यह है गूंगे का गुड !

मन मे अनवरत विचार चलते ही रहते है !
और इन्ही विचारोंका चलना ही सन्सार है !

अगर विचार का चलना बन्द हो जाये तो
हम सन्सार से कट जाते हैं !

और थोडी देर के लिये ही सही,
पर जितना आनन्द इस अवस्था में आता है,
उतना दुसरी मे नही !

और इसके लिये किसी विशेष प्रयत्न की आवश्यकता नही है !

भगवान बुद्ध की एक साधारण सी विधी है !
अपनी आती जाती सांस को देखो !

बस देखते देखते ही वो अवस्था आ जायेगी परम आनन्द की !
पर अगर आप देख पाये तो !

बहुत साधारण सी बात दिखती है !
पर उतनी साधारण है नही !



खैर मेरा अभिप्राय सिर्फ़ इतना है कि इससे इतनी मानसिक और शारारिक स्फ़ुर्ति मिलती है कि जिस भी किसी को इसकी एक बार आदत लग गई , वो बस इसी का हो कर रह गया ! समय और स्थान की कोई पाबन्दी नही है !

जब भी जहां भी आपकी इच्छा हो जाये , आप इसका आनन्द उठा सकते हैं ! और समय बीतने के साथ क्या कुछ घट चुका होगा ? यह सिर्फ़ आप समय बीतने के साथ साथ महसूस करते जायेन्गे !

यह है सही मे गुन्गे का गुड !

कभी इच्छा हो या परेशानी महसूस करें तो अवश्य करें ! आपको आनन्द आयेगा और वैसे ही आदत बना ले तो क्या कहने ?

मग्गाबाबा का प्रणाम.

भक्त का मन हरी में

जीवन हमेशा से ऐसा ही रहा है ! अगर हम ये सोचे कि
पिछले युग मे ऐसा था और अब ऐसा है ! नही सब कुछ
वैसा का वैसा ही है ! भक्त पहले भी ऐसा ही था और
आज भी वैसा ही है ! क्या फ़र्क है ? सिर्फ़ समझ का !
असल मे भक्त को ये पता ही नही रहता कि कब उसकी जवानी
आई ? कब चली गई ? कब बुढापा आया ? कब चला गया ?
कब जिन्दगी आई ? कब मौत आई ? कुछ पता ही नही चलता !
उसके अन्दर तो एक ही धुन रहती है ! एक इकतारा बजता ही
रहता है उस परम प्यारे प्रभु के प्रेम का ! जीवन से मिले तो जीवन,
मौत से मिले तो मौत , सुख से मिले तो सुख, दुख से मिले तो दुख !
उसका अपना तो कोई चुनाव ही नही रह जाता !

रोम रोम से राम ! उसका अपना कुछ भी नही है ! मान बडाई से कुछ
ज्यादा लेना देना नही रहा ! लोक लाज भी गई ! राज रानी मीरा ,
नाचने लगी सडकों पर ! मेवाड की महारानी , कभी घुन्घट से बाहर
भी ना झान्का होगा ! पर अब चिन्ता नही रही ! रख दिया सर
उसके चरणों मे ! चिन्ता करे तो वो करे ! गुरु मिल्या रैदास जी !
उड़ गई नींद ! भक्त को नींद भी कहां ?

मैने एक वाकया पढा था स्वामी राम तीर्थ जी के बारे मे ! और वो
यहां प्रासन्गिक होगा ! ये किस्सा है स्वामी जी के अमेरिका से
वापस लौटने के बाद का ! सरदार पुरण सिन्घ जी उनके बडे भक्त
थे ! सो कुछ दिन वो हिमालय मे स्वामी जी के साथ जाकर रहे !
दूर जन्गल मे, बिल्कुल सुन्सान मे है ये बन्गला ! रात को कोई
आता जाता भी नही ! कमरे मे दोनो ही सोये हुये हैं ! आज से पहले
की रात तक तो सरदार साहब स्वामी जी से पहले ही निद्रा के आगोश
मे चले जाते थे ! पर आज किसी कारण उनको नींद नही आ रही थी !
वो जग ही रहे थे !

कमरे मे उन दोनो के अलावा कोई नही है ! सरदार जी को राम राम की
राम धुन सुनाई पडने लगी ! उनको कुछ समझ नही आया ! वो उठ कर
बाहर गये औए बरामदे मे चक्कर लगा कर आये ! बाहर आवाजें कुछ कम
हो गई ! फ़िर वापस कमरे मे लौट कर आये तो आवाजें फ़िर तेज हो
गई ! उनको थोडा आश्चर्य हुवा ! फ़िर राम थीर्थ जी के पास जाकर
देखा तो आवाजें और तेज होती गई ! बिल्कुल नजदीक गये तो स्वामीजी
गहरी नींद मे सोये पडे हैं ! फ़िर ये आवाजें कहां से आ रही हैं ?
उन्होने सर, पान्व, हाथ सबके पास नजदीक से सुना तो स्वामी जी
के रोम रोम से राम नाम की आवाज आ रही थी ! नींद मे भी उनका
रौआं रौआं राम नाम का जाप कर रहा था !

और आप चकित मत होना ! ये वैसे ही होता है जैसे २४ घन्टे
गालियां बकने वाला नींद मे भी गालियां ही देता रहता है ! ऐसे
ही २४ घंटे प्रभु स्मरण करने वाला व्यक्ती नींद मे भी राम का
सुमरण ही करेगा ! अपने कार्य को करते हुये जिसने अपने को
अलग कर लिया वो इस जगत मे रह कर भी इस जगत मे ना रहा !
उसके लिये जीना और मरना कोई क्रिया नही रही ! वो तो बस है
इस सन्सार मे और नही भी है !

मग्गा बाबा का प्रणाम !

संन्यासी और नर्तकी

बहुत पुरानी बोद्ध कथा है ! ये कथाये सालों से हम कहते
सुनते चले आये हैं ! कभी कभी हमको याद हो आती हैं !
और अचानक जैसे दिमाग से धूल उतर कर सब याद आता
चला जाता है ! आज पता नही क्यों ये कहानी याद आगयी !
एक बोद्ध सन्यासी एक गान्व से गुजर रहा था ! चुंकी असली
सन्यासी है ! अत: उसकी चाल मे मस्ती है !
गजब का सौन्दर्य है उसमे ! अपने परमात्मा
के गीत गाये अपनी ही धुन मे चला जा रहा था !

नगर के मध्य से निकल रहा था तभी एक नर्तकी ने उसको देखा !
और देखते ही उस सन्यासी के रुप और मस्ती पर वो नर्तकी
मोहित हो गई ! इस के यहां एक से बढ कर एक राजे महाराजे
और बडे बडे सेठ साहुकार लाइन लगाये खडे रहते थे !
उसके दर्शन को तरसते थे ! लेकिन ये इस सन्यासी पर मोहित
हो गई ! दुसरे लोगों से उसका नाता था सिर्फ़ धन का ! आर्थिक
शुद्ध रुप से ! उसको किसी से भी प्रेम नही हुवा था ! नर्तकी के
आशिकों और उसमे सिर्फ़ एक व्यापार था ! पर आज इसको प्रेम
हो गया और वो भी इस भिखारी से ! उसपर इतनी मोहित हो
चुकी थी कि उस सन्यासी को देखते ही भाग कर उसके पास गई
और उसका हाथ पकड कर बोली - चलो मेरे घर ! और मेरा प्रेम
निमन्त्रण स्वीकार करो !

उस सन्यासी ने कहा - जरुर आउन्गा तुम्हारे घर ! पर अभी नही !
अभी तुमको मेरी जरुरत नही है ! अभी तो तुम्हारे पास प्रेमी हैं !
तुम्हारे रुप यौवन के दूर दूर तक चर्चे हैं ! और मैने भी तुम्हारे
बारे मे सुना है ! मुझे निमन्त्रण देने के लिये धन्यवाद ! मै अभी
कही जा रहा हूं ! पर ये भरोशा रखना जब भी जरुरत तुमकॊ
लगेगी उस दिन अवश्य आउन्गा तुम्हारे पास !
उसको गहन पीडा हुई ! बहुत गहरी चोट थी , सीधा सीधा
अपमान था ! आज तक प्रेम निवेदन अस्वीकार करने का कापी राईट
इसके पास था ! कई आशिकों को इसने घर से बाहर फ़िंक्वाया
था ! आज इसका प्रेम ठुकरा दिया गया था ! नर्तकी को विश्वास
ही नही हो पा रहा था की कोई उसका प्रणय निवेदन भी ठुकरा
सकता है ! पर क्या करे ? चोट खाई नागिन जैसी हालत हो गई !
सन्यासी असली सन्यासी था ! नागिन का जहर नही चढा ! वर्ना
तो इस नागिन का काटा कभी बच ही नही पाया ! कईयो के घर ये
उजाड चुकी थी ! कितनों को कन्गाल कर चुकी थी !

खैर बात तो घाव की तरह उसको चुभती रही ! कांटे की तरह मीठी
चुभन ! खैर धन और जवानी किस के पास टिकी है जो इसके
पास टिकती ? नाच गाना और व्यापार करते करते इस नर्तकी को
कोढ हो गया ! इसका शरीर गलने लगा ! कल तक जो इसके आशिक
थे ! सब भाग लिये और हद तो तब हो गई जब पुरे गांव ने मिल कर
इसको गांव से ही निकाल दिया !

अमावस की काली अन्धेरी रात मे प्यासी पडी है ! जेठ के महिने
की रात ! लू के थपेडे अभी शान्त नही हुये ! हाय री किस्मत ?
जिसके होठों से लगने को स्वर्ण और रजत पात्र तरसते थे , जल
भी उसके अधरों से लग कर अपने को धन्य ही समझता होगा !
उसकी आज ये दशा ? कोई मिट्टी के बर्तन मे पानी देने वाला भी
नही है ।

अचानक एक सुखद हाथ इसको अपने सर पर महसूस हुआ ! और
ठन्डे पानी का बर्तन इसके होठों से लग गया ! जो प्राण निकलने
को थे ! थोडी देर को लौट आये ! अन्धेरे मे ही पूछा नर्तकी ने !
कौन हो तुम ? वही सन्यासी था ! उसने कहा -- मुझे तुमने २५
साल पहले मुझे आमन्त्रण दिया था ! पर उस वक्त तुमको मेरी
जरुरत नही थी ! तब तुम्हारे पास हजारों चाहने वाले थे ! मैं भी
उनमे से एक होता ! आज जब कोई तुमको पहचानने को तैयार
नही है ! अब मेरी असली जरुरत है तुमको ! मुझे तुम्हारे रुप सौन्दर्य
और हाड मांस से कुछ लेना देना नही है ! मैं तुमको पहचानता हूं !
तुम्हारी आत्मा को पहचानता हूं ! मैं आ गया हूं ! निश्चिन्त हो जावो !
कहानी मे आगे कहा गया है कि वो नर्तकी उस सन्यासी की गोद
मे सर रख कर जिस आनन्द और शान्ति से महा प्रयाण कर गई
वैसा शौभाग्य बहुत कम ही लोगों को मिलता है !

इस कहानी की नर्तकी तो हम सब ही हैं ! जब तक धन , जवानी है
हम इन्सान को इन्सान नही समझते हैं ! और जब अन्त
मे बुढापा दुख देता है तब हमें सन्यासी की याद आती है !
उपरोक्त घटना सच भी हो सकती है ! और ना भी हो तो बडी
उपयोगी और प्यारी कहानी है ! इस नर्तकी की अन्तिम अवस्था
वाले लोगों को हम सन्यासी का प्रेम नही दे सकते ?
हे सन्यासी आपको इस मग्गा बाबा का प्रणाम !

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