संन्यासी और नर्तकी

बहुत पुरानी बोद्ध कथा है ! ये कथाये सालों से हम कहते
सुनते चले आये हैं ! कभी कभी हमको याद हो आती हैं !
और अचानक जैसे दिमाग से धूल उतर कर सब याद आता
चला जाता है ! आज पता नही क्यों ये कहानी याद आगयी !
एक बोद्ध सन्यासी एक गान्व से गुजर रहा था ! चुंकी असली
सन्यासी है ! अत: उसकी चाल मे मस्ती है !
गजब का सौन्दर्य है उसमे ! अपने परमात्मा
के गीत गाये अपनी ही धुन मे चला जा रहा था !

नगर के मध्य से निकल रहा था तभी एक नर्तकी ने उसको देखा !
और देखते ही उस सन्यासी के रुप और मस्ती पर वो नर्तकी
मोहित हो गई ! इस के यहां एक से बढ कर एक राजे महाराजे
और बडे बडे सेठ साहुकार लाइन लगाये खडे रहते थे !
उसके दर्शन को तरसते थे ! लेकिन ये इस सन्यासी पर मोहित
हो गई ! दुसरे लोगों से उसका नाता था सिर्फ़ धन का ! आर्थिक
शुद्ध रुप से ! उसको किसी से भी प्रेम नही हुवा था ! नर्तकी के
आशिकों और उसमे सिर्फ़ एक व्यापार था ! पर आज इसको प्रेम
हो गया और वो भी इस भिखारी से ! उसपर इतनी मोहित हो
चुकी थी कि उस सन्यासी को देखते ही भाग कर उसके पास गई
और उसका हाथ पकड कर बोली - चलो मेरे घर ! और मेरा प्रेम
निमन्त्रण स्वीकार करो !

उस सन्यासी ने कहा - जरुर आउन्गा तुम्हारे घर ! पर अभी नही !
अभी तुमको मेरी जरुरत नही है ! अभी तो तुम्हारे पास प्रेमी हैं !
तुम्हारे रुप यौवन के दूर दूर तक चर्चे हैं ! और मैने भी तुम्हारे
बारे मे सुना है ! मुझे निमन्त्रण देने के लिये धन्यवाद ! मै अभी
कही जा रहा हूं ! पर ये भरोशा रखना जब भी जरुरत तुमकॊ
लगेगी उस दिन अवश्य आउन्गा तुम्हारे पास !
उसको गहन पीडा हुई ! बहुत गहरी चोट थी , सीधा सीधा
अपमान था ! आज तक प्रेम निवेदन अस्वीकार करने का कापी राईट
इसके पास था ! कई आशिकों को इसने घर से बाहर फ़िंक्वाया
था ! आज इसका प्रेम ठुकरा दिया गया था ! नर्तकी को विश्वास
ही नही हो पा रहा था की कोई उसका प्रणय निवेदन भी ठुकरा
सकता है ! पर क्या करे ? चोट खाई नागिन जैसी हालत हो गई !
सन्यासी असली सन्यासी था ! नागिन का जहर नही चढा ! वर्ना
तो इस नागिन का काटा कभी बच ही नही पाया ! कईयो के घर ये
उजाड चुकी थी ! कितनों को कन्गाल कर चुकी थी !

खैर बात तो घाव की तरह उसको चुभती रही ! कांटे की तरह मीठी
चुभन ! खैर धन और जवानी किस के पास टिकी है जो इसके
पास टिकती ? नाच गाना और व्यापार करते करते इस नर्तकी को
कोढ हो गया ! इसका शरीर गलने लगा ! कल तक जो इसके आशिक
थे ! सब भाग लिये और हद तो तब हो गई जब पुरे गांव ने मिल कर
इसको गांव से ही निकाल दिया !

अमावस की काली अन्धेरी रात मे प्यासी पडी है ! जेठ के महिने
की रात ! लू के थपेडे अभी शान्त नही हुये ! हाय री किस्मत ?
जिसके होठों से लगने को स्वर्ण और रजत पात्र तरसते थे , जल
भी उसके अधरों से लग कर अपने को धन्य ही समझता होगा !
उसकी आज ये दशा ? कोई मिट्टी के बर्तन मे पानी देने वाला भी
नही है ।

अचानक एक सुखद हाथ इसको अपने सर पर महसूस हुआ ! और
ठन्डे पानी का बर्तन इसके होठों से लग गया ! जो प्राण निकलने
को थे ! थोडी देर को लौट आये ! अन्धेरे मे ही पूछा नर्तकी ने !
कौन हो तुम ? वही सन्यासी था ! उसने कहा -- मुझे तुमने २५
साल पहले मुझे आमन्त्रण दिया था ! पर उस वक्त तुमको मेरी
जरुरत नही थी ! तब तुम्हारे पास हजारों चाहने वाले थे ! मैं भी
उनमे से एक होता ! आज जब कोई तुमको पहचानने को तैयार
नही है ! अब मेरी असली जरुरत है तुमको ! मुझे तुम्हारे रुप सौन्दर्य
और हाड मांस से कुछ लेना देना नही है ! मैं तुमको पहचानता हूं !
तुम्हारी आत्मा को पहचानता हूं ! मैं आ गया हूं ! निश्चिन्त हो जावो !
कहानी मे आगे कहा गया है कि वो नर्तकी उस सन्यासी की गोद
मे सर रख कर जिस आनन्द और शान्ति से महा प्रयाण कर गई
वैसा शौभाग्य बहुत कम ही लोगों को मिलता है !

इस कहानी की नर्तकी तो हम सब ही हैं ! जब तक धन , जवानी है
हम इन्सान को इन्सान नही समझते हैं ! और जब अन्त
मे बुढापा दुख देता है तब हमें सन्यासी की याद आती है !
उपरोक्त घटना सच भी हो सकती है ! और ना भी हो तो बडी
उपयोगी और प्यारी कहानी है ! इस नर्तकी की अन्तिम अवस्था
वाले लोगों को हम सन्यासी का प्रेम नही दे सकते ?
हे सन्यासी आपको इस मग्गा बाबा का प्रणाम !

2 comments:

  राज भाटिय़ा

28 July 2008 at 23:58

वहा भाई कितनी ग्यान की बात आप ने बता दी.सभी के विचार ऎसे हो जाये तो इस दुनिया मे स्वर्ग ना हो जाये, धन्यवाद
मे हेरान हु लोगो ने इसे अभी तक पढा नही कया ?

  Smart Indian

2 August 2008 at 04:32

बहुत सुंदर प्रसंग है. यदि हम समय से समझ सकें तो हम भी दृष्टा! ज्ञान बांटते चलिए. हम भी अपना कटोरा लेकर खड़े हैं लाइन में.

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