! और ये भी कैसा ओघड है कि लोग इसकी जय जय
करके इनका सब कुछ लुट ले जाते हैं और ये वरदान देने के नाम पर
पूरा घर ही लुटा देता हैं ! और अब आगे से ऐसा नही चलेगा ! माता
पार्वती ने ऐसा निश्चय कर लिया ! और उनको गुस्सा तो इतना चढा था
कि सीधे कोप भवन मे ही जाना चाहती थी ! पर भोलेनाथ भी कोई
कच्चे खिलाडी नही थे , शायद इसी डर के मारे उन्होने कोप भवन तो
क्या एक ईंट तक नही लगवायी थी ! शायद इसी लिये अन्तर्यामी कहलाते हैं !
सो जो कुछ भी करना हो , सब कुछ खुले आसमान के नीचे ही करना पडता था !

शाम ढलने को थी और भोले बाबा की परम मनोहारी बूंटी (भान्ग) के
सेवन का समय हो चुका था ! और इस समय तक तो माता पार्वती जी
भोलेनाथ के सामने भान्ग का लबालब कटोरा भर कर पेश कर दिया
करती थी ! पर एक घंटा के उपर का समय हो गया और अभी तक भी
ऐसा नही लग रहा था कि कहीं कोई तैयारी चल रही होगी !

आप भी अगर कोई नशा पता करते होन्गे तो जानते ही होन्गे की नशा
अगर अपने नियत समय पर नही मिले तो थोडी बैचैनी होने लगती है !
जिसे आम भाषा मे तलब लगना कहते हैं ! भोले नाथ ने इधर उधर
नजर दौडाई पर सब कुछ शान्त दिखाई दिया ! पार्वती जी कही दिखाई नही
दे रही थी ! दोनो बच्चों मे से अकेला गणेश अपने चुहे के साथ खेलता
दिख रहा था !
भोले बाबा को लग गया कि कहीं ना कहीं कुछ गड्बड तो
है ! और हो ना हो ये गड्बड भी लक्ष्मी जी ही करके गई होगी ! शाम को
भान्ग के समय इतनी उपेक्षा तो कभी नही हुई ! और भोले बाबा ने उठते
हुये गणेश को आवाज लगाई--- गणेश ओ बेटा गणेश .. तेरी मां
कहां है बेटा ?
और भोले बाबा के दिमाग मे लक्ष्मी जी के बारे मे विष्णु भगवान द्वारा
कही बाते घूमने लगी ! (क्रमश:)

मग्गा बाबा क प्रणाम !

भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी कैलाश यात्रा पर !

प्रिय मित्रों , आइये आज एक मन पसंद कहानी सुनते हैं ! सुनी तो आपने भी होगी !
आपको पसंद है या नही , मुझे नही मालूम ! पर मुझे तो अति प्रिय कहानियों में से
एक है ! ये कहानी हमारे गुरु महाराज बड़े लच्छेदार जुबान में सुनाया करते थे !
वो आनंद तो यहाँ नही आयेगा ! गुरुदेव अब नही हैं ! उनसे यह कहानी
या कोई भी कहानी सुन कर उदास से उदास आदमी ठहाके मारने लगता था !
वो कहते थे की उदास और निराश आदमी को इश्वर मिलना कठिन है !
हमारे अन्दर अंतर्मन में प्रशन्नता पैदा हो जाए , हँसी पैदा होने लगे तो
समझ लेना इश्वर प्रकट होने की संभावना पैदा हो रही है ! गुरुदेव ने हमको
हंसना सिखाया ! हंसते हुए प्रभु की तरफ़ बढ़ने का मार्ग ! पलायन नही !
हँसी खुसी से स्वीकार करना ! जो भी स्थितियां हो !
इस पर फ़िर कभी बात करेंगे ! पर फ़िर भी कोशीश करते हैं ! और आज की शिक्षा
आप ख़ुद ही ढूंढे ! अगली पोस्ट में इसके समापन पर मतलब समझ आयेगा !

जैसा की आप जानते ही हैं की भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का निवास स्थान
क्षीरसागर में है ! अब आज के युग में आप पूछेंगे की साहब ये कौन सा सागर है ?
और कहाँ है ? तो इस को आप समझ लें की ये अपने चेन्नई के आस पास का
समुद्र रहा होगा !
जहाँ सर्दियों में तो ठीक है ! पर गरमी में भगवान विष्णु और
लक्ष्मी जी को बड़ी परेशानी होती होगी ! एक साल गरमी कुछ ज्यादा थी और दोनों
ही परेशान थे ! बिजली सप्लाई भी ठीक नही थी ! सो लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु
से कहा की भोलेनाथ और मां पार्वती से मिले भी काफी समय हो गया और यहाँ
गरमी भी ज्यादा है सो कैलाश पर्वत चलते हैं और दोनों वहाँ चल दिए !

वहाँ पहुँचने पर दोनों का काफी स्वागत हुवा और बड़ी मौज से दिन बीतने लगे !
विष्णु भगवान की गप शप भोलेनाथ से और लक्ष्मी जी की माता पार्वती से
होती रहती थी ! अब इस कहानी की जो गपशप उन्होंने हमको बताई वह तो
हम यहाँ बताने वाले नही हैं ! क्योंकि उसमे कुछ ऎसी बातें भी उन लोगो के
बीच हुई थी की अगर यहाँ सार्वजनिक कर दी तो उन को तो कोई तकलीफ
नही होगी ! क्योंकि वो तो सबके माई-बाप हैं , उनसे क्या छुपाना ?
पर यहाँ के पाठकों को अड़चन हो सकती है ! क्योंकि आज भगवान को भी
भक्त के हिसाब से रहना पङता है और उसी हिसाब से आचरण करना पङता है !
जैसे जब भक्त कहे उसी हिसाब से सो जाए ! जब उठाके भोजन भजन का कहे ,
वो भी कर ले ! जहाँ भी , भले रोड के बीचोंबीच मन्दिर बना के बैठा दे ,
बिना किसी ना-नुकुर के विराजमान हो जाए ! आदि.. आदि... !


खैर साहब , छुटियाँ वहाँ कैलाश में बहुत अच्छी तरह बीती ! अब वहाँ से
विदा होते समय यानी आपने नोट किया होगा की जब भी ऎसी विदाई का
समय आता है उसमे मेहमान को छोड़ने घर के दरवाजे तक आया जाता है
और उस समय औरतों का जो राग चलता है उसे शायद आज की भाषा में
डोर मीटिंग कहते हैं ! और इसी डोर मीटिंग में लक्ष्मी जी ने वो आग लगादी
जिसकी उम्मीद किसी को नही थी ! जब दो औरते मिले और बिना किसी खटराग
के उनके पति रह जाए ! ऐसा असंभव है !

चलते समय लक्ष्मी जी ने माता पार्वती को कहा-- बहन आपके यहाँ इतने
दिनों का आतिथ्य पाकर बड़ा आंनद आया ! अबकी बार सर्दियों में आप
हमारे यहाँ समुद्र में बच्चों के साथ पधारे ! वहा बिल्कुल सरदी नही रहती !
बच्चों को सरदी जुकाम का डर भी नही रहेगा तो आप इस बार आप वहा
अवश्य पधारे ! अब क्या बताऊँ ? आपके यहाँ और तो सब ठीक है और मुझे
कहना तो नही चाहिए पर क्या करूँ ? कहे बिना रहा भी नही जाता !

इतना सुनते ही माता पार्वती सुन्न रह गई उन्होंने सोचा की इनकी
मेहमानवाजी में क्या कसर रह गई ? और उन्होंने भी लक्ष्मी जी के नखरों
के बारे में सुन रखा था सो अब तक वो इसलिए हैरान थी की इन्होने कोई
कसर क्यों नही निकाली और अब असलियत सामने आनेवाली ही थी !
लक्ष्मी जी बोली-- बहन आपके यहाँ और तो सब ठीक है पर ये बात अच्छी नही
लगती की आपने आने जाने वाले मेहमानों के लिए ना तो कोई महल बनवाया
और ना ही बैठने उठने के लिए कोई सोफा या दीवान कुर्सियों की व्यवस्था करवाई
!
अब ये भी कोई बात हुई की जो भी आए बर्फ के ऊपर खुले में सोये और बर्फ
पर ही बैठे ! हम चेन्नई जैसी जगह में रहने वालों को दो दिन तो बर्फ में खेलना
अच्छा लगता है ! फ़िर नही ! मैं तो ख़ुद जुकाम से परेशान हो गई !

अरे भोलेनाथ तो इतने ओघड दानी हैं ! दोनों हाथों से पूरी दुनिया को लुटाते हैं !
और ख़ुद और अपने बच्चों के लिए एक छत भी नही डलवाई आज तक !
अरे तुम भी कैसी मां हो बहन ? अरे मैं आई हूँ जब से देख रही हूँ - गणेश बेटे
की सरदी जुकाम से हालत ख़राब है और बुखार भी रहने लगा है !
और ये सब इस ठण्ड की वजह से है ! कम से कम इन बच्चों के खातिर ही
सही आप भोले बाबा से कहो की ज्यादा नही तो दो कमरे ही बनादे !

और साब इतना कह कर लक्ष्मी जी तो भगवान विष्णु के साथ बैठ कर
क्षीर सागर के लिए गमन कर गई ! और यहाँ भोलेबाबा की जो हालत माता
पार्वती ने करी होगी वो आपको अगली बार सुनायेंगे ! और जो गुरु ज्ञान उन्होंने
दिया उसका क्या अंजाम हुवा ! वो भी अगली बार पढिये !

मित्रों मैंने भी आपके जैसे ही हमारे धर्म ग्रन्थ पढ़ें है ! ये हम भारतीयों को विरासत
में मिले हैं ! और अगर ओपचारिक रूप से ना भी पढ़े हों तो सुन सुन कर ही ये
ग्रन्थ आज तक जिंदा हैं ! लेकिन मैं आपसे एक राज की बात साझा करना चाहता
हूँ की इन ग्रंथों में मैंने एक भी बात ऐसी नही पाई जो की हमारे लिए निरर्थक हो !
हर किस्से कहानी में एक गूढ़ अर्थ और संदेश छुपा हुवा है ! मैं कहानी के माध्यम
से ये सुनाता रहा हूँ ! कहानी बोर नही करती ! हम उसको समझ सकते हैं !
बड़े बड़े उपदेशों में बोझिलता का डर है ! अब इसी कहानी में आपको हँसी भी
आयेगी अगर आप स्वस्थ मन मस्तिष्क वाले हैं तो ! और यही कहानी आप
अपने बच्चों को सुनाइये फ़िर देखिये वो कितना मुसकरायेंगे और आप उनको
संस्कार और संस्कृति शिक्षा भी दे पायेंगे !

मग्गा बाबा का प्रणाम !

समय प्रबंधन के उत्क्रष्ठ उदाहरण !

प्रिय मित्रों , आज कुछ महाभारत से !
महादानी कर्ण का नित्य कर्म दान देना तो था ही पर उनके दान देने में एक
विशेषता और थी की याचक के माँगते ही तुंरत दान कर दिया करते थे !
ऐसे ही महाराज कर्ण एक रोज अपने नित्य नियमानुसार दान कर के उठ चुके थे !
और उनका एक प्रिय आभूषण जो की उतारकर रखा हुवा था उसको उन्होंने बांये हाथ
में उठा रखा था ! उसी समय एक याचक उपस्थित हो गया और दान देने की याचना की !
महाराज कर्ण ने पूछा-- आज्ञा करें ! याचक ने कहा-- आपका यह आभूषण प्राप्त करने
की अभिलाषा है ! महाराज कर्ण ने तुंरत अपने हाथ में जो आभूषण था वह याचक
को दे दिया ! तभी वहाँ उपस्थित किसी सज्जन ने महाराज कर्ण से कहा की आपने
बांये हाथ से दान दिया है ! जबकि दान देने का फल तो दाहिने हाथ से देने पर ही
मिलता है ! महाराज कर्ण ने कहा-- संभवतया आप ठीक कह रहे होंगे ! पर जो वास्तु
इस याचक ने मुझसे मांगी थी वो मुझे इतनी प्रिय थी की अगर मैं उसको बांये हाथ से
अपने दायें हाथ में देता तो मेरी नियत ख़राब हो सकती थी ! फ़िर शायद मैं मना कर
देता ! मैं अपने आपको इतना भी समय सोचने का इस मामले में नही देना चाहता था !

ये प्रसंग भी महाभारत से है और दूसरा भी देखिए महाभारत से ही !

दूसरा प्रसंग देखें महाराज युधिष्ठर का ! किस्सा अज्ञात वास के दिनों का है !
एक दिन सुबह सुबह की बात है ! एक याचक उनके पास आता है ! और उस
भिखमंगे ने उनसे कुछ भिक्षा मांगी ! अब आप जानते हैं की अज्ञातवास के
दिन कोई महाराज गिरी के तो थे नही की आदेश दे दिया और मंत्री ने काम
कर दिया ! वहाँ तो जो कुछ भी करना नही करना ख़ुद ही को पङता था !
उस समय महाराज युधिष्ठर चारपाई बुन रहे होंगे सो भिखमंगे
से बोले -- यार भाई एक काम कर ! तू कल आना और कल आ कर ले जाना !
अभी मैं ज़रा चारपाई बुन लूँ !

तो साहब दादा भीम को तो आप जानते ही हैं ! वैसे तो दादा बाहुबली भीमसेन जी
को सभी ने पेटू और बलशाली पहलवान ही घोषित कर रखा है ! और उनका पूरी
महाभारत में महिमा मंडन भी ऐसा ही है की जहाँ ताकत का काम पड़े दादा को
जोत लो और बुद्धि वाले कामों में उनकी सलाह भी मत लो !
खैर साब जैसे ही महाराज युधिष्ठर ने भिखमंगे को कल आने का कहा तो दादा भीम
तुंरत उठे और पास पडा नगाड़ा उठाया और जोर जोर से बजाते हुए बाहर की
तरफ़ भागे !
अब महाराज युधिष्ठर ने थोडा नाराज होते हुए भीम से पूछा - भाई भीम ये तू
चारपाई बुनवाना छोड़ कर, अचानक ढोल बजाता हुवा बाहर की तरफ़ भाग रहा है !
बात क्या है ? दादा भीमसेन जी बोले -- पूरे समाज को सूचना तो देनी पड़ेगी ना
की मेरे अग्रज ने समय को जीत लिया है ! और एक भिखमंगे को आश्वासन दिया है
की कल आकर भीख ले जाए जैसे आपको पक्का मालुम है की कल आयेगा ही !
ये तो सही में नगाडे बजाने जैसी ही बात है !
महाराज युधिष्ठर को तुंरत बात समझ आगई ! उनको लग गया की ये भी कोई
कोरा पहलवान ही नही है ! आख़िर तो भाई उनका ही था !
उठे और दौड़ कर उस भिखारी को पकडा और क्षमा याचना सहित भीख लेने के
लिए प्रार्थना की ! क्योंकि जो करना है वो अभी ! कल पर टालना तो तभी हो
सकता है जब हमको मालुम हो की कल पक्के से आयेगा ही ! और कल हम भी होंगे ?
हो सकता है कल तो आए पर हम ना हों !

वर्तमान में होने के दो अति सुन्दरतम उदाहरण हैं ये दोनों प्रसंग ! हम भी
अगर हमारे छोटे छोटे कार्यों को भी इस तरह व्यवस्थित रूप से करते चले
जाएँ और कल पर ना छोडे तो आप विश्वाश करें की इतना जबरदस्त बदलाव
हमारे दैनिक जीवन में आता है की आप कल्पना भी नही कर सकते !
जब कोई काम कल के लिए पेंडिंग नही है तो जीवन इतना हल्का लगने लगता है
की हम जीवन के सार को समझने लगते हैं ! क्योंकि हमारे ऊपर कोई दबाव
नही है काम का ! जब भी आपने देखा होगा की आप पर दबाव नही है उस समय
का आपका व्यवहार मित्रों , बच्चों , पत्नी, माँ-बाप और समाज के प्रति कितना
प्रेमपूर्ण रहा होगा ?

आप इस बार साप्ताहिक छुटियों में प्रयोग करके देखें ! एक शुक्रवार आप सब
काम निपटा कर घूमने जाए और अगले को कुछ काम पेंडिंग छोड़ जाए और
उस समय की तुलना करले आपको मेरी बात समझ आ जायेगी !
आपने पहले शुक्रवार अच्छा समय बिताया या दुसरे ?

हमारे शास्त्र तो एक समुन्दर की तरह हैं और आप जानते हैं की समुन्दर
में मूंगे मोती भी होते हैं और सर फोड़ने वाली चट्टाने भी ! आपकी मर्जी है
चाहे मूंगे मोती से अपना खजाना भर ले या चाहे तो चट्टानों से अपना सर फोड़ ले !
उपरोक्त दोनों प्रसंग समय प्रबंधन का उत्कृष्ट उदाहरण हैं !
मग्गा बाबा का प्रणाम !

सत्य में अपार साहस होता है !

प्रिय मित्रों, कल आपसे मिलना नही हो सका ! खैर हम यहां मिलना ना
मिलना , इसको ईश्वर का पुर्व नियोजित खेल मान ले ! या जो भी मान लें !
जब हम रोज मिलने का कार्यक्रम बना लेते हैं तो यह भी एक अखरने वाली
सी बात हो जाती है ! मैं इतने सालों मे पहली बार बिना इन्टर नेट के
२० घन्टे तो गुजार चुका हूं ! और पता नही यह कब तक चालू होगा ?
पहली बार लग रहा है कि ये भी एक नशा हो गया है ! आज चुंकी नेट
बंद है तो किसी से भी बात तो हो नही पायेगी ! मैं एक बहुत पुरानी
किताब आज पढ रहा हूं ! और इस किताब मे मैने एक कहानी पढी है !
मुझे लगता है कि ये कहानी पढी तो आपने भी होगी पर फ़िर वही पहले
वाली सी बात ! नजरिया .. जी अपना अपना नजरिया... अब इसको मेरे
नजरिये से देखते हैं !

कहानी इस तरह है-- एक महान वैग्यानिक हुवा था
गैलीलियो ! और जब इसने ये सिद्ध कर दिया कि धरती चपटी नही गोल है !
तो कोहराम मच गया ! क्योंकी उस समय तक यही माना जाता रहा था कि
धरती चपटी है ! और चुंकी यह तथ्य बाइबल मे लिखा है कि धरती चपटी
है तो अगर गैलीलियो की सनक को माना जाये तो बाईबल गलत हो जायेगी !
और ये धर्म के ठेकेदारों को मन्जूर नही होता ! और ये बात सिर्फ़ ईसाइयत मे
ही नही बल्कि सभी धर्म के ठेकेदार इस मामले मे उन्नीस बीस एक जैसे ही हैं !
खैर हमको उस बहस मे नही पडना है ! गैलीलियो ने कहा-- धरती गोल है !
और सुरज नही बल्कि धरती , सुरज के चक्कर लगाती है ! ये तथ्य पोप को
बहुत बुरा लगा ! सोचिये आज से करीब सवा तीन सौ साल पहले का पोप का राज !

पोप के सामने गैलीलियो को हाजिर होने का आदेश दिया गया ! और नियत
समय पर उसे पोप के यहां हाजिर किया गया ! पोप ने उससे कहा-- तुमने
जो कुछ कहा है उसके लिये माफ़ी मांगो और कहो की धरती गोल नही
बल्कि चपटी है और सुरज ही धरती के चक्कर काटता है , धरती नही !
और इस समय तक सिद्ध हो चुका था कि धरती गोल है और सुरज
के चक्कर काटती है !

लेकिन जो जबाव गैलीलियो ने दिया वह जबाव सुनने
लायक है ! वो बोला- अगर आपको इसमे मजा आता है कि सुरज , धरती का
चक्कर लगाए और धरती गोल ना होकर चपटी ही रहे तो मुझे क्या अडचन है ?
मैं आपके मन मर्जी के शब्द कहे देता हूं ! मगर मेरे कहने से तथ्य नही बदल
जायेंगे ! धरती गोल है और सुरज के चक्कर काटती है तो मेरे माफ़ी मांगने से
यह बात बदल तो नही जायेगी ! मैं आपसे माफ़ी भी मांग लेता हूं ! मैं इस
बात की झन्झट मे पडना ही नही चाहता ! मैने घुटने टेके आपके सामने !
पर मैं व्यर्थ के विवाद मे पडना नही चाहता ! मेरे कथन के लिये माफ़ी मांग
लेता हूं पर मैं क्या करूं ? मेरे माफ़ी मांगने से कुछ होने वाला नही है !

क्या बात कही इस व्यक्ती ने ? कितना मस्त फ़कीराना आदमी रहा होगा ये
गैलीलियो ? बुढा हो चुका गैलीलियो !
इसके जबाव सुन कर तो मेरी
इच्छा हो रही है कि इस फ़क्कड फ़कीर वैग्यानिक के चरण छू लू !
क्योंकी ये व्यक्ति है ही इस काबिल ! ऐसा वकतव्य तो कोई मन्सूर मस्ताना
ही दे सकता है पोप के सामने ! हे मसीहा तुझे मग्गा बाबा के प्रणाम !

चलिये ये कहानी तो आप सब ने सुनी हुई है ! यहां सिर्फ़ दोहराव हो गया !
ये घटना अगर बाईबल से ना जुडी होती तो शायद मैं इसको यहां कहने
की जहमत ही नही उठाता ! पर एक महान धार्मिक ग्रंथ के लिये ये कहानी सिर्फ़
उदाहरण स्वरूप ही ली गई है ! क्या हमारे या अन्य धर्मों के धर्म शाश्त्रों
मे इस तरह की अनेक उल जलुल और ऐसी कहानियां नही है जो कि
अब तो बिल्कुल असामयिक हो चुकी हैं ! या आप भी मानेंगे कि समय
के साथ हर तथ्य का नवीनिकरण होता जाता है ! मेरी समझ से कोई
भी किताब शाश्वत नही हो सकती ! मैं यहां किसी भी धार्मिक पुस्तक का
नाम नही लूंगा पर हमको ग्यान को ग्यान के रुप मे स्वीकार करना पडेगा !
जब भी कोई गैलीलियो पैदा होगा वो पुरानी मान्यताओं को तोडेगा !
और मुझे तो गैलीलियो का अन्दाज पसन्द आया । हम किसी को बदल
तो नही सकते ! पर हम खुद को तो रोशन कर सकते हैं ! हमारा दिमाग
कोई कचरे का डिब्बा नही है कि कोई भी आये और हमारे दिमाग मे अपने
दिमाग का कचरा थूक कर चला जाये ! भले ही कोई भी ग्रन्थ क्यों ना हो !
और मित्रों किसी से उलझना भी क्यों और किसलिये ? सबके अपने अपने
नजरिये हैं ! और मैं तो कहता हूं कि अपनी समझ इतनी इमानदार हो कि
दुसरा हम पर हावी होने की सोच ही ना पाये ! हम भी गैलीलियो के अन्दाज
मे जीवन की समझ विकसित कर पायें !

मुझे नही पता कि अगला जीवन क्या होगा ? और कैसा होगा ? और होगा
भी या नही ? मैं तो यही कोशिश करता हूं कि जो आज है उसको जीने
की कोशिश करे तो आने वाले कल का जीना और सुन्दर हो जाता है !
जीवन बंधे बंधाये नियमों पर नही चलता ! जीवन तो जीने की कला है !
और कोई भी कला खरीदी नही जा सकती ! दुसरों को दुख मत दो !
खुद को भी नही मिलेंगे ! हंसना है तो खुद पर हंसो ! फ़िर देखो , दुसरों
को हंसता देख कर तुमको कितना शुकुन मिलेगा !


हमारा हर कार्य इतनी इमानदारी और सत्य से परिपुर्ण हो कि सामने
चाहे पोप हो या तोप हो , हम भी गैलीलियो के बेफ़िकरी वाले अन्दाज मे
जवाब दे सके ! इस तरह के जीवन की गुणवतता कुछ अलग ही होती
है और ये सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने आत्मविश्वास से ही पनपती है !

मग्गा बाबा का प्रणाम !

बेईमान कौन ?

प्रिय मित्रों , फ़िर से स्वागत है आपका ! मैने एक कहानी पढी है ! ऐसी
कहानियां शायद आप भी रोज पढते ही होंगे ! पर शायद मैने जिस नजरिये
से इसको देखा है आपने ना देखा हो ! कहानी इस तरह है :-

एक गांव मे एक बाबाजी आया हुवा था ! पूरा मायावी दिखाई देता था !
पीत रंग के भगवा वस्त्र , शरीर पर भभुति , रुद्राक्ष की मोटी मोटी मालाएं
गले मे , जटा जुट बांधे हुये ! कुल मिलाकर शक्ल से ही बच्चों को तो
डरावना लगे ! पर जो उसके ही मार्ग के लोग थे उनके लिये भगवान से
कम नही ! बाबाजी ने गांव से बाहर एक पुराने मंदिर पर डेरा लगाया हुवा था !
और जैसा कि होता है वहां चेले चपाटे भी इक्कठे हो ही गये ! चारों तरफ़
बाबा की जय जय कार हो रही थी !

पर क्युं हो रही थी बाबा की जय जयकार ? बात यह थी कि बाबा के पास
आप जो भी ले जावो उसको दूना कर देते थे बिल्कुल शर्तिया ! और दूर दुर
तक बाबा की प्रसिद्धी फ़ैल गई ! किसी ने नोट डबल करवाये और किसी ने
कुछ छोटे मोटे गहने ! बहुत समय चला गया ! फ़िर गांव का जो सेठ था
उसको भी उस पर विश्वास हो गया कि बाबा योगीराज बहुत पहुंचे हुये हैं !
सो सेठ भी एक दिन पहुंचने के लिये तैयार हो ही गया और बाबा तो वहां
डटा ही इस सेठ को पहुंचाने के चक्कर मे था !

रात को जब सब चले गये तो बाबा के पास सेठ चुपके से आया और बोला-
महाराज क्या बताएं ? आप तो अन्तर्यामी हैं ! अब आप तो जानते हैं मेरा
काम है लोगो को ब्याज पर रुपया देना ! और आज कल रुपये की डिमान्ड
इतनी बढ गयी है कि मेरे पास रुपया कम पड जाता है ! उधार लेने वाले
बहुत हैं पर रुपये कम हैं !
बाबा बडे अनमने भाव से सुन रहे हैं जैसे उनको इन कामों मे कोई रुची
ही नही हो ! सेठ ने आगे कहा-- महाराज आप कोई ऐसा जतन करो कि
अपना भी माल डबल हो जाये ! बाबा के अन्दर ही अन्दर तो लड्डू फ़ुट रहे थे
पर उपर से बनते हुये महाराज बोले -- बच्चा हम इस मोह माया से बहुत दूर हैं !
हमको इस नश्वर सन्सार की माया से क्या लेना देना ? ये माया तो आनी जानी है !
फ़िर सेठ ने बडी अनुनय विनय की तो बाबाजी उनका धन दुगुना करने को
राजी हुये ! बाबा ने बताया परसो अमावस की रात शम्शान मे जाना पडेगा !
अगर थोडा बहुत का मामला होता तो यहां बैठे बैठे ही करवा देते पर ये तो
लाखों का मामला है ! सेठ ने सोचा ये कहीं श्मशान का बोल रहा है , वहां से
गायब हो गया तो ? इसके कुछ शन्का व्यक्त करने के पहले ही बाबाजी बोल
पडे-- बच्चा हम तो गरीबों की मदद करने को ईश्वर का जो आदेश आता है !
उसके पालन के लिये ये काम करते हैं और हम रुपये पैसे को हाथ लगाते
नही हैं ! सेठ की तो बांछे खिल गई और उनको लगा की महात्माजी तो परम
दयालू ईश्वर के साक्षात अवतार हैं और उनके चरणों मे लौट गया !
अमावस की रात.. आ गई ! सेठ सारा सोना चांदी, रुपया गहना यानि माल
असबाब पोटली मे बांध कर आ गया परम पिता महात्मा जी के पास ! और
अमावस आने का समय सेठ ने कैसे काटा होगा ये आप कल्पना कर सकते हैं !

श्मशान के लिये सेठ और बाबाजी का गमन शुरु हुआ-- बाबाजी अपनी सोच मे
और सेठ अपनी मे ! अब रास्ते मे बाबा ने बोलना शुरु किया -- देख बच्चा
श्मशान मे भूत प्रेत मिलेंगे पर तू डरना मत ! अगर कोई चुडैल आकर दांत
दिखाये तो भी मत डरना और कोई अस्थि पन्जर अचानक आकर नाचने लगे
तो उसको हाथ से पकड कर फ़ेंक देना ! और जब मै वहां से थोडी देर के
लिये कर्ण पिशाचिनी के साथ डांस करता हुआ गायब हो जाऊगा तब तुम
हिम्मत से काम लेना और मैं वापस नही आऊं तब तक इस रुपये वाली
पोटली को सम्भाले रखना और अगर कोई भूत या चुडैल गुस्से मे आकर
तुमको एक दो झापड भी मार दे तो चुप चाप हिम्मत से खडे रहना !
और ये
सारे भय बताते बताते वो दोनों गुरु चेले श्मशान घाट के बाहर तक आगये !
सेठ को एक बात तो पक्की हो चुकी थी कि बाबाजी नितान्त परमार्थी है तभी
तो कर्ण पिशाचिनी के साथ गायब होते समय पोटली सेठ के पास ही रहेगी
यानी कोई बदमाशी की गुन्जाइश ही नही ! पर जब दुसरी बात याद आयी तो
सेठ की हिम्मत जबाव दे गई ! अब कौन इस उम्र मे भूत प्रेत और चुडैलों के
मूंह लगे ? खाम्खाह का झन्झट क्यों लेना ? सो सेठ बोला-- बाबाजी आप
को मेरे लिये ये काम तो खुद ही करना पडैगा ! मुझे तो डर लग रहा है !
मेरी हिम्मत नही पड रही श्मशान मे घुसने की फ़िर भुत प्रेतों की तो सोच के
ही पसीने आ रहे हैं ! प्रभु आप ही ये पोटली लो और काम करके वापस आ
जाना ! मुझे आप पर भगवान जितना ही विश्वास है ! और बाबाजी ने बडी ना नुकर
करके पोटली उठाई और गायब हो गये और सेठ सुबह तो क्या अगले दिन
दोपहर तक बैठा रहा पर महात्मा जी को नही आना था सो नही आये !

अब साहब सेठ जी रोता पीटता किसी तरह घर आया ! लोग इक्कठे हुये ! पुलिस
मे रिपोर्ट लिखाई गई ! बाबा महात्माओं की बुराईयां की गई ! धर्म के नाम
पर कैसा कैसा धोखा चल रहा है ? ऐसे चालबाज और गुन्डे धर्म की ओट मे
छुपे हुये हैं ! अब यहां तक की कहानी मे तो कोई खास बात नही है ! पर इससे
मेरे मन मे जो सवाल उठे वो जरा देखें आप भी !

अब ये जो सेठ है , ये क्या भला आदमी है ? मुझे ये बिचारा नही बल्की महा
बेईमान आदमी लगता है !
ये खुद की चालबाजी से फ़ंसा है ! ये उस बाबा की बदमाशी से नही फ़ंसा है
बल्कि खुद की बेईमानी की वजह से लुट कर बैठा है ! अगर ये इमानदार आदमी
होता तो क्या इस तरह से नोट डबल करवाता ? नहीं ! बल्कि इमानदार होता
तो कहता भाई मुझे नही करवाना इस तरह के डबल नोट ! ये तो गैर कानुनी हुवा !
मेरे हिसाब से वो बाबा तो जब पकडा जायेगा तब पकडा जायेगा !
पर मुझे ऐसा लगता है कि असली गल्ती इस सेठ की है इसको सबसे पहले
सजा मिलनी चाहिये ! कानून जो भी कहता हो पर मुझे तो ऐसा ही लगता है !
अरब मे एक कहावत है कि सच्चे आदमी को धोखा देना मुश्किल काम है !
सच्चे आदमी को धोखा दिया ही नही जा सकता ! क्योंकि धोखा देने के सारे
उपाय झुंठे और बेइमान आदमी पर ही काम कर सकते हैं ! मुश्किल काम है किसी
इमानदार के साथ बेईमानी करना ! ईमानदारी की महिमा ऐसी है कि बेईमानी
उसको छू भी नही सकती ! जैसे सुरज को कभी अन्धेरा नही छूता !



(प्रिय अभि, शायद तुम मुझे माफ़ करोगे ! पर गलती तुम लोगो की ही थी , किसी और की नही )

गुरु गोरख नाथ की नजर में संसार

प्रिय मित्रों , आज फ़िर गप शप के लिये इक्कठे हैं ! कभी कभी
लगता है की बहुत कुछ हो गया ! ये गलत हो गया , वो सही हो गया !
वैसे हमारी आदत हो गई है कि हम भीड मे रहने के आदी हो चुके
हैं ! हम अकेले नही रह सकते हैं ! हमको दोस्त चाहिये ही ! और
अभी कुछ समय पहले मैने कहीं पढा था कि दोस्त का मतलब होता
है-- दो + अस्त यानि दोस्त ! मतलब आप किसी के साथ निबाहते
हुये सम्बन्ध तो कायम रख सकते हैं पर उसे अगर दोस्ती का नाम देते
हैं तो क्या आप सही कर रहे हैं ? दोस्त का मतलब होता है कि एक
दोस्त तकलीफ़ मे आया तो दुसरा उसके लिये अस्त हो जाये ! ऐसे
कितने दोस्त आपको मिले हैं ? शायद आज के इस व्यवसायिक युग मे
ये बात किस्से कहानियों तक ही सीमित रह गय़ी है ! जब तक मतलब
है उनको तब तक आपके पक्के दोस्त नही तो कौन किसके ?

भले ही नकली सही आखिर और चारा भी क्या है हमारे सामने इन
तथाकथित दोस्तॊं के सिवा ? हमको भीड मे रहने की आदत हो गई है !
अकेले हम रह नही सकते ! अकेलापन हमको काटने को दौडता है !
और जब तक आप भीड मे हैं आप उस परमानन्द की झलक भी नही
पा सकते ! क्योंकी उसको अगर नाम भी दोगे तो क्या दोगे ? क्योंकी उस
परम सत्ता का आज तक किसी को ओर छोर भी नही मिला ! और जिसने
भी उसको महसूस किया वही चुप रह गया ! बोलने के काबिल नही रहा
या क्या हो गया ! इसलिये परमात्मा की इस सत्ता को समझना शब्द
भी गलत होगा , क्योंकी अगर समझ गये तो बयान भी कर सकते हैं ! और बयान
आज तक कोई कर नही पाया सो मेरी समझ से हम सिर्फ़ उस परम तत्व
को महसूस ही कर सकते हैं ! और इसके लिये हमे अकेले रहने की आदत
चाहिये ! और दुनियां मे कोई भी काम इतना मुश्किल नही है जितना की
अकेला रहना ! आप कोशिश करके देखें कि आप कितनी देर अकेले रह
सकते हैं ! आप कहेन्गे मैं तो कम्प्युटर के सामने घन्टों घन्टों अकेला बैठा
रहता हूं ! भाई मेरे धोखा किसे दे रहे हैं आप ? यहां तो मैने सबसे ज्यादा
भीड देखी है ! जान ना पहचान और शुरु हो गये ! कमाल की दुनियां है साब !
पर मेरा मतलब इतना ही है कि ये भी भीड का ही हिस्सा है ! असली एकान्त
का अलग ही मजा है ! कोशीश कर देखें घडी दो घडी कभी ! क्या बुराई
है ? युं भी कौन सी कमाई आप कर रहे हैं ?

इसी सन्दर्भ मे गोरखनाथ जी ने कहा है कि --

एकाएकी सिध नांउं, दोइ रमति ते साधवा !
चारि पंच कुटंब नांउं, दस बीस ते लसकरा !!


सिद्ध हमेशा अकेला है ! चाहे फ़िर कहीं भी रहे ! वह भीड मे,
सारे तमाशे मे रह कर भी अकेला ही है ! यानि सिद्ध वही जो अपने निज
मे पहुंच गया ! हो गया फ़िर वही तत्व का जानने वाला ! अपने आप मे रम गया !
हो गया नितान्त अकेला ! दुनिया दारी करता हुवा भी दुनियां मे नही है !
हो गया जीते जी भीड से बाहर ! ये हो गया अद्वैत !

इसके बाद हैं वो लोग जो अकेले पन से राजी नही हैं ! उनको एक और
चाहिये ! इनको गोरख नाथ जी ने साधू कहा है ! इनका एक से काम नही
चलता ! जैसे पति या पत्नी ! मित्र, गुरु या शिष्य, ! भक्त भी राजी नही
अकेला , उसको भी भगवान चाहिये ! इनको बस सिर्फ़ एक और चाहिये ! यानी
द्वैत ! इस स्तर पर दो मौजूद रहेंगे ! और इनको इसी लिये साधू कहा कि
चलो सिर्फ़ दो से राजी हैं ! कोई ज्यादा डिमान्ड नही है !
काफ़ी नजदीक है एक के ! सो ये भी साधू ही है !

और जो चार पांच से कम मे राजी नही है ! वो ग्रहस्थ है पक्का !
वो दो से राजी नही उसको अनेक चाहिये ! बीबी बच्चे, नौकर चाकर सब कुछ !
पहले अकेले थे, फ़िर शादी करली, इससे भी जी नही भरा ! बच्चे पैदा हो
गये ! नही भरा जी, और अब कुछ तो करना पडेगा ! इतने से राजी नही है !
तो किसी लायन्स क्लब या और कोई सन्स्था को जिन्दाबाद करेगा ... और ज्यादा
ही उपद्रवी हुवा तो फ़िर उसके लिये तो कोई भी राजनैतिक पार्टी इन्तजार
ही कर रही होगी ! इतने बडे उपद्रवी आदमी को तो किसी पार्टी मे ही
होना चाहिये ! यानी ये बिना उपद्रव करे मानेगा नही !

और जो लोग दस बीस की भीड से राजी नही , जिनको पूरा फ़ौज
फ़ांटा चाहिये ! और जो किसी कीमत पर सन्तुश्ट नही है वो होता है
असली सन्सारी !

सिद्ध गोरखनाथजी ने ये चार तरह के मनुष्य बताए हैं ! अब हम इस कहानी
पर मनन करते हुये दो चार मिनट का मौन यानि अन्तरतम का मौन भी
रख सके तो गुरु गोरख की सीख सफ़ल ही कही जायेगी ! आज तो उनका
नाम भी लेना फ़ैशन के विरुद्ध है ! यानि हम उमर खैयाम को भी वाया
फ़िटजेराल्ड पढना पसन्द करते हैं !
और वही होगा जो उमर खैयाम के
साथ हुआ ! मित्रो आपके पास ज्यादा नही तो एक मिनट का समय तो होगा ही !
मेरे कहने से आप एक मिनट ही कोशीश करके मौन रखने की कोशीश करें !
क्या पता कब परमात्मा , कौन सी घडी मे आपके उपर बरस पडे !

मग्गा बाबा का प्रणाम !

कुछ जवाब पुराने मित्रों को

प्रिय मित्रों, मैं आपको बता दूं कि ये ब्लाग पहले सार्व जनिक नही
था ! और कुछ मित्र आपस मे ही यहां पर गप शप किया करते थे !
कहने को तो हम इसको अध्यातम चर्चा कहते थे पर मैं आपको
बताऊं कि इस नाम की कोई चर्चा नही होती ! आध्यात्म इतना सस्ता
या दो कोडी का नही है कि आप और हम उसके साथ व्यभिचार कर सके !
आध्यात्म या धर्म हर व्यक्ति का सबसे निजी मामला होता है ! इसकी चर्चा
करना तो दूर , आप इसे अपनी बीबी बच्चों से भी नही बांट सकते ! सीधे
शब्दों मे कहूं तो परमात्मा इतना सस्ता भी नही है कि आपकी इन ऊलजलूल
चर्चाओं के चक्कर मे आकर आपका गुलाम ब जायें !


आध्यात्म या धर्म की चर्चा के नाम पर जो कुछ होता है ! उससे भी
सभी वाकिफ़ हैं ! वहां जो कुछ होता है उसकी वजह से ही लोग
धर्म से विमुख होते चले गये ! उन मन्चो पर आज तक जो कुछ हुआ है!
वो बडा शर्म नाक हुआ है ! पहले बातें उजागर नही होती थी पर
आज मिडीया इतना सुलभ और सस्ता है कि हर जगह की पोल पट्टी
सबके सामने खुल जाती है ! खैर हमारा ये विषय कम से कम इस स्थान
पर तो नही ही है !


यहां आप सोच रहे होंगे कि आज ऐसी बातें क्यो हो रही हैं ? तो मैं
आपको बतादुं कि कुछ पुराने मित्रों के फ़ोन आये थे ! और इस ब्लाग
को सार्वजनिक करने की वजह से उनको पीडा पहुंची है ! ऐसा मुझे लगता
है ! मैं उन सभी मित्रों से निवेदन करना चाहुंगा कि मेरी किसी को
कोई ठेस पहुंचाने की इच्छा न तो पहले थी और ना अभी है ! अगर
आपको कुछ गलत लग रहा हो तो स्वयम आत्म विवेचना करे ! आपको
उत्तर स्वत: ही मिल जायेंगे ! और अगर आप इस चीज को अपना
विशेषाधिकार समझ रहे हों तो आप भयन्कर भूल कर रहे हैं !


मैं यहां कुछ बाते सपष्ट कर देना चाहता हुं कि मुझे सभी से एक जैसा
ही स्नेह है ! मेरी तरफ़ से कोई कमी नही है , अगर कमी है तो किसी
की समझ मे होगी ! और समझ सबकी अपनी अपनी होती है ! कोई भी
किसी की समझ को बदल नही सकता ! और एक बात सपष्ट कर दुं कि
अब से बाबा किसी की भी बात का व्यक्तिगत इ-मेल से जबाव नही
दे पायेंगे ! अन्यथा ना ले ! जो भी सवाल जबाव का आदान प्रदान
होगा वो सार्व जनिक रुप से होगा ! त्वरित उत्तर की अपेक्षा ना रखें !
सार्वजनिक रुप से जैसे जैसे नम्बर आयेगा ! उसी अनुक्रम मे उत्तर
दिये जायेंगे !


कुछ मित्रों की ये भी सलाह आई है कि इसे सार्वजनिक ब्लाग रहते
हुये ही सामुदायिक ब्लाग का दरजा दे दिया जाये ! सो ये एक प्रयोग
ही होगा ! इसका कोई अनुभव अभी नही है ! अगर किसी भाई के पास
इस का कोई अनुभव हो तो अवश्य सुझाव देवें ! इस पर सोचा जा सकता है !
पर अभी मुझको ये समझ नही आ रहा है !


पुन: मैं आप सबसे निवेदन करुन्गा कि आप मान अपमान के चक्करों मे ना पडे
और विशुद्ध रुप से जो परम तत्व है ! उसको देखे और वो इतना सस्ता
नही है कि आप के या मेरे समझ आ जायेगा ! मेरी धर्म की अपनी
समझ है और आपकी अपनी है ! और ना मैं किसी पर कुछ थोपा जाना पसन्द
करता हूं और ना अपने उपर किसी को थोपने देना चाहुंगा !


जीवन मे परम आनन्द ही आनन्द है अगर हम लेना चाहे ! परमात्मा ने
किसी को रोका नही है आनन्द लेने से ! पर ये तो कर्म हमारे ही फ़ूटे हैं !
जो हम आनन्द नही ले पाते ! किसने रोका है आपको आनन्द लेने से ?
आप स्वयम ही स्वयम के दुशमन हैं ! स्वयम से दुश्मनी छोड दो
परमात्मा का आनन्द बरसने लगेगा ! भाई जिन्दगी को अखाडा मत बनावो !
ये जीवन बहुत सुन्दर है ! मुझे तो जीवन मे सुन्दरता के अलावा और
कुछ दिखाई हि नही देता ! पता नही आप क्यूं परेशान हैं ?
उत्तर कोई बाबा के पास नही मिलेगा ! सिर्फ़ आपका अन्त:करण ही इसका
जबाव देगा ! और आप ये सोचते हैं कि किसी बाबा की शरण मे जाने से आप
सुखी और शान्त हो जायेन्गे तो ये आपकी परम भूल होगी ! मेरा निवेदन है कि
अगर बुखार आपको चढा है तो दवाई आप खावोगे तो बुखार उतरेगा !
बाबा के खाने से आपका बुखार थोडी उतर जायेगा ! इससे अच्छा है आप
अपना कीमती समय खराब ना करें !


आज का अन्तिम सवाल भाई भाटिया जी का ले लेते हैं ! कायदे से ब्लाग
शुरु होने पर पहला सवाल उनका ही था कि इस ब्लाग को नारद पर
क्युं नही रजिस्टर करवाते ? मित्र भाटिया जी अगर आपने यह सब रामायण
पढ ली होगी तो आपके सवाल का जवाब आपको स्वत: ही मिल गया
होगा ! वैसे हमारा किसी का भी उदेश्य यहां किसी प्रकार से प्रशिद्धी
पाने या प्रचार पाने से कभी नही रहा और अब भी हमारी कोशीश
यही रहेगी कि प्रचार से दूर सब अपने निजि शान्ति के क्षणों को
यहां एक दुसरे से बांट सके ! और मेरी समझ से तो यहां सभी
जानना ही चाहते हैं ! यहां कोई सम्पुर्ण नही है ! तो इसे अखाडा ना बना
कर एक शान्त माहोल मे ही चलने देना चाहिये ! जब भी किसी भाई का
मन शांत नही हो वो यहां आकर शान्ति अनुभव कर सके ! जीवन मे सतत

आनंद की बरसात हो रही है ! उससे वंचित हैं तो दोष आपका हो सकता है , किसी दुसरे

का नही !
मग्गा बाबा के प्रणाम !

महाबली दशानन और कुछ विवेचना

प्रिय मित्र स्मार्ट इंडियन ,

शिव तांडव स्तोत्र के १२ वे श्लोक की अन्तिम लाइन आपने लिखी है !

समः प्रवर्तिका कदा सदा शिवम् भजाम्यहम ?

इस लाइन का अर्थ होगा की मैं कब समान भाव रखता हुवा सदाशिव को भजुन्गा ?

ये उस महा मानव की प्रार्थना की पराकाष्ठा है ! शिव तांडव स्तोत्र का मैं मेरे आरंभिक
साधनाकाल से पाठ करता आया हूँ ! यहाँ ये प्रासंगिक नही है ! पर ये मेरी आल टाइम
फेवेरिट रचना है ! जैसे महा बलि स्वयं आज भी इसे हमें ख़ुद सूना रहे हों !
आपको अगर सिद्धियाँ प्राप्त करनी हों तो आज भी ये जीवंत है ! आप प्राप्त कर सकते हैं !
इस महामानव रावण में मेरी गहरी दिलचस्पी रही है ! और उसके कुछ निजी कारण भी हैं !
इस विशालकाय मानव के बारे में इतने आसानी से आप और मैं कुछ नही कह सकते !
सदियाँ लग जायेंगी ! फ़िर भी इतिहास पूरा नही होगा ! कभी संयोग बना और ये महामानव
अगर मेरे द्वारा कुछ लिखवाना चाहेगा तो मैं माध्यम जरुर बनना चाहूँगा !
मेरा प्रिय हीरो दशानन ! मेरा पूर्वज महाबली रावण ............!

हमारी चर्चा प्रार्थना पर थी और दादा रावण को आप कहाँ से ले आए ?
मेरी सबसे कमजोर नस यही चरित्र है ! मुझे ऐसा लगता है जैसे दादा आज भी
मुझसे बातें करते हैं !

ये तो दादा की पराजय हो गई वरना इतिहास ही कुछ और होता !
सत्यमेव जयते का अर्थ साधारण तया होता है सत्य की हमेशा जीत होती है !
पर दादा ने मुझे बताया की नही इसका मतलब होता है -- जिसकी जीत होती है
सत्य उसीका होता है ! और इस महा बली के साथ भी यही हुआ !
जिस आदमी का विश्वस्त भ्राता ही दुश्मनों से जा मिले उसकी पराजय में संशय
ही क्या है ? अन्य जो भी कारण रहे हो पर ये एक बड़ा ही सशक्त कारण रहा है !
सामने भी कोई कमजोर हस्ती नही थी ! स्वयं भगवान राम थे !
दादा को हार जीत का भी कोई गम नही था ! उनको तो जो काम मानवता के
लिए करने को बच गए उनको पूरा ना कर पाने का मलाल भी अंत समय तक रहा !
और भगवान् राम ने जब श्री लक्षमण जी को दादा से ज्ञान लेने भेजा था तब भी दादा
ने कहा था की वो सोने में सुगंध लाना चाहते थे , स्वर्ग को सीढियां लगाना चाहते थे आदि.....
इनका मतलब बहुत कुछ है ये फ़िर कभी भविष्य में हम लोग विचार करेंगे !

जब भगवान राम ने लक्षमण जी को कहा की जाओ महाबली रावण से नीतियों का
ज्ञान लेकर आओ ! लखन जी को बड़ा आश्चर्य हुवा ! तब राम बोले लक्षमण शत्रू होने
से उनका ज्ञान शत्रु नही हो गया !जाकर पूछो नही तो ये ज्ञान जो मानवता के काम
आयेगा वो रावण के साथ ही चला जायेगा ! और कुछ चीजों के अलावा एक ये चीज
भी दशरथ नंदन श्री राम को भगवान राम बनाने में कामयाब हुई की वे दुश्मन को
भी उचित सम्मान देने में विश्वास करते थे ! इस पुरे युद्ध को देखा जाए तो इसमे बल
और ताकत की दृष्टी से भगवान राम कहीं नही ठहर रहे थे रावण के सामने !
परन्तु जो एक चीज जो इस युद्ध में निर्णायक रही वो भगवान राम की विनय शीलता,
सम भाव , धैर्य और सबको साथ लेकर चलने की दूर दृष्टी ! और जैसा ध्यान के क्षणों
में मुझे दादा ने भी बताया की उन्हें ख़ुद ताज्जुब हुवा था उनकी हार पर !
और उनके कारण भी उपरोक्त ही थे !

युद्धों में जय पराजय चलती रहती है ! लेकिन रावण के कद में इससे कोई बहुत
फर्क नही पङता है ! वो एक उच्च कोटि के कवि, महान साहित्यकार , प्रकांड ज्योतिषविद,
वेदों के ज्ञाता एवं महान राजनीतिज्ञ थे !


अगर इस योद्धा में ज़रा सा सहिस्णुता का अंश थोडा अधिक होता तो आज
इतिहास शायद कुछ और होता ! पर हर इंसान तो उस ऊपर वाले के हाथ
की कठपुतली है ! तो दादा रावण भी उसी नियम के तहत आते हैं !
उन्होंने भी अपना पार्ट इस रंग मंच पर बखूबी निभाया !

और सच है हम सब इस दुनिया के रंग मंच पर अपना अपना पार्ट ही तो
निभा रहे हैं ! हम सब की डोर तो कहीं किसी और के हाथ में हैं !
इस दुनिया में स्वयं इश्वर भी जन्म लेकर आता है तो उसी मदारी की डोर
में बंधा नाचता है !
उस मदारी को मग्गा बाबा का प्रणाम !

आपको मुझे देखने का होश कैसे रह गया ?

प्रिय मित्रों
कुछ मित्रों की जिज्ञासा रही है प्रार्थना के बारे में ! प्रार्थना कैसे करना ? कब करना ?
ये बहुत ही बचकाना सवाल हुआ ! प्रार्थना का मेरे हिसाब से कोई समय नही होता !
ये तो जब प्रीतम की याद आ गई , हो गई उसी वक्त प्रार्थना ! पर शायद कुछ लोग
सब काम व्यवस्थित तरीके से करना चाहते हैं ! और प्रार्थना भी वो एक नियम बद्ध
ढंग से यंत्रवत करना चाहते हैं ! सुबह उठ कर कर लो या नहा कर कर लो ?
मेरी समझ से यह प्रार्थना नही होगी ! ये नियम हो जायेगा ! जब सारा समय ही
परमात्मा का है तो मुहूर्त कैसा ? कौन सा समय ? किसका समय ? सारा समय ही
प्रार्थना का है !

एक पल को शांत होकर आँख बंद हुई की हो गई प्रार्थना ! इसका एक और गहरा
राज है की जब भी उस खुदा की याद , उस प्रीतम की याद आ गयी , बस समझ
लो की हो गई प्रार्थना ! कोई नियम क़ानून कायदे नही हैं ! दिल से निकली सच्ची
फरियाद ही प्रार्थना है !

मेरी वीणा के बिखरे तार सजा दो
उसको क्षण भर आज बजादो
गाकर तुम मेरे गीत , मीत बन जाओ
छूकर प्राणों की पीर , प्रीत बन जाओ

सिर्फ़ माध्यम बनना है ! प्रार्थना भी वही करवाएगा ! तभी सच्ची प्रार्थना हो पायेगी !
नही तो कोरा ढोंग होगा !

मैंने एक कहानी पढी है ! पता नही कितनी सच है और कितनी नही ! पर मुझे ये
कहानी बड़ी प्रीतिकर रही है ! आप भी सुनिए !

एक बहुत पहुंचा हुआ फ़कीर एक रास्ते से जा रहा था ! रास्ते चलतेचलते नमाज
का समय हो गया ! और चूँकी पहुंचा हुवा फकीर था सो जैसे ही समय हुवा वहीं
बीच रास्ते में अपनी चादर फैला कर परमात्मा या खुदा जो भी आप कहें , उसकी
इबादत कराने बैठ गया ! इतनी देर में एक लड़की जवान सी , भागी चली आ रही है ,
उसको कुछ भी सुध बुध नही है ! बस ऊपर मुंह उठाके बेतहाशा दोड़ती चली आ रही
है ! फकीर साहब ने देखा ... उसको रोकना भी चाहा , क्योंकि वो उनकी बिछाई हुई
चादर के ऊपर से दोड़ती हुई निकल गई आगे !

फकीर साहब को गुस्सा तो बहुत आया ! पर क्या कर सकते थे ? वहीं बैठ कर उसका
लौटने का इंतजार करने लगे ! कुछ समय बाद वो लड़की मस्ती चलती हुई वापस
लौटती दिखाई दी ! उसके चहरे पर इतनी परम संतुष्टी के भाव थे की क्या बताया जाय !
और चेहरा चमक रहा था ! ऐसे लग रहा था जैसे साक्षात परमात्मा से ही मिल कर
लौट रही हो ! उसके पास आते ही फ़कीर साहब ने चिल्लाते हुए पूछा-- ऐ तू कैसी
बदतमीज और बेसलीके की लड़की है ? तुझको इतना भी होश नही रहा की एक फकीर
को , और वो भी खुदा की इबादत करते फकीर की चादर के ऊपर से पाँव रखते हुए
चली गई ? वो लड़की बोली-- फकीर साहब मुझे माफ़ करना ! आप सही कह रहे हैं !
मुझे सही में होश नही था ! पर मैं क्या करूँ ? मेरा प्रेमी उधर नदिया के दूसरी तरफ़
रहता है और घरवाले हमको मिलने नही देते ! और हम मिले बिना रह नही सकते !
काफी सारे दिनों से मौका नही मिला था ! आज मेरे प्रेमी की ख़बर आई थी और मैं
उसके मिलने की याद में सच में इतनी बेसुध हो गई थी की मुझे चादर तो क्या रास्ते
में कुछ भी दिखाई नही दिया ! और मुझे तो ये भी याद नही की आप यहाँ ईश्वर की
प्रार्थना कर रहे थे ! मैं आपसे माफी चाहती हूँ !

उस लड़की ने माफी मांगी और फ़िर बोली ! फकीर साहब मुझे एक बात समझ नही
आई की मैं एक साधारण से इंसान के प्रेम में इतनी पागल थी की मैंने आप जैसे
फकीर के साथ ये हरकत कर दी ! मुझे कुछ भी दिखाई नही दिया और आप तो
अपने प्रेमी (ईश्वर) को याद कर रहे थे ! उस खुदा को जो सब प्रेमियों का भी प्रेमी है,
उसकी इबादत कर रहे थे तो फ़िर आपको मैं कैसे दिखाई दे गई ? आपको मुझे देखने
का होश कैसे रह गया ?

और फकीर निरुत्तर हो गया ! प्रार्थना तो एक मौज है प्रेमी और भक्त के बीच !
और कब प्रेमी का मिलने का संदेशा आ जाए ? तो कोई समय या कानून कायदे
नही बनाए जा सकते !


मग्गा बाबा का प्रणाम !

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