मन मे अनवरत विचार चलते ही रहते है !
और इन्ही विचारोंका चलना ही सन्सार है !
अगर विचार का चलना बन्द हो जाये तो
हम सन्सार से कट जाते हैं !
और थोडी देर के लिये ही सही,
पर जितना आनन्द इस अवस्था में आता है,
उतना दुसरी मे नही !
और इसके लिये किसी विशेष प्रयत्न की आवश्यकता नही है !
भगवान बुद्ध की एक साधारण सी विधी है !
अपनी आती जाती सांस को देखो !
बस देखते देखते ही वो अवस्था आ जायेगी परम आनन्द की !
पर अगर आप देख पाये तो !
बहुत साधारण सी बात दिखती है !
पर उतनी साधारण है नही !
खैर मेरा अभिप्राय सिर्फ़ इतना है कि इससे इतनी मानसिक और शारारिक स्फ़ुर्ति मिलती है कि जिस भी किसी को इसकी एक बार आदत लग गई , वो बस इसी का हो कर रह गया ! समय और स्थान की कोई पाबन्दी नही है !
जब भी जहां भी आपकी इच्छा हो जाये , आप इसका आनन्द उठा सकते हैं ! और समय बीतने के साथ क्या कुछ घट चुका होगा ? यह सिर्फ़ आप समय बीतने के साथ साथ महसूस करते जायेन्गे !
यह है सही मे गुन्गे का गुड !
कभी इच्छा हो या परेशानी महसूस करें तो अवश्य करें ! आपको आनन्द आयेगा और वैसे ही आदत बना ले तो क्या कहने ?
मग्गाबाबा का प्रणाम.
यह है गूंगे का गुड !
Thursday, 31 July 2008 at Thursday, July 31, 2008 Posted by मग्गा बाबा
Labels: एक-विधि
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3 comments:
2 August 2008 at 01:32
जरुर कर के देखे गे, बल्कि अभी देखते हे , धन्यवाद
2 August 2008 at 04:25
मग्गा बाबा की जय हो! यह ब्लॉग तो मैंने पहले देखा ही नहीं था. अभी बैठकर पिछली पोस्ट्स भी पढता हूँ. जानकारी के लिए धन्यवाद.
अज्ञान के लिए माफी, पर एक शंका है - बहुत सी साँसे बहुत से अंगों से होकर आती-जाती हैं - हर साँस के एक पूरे चक्र को पकड़ना है कि किसी एक अंग (यथा नासिका) में ही स्थिर देखना है? बता दें तो बहुत कृपा होगी. आगे भी कुछ सवाल लाता रहूँगा यदि आप माइंड न करें तो.
शुभकामना!
3 August 2008 at 04:00
बाबा प्रणाम ! आपके नाम से कुछ अजीब सा लगता है ! इस ब्लॉग पर पहले ध्यान भी नही गया ! कुछ अपने बारे में बताने की कृपा करेंगे ?
मैंने विधि आजमा कर देखी ! यह कारगर लगी !
क्या इसको नियम पूर्वक करना है ! और कौन से समय करना ठीक रहता है ! बता दें तो ठीक रहेगा !
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