जीवन हमेशा से ऐसा ही रहा है ! अगर हम ये सोचे कि
पिछले युग मे ऐसा था और अब ऐसा है ! नही सब कुछ
वैसा का वैसा ही है ! भक्त पहले भी ऐसा ही था और
आज भी वैसा ही है ! क्या फ़र्क है ? सिर्फ़ समझ का !
असल मे भक्त को ये पता ही नही रहता कि कब उसकी जवानी
आई ? कब चली गई ? कब बुढापा आया ? कब चला गया ?
कब जिन्दगी आई ? कब मौत आई ? कुछ पता ही नही चलता !
उसके अन्दर तो एक ही धुन रहती है ! एक इकतारा बजता ही
रहता है उस परम प्यारे प्रभु के प्रेम का ! जीवन से मिले तो जीवन,
मौत से मिले तो मौत , सुख से मिले तो सुख, दुख से मिले तो दुख !
उसका अपना तो कोई चुनाव ही नही रह जाता !
रोम रोम से राम ! उसका अपना कुछ भी नही है ! मान बडाई से कुछ
ज्यादा लेना देना नही रहा ! लोक लाज भी गई ! राज रानी मीरा ,
नाचने लगी सडकों पर ! मेवाड की महारानी , कभी घुन्घट से बाहर
भी ना झान्का होगा ! पर अब चिन्ता नही रही ! रख दिया सर
उसके चरणों मे ! चिन्ता करे तो वो करे ! गुरु मिल्या रैदास जी !
उड़ गई नींद ! भक्त को नींद भी कहां ?
मैने एक वाकया पढा था स्वामी राम तीर्थ जी के बारे मे ! और वो
यहां प्रासन्गिक होगा ! ये किस्सा है स्वामी जी के अमेरिका से
वापस लौटने के बाद का ! सरदार पुरण सिन्घ जी उनके बडे भक्त
थे ! सो कुछ दिन वो हिमालय मे स्वामी जी के साथ जाकर रहे !
दूर जन्गल मे, बिल्कुल सुन्सान मे है ये बन्गला ! रात को कोई
आता जाता भी नही ! कमरे मे दोनो ही सोये हुये हैं ! आज से पहले
की रात तक तो सरदार साहब स्वामी जी से पहले ही निद्रा के आगोश
मे चले जाते थे ! पर आज किसी कारण उनको नींद नही आ रही थी !
वो जग ही रहे थे !
कमरे मे उन दोनो के अलावा कोई नही है ! सरदार जी को राम राम की
राम धुन सुनाई पडने लगी ! उनको कुछ समझ नही आया ! वो उठ कर
बाहर गये औए बरामदे मे चक्कर लगा कर आये ! बाहर आवाजें कुछ कम
हो गई ! फ़िर वापस कमरे मे लौट कर आये तो आवाजें फ़िर तेज हो
गई ! उनको थोडा आश्चर्य हुवा ! फ़िर राम थीर्थ जी के पास जाकर
देखा तो आवाजें और तेज होती गई ! बिल्कुल नजदीक गये तो स्वामीजी
गहरी नींद मे सोये पडे हैं ! फ़िर ये आवाजें कहां से आ रही हैं ?
उन्होने सर, पान्व, हाथ सबके पास नजदीक से सुना तो स्वामी जी
के रोम रोम से राम नाम की आवाज आ रही थी ! नींद मे भी उनका
रौआं रौआं राम नाम का जाप कर रहा था !
और आप चकित मत होना ! ये वैसे ही होता है जैसे २४ घन्टे
गालियां बकने वाला नींद मे भी गालियां ही देता रहता है ! ऐसे
ही २४ घंटे प्रभु स्मरण करने वाला व्यक्ती नींद मे भी राम का
सुमरण ही करेगा ! अपने कार्य को करते हुये जिसने अपने को
अलग कर लिया वो इस जगत मे रह कर भी इस जगत मे ना रहा !
उसके लिये जीना और मरना कोई क्रिया नही रही ! वो तो बस है
इस सन्सार मे और नही भी है !
मग्गा बाबा का प्रणाम !
भक्त का मन हरी में
Wednesday, 30 July 2008 at Wednesday, July 30, 2008 Posted by मग्गा बाबा
Labels: सरदार पूरण सिंघ, स्वामी रामतीर्थ
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1 comments:
30 July 2008 at 22:16
रे ताऊ तु तो ध्णे ग्यान की बाते कर रहे से, बहुत सुन्दर, इस को नारद पर क्यो नही लाते भाई, बहुत सुन्दर लेख, धन्यवाद
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